नेपाल में महाप्रलय की पहली रात
On
आचार्य बालकृष्ण
नेपाल के भूकम्प की भयानक त्रासदी में जहाँ नेपाल के हजारों लोग असमय में काल कवलित हो गये, वहीं विश्वभर के हजारों लोग जो पर्यटन व तीर्थाटन के लिए नेपाल गये थे, वे भी सदा-सदा के लिए हमसे बिछुड़ गये। लाखों लोगों ने अपनी आँखों से जो खौफनाक दृश्य देखे, ऐसे किसी को देखने को ना मिले। उस भयानक व खौफनाक मंजर को हमें भी अपनी आँखों से देखना पड़ा। दैवयोग ऐसा रहा कि श्रद्धेय स्वामी जी व हम भी बाल-बाल बचे। इस आपदा की घड़ी में हम सबका कर्तव्य बनता है कि राजनैतिक व भौगोलिक सीमाओं से ऊपर उठकर, मानवीय संवेदनाओं व भावनाओं को अपनाकर हम पीड़ितों की सेवा के लिए आगे आयें।
उस भयानकतम घटना के परिणाम स्वरूप जहाँ हजारों लोग असामयिक ही मृृत्यु को प्राप्त हो चुके थे, वहीं हजारों लोग घायल होकर भूख व प्यास से बिलख रहे थे। हजारों परिवार बिखर व टूट चुके थे। कुछ सेकेण्ड की यह त्रासदी इतना बड़ा जख्म दे गयी कि शायद सदियाँ भी इस जख्म को नहीं भर पायेंगी; परन्तु यदि हम सब मिलकर प्रयास करें, तो इस घाव पर मरहम लगाने का कार्य अवश्य हो सकता है।
इसी संवेदना का एक विनम्र प्रयास योगर्षि स्वामी रामदेव जी की प्रेरणा से पतंजलि योगपीठ द्वारा किया जा रहा है|
जिस क्षण भूकम्प आया, उससे क्षणभर पहले तक एक कार्यक्रम चल रहा था, जिसमें जीवन की गहराइयों तथा साधना व ध्यान की ऊँचाइयों की चर्चा हो रही थी। लगभग चार-पाँच हजार लोग होंगे, जो तन्मयता से सुन रहे थे, हमने भी कुछ चर्चा की। श्रद्धेय स्वामी जी ने भी सबको योग व अध्यात्म की बातें बताईं, फिर प्रसिद्ध जैन सन्त महाश्रमण जी भी साधना की चर्चा करते रहे। कार्यक्रम समय से थोड़ा विलम्ब से चल रहा था। कार्यक्रम समाप्त हुआ। मैं तो गाड़ी में आ बैठा, स्वामी जी को मिलने वाले मिल रहे थे। जैसे ही स्वामी जी पण्डाल से बाहर निकले, अधिकांशत: लोग बाहर निकल चुके थे। अचानक जोर-जोर की आवाजें आने लगीं, शालिग्राम गाड़ी स्टार्ट कर चुके थे, गाड़ी भी हिल रही थी, मुझे लगा कोई गाड़ी के नीचे न आ गया हो। फिर सामने देखा तो कई माताएँ व पुरुष बेसुध हो अस्त व्यस्त दौड़ रहे थे। मैं भी गाड़ी से उतरा, कुछ समझ पाता उससे पहले देखा कि स्वामी जी व कुछ लोग गाड़ी के पास के पेड़ को पकड़े खड़े थे, हम भी हवा में उड़े से जा रहे थे, पैर जमीन पर टिकते ही न थे, चारों तरफ से जोर-जोर की आवाजें आ रही थीं। देखा सामने स्थित बाल मंदिर (जो काठमाण्डू का पुराना प्रसिद्ध भवन था) का आधा हिस्सा टूटकर गिर चुका था, मैं गाड़ी से बाहर निकल चुका था। पतंजलि के कुछ स्वयं सेवक मुझे भी पकड़ कर सुरक्षित करने का प्रयास कर रहे थे, 'श्रद्धा इतनी गहरी भी होती है, जब अपने प्राण संकट में हों, तो भी अपना प्रिय, अपना गुरु पहले दिखाई देता है। यह मुझे तब प्रत्यक्ष अनुभव हुआ (वैसे मैं अपने आपको कोई गुरु या बड़ा संत नहीं, अपितु एक सामान्य व्यक्ति मानता हूँ) उनकी श्रद्धा को जब याद करता हूँ, तो अब भी सहसा मेरी आँखों में हर्षाश्रु निकले बिना नहीं रह पाते हैं।’
