सेवा, संघर्ष, राष्ट्र निर्माण व साधना की अनवरत 27 वर्षों की अद्वितीय गौरवपूर्ण यात्रा
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आचार्य बालकृष्ण
हमारे स्वदेशी शिक्षा, चिकित्सा, अध्यात्म, अनुसंधान, कृषि, उद्योग आदि क्षेत्रों से जुडक़र समाज व राष्ट्रनिर्माण में अपनी सहभागिता दर्ज करें। हमारी संगठित शक्ति से एक दिव्य, भव्य, आध्यात्मिक भारत व आध्यात्मिक विश्व का निर्माण होगा तथा भारत विश्व का सिरमौर होगा। |
पतंजलि संस्थान ने विगत 27 वर्षों की गौरवपूर्ण यात्रा में अनेकों बाधाओं व संघर्षों का सामना करते हुए राष्ट्र व विश्व के प्रति अपनी निष्ठा, समाज के प्रति सच्ची सेवा व साधना से मानवता की सेवा की है। इस दौरान पतंजलि ने कई आयाम स्थापित किए हैं। योग, आयुर्वेद, स्वास्थ्य, स्वदेशी, शिक्षा आदि क्षेत्रों में अनेकों कीर्तिमान गढऩे के बाद हमने अनुसंधान, वैलनेस व तकनीकि क्षेत्र में भी कदम रखा है। इन सबसे ऊपर पतंजलि ने देश की जनता के दिलों में अपने प्रति विश्वास को न केवल कायम रखा है बल्कि उसे बढ़ाया है। हमारा आप सभी राष्ट्रभक्तों से आह्वान है कि आप पतंजलि के इस राष्ट्रव्यापी पुनीत अनुष्ठान से एक आंदोलन के रूप में जुड़ें तथा अपने साथ अपने परिवार, संबंधियों तथा परिचित व्यक्तियों को जोड़ें। हमारे स्वदेशी शिक्षा, चिकित्सा, अध्यात्म, अनुसंधान, कृषि, उद्योग आदि क्षेत्रों से जुडक़र समाज व राष्ट्रनिर्माण में अपनी सहभागिता दर्ज करें। हमारी संगठित शक्ति से एक दिव्य, भव्य, आध्यात्मिक भारत व आध्यात्मिक विश्व का निर्माण होगा तथा भारत विश्व का सिरमौर होगा। सेवा के इस कालखण्ड में पतंजलि ने विभिन्न प्रकल्पों के माध्यम से सेवा कार्य में संलग्र हैं, आइए! पतंजलि के सेवा कार्यों में संलग्र विभिन्न प्रकल्पों से आपका परिचय कराते हैं-
दिव्य योग मंदिर ट्रस्ट की स्थापना
5 जनवरी 1995, दिव्य योग मन्दिर ट्रस्ट की कनखल के कृपालु बाग आश्रम में विधिवत स्थापना हुई। साधनों की अत्यन्त न्यूनता होने पर भी साध्य के लिए पूर्ण पुरुषार्थ प्रथम दिन से रहा। लगभग एक एकड़ भूमि पर प्रथम ट्रस्ट की स्थापना हेतु पंजीकरण (रजिस्ट्रेशन) हेतु सर्किल रेट के अनुसार 20 हजार रुपए की राशि भी हमारे पास नहीं थी। उधार लेकर हमने ट्रस्ट की स्थापना की। च्यवनप्राश बनाने के लिए पात्र नहीं थे, ट्रस्ट चलाने के लिए पैसे नहीं थे, रहने के लिए कमरे नहीं थे, रसोई में गैस सिलेन्डर नहीं था, स्टोव पर स्वयं भोजन बनाते थे, संकल्प, स्वधर्म-स्वकर्मनिष्ठा तो पूरी थी लेकिन साधन के रूप में साइकल व एक पुराना सा स्कूटर 5 हजार में देहरादून से खरीदा था। बाद में वो भी चोरी हो गया था। देश में कोई जान-पहचान न थी। आश्रम की कोई शिष्य परम्परा न थी। छोटे से भवन में लगभग 20 किराएदार। 10-20 रुपए किराया देते थे। 100-200 रुपए की स्थाई आमदनी और 10-15 हजार रुपए का मासिक खर्चा क्योंकि 10-15 ब्रह्मचारी, 5-7 गोमाता की सेवा आदि, ये क्रम प्रारंभ से ही रहा। औषधशाला, गौशाला, यज्ञशाला, वेदशाला एवं योगशाला आदि साधनों के अभाव में भी ये साधना निरन्तर चल रही थी। पूज्य श्रद्धेय स्वामी शंकरदेव जी का आशीष, पूज्य स्वामी जी महाराज का मार्गदर्शन व दिव्य नेतृत्व, पूज्य स्वामी मुक्तानंद जी का परम तप व पुरुषार्थ, पूज्य आचार्यश्री कर्मवीर जी का सहयोग, पूर्वजों की पुण्याई एवं सबकी भलाई- ये सब क्रम चलता रहा और अन्तत: भगवान् के परम अनुग्रह से एक एकड़ भूमि से प्रारंभ हुई सेवा यात्रा आज हजारों एकड़ भूमि पर सेवा साधना के दिव्य प्रकल्प तथा विश्वव्यापी योगायुर्वेद, स्वदेशी एवं वैदिक संस्कृति की गौरवपूर्ण प्रतिष्ठा से आत्मगौरव, स्वधर्म गौरव एवं स्वराष्ट्र गौरव व स्वाभिमान से आत्म संतोष है। दादा गुरु पूज्य कृपालुदेव जी महाराज के दिव्य संकल्प से क्रान्तिकारियों की पुण्य भूमि रहा कृपालुबाग आश्रम का सात्विक गौरव आज करोड़ों देशवासियों की प्रेरणा व स्वाभिमान है। परम पूज्य श्रद्धेय गुरुदेव श्री प्रद्युम्न जी महाराज व पूज्य गुरुदेव आचार्य बलदेव जी महाराज को अपने शिष्यों के कर्तव्य चरित्र व नेतृत्व पर गौरव होता है।
श्रद्धेय स्वामी जी की संन्यास दीक्षा