कुछ सेकेण्ड में ही चारों तरफ का नजारा बड़ा भयावह बन गया था, लोहे के कॉलम पर खड़ा टीनशेड वाला वाटरप्रूफ पण्डाल अपने आँखों के सामने झटका सा लेता हुआ धराशायी हो गया। वहीं बराबर की बिल्डिंग का आधा भाग जमीन में मिल चुका था। जो हमारे सामने भवन था, वह हिलता हुआ बीच से ही कपड़े फटने की तरह आवाज करता हुआ फट गया, फिर भी हिलता-हिलता रुक गया। पण्डाल के साइड में बड़े-बड़े पेड़ गिर चुके थे। शुक्र है स्वामी जी ने जो पेड़ पकड़ा था, वह बच गया, सामने की बिल्डिंग फट गयी तथा धराशायी होने से पता नहीं क्यों रह गयी।
'हमारे सामने मृत्यु तीन रूपों में दिख रही थी- टूटता-पण्डाल, उखड़ते-पेड़, गिरती-बिल्डिंग पर पेड़ रक्षक बन गया, जिससे पण्डाल कुछ कदम दूरी पर ही गिरा, बिल्डिंग से हम डरे, पर शायद वह हमें डराकर हमसे डर गयी, या उसे लगा पतंजलि का दिया एक साथ न बुझ जाये, इसलिए अभी इन्हें बक्श दो, हमें छोड़ दिया।’
यदि उस समय हम पण्डाल के अन्दर होते तो न जाने कितनी जानें जातीं, हम भी उनमें से ही कोई एक होते और प्रोग्राम यदि दस मिनट पहले भी समाप्त हो गया होता, तो न जाने भोजनालय में कितने लोग पहुँच गये होते। भोजन के स्थान के पास की बिल्डिंग धराशायी हो गयी थी, जिससे कितनों के प्राण जाते। यदि हम सड़क पर होते तो न जाने किस बिल्डिंग के नीचे होते। सब कुछ याद कर अभी भी स्वप्न सा लगता है। ऐसा लगता है कि वह कोई घटना नहीं, केवल स्वप्न था। पर वह स्वप्न इतना भयानक था कि वह कुछ सेकेण्डों में लाखों लोगों के चीत्कारों, करुण-क्रन्दनों के साथ क्षणभर में सदियों की पीड़ा दे गया।
क्षण भर में ही उस स्वप्न से बाहर निकले, पर जब वह स्वप्न टूटा, तो लोगों के करुण-क्रन्दन पीड़ादायी स्वरूप कभी न भूलने वाला दु:स्वप्न बन चुका था।
उसके कुछ क्षण बाद वहाँ फिर भूकम्प आया। बड़े पेड़ उखड़ने लगे, बड़े-बड़े भवन गिरने लगे, किसी तरह अपने को सुरक्षित करते हुए अन्यों को भी सुरक्षित करते रहे। स्वयं बाल-बाल बचने पर भी अन्य घायल लोगों का कुशल-क्षेम पूछने व उन्हें भय से मुक्त करने तथा जो दबे हुए थे, उन्हें सहायता पहुँचाने का प्रयास किया।
हमने अपनी आँखों से देखा कि किस तरह इस भीषण त्रासदी से जहाँ लाखों जीवन बर्बाद हुए, वहीं इस त्रासदी ने नेपाल की गौरवशाली सांस्कृतिक, पारम्परिक व ऐतिहासिक धरोहरों को भी छिन्न-भिन्न कर दिया। सदियों से जो इतिहास परम्परा के धरोहर व चिह्न थे, अब वे खण्डहर व अतीत बन चुके थे।
उसके बाद वहाँ से किसी तरह पतंजलि योगपीठ, मण्डिखाटार पहुँचकर इस महाप्रकोप से सभी की रक्षा हों, सभी भय मुक्त हों ऐसी भावना से वैदिक मान्यतानुसार यज्ञ प्रारम्भ कर दिया व भगवान् से प्रार्थना करते रहे।
यज्ञ के तत्काल बाद माननीय जैन सन्त महाश्रमण जी व अन्य लोगों का कुशल-क्षेम जानने के लिए उसी मैदान व उसके आस-पास के क्षेत्रों के लोगों की जानकारी लेकर एवं उनसे मिलकर फिर सारे काठमाण्डू में जहाँ-जहाँ जा सकते थे, सभी जगह अत्यन्त चुनौती (रिस्क) होने पर भी क्षति व जानमाल के नुकसान का आकलन करने का प्रयास किया।
कुछ सेकेन्ड का भूकम्प लाखों जीवन का सुख-चैन समाप्त कर चुका था। फोन व अन्य सम्पर्क संवाद के सारे मार्ग अवरुद्ध हो चुके थे, चारों ओर हाहाकार व त्राहिमाम्-त्राहिमाम् दिख रहा था। 'पतंजलि परिवार से जुड़े करोड़ों लोगों को भी आपदा की भीषणता व उस समय स्वामी जी व हमारे काठमाण्डू में होने के विषय में पता था। मीडिया में यह सूचना आ चुकी थी कि भूकम्प के बाद आचार्य जी व स्वामी जी का पता नहीं चल रहा है। इस सूचना के बाद देश-दुनिया के लाखों लोग हमारे लिए आकुल-व्याकुल हो क्रन्दन कर रहे थे। हमारे लिए वह क्षण इसलिए भयावह था कि हम उस को अपनी ऑँखों से देख रहे थे व लोगों के क्रन्दन से द्रवित थे। पतंजलि परिवार के लाखों भाई-बहनों के लिए अनहोनी की आशंका से एक-एक क्षण कितना बेचैन करने वाला रहा होगा? उनकी कल्पना मात्र से ही हमारा मन उद्वेलित व अशान्त हो रहा था।’
'लगभग सायं के पाँच बजे होंगे, भयभीत व चोटिल लोग इधर-उधर भाग रहे थे, टुँडिखेल मैदान (जो काठमाण्डू का सबसे बड़ा मैदान है) जहाँ पिछले दो दिन से योग-शिविर चल रहा था, लगभग पाँच लाख फुट हरा मैट बिछा हुआ था। लोगों ने उसको अपने लिए सुरक्षित मानते हुए उसकी झोपड़ी बनानी शुरू कर दी थी। जब यह बात स्वामी जी को पता चली, तो उन्होंने सम्पूर्ण पण्डाल व मैट आदि को जनता की सेवा के लिए सहर्ष स्वीकृति प्रदान करते हुए सभी सेवकों को आदेशित कर दिया कि कोई भी किसी को कुछ नहीं कहेगा, यह सारा पण्डाल जनता के लिए दे दिया जाये।’
यह सेवा का उत्कृष्ट उदाहरण व पतंजलि की पहली आहुति थी, जो लगभग चालीस-पचास लाख रुपये का पण्डाल प्राकृतिक आपदा से पहले, जो जीवन को स्वस्थ व नीरोग बनाने के लिए बिछाया गया था, वह अब जीवन-रक्षा के लिए वरदान बन गया। ग्राउण्ड में लाइट व तम्बू की व्यवस्था अपने आप हो गयी थी। इतनी व्यवस्था यदि भूकम्प के तुरन्त बाद भी शुरू करते, तो कम से कम दो-तीन दिन लग सकते थे।
सायंकाल होते-होते हमारे हजारों स्वयं सेवक काठमाण्डू में अनेक स्थानों पर पहुँच कर पीने के पानी की व्यवस्था, चिबड़ा, आलू का झोल, फलों व पतंजलि बिस्कुट का वितरण शुरू कर चुके थे। इस भयानक त्रासदी में भी हजारों लोगों को पहले ही दिन एक आसरा मिल गया था। जहाँ जनरेटर से प्रकाश की व्यवस्था थी, वहीं एक बार में सैकड़ों की संख्या में मोबाइल के बैटरी चार्ज किए जा रहे थे, पेट की आग बुझाने के लिए चिबड़ा, बिस्कुट, नमकीन, पानी व सेब मिल रहा था। टुँडिखेल मैदान में जहाँ हजारों नेपाल के लोग थे, वहीं हजारों की संख्या में भारतीय व अन्य देशों के लोगों का हुजूम (भीड़) लगा हुआ था।