रामनवमी 9 अप्रैल 1995 को पूज्य स्वामी जी की संन्यास दीक्षा श्रद्धेय स्वामी शंकरदेव जी के आशीर्वाद व अनुग्रह से सम्पन्न हुई। पूज्य गुरुदेव प्रद्युम्न जी महाराज ने संन्यासदीक्षा यज्ञ कराया। हर की पौड़ी पर शिखासूत्र का विसर्जन कर लोकैषणा, पुत्रैषणा एवं वित्तैषणा से मुक्त होकर सर्वभूतो का अभयदान देने के संकल्प के साथ आत्म कल्याण एवं विश्व कल्याण के पथ पर निकल पड़े। योग, यज्ञ व वेदमय आध्यात्मिक भारत एवं आध्यात्मिक विश्व के संकल्प से सबको समानता, समृद्धि, संस्कार, सर्वविध स्वाधीनता, देवत्व व ऋषित्व मिले, यही एकमात्र ध्येय है हमारा। सब प्रकार के भेदभाव, हिंसा, झूठ, अन्याय, दुराचार, भ्रष्टाचार, दु:ख, दरिद्रता, दुर्गुण, दोष व अशान्ति से मुक्त एक पूर्ण सभ्य, पूर्ण सुखी, पूर्ण समृद्ध संस्कारवान् व्यक्ति, समाज, राष्ट्र व विश्व का निर्माण हो, यह अभियान है पतंजलि संस्था व विश्वव्यापी संगठन का। योग धर्म, अध्यात्म धर्म, मानव धर्म, स्वधर्म, राष्ट्रधर्म व विश्वधर्म हमारा दिव्य कर्म या निष्काम कर्म है।
पूज्य स्वामी जी महाराज ने योग को बनाया जनांदोलन
किसी भी प्रकार का जनांदोलन एक बहुत बड़े पुरुषार्थ की अपेक्षा रखता है। कनखल, हरिद्वार में सन् 1993 में पूज्य स्वामी अमलानन्द जी त्रिपुरा योग आश्रम, कनखल में गंगा किनारे योगेश गुप्ता जी व बंसल जी (जूनियर इंजिनियर हरिद्वार विकास प्राधिकरण) दो लोगों से योग प्रशिक्षण प्रारंभ हुआ। फिर कृपालु बाग आश्रम, दिव्य योग मंदिर ट्रस्ट में पूज्य श्रद्धेय स्वामी शंकरदेव जी महाराज के आशीर्वाद से 100-200 लोगों का योग शिविर तथा सूरत के परम आदरणीय श्री जीवराजभाई पटेल के आमन्त्रण व सहयोग से सार्वजनिक तौर पर पहली बार 1993 में ही आकार स्पोर्ट्स क्लब, वराछा रोड़, सूरत में 9 दिन के योग-साधना एवं योग चिकित्सा शिविरों का विधिवत प्रारंभ हुआ। 200 लोगों का योग प्रशिक्षण शिविर फिर 2 हजार लोगों का प्रशिक्षण शिविर रुड़ा भगत द्वारा जसदण, गुजरात में, उसके बाद दिल्ली के छत्रसाल स्टेडियम में श्री रामनिवास गर्ग जी द्वारा पहले 10 हजार लोगों का देश का प्रथम सबसे बड़ा सार्वजनिक व सामूहिक योग शिविर और इसके बाद 10-20 तथा 50 हजार से लेकर अहमदाबाद में 5 लाख लोगों के योग शिविरों की अखंड योग यात्रा निरन्तर प्रवाहमान् है। पूज्य मोरारी बापू कहते हैं, ‘विश्व इतिहास में पहली बार गुफा एवं ग्रन्थों से योग को बाहर लाकर मैदान में खड़ा कर दिया और लाखों-करोड़ों लोगों की जीवन पद्धति बन गया योग।’ जन-जन व घर-घर तक और बाद में विश्वभर में योग की प्रतिष्ठा आगे बढ़ी। धीरे-धीरे योग का व्यापक स्वरूप विश्व के सामने आया। योग चिकित्सा पद्धति, साधना पद्धति एवं जीवन पद्धति से लेकर विश्व के सुख, स्वास्थ्य, समृद्धि व शान्ति का आधार बन रहा है। सच्चे अर्थों में यदि वर्ल्ड हैल्थ, वर्ल्ड पीस-हार्मनी, हैप्पीनेस का कोई वैज्ञानिक निर्दोष मार्ग है, तो वह योग ही है। पूज्य स्वामी जी बार-बार कहते हैं कि मेरे जीवन का सबसे बड़ा सपना व संकल्प है कि देश व दुनिया का हर एक व्यक्ति भोर में उठकर सबसे पहले योग करे, उसके बाद कर्मयोग करे तो दुनिया की सभी समस्याओं का सहज ही समाधान हो जाएगा।
प्रात: योग करने वाले व्यक्ति की चेतना ऊर्ध्वारोहण हो जाती है। वह व्यक्ति निम्र चेतना से ऊपर उठकर उच्च, दिव्य आत्मचेतना, गुरु, ऋषि या भागवत् चेतना में जीने लगता है। वह योगस्थ होकर योगधर्म के साथ अपने स्वधर्म, स्वकर्म, राष्ट्रधर्म एवं मानवधर्म व विश्वधर्म का प्रामाणिकता पूर्वक निर्वहन करता है। ऐसे व्यक्ति के जीवन में यम-नियमों का पालन सहज रूप से होने लगता है। दिव्य जीवन या योगमय सात्विक जीवन उस योग साधक का स्वभाव बन जाता है। जब साधक अष्टांग योग की साधना करेगा तो उसके जीवन में अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य व अपरिग्रह ये यम तथा शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय एवं ईश्वर प्रणिधान- ये नियम उसका स्वभाव बन जाएँगे।
स्वभावोऽध्यात्ममुच्यते। गीता (8/3)
मूलत: मनुष्य का स्वभाव या मूल प्रकृति अध्यात्म ही है। योग एवं अध्यात्म ही भारत की मूल प्रकृति व संस्कृति है। यही योगधर्म व योग संस्कृति शब्दान्तर, वैदिक धर्म या वैदिक संस्कृति है। समाज, राष्ट्र एवं विश्व में व्याप्त हिंसा, युद्ध, अपराध, झूठ, बेईमानी, दुराचार, अनाचार, भ्रष्टाचार, अशुचिता, असंतोष, विलासिता, आत्मविमुखता, नास्तिकता, नशा, हत्या, आत्महत्या, अवसाद, तनाव, अन्याय, शोषण, असमानता व समस्त संघर्षों को हम दूर करना चाहते हैं तो एकमात्र निर्दोष, निर्विवादित, अव्यवसायिक (बिना मूल्य), गैर राजनैतिक, पंथ निरपेक्ष, सार्वभौमिक, सार्वकालिक, वैज्ञानिक एवं सर्वहितकारी उपाय साधन, साधना या समाधान योग ही है। योगाभ्यास का जीवनचर्या में समावेश से लेकर योग चिकित्सा, योग अनुसंधान, योगमय आहार, विचार, वाणी, व्यवहार व स्वभाव बनाने के लिए हम निरन्तर प्रयत्नशील हैं। वहीं योग के मानकीकरण, सर्टिफिकेशन, योगाभ्यास की एकरूपता, शिक्षा, चिकित्सा, सेवा, पुलिस एवं विविध सरकारी व गैर सरकारी व्यवस्था तंत्र में योग के समावेश से लेकर इन्टरनेशनल योगासन स्पोर्ट्स फेडरेशन के माध्यम से ओलम्पिक से लेकर सभी राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय खेलों व प्रतियोगिताओं में योगासनों के माध्यम से योग तत्त्व के बीजारोपण का कार्य चल रहा है। संक्षेप में योग पतंजलि योगपीठ का मूल तत्त्व है। योग के सर्वविध प्रचार-प्रसार से लेकर योग की व्यापक प्रतिष्ठा के लिए हम प्रामाणिकता के साथ पुरुषार्थ कर रहे हैं और अनन्तकाल तक ये योग के अनन्त की यात्रा चलती रहेगी, ऐसी प्रामाणिक सुदृढ़ आधारशिला हमने तैयार की है।
संगठन की शक्ति एवं सेवा
बड़े कार्यों का सम्पादन बिना संगठित शक्ति के नहीं हो सकता। पतंजलि का भी अपना बहुत बड़ा व विस्तृत संगठन है। 2005 में सबसे पहले पतंजलि योग समिति, फिर कार्यकर्ताओं एवं योग शिक्षक बहनों की योग सेवा को और अधिक गौरव व विस्तार देने हेतु महिला पतंजलि योग समिति, इसके उपरान्त योग के साथ राष्ट्रीय मुद्दों, कालाधन, भ्रष्टाचार एवं व्यवस्था परिवर्तन के लिए 2009 में भारत स्वाभिमान ट्रस्ट की स्थापना एवं भारत स्वाभिमान संगठन का देश के सभी जिलों में गठन हुआ। युवा शक्ति की भागीदारी एवं जिम्मेदारी को विस्तार देने के लिए युवा भारत तथा गाँव व किसानों तक संगठन के विस्तार हेतु पतंजलि किसान सेवा समिति का गठन किया गया। भारत के नेपाली भाषा-भाषी भाई-बहनों की संगठित भागीदारी हेतु हाम्रो स्वाभिमान का गठन हुआ। देश के बाहर भी पतंजलि योगपीठ ट्रस्ट एवं पतंजलि योग समिति का दुनिया के लगभग सभी बड़े देशों में सेवा कार्य चल रहा है। भारत के 600 जिलों, 5000 तहसीलों तथा लगभग 2.5 लाख गाँवों में संगठन का विस्तार है। इसके माध्यम से लगभग 1 लाख नि:शुल्क योग कक्षाओं की सेवा देश के लिए हो रही है। साथ ही रक्तदान, नेत्रदान, वृक्षारोपण, स्वच्छता अभियान, नशामुक्ति, छुआ-छूत, जात-पात एवं सभी प्रकार के भेदभाव के खिलाफ संगठन की ओर से निष्काम सेवा का अभियान चलता रहता है। प्राकृतिक आपदाओं, बाढ़, भूकंप तथा शहीदों के सम्मान की सेवा, गरीब की सेवा, विद्यार्थी, युवा संस्कार शिविर, कुदरती खेती एवं अन्य राष्ट्रहित के सभी मुद्दों पर संगठन ने राष्ट्रीय स्तर पर गौरवपूर्ण एतिहासिक कार्य किए हैं। एक देशभक्त आध्यात्मिक संगठन के रूप में राष्ट्र की सर्वविध प्रगति एवं खुशहाली के लिए सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक व आध्यात्मिक रूप से देश को आगे बढ़ाने के लिए हमारे लाखों कार्यकर्ता प्रमाणिकता से नि:स्वार्थ सेवा दे रहे हैं। इन सब पर हमें अत्यंत गर्व है तथा आप करोड़ों देशवासियों का प्रत्येक आंदोलन में पूर्ण सहयोग एवं आशीर्वाद हमें सदा मिला है।
पतंजलि योगपीठ की स्थापना
सन् 2000 के बाद जब हजारों लोग स्वास्थ्य लाभ के लिए हरिद्वार आने लगे और कनखल आश्रम में स्थान कम पडऩे लगा, तो बहुत विचार-विमर्श करके हरिद्वार से पहले राष्ट्रीय राजमार्ग पर पतंजलि योगपीठ की कार्य योजना को मूर्तरूप देने का निर्णय हुआ। जब योगपीठ का निर्माण प्रारंभ हुआ तब भी न्यूनतम साधनों से हमने विश्व की योग की इस सबसे बृहत् एवं श्रेष्ठतम संस्था का निर्माण प्रारंभ किया। आज हरिद्वार से लेकर मोदीनगर, दिल्ली, राँची, कोलकाता, गुवाहाटी, ऋषिकेश, देवप्रयाग (उत्तराखण्ड), काठमाण्डु (नेपाल), स्कोटलैंड एवं ह्यूस्टन (अमेरिका) आदि स्थानों पर पतंजलि योगपीठ की बड़ी संस्थाएँ सेवारत हैं। सन् 2006 में पतंजलि योगपीठ के प्रथम चरण का कार्य सम्पन्न हुआ और इसके बाद से इसका राष्ट्र व विश्वव्यापी सेवा विस्तार निरन्तर गतिमान है। पतंजलि योगपीठ में लगभग 10 हजार लोगों के आवास, भोजन, उपचार एवं योग प्रशिक्षण की विश्वस्तरीय व्यवस्था है।