तत्काल सेवा के लिए विचार किया गया कि काठमाण्डू में उपलब्ध खाद्य सामग्री फल, बिस्कुट व पानी की बोतलों की तत्काल व्यवस्था की जाये; परन्तु उस भयानक स्थिति में न तो कोई दुकान, न ही कोई दुकानदार था। कुछ परिचित दुकानदार थे भी, तो वे दुकान नहीं, अपने प्राणों की रक्षा में ही तत्पर थे। बामुश्किल कुछ लोगों ने बहुत साहस दिखाया, तब कहीं कुछ सामान की व्यवस्था हो पायी।
'पतंजलि आयुर्वेद केन्द्र नेपाल से राजु जी व बाबुकाजी ने लगभग तीन-चार सौ कार्टून बिस्कुट उपलब्ध करा दिया। वहीं लगभग तीन सौ पेटी सेब लेकर अपने सहयोगी उद्धव जी तैयार हो गये। लगभग नौ सौ बोरा चिबड़ा व कई क्विन्टल नमकीन लेकर ओम बंसल जी व विनोद जी सेवा के लिए तैयार थे। सैकड़ों पेटी पानी की बोतल के साथ शालिग्राम जी, उपेन्द्र जी, लबदेव जी, बहन अर्चना व रीता आदि भी सेवा में जुट गये थे।’
भूकम्प के बाद बार-बार लगते झटके, उपर से गिरता बारिश का पानी, काठमाण्डू की ठण्ड, चारों ओर फैला लोगों का करुण-क्रन्दन, बीच-बीच में कोलाहल के बीच भय से इधर-उधर भागते हुए लोग स्वामी जी की ओजस्वी वाणी के प्रभाव व सेवा के संकल्प से मृत्यु के भय को भुलाकर तत्क्षण अपने सामर्थ्य अनुसार सेवा में जुट गये थे। इन सबके बीच सच कहूँ, तो उस समय तत्काल सेवा में जुटे पतंजलि के स्वयं सेवक ही दिख रहे थे।
भूकम्प की भयावहता को देश-दुनियाँ के लोग आकलन भी नहीं कर पाये थे, कहीं कोई फेसबुक व ट्विटर आदि से सूचना का आदान-प्रदान कर रहे थे। किसी को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि तत्काल क्या किया जाये? परन्तु भूकम्प आने के कुछ घण्टों में पतंजलि तात्कालिक व दीर्घकालिक योजना बनाकर सेवा में जुट चुका था। फोन की सभी लाइनें लगभग ठप हो चुकी थीं। बार-बार फोन लगाने पर घण्टों में कहीं फोन लग पा रहा था। 'स्वामी जी का आदेश हुआ कि चाहे पतंजलि को किसी अन्य सेवा के कार्य की गति को रोकना भी पड़े, पर इस भूकम्प के राहत कार्यों में कोई कमी नहीं आने दी जायेगी।’ हम सबने बैठकर तत्काल राहत सामग्री की व्यवस्था स्थानीय स्तर पर करायी; परन्तु बाद के लिए क्या? पहले हरिद्वार भरत जी से बात की फिर लखनऊ से सामान शीघ्र पहुँच सकता है, यह पता होने पर ओ.पी. श्रीवास्तव जी को व अलख जी को फोन करके तत्काल दो-तीन ट्रक पानी, एक-एक ट्रक फल, आलू, तिरपाल, बिस्कुट आदि छ:-सात ट्रक सामान की शीघ्र व्यवस्था के लिए बोल दिया गया।
पतंजलि के परिचित डॉक्टरों द्वारा दवाइयों की लिस्ट तैयार कराकर तत्काल जीवन-रक्षा के लिए एक करोड़ के लगभग की जीवन रक्षक दवाइयों को मँगाने का आदेश भी दिया गया; परन्तु पेपरों के अभाव में दूसरे दिन भारत के नेपाल राजदूत के स्वीकृति पेपर तैयार कर एक डॉक्टर के गारन्टी पत्र बनने पर ही भिजवाया जा सका।