योग से उद्योग, सेवा से राष्ट्रधर्म तक का सफर
दिव्य फार्मेसी ए-1 व पतंजलि फूड पार्क
1995 में दिव्य योग मंदिर ट्रस्ट की स्थापना के साथ ही दिव्य फार्मेसी का भी पंजीकरण कराया गया। अत्यन्त अल्प संसाधनों में भी साधना एवं साध्य हमारे सम्मुख सदा बना रहता था। हाथ से खरल में दवा घोटना, इमामदस्ता में दवा कूटना, हाथ से गोली व पुडिय़ा बनाना, किराए के पतीलों में च्यवनप्राश बनाना, पूज्य स्वामी विष्णुदास जी, गुरुनिवास आश्रम, कनखल से उधार लेकर एवं स्वर्गीय श्रीरामनिवास गर्ग, मॉडल टाऊन दिल्ली एवं श्री जीवराजभाई पटेल, पं. देवीदत्त शर्मा व पंडित अखिलेश जी का सहयोग, पूज्य स्वामी मुक्तानंद का प्रचण्ड पुरुषार्थ तथा श्री यशदेव शास्त्री जी, रामभरत जी, वीरेन्द्र जी व पूज्य स्वामी अमलानंद जी आदि सबने इस आयुर्वेद के ऋषिकर्म या ऋषिधर्म की प्रतिष्ठा में प्रारंभ से बड़ा योगदान दिया। शून्य से प्रारंभ होकर प्रथम कनखल आश्रम में, फिर 2006 में इंडस्ट्रियल एरिया में ए-1, फिर 2010 में पतंजलि फूड पार्क में दिव्य फार्मेसी का विश्व के सर्वश्रेष्ठ औषध निर्माण एवं अनुसंधान का दिव्य प्रकल्प संचालित हो रहा है।
स्वदेशी ब्रांड ‘पतंजलि आयुर्वेद’
विदेशी कंपनियों की आर्थिक एवं सांस्कृतिक लूट व गुलामी से भारत को मुक्ति दिलाकर आर्थिक आजादी, भाषा, शिक्षा, स्वास्थ्य, खेती, खानपान एवं परिधान आदि जीवन के सभी क्षेत्रों में स्वदेशी को गौरव देकर साम्राज्यवाद एवं पूंजीवाद के स्थान पर आध्यात्मवाद, राष्ट्रवाद, मानवतावाद एवं प्रकृतिवाद को स्थापित करना या समानता, स्वाधीनता तथा न्याय की व्यवस्था को कायम करना हमारे स्वदेशी अभियान का ध्येय है। अर्थ से परमार्थ का, प्रोस्पेरिटी फॉर चैरिटी का अभियान है ‘पतंजलि आयुर्वेद’। एफ.एम.सी.जी. सेक्टर में देश का सबसे बड़ा ब्रांड है आज पतंजलि। पतंजलि आयुर्वेद की हरिद्वार, तेजपुर (आसाम), नोएडा (उत्तर प्रदेश), नागपुर (महाराष्ट्र) एवं नेवासा, अहमदनगर (महाराष्ट्र) एवं देश के विभिन्न भागों में छोटी-बड़ी लगभग 50 यूनिट्स हैं। साथ ही विदेशी कम्पनियों से श्रेष्ठ व सस्ते फूड एवं नॉन फूड के सैकड़ों गुणवत्तायुक्त उत्पाद तैयार किए गए हैं। पतंजलि का वल्र्ड क्लास इन्फ्रास्ट्रक्चर एवं वर्ल्ड क्लास अल्टीमेट नेचुरल प्रोडक्ट आज करोड़ों भारतीयों की प्रथम पसन्द बने हैं।
पतंजलि रुचि सोया
परम पूज्य स्वामी जी महाराज व पतंजलि का सदैव से संकल्प व दर्शन रहा है कि भारत को विदेशी कम्पनियों की आर्थिक व सांस्कृतिक लूट से बचाया जाए, विदेशी कम्पनियों के लिए भारत एक बाजार है लेकिन पतंजलि के लिए परिवार है। इसी लक्ष्य से पतंजलि उद्योग के क्षेत्र में उतरा है। भारत स्वदेशी, शून्य तकनीकी की विदेशी वस्तुओं, न्यूट्रीएन्ट्स तथा खाद्य तेल आदि के उत्पादन में आत्मनिर्भर बने, यह पतंजलि का बड़ा संकल्प है। पतंजलि रुचि सोया आज देश में सबसे लोकप्रिय ब्रांड बनकर उभरा है।
चिकित्सा के क्षेत्र में पतंजलि के बढ़ते कदम
पतंजलि आयुर्वेद हॉस्पिटल
चंद पैसों के लालच में देश में चिकित्सा व्यवस्था एक व्यापार बनकर रह गया था। रोगी चिकित्सकों के मायाजाल में एक बार फंसा तो फंसकर ही रह जाता था। ऐलोपैथिक दवाओं के दुष्प्रभाव से संतप्त मानवता को मुक्त कराने के लिए पतंजलि आयुर्वेद हॉस्पिटल की स्थापना की गई जिसमें आयुर्वेद पद्धति से विश्व की विशालतम ओ.पी.डी. स्थापित की गई। यहाँ प्रतिदिन लगभग 10 हजार रोगियों की ओ.पी.डी. की व्यवस्था है। साथ ही यहाँ 180 बैड की आई.पी.डी. भी है जहाँ रोगियों को पंचकर्म, षट्कर्म व आयुर्वेदिक उपचार के साथ-साथ आदर्श जीवनचर्या में रखकर पथ्य-अपथ्य का विशेष ध्यान रखा जाता है।
योगग्राम व निरामयम् के साथ पतंजलि वैलनेस की शुरूआत
एलोपैथिक दवाओं के दुष्प्रभाव से लोगों में बढ़ते साध्य-असाध्य रोग तथा दवा माफियाओं की लूट से जनमानस को बचाने के लिए वर्ष 2007 में सर्वप्रथम योगग्राम का निर्माण किया गया। तत्पश्चात् 5 सितारा सुविधाओं के साथ निरामयम् लोकोपचार हेतु समर्पित किया गया। आज योगग्राम एवं निरामयम् प्राकृतिक चिकित्सा के विश्व के सबसे बृहत् एवं श्रेष्ठतम् संस्थान हैं। यहाँ 500 से अधिक लोगों के एक साथ आवास, उपचार, योग साधना एवं एकान्तवास की श्रेष्ठतम व्यवस्था है। लाखों लोगों के असाध्य रोग यहाँ से दूर हो चुके हैं एवं प्रकृति प्रेमी लाखों लोग बिना किसी रोग के भी तन, मन व आत्मा के शुद्धिकरण हेतु यहाँ आते हैं। पंचकर्म, षट्कर्म सहित सैकड़ों प्रकार की प्राकृतिक चिकित्सा विधाओं की यहाँ सुन्दर आदर्श व्यवस्था है। धरती का स्वर्ग जैसे दिव्यधाम हैं ‘योगग्राम व निरामयम्’।
योग, आयुर्वेद, प्राकृतिक चिकित्सा, पंचकर्म, षट्कर्म के माध्यम से लोगों के शारीरिक रोगों तथा अध्यात्म के द्वारा मानसिक व आत्मिक रोगों से मुक्ति दिलाने के लिए देश के कोने-कोने में पतंजलि वैलनेस सेंटर्स प्रारंभ करने की पूज्य स्वामी जी महाराज की योजना है। इसी क्रम में मोदीनगर, पोखरी में पतंजलि वैलनेस की शाखाएँ स्थापित की जा चुकी हैं।
आयुर्वेद अनुसंधान हेतु पतंजलि रिसर्च इंस्टीट्यूट (पी.आर.आई.)
आयुर्वेद पर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अनुसंधान हेतु पतंजलि अनुसंधान संस्थान (पी.आर.आई.) की स्थापना की गई जिसका उद्घाटन देश के यशस्वी प्रधानमंत्री माननीय श्री नरेंद्र भाई मोदी ने किया। पी.आर.आई. एवं पतंजलि रिसर्च फाउण्डेशन के माध्यम से विश्वस्तरीय अनुसंधान का कार्य पंतजलि में चल रहा है। विश्व में पहली बार एनिमल ट्रायल से लेकर ह्युमन ट्रायल तक एविडेंस बेस्ड मेडिसिन की ड्रग डिस्कवरी के प्रामाणिक कार्य का संपादन पतंजलि के माध्यम से किया जा रहा है। इसमें लगभग 500 वैज्ञानिक, एक हजार से अधिक आयुर्वेद के डॉक्टर्स व स्कॉलर्स, सैकड़ों शिक्षाविद् आचार्यों एवं विद्वान् संन्यासियों की बहुत बड़ी भूमिका है।
आयुर्वेद पर नित नए अनुसंधान कर पतंजलि अनुसंधान संस्थान ने भारत की प्राचीन विरासत को संजोने का कार्य किया है। पतंजलि ने कोरोनिल, लिथोम, पीड़ानिल गोल्ड, थायरोग्रिट, बी.पी. ग्रिट, मधुग्रिट, श्वासारि गोल्ड जैसी चमत्कारी गुणों से युक्त आयुर्वेदिक औषधियों का निर्माण कर रोगी जनमानस में संजीवनी का कार्य किया है। W.H.O. ने स्वीकार किया है कि कोरोना जैसी महामारी में पतंजलि द्वारा अनुसंधित आयुर्वेदिक औषधि कोरोनिल लाभकारी है। पतंजलि ने पूरे प्रमाण व तथ्यों के आधार पर कोरोनिल को औषधि के रूप में प्रस्तुत किया जिसके प्रयोग से भारत में कोरोना का उतना बड़ा प्रभाव नहीं हुआ जितना विश्व के कई विकसित देशों में यह देखने को मिला।
रिसर्च, एजुकेशन, योग एवं विशुद्ध वैदिक धर्म की प्रतिष्ठा- ये हमारे सबसे प्रथम लक्ष्य एवं सर्वोच्च प्राथमिकताएँ हैं। आयुर्वेदिक अनुसंधान के क्रम में गिलोय, अश्वगंधा जैसी अनेकों औषधियों तथा च्यवनप्राश अवलेह पर पतंजलि ने एनिमल ट्रॉयल किया जिसके सकारात्मक परिणाम आए। पतंजलि के अनुसंधान का लौहा आज पूरी दुनिया मान रही है तथा हाशिए पर पहुँच चुके आयुर्वेद को पतंजलि ने नया जीवनदान दिया है। पतंजलि अनुसंधान संस्थान के अब तक सैकड़ों अनुसंधानपरक रिसर्च पेपर्स इंटरनेशनल जर्नल्स में प्रकाशित हो चुके हैं।
चमत्कारों एवं आविष्कारों के नए युग का सूत्रपात
पतंजलि के पहले योग के किसी ग्रन्थ में तथा मॉर्डन मेडिकल साइंस के किसी रिसर्च में यह नहीं लिखा हुआ है कि बी.पी., शूगर, थायराइड, रूमेटाइड आर्थराइटिस, अस्थमा, हैपेटाइटिस एवं कैंसर जैसे रोग योग से क्योर हो जाते हैं। राष्ट्रव्यापी योग शिविरों में आस्था टी.वी. पर प्रूफ एवं एविडेंस के साथ पहली बार लोगों ने यह कहा कि हमारा ये-ये रोग क्योर हो गया।
पहले तो इस पर जमकर विवाद एवं भयंकर विरोध हुआ। फिर अनुसंधान और अन्तत: आज पूरे देश व दुनिया ने यह स्वीकार कर लिया एवं हमने भी पूरे वैज्ञानिक अनुसंधानों से सिद्ध कर दिया कि योग, आयुर्वेद एवं वैदिक संस्कृति पूरी तरह से वैज्ञानिक व प्रामाणिक है।