तत्काल सभी प्रभावित जिलों में जाने के लिए 20-30 टीमें बनाकर सुदूर क्षेत्रों में अलग-अलग स्थानों पर कैम्प शिविर बनाकर जब तक यह आपदा या त्रासदी की भयानकता समाप्त नहीं हो जाती, तब तक सेवा कार्य को निर्बाध रूप से चलाने का निर्णय लिया गया। उन्हीं शिविर स्थानों पर भोजन उपलब्ध कराने, स्वयंसेवकों तथा दूर-दराज के लोगों को खाद्य सामग्री, टैन्ट, कम्बल, मैट आदि उपलब्ध कराने के लिए आदेश दिया गया। (इस कार्य में नेपाल सरकार व पुलिस प्रशासन विशेषकर डी.आई.जी. भण्डारी जी का भी विशेष सहयोग प्राप्त हो रहा था)।
तबाही के इस मंजर में रक्त दान के लिए विचार कर जब रेडक्रास से सम्पर्क करने का प्रयास किया, तो पता चला कि भूकम्प से पहले उनकी टीम ब्लड डोनेशन करने गयी थी तथा उनका भी भूकम्प के बाद कोई अता-पता नहीं था (किसी तरह अगले दिन ब्लड डोनेशन की व्यवस्था हो पायी, इसमें हमें सन्तोष है कि 'प्रथम रक्त दाताओं में स्वामी जी व मुझे आगे रहने का मौका मिला, स्वयं रक्त देकर स्वामी जी ने औरों का आह्वान किया।) फिर श्रद्धेय स्वामी जी ने घोषणा की कि आपदा में मृत परिवार के बेघर कम से कम 500 बच्चों की उचित व उच्च शिक्षा, आवास, वस्त्र, भोजन आदि की सभी व्यवस्था पतंजलि योगपीठ करेगा (तत्काल व्यवस्था के लिए काठमाण्डू के पास धूलिखेल में आयुर्वेद कॉलेज के लिए बनाए हुए भवन को ही इस कार्य के लिए देकर आयुर्वेद कॉलेज के कार्यक्रम को फिलहाल स्थगित करा दिया)। हमने भी स्वयं वहीं रहकर सभी व्यवस्थाओं को सुचारु रूप से चलाने व स्वयं चलकर उस मंजर को देखने व समझने का निर्णय किया। जिससे राहत व पुननिर्माण के कार्यों को सही व प्रभावी ढंग से किया जा सके।’
सैकड़ों स्वयं सेवक रात्रि के लगभग एक बजे तक सेवा करते रहे, आधी रात कब गुजर गयी, पता भी नहीं चला। वहीं टुँडिखेल मैदान में एक-एक कम्बल को दो या तीन लोग लपेटकर रातभर बैठे रहे, क्योंकि तत्काल उतने ही कम्बलों की व्यवस्था हो पायी थी। 'कहीं थोड़ी भी होश हवास की स्थिति नहीं थी, चारों ओर हाहाकार व करुण-क्रन्दन ही सुनाई पड़ता था। बहुत सारी बिल्डिंग ध्वस्त हो चुकी थीं। न जाने कितनी जाने जा चुकी थीं, कोई अंदाज नहीं लग पा रहा था। बिजली पानी सब गुल हो चुका था। लोगों को सुरक्षा देने वाले भवन अब लोगों को भयावह लग रहे थे। क्योंकि बार-बार भूकम्प के झटके आ रहे थे, लगता था यदि अन्दर चले भी गये, तो उसी क्षण भयानक भूकम्प आ जायेगा व भवन धराशायी होकर हमारे प्राण ही ले लेगा। भवन काल्पनिक भूत जैसा लगता था, सारा शहर जमीन पर खुले आसमान के नीचे जिसे तिरपाल, पन्नी या कोई छत बनाने का जुगाड़ बना तो ठीक अन्यथा भगवान् भरोसे सर्दी, वर्षा, सब कुछ अत्यन्त दयनीय स्थिति में उसी दयानिधान के सहारे था। सब साधन-विहीन असहाय होकर परमात्मा से सहायता के लिए प्रार्थना कर रहे थे। जो चोटिल व घायल थे, उन्हें हॉस्पिटल्स में पहुँचाने का कार्य प्रारम्भ हो चुका था, पर न जाने कितने चोटिल घायल मलबे के नीचे अन्तिम श्वास गिन रहे थे, किस तरह तड़प-तड़प कर हजारों लोगों ने अपने प्राणों को त्यागा होगा, कल्पना मात्र से ही रौंगटें खड़े हो जाते हैं।’
हजारों ने किसी के आने की प्रतीक्षा की होगी, कोई आयेगा हमें भी बचायेगा। जब काल दैव स्वयं ही क्रूर बन गया हो, तो आशा करते भी तो किससे? असीम सामर्थ्यशाली के प्रकोप को सीमित सामर्थ्य वाला मनुष्य कैसे रोक पाता? सत्य है जब प्रकृति ही प्रतिकूल हो, तब मानव के पास लाचारी के सिवा रह भी क्या जाता है। फिर भी हमारी जिम्मेदारी है कि जिन्हें बचा पाना सम्भव है, उन्हें बचाने की भरपूर कोशिश करें।
'शहर के नजदीक व जहाँ-जहाँ सहायता से लोगों के जीवन की रक्षा हो सकती थी, वहाँ सेवा की जाने लगी; परन्तु जो दूर-दराज के पहाड़ों में बामुश्किल अपना जीवन निर्वहन करते थे, ऐसे शैलपुत्र-पुत्रियाँ, हिमालयपुत्र-पुत्रियाँ, जिन्होंने एक-एक तिनका जोड़कर अपना बसेरा बनाया था, उस बसेरे में, घोसले में दो समय रूखा-सूखा खाकर, अपने सुख-दु:ख को अपने आप सहकर, अपने निश्चल उन भोले-भाले बच्चों व परिवार के साथ, किसी को दु:ख दिये बिना जीवन जी रहे थे, वे नास्तिक नहीं थे, अपनी बुद्धि या परम्परा से उस परम शक्ति को खुश रख कर अपने जीवन में सुख की कामना करते थे। राजनैतिक द्वन्द्वों, जटिलताओं कुटिलताओं, जीवन में दम्भ, आडम्बरों, कृत्रिम जीवन से दूर उन शान्त लोगों को उनका आश्रय आराध्य देव अशान्त क्यों कर गया?’ जो दूसरे के आंसुओं को पोंछने के लिए अपने देश के लोगों की सेवा के लिए ही नहीं, अपितु अपने से दूर भारत माता को भी अपनी माता समझकर तथा ब्रिटेन तक के लोगों के प्राणों की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति देने में सबसे अग्रणी रहने वाली वीर कौम गोर्खाली आज अपने आँसुओं की धारा बहा रहे, बिलख रहे व तड़प रहे थे। ऐसा मार्मिक क्रन्दन कि पत्थर हृदय भी पिघल उठे, नास्तिक भी उस प्रकृति को कोशता हुआ चीत्कार कर उठे।
सुन्दर पहाड़ की चोटियाँ हिमाच्छादित पर्वत मालाएँ, उसमें खुशबू बिखेरती प्रकृति व प्राकृतिक जड़ी-बूटियाँ, उसमें मधुरता घोलता पहाड़ी लोक संगीत, वो चहल-पहल सब क्षण भर में मरघट बन चुका था। वे रिश्ते-नाते, मित्र-बंधु, आपस के गाँव के परिचित, एक दूसरे को आवाज़ देते, पुकारते लोग, सब कुछ निस्तब्ध व शान्त हो गया था। घर परिवार, खेत-खलिहान, घर आँगन में बँधे हुए गाय-भैंस व अन्य पशु कुछ भी न बचा। सब रिश्ते-नाते परम्पराएँ, प्यार सब कुछ क्षण भर में अतीत बन गया। चारों ओर मात्र शून्य ही दिखता था।
मैं इन पीड़ाओं से गहरे व घनघोर बीहड़ वन में भटकते-भटकते आकुल व व्याकुल था। शरीर एक तम्बू में पड़ा हुआ खुले आसमान को निहारता हुआ रात भर पतंजलि योगपीठ के मैदान में लेटे-लेटे दिन भर का एक-एक पल का स्मरण और उसकी भयावहता व हृदय को छिन्न-भिन्न करने वाले दृृश्यों को सोचते-सोचते न जाने कब सूर्य की लालिमा दिखाई देने लगी। मैदान से उठ कर हिम्मत कर अपने नित्य कर्मों से निवृृत्त हो फिर अपने दिल की पीड़ा को शान्त करने के लिए लोगों की सेवा की योजना बनाने के लिए जुट गये।