आस्था चैनल के इस योग के चमत्कारों का व्यापक प्रभाव देखकर बहुत से लोगों ने टी.वी. पर व्यवसायिक लोगों को प्रायोजित रूप से खड़ा करके बहुत सारा अनुचित धंधा भी किया, यह भी एक बहुत बड़ा विषय है। पतंजलि के राष्ट्र व विश्वव्यापी कार्य के मूल में हजारों ही नहीं लाखों-करोड़ों लोगों के जीवन में घटित हुए योग के इन सत्य चमत्कारिक प्रभावों की सबसे बड़ी भूमिका है। ईसाई मत में कोई भी बड़ा चमत्कार कोई कर दे तो उसे सन्त की उपाधि, हिन्दु धर्म में सिद्ध या
अवतार, इस्लाम में पीर-पैगम्बर आदि नाम दिए जाते हैं। हमें कोई उपाधि नहीं चाहिए लेकिन यह सच है कि अनगिनत चमत्कार पतंजलि के द्वारा देश व दुनिया में हुए हैं, हो रहे हैं तथा आगे भी होंगे।
पतंजलि के माध्यम से शिक्षा की क्रान्ति
श्रेष्ठतम वैदिक शिक्षा के साथ श्रेष्ठतम आधुनिक शिक्षा-दीक्षा एवं संस्कार देकर विश्व के श्रेष्ठतम नागरिक तैयार करना पतंजलि योगपीठ व पूज्य स्वामी जी महाराज का लक्ष्य है।
2006 में पतंजलि विश्वविद्यालय, 2010 में पतंजलि आयुर्वेद कॉलेज तथा वैदिक गुरुकुलम्, 2013 में आचार्यकुलम्, 2017 में पतंजलि गुरुकुलम् तथा 2019 में भारतीय शिक्षा बोर्ड का गठन- ये योग क्रान्ति के बाद शिक्षा क्षेत्र में ऐतिहासिक क्रान्ति की आधारशिला तैयार करेंगे। प्राचीनकाल में भी भारत जब ज्ञानशक्तियों में सर्वोपरि था तब विश्वगुरु या विश्व की महाशक्ति था, आगे भी भारत को विश्वगुरु या परमवैभवशाली महाशक्ति बनाने की योग, अध्यात्म, संस्कार एवं वैज्ञानिकता पर आधारित शिक्षा की सर्वोपरि भूमिका रहने वाली है।
देश में सभी क्षेत्रों में एक सात्विक नेतृत्व तैयार हो, यह हमारा संकल्प है और इसे हम पतंजलि विश्वविद्यालय, पतंजलि आयुर्वेद कॉलेज, आचार्यकुलम्, वैदिक गुरुकुलम्, वैदिक कन्या गुरुकुलम्, पतंजलि गुरुकुलम् के माध्यम से पूरा करना चाहते हैं। भारतीय शिक्षा बोर्ड के माध्यम से मैकाले की शिक्षा के स्थान पर शिक्षा का भारतीयकरण, आध्यात्मिकीकरण, आधुनिकीकरण एवं वैज्ञानिकीकरण का कार्य अब बहुत बड़े रूप में सम्पन्न होगा। आइए! पतंजलि के शैक्षणिक संस्थानों पर एक दृष्टि डालते हैं-
पतंजलि विश्वविद्यालय
पतंजलि विश्वविद्यालय की स्थापना वर्ष 2006 में हुई थी। अभी हाल ही में पतंजलि विश्वविद्यालय के नवीन परिसर का निर्माण हो चुका है जो इंफ्रास्ट्रक्चर की दृष्टि से विश्व के सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालयों में एक है। इसके साथ-साथ एन.सी.आर. क्षेत्र में विश्व के सबसे बड़े एवं श्रेष्ठतम् विश्वविद्यालय के निर्माण कार्य गतिमान है।
पतंजलि विश्वविद्यालय, हरिद्वार के प्रथम दीक्षांत समारोह में भारत के प्रथम पुरुष, महामहिम राष्ट्रपति महोदय श्री रामनाथ कोविन्द जी ने भाग लेकर छात्र-छात्राओं को उपाधि एवं गोल्ड मैडल वितरित किए। पतंजलि विश्वविद्यालय के इंफ्रास्ट्रक्चर को देखकर राष्ट्रपति महोदय ने कहा कि शिक्षा के क्षेत्र में ऐसे निर्माण राष्ट्र व समाज के लिए अत्यंत उपयोगी हैं।
आज पतंजलि विश्वविद्यालय, हरिद्वार में आज हजारों विद्यार्थियों को श्रेष्ठतम उच्च शिक्षा एवं संस्कार प्रदान किए जा रहे हैं। यहाँ भारतीय वैदिक ज्ञान परम्परा से जुड़े सभी विषयों के साथ-साथ मेडिकल, इंजीनियरिंग, आर्ट एंड कल्चर, मीडिया, शिल्प-शास्त्र, साहित्य-संगीत एवं विविध कलाओं के पाठ्यक्रमों को विश्वस्तरीय मापदण्डों के अनुरूप पढ़ाया जाएगा।
पतंजलि आयुर्वेद कॉलेज
पतंजलि आयुर्वेद कॉलेज की स्थापना वर्ष 2010 में हुई। पतंजलि आयुर्वेद कॉलेज में देश के ऐसे भावी आयुर्वेद चिकित्सकों की शृंखला तैयार की जा रही है जो दुष्परिणाम रहित स्वदेशी चिकित्सा के द्वारा रोगियों का उपचार करने में समर्थ होंगे। यहाँ बी.ए.एम.एस. की 100, एम.डी./एम.एस. की 40 सीट्स हैं जिसमें संहिता सिद्धान्त, द्रव्यगुण, रस-शास्त्र, क्रिया शारीर, काय चिकित्सा, पंचकर्म, शल्य तंत्र व शालाक्य तंत्र विषय समाहित हैं। इसके अन्तर्गत संचालित पतंजलि आयुर्वेदक हॉस्पिटल में विश्व की सबसे बड़ी आयुर्वेदिक ओ.पी.डी. तथा 180 बैड की आई.पी.डी. है। कॉलेज में बालकों एवं बालिकाओं हेतु पृथक्-पृथक् हॉस्टल की सुविधा है। स्वास्थ्य व आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति के प्रचार-प्रसार की दृष्टि से पतंजलि आयुर्वेद कॉलेज का बहुमूल्य योगदान है। अब तक कई बैच यहाँ से पास आऊट होकर रोगियों का उपचार कर रहे हैं।
आचार्यकुलम्
आधुनिक शिक्षा के साथ-साथ वैदिक शिक्षा के दिव्य संगम की परिकल्पना के साथ वर्ष 2013 में आचार्यकुलम् की स्थापना हुई। आचार्यकुलम् का उद्घाटन तत्कालीन मुख्यमंत्री गुजरात तथा देश के वर्तमान प्रधानमंत्री माननीय श्री नरेन्द्र मोदी जी ने किया। आचार्यकुलम् के प्रति बढ़ते आकर्षण तथा बच्चों की संख्या अधिक होने के कारण बाद में यह स्थान छोटा पडऩे लगा तथा आचार्यकुलम् के नवीन भवन का भव्य निर्माण किया गया जिसका उद्घाटन वर्तमान गृहमंत्री श्री अमित शाह जी के कर-कमलों द्वारा किया गया। आचार्यकुलम् बच्चों में ज्ञान-विज्ञान के साथ-साथ भारतीय वैदिक परंपराओं व मूल्यों का संचार कर रहा है।
वैदिक गुरुकुलम् व वैदिक कन्या गुरुकुलम्
भारत में वैदिक शिक्षा की पुनर्स्थापना तथा सदियों से विश्वविख्यात भारत की ऋषि संस्कृति को पुनर्जीवित करने के उद्देश्य से पूज्य स्वामी जी महाराज ने वर्ष 2010 में वैदिक गुरुकुलम् की स्थापना की। वैदिक गुरुकुलम् के दो भाग हैं- वैदिक गुरुकुलम् व वैदिक कन्या गुरुकुलम्। इनके माध्यम से पूज्य स्वामी जी महाराज का लक्ष्य ऐसे श्रेष्ठ संन्यासी भाई व विदूषी साध्वी बहनों का निर्माण करना है जो नि:स्वार्थभाव से देश के विभिन्न क्षेत्रों में देश व विश्व का नेतृत्व कर सकें। ये संन्यासी भाई व साध्वी बहनें महर्षि दयानंद के सपनों को साकार करने के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर संन्यस्त जीवन की राह पर निकल पड़े हैं। ये पूरे विश्व में योग, अध्यात्म व भारतीय संस्कृति की अलख जगाएँगे।
पतंजलि गुरुकुलम्
पूज्य योगऋषि स्वामी रामदेव जी महाराज के मन में हमेशा एक विचार रहा है कि हमारी वेद परम्परा, ऋषि परम्परा, ऋषि संस्कृति, योग, अध्यात्म व अध्यात्मवाद को भौतिकवाद से अधिक गौरव मिलना चाहिए। मैकाले की भ्रष्ट शिक्षा प्रणाली के प्रभाव से हमारी ऋषि प्रणीत भारतीय शिक्षा पद्धति व गुरु-शिष्य परंपरा कहीं विलुप्त सी हो गई थी। इस भ्रष्ट शिक्षा तंत्र को समाप्त करने के उद्देश्य से वर्ष 2017 में औरंगाबाद ग्राम में पतंजलि गुरुकुलम् की स्थापना की गई जिसके भवन का उद्घाटन सर-संघ चालक माननीय श्री मोहन भागवत जी द्वारा किया गया। पतंजलि गुरुकुलम् की बढ़ती लोकप्रियता के कारण यह परिसर छोटा पडऩे लगा तथा अभी हाल ही में वैदिक गुरुकुलम् के समीप पतंजलि गुरुकुलम् के नवीन भवन की आधारशिला रखी गई जिसमें देश के शीर्ष संतों ने भाग लिया।
पूज्य स्वामी जी के प्रयासों से भारत की खोई ऋषि परंपरा को वैदिक गुरुकुलम् व वैदिक कन्या गुरुकुलम् के माध्यम से गौरव मिला है। पतंजलि गुरुकुलम् का उद्देश्य दिव्य व भव्य व्यक्तित्व निर्माण करना है। यहाँ वैदिक शिक्षा के साथ-साथ आधुनिक शिक्षा व भारतीय मूल्यों का ज्ञान भी छात्र-छात्राओं को प्रदान किया जाएगा। यहाँ 3 से 5 साल के छोटे बच्चों ने गीता, पंचोपदेश, अष्टाध्यायी, धातुपाठ, लिंगानुशासन आदि कण्ठस्थ कर लिया है।
पतंजलि का समाज व राष्ट्रहित में योगदान
पतंजलि ने आधुनिक युग में योग को घर-घर तक जन-जन तक पहुँचाया। आयुर्वेद, स्वदेशी एवं वैदिक परम्परा को गौरव दिलवाया। आध्यात्मिकता के साथ वैज्ञानिकता का समन्वय किया। वैदिक ज्ञान एवं आधुनिक ज्ञान विज्ञान एवं अनुसंधान का संगम किया। चिकित्सा के क्षेत्र में कोई एक भी रोग को क्योर कर दे तो उसे विश्व में नोबल पुरस्कार दिया जाता है, हमने बी.