'हमें इस का संतोष है कि आज भूकम्प के इतने दिन होने को हैं, जहाँ पतंजलि के हजारों कार्यकर्ता रात-दिन एक करके सेवा में जुटे हैं, वहीं आपदा-पीड़ितों के लिए सभी सहयोगियों व पतंजलि द्वारा २ करोड़ की धनराशि से अधिक का सहयोग किया जा चुका है। अभी दीर्घकालिक योजनाएँ जैसे- बच्चों की शिक्षा, आवास की व्यवस्था, गाँवों के पुन: निर्माण व अन्य व्यवस्था में हमें बहुत कार्य करना है।’
बचाव, राहत फिर पुननिर्माण व आपदा ग्रस्त लोगों के जीवन को व्यवस्थित करने में महीनों नहीं, वर्षों लगेंगे। अभी तो ऐसे लोगों की संख्या भी हजारों में है, जिन्हें हेलीकॉप्टरों से चिकित्सा के लिए काठमाण्डू लाया गया; परन्तु अब न उनकी प्रतीक्षा करते पारिवारिक जन व बच्चे तथा न अब उनका कोई घर है। अब वे हॉस्पिटल से डिस्चार्ज होकर जायें तो जायें कहाँ? ऐसे सभी लोगों के लिए पतंजलि की तरफ से काठमाण्डू व काभ्रे जिला के बनेपा में आवास भोजन की व्यवस्था बनायी जा चुकी है, सेवा का कार्य प्रारम्भ हो चुका है। जब वे घर जाने के लिए तैयार होंगे, तब उन्हें तम्बू, राशन, आवश्यक सामग्री के साथ, कुछ नकद राशि व हिम्मत, साहस देकर घर भेजा जायेगा। ऐसे लोगों की संख्या हजारों में हो सकती है। उन सभी की जिम्मेदारी भी पतंजलि योगपीठ लेगा।’
हम आप सबसे आह्वान करते हैं कि इस महात्रासदी, दैवीय आपदा में तन-मन-धन से सहयोग हेतु आगे आयें। इस दैवीय आपदा में भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री मोदी जी द्वारा की गयी तत्काल राहत व बचाव कार्य की प्रशंसा की जानी चाहिए। हमारे एन.डी.आर.एफ. के जवान व चिकित्सक रात दिन एक करके सेवा में लगे हुए हैं, सभी बधाई के पात्र हैं। इसके अतिरिक्त दुनियाँ के अनेक देशों की सरकारें, जिन्होंने इस महाआपदा में अपना सहयोग का हाथ बढ़ाया है, तथा जितनी भी दुनियाँ भर की सामाजिक, आध्यात्मिक संस्थाएँ जो इस कार्य में नि:स्वार्थ सहयोग व सहायता कर रही हैं, उन्हें व नेपाल देश के वे लोग, जो इस विपदा की घड़ी में धैर्य धारण कर एक-दूसरे के सहयोग व सेवा में लगे हुए हैं, इस मानवीय संवेदना के लिए उन्हें हम धन्यवाद देते हैं। नेपाल सरकार, पुलिस प्रशासन का प्रयास, विशेषकर पुलिस के जवानों का, जो फील्ड में मलबे के बीच में लोगों को बचाने व मलबे से निकालने के जद्दोजहद में जुटे हुए हैं, हम उन सबके पुरुषार्थ के लिए कृतज्ञता व्यक्त करते हैं। हम आशा करते हैं कि नेपाल में भगवत् कृपा से शीघ्र ही जनजीवन सामान्य होगा और नेपाल के लोग पुन: अपने पुरुषार्थ व पराक्रम से नेपाल में शान्ति व समृद्धि के साथ आगे बढ़ेंगें।
लेखक
Related Posts
Latest News
01 Oct 2024 17:59:47
ओ३म 1. सनातन की शक्ति - वेद धर्म, ऋषिधर्म, योग धर्म या यूं कहें कि सनातन धर्म के शाश्वत, वैज्ञानिक,...