पी., शूगर, थायराइड, रूमेटाइड आर्थराइटिस, हैपेटाइटिस, लीवर सिरोसिस एवं कैंसर आदि सौ से अधिक रोगों को पहली बार क्योर करके दिखाया। डीजनरेट हुए सेल व सिस्टम को रीजनरेट किया। करोड़ों लोगों को रोगमुक्त, तनावमुक्त, नशामुक्त, मांसाहार मुक्त, हिंसा, दुर्विचार, दुर्भावना, दुव्र्यवहार, दोष, दुर्बलताओं व पराधीनताओं से मुक्त किया। साथ ही योग, कर्मयोग को उनके जीवन का हिस्सा बनाकर दिव्यताओं एवं दिव्य जीवन से युक्त किया। योग, आयुर्वेद, स्वदेशी एवं वैदिक संस्कृति के विश्व के सर्वश्रेष्ठ संस्थान बनाए। विश्वस्तरीय अनुसंधान प्रारंभ किया। कृषि, उद्योग, शिक्षा, स्वास्थ्य, अनुसंधान, पर्यावरण, धर्म, अध्यात्म, संस्कृति आदि समाज के लगभग हर क्षेत्र में एक सृजनात्मक योगदान दिया। ईश्वरभक्ति, राष्ट्रभक्ति, गोभक्ति, धर्मभक्ति एवं कर्मभक्ति पुरुषार्थ का पाठ पढ़ाया। करोड़ों लोगों के जीवन में एक सकारात्मक दिव्य आध्यात्मिक परिवर्तन किया। लाखों लोगों को रोजगार दिया। ऋषि परम्परा को दिव्यता के साथ आगे बढ़ाया। बिना किसी भेदभाव के संन्यासी की दिव्य परम्परा को प्रतिष्ठा दी। वर्तमान भारत को दिव्य, भव्य बनाने में पुरुषार्थ की पराकाष्ठा करते हुए आने वाले भारत में 500 सालों के बारे में एक अत्यन्त सुदृढ़, दीर्घकालिक, मौलिक कार्य किया जा रहा है। सर्वसमावेशी वैज्ञानिक सोच के साथ संस्था, संगठन एवं शिक्षा के क्षेत्र में दीर्घकालिक सेवा योजना साथ ही शास्त्रों के शुद्धिकरण के द्वारा वैदिक धर्म, संस्कृति एवं सभ्यता को यथार्थ स्वरूप में अक्षुण रखना। वेद के अतिरिक्त अधिकांश हिन्दु शास्त्रों, मुख्य रूप से पुराणों, महाभारत एवं स्मृति ग्रन्थों में विगत 2500 वर्षों में अनेक कारणों से मिलावट हुई है, सभी शास्त्रों के विशुद्ध संस्करणों का प्रकाशन करने की भी हमारी एक बहुत बड़ी कार्य योजना है।
यात्रा की यातनाएँ
सेवा, साधना एवं संघर्ष की कोई भी यात्रा यातना, कष्ट, बाधाओं, चुनौतियों, प्रतिकूलताओं, तप, त्याग एवं बलिदानों के बिना पूरी नहीं होती। पतंजलि के इस बहुआयामी अभियान, अनुष्ठान या आंदोलन में भी सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक व 2005 में वृन्दा करात से लेकर 4 जून रामलीला मैदान तक अनगिनत बाधाओं, यातनाओं एवं विघ्नों को हमने सदा पार किया है तथा आज भी बहुत सारे विकट संकटों से जूझते हुए भी इस व्यक्ति निर्माण, चरित्र निर्माण, मानव निर्माण, राष्ट्र निर्माण से लेकर दिव्य युग निर्माण की यात्रा के पथ पर पुरुषार्थ की पराकाष्ठा के साथ आगे बढ़ रहे हैं।
हमारा संकल्प आध्यात्मिक भारत एवं आध्यात्मिक विश्व है और इसे पूरा करने के लिए हम सभी दिशाओं से पूर्ण पुरुषार्थ कर रहे हैं। यद्यपि यह लक्ष्य बहुत बड़ा है लेकिन इसके सिवा जीवन का विराट् प्रयोजन या पुरुषार्थ भी अन्य कोई नहीं हो सकता। मनुष्य का विकास तथा मनुष्य के लिए विकास या शब्दान्तर से कहें तो राष्ट्र, विश्व व मानवमात्र अर्थात् समष्टि के अहिंसक, स्थाई, समग्र, संतुलित बाह्य आन्तरिक विकास या समृद्धि का एकमात्र पूर्ण निर्दोष वैज्ञानिक व सार्वभौमिक पथ है- अभ्युदय व नि:श्रेयस की एक साथ साधना।
इलैक्ट्रोनिक मीडिया, प्रिन्ट मीडिया व सोशल मीडिया के माध्यम से सेवाकार्यों का व्यापक प्रचार-प्रसार
आज समाज में जितने भी ज्वलंत मुद्दें हैं उन्हें प्रचारित-प्रसारित करने का सबसे बड़ा माध्यम मीडिया है। समय के साथ-साथ मीडिया में भी सकारात्मक परिवर्तन आए हैं जिससे मीडियाजगत में नई क्रांति हुई है। आज इलैक्ट्रोनिक मीडिया, प्रिन्ट मीडिया के साथ-साथ सोशल मीडिया एवं माउथ मीडिया की बहुत बड़ी भूमिका है।
एक समय था जब सही को सही तथा गलत को गलत कहने के लिए भी कोई प्लेटफार्म नहीं था। आज लोग यू-ट्यूब चैनल, फेसबुक, ट्वीटर, इंस्टाग्राम जैसी भिन्न-भिन्न सोशल साइट्स के माध्यम से स्वयं अपनी बात कहने में समर्थ हैं।
जब हमने 1995 में अपनी सेवाएँ प्रारंभ की तो एक ओर हमने सेवा, संघर्ष व साधना की है तथा दूसरी ओर प्रचार के दो सबसे बड़े तंत्रों का व्यापक रूप से सदुपयोग किया। एक इलोक्ट्रॉनिक मीडिया में आस्था व संस्कार तथा दूसरा माउथ पब्लिसिटी से योग, आयुर्वेद एवं स्वदेशी का संदेश एवं सच्चाई को घर-घर व जन-जन तक हमने पहुँचाया। इसके बाद सोशल मीडिया एवं प्रिन्ट मीडिया भी इस आंदोलन से जुड़े। सन् 2000 में सर्वप्रथम संस्कार पर सायंकाल 6.45 पर 20 मिनट का योग का कार्यक्रम अत्यन्त अल्प संसाधनों के साथ प्रारंभ किया, इसके बाद 2001 में आस्था पर 9 बजे 20 मिनट, सितम्बर 2003 के छत्रसाल स्टेडियम दिल्ली के शिविर का पहली बार थोड़े व्यवधान के साथ सीधा प्रसारण संस्कार पर हुआ तथा 2004 में राजकोट, गुजरात से आस्था चैनल पर प्रात: 5 से 8 बजे योग शिविरों का सीधा प्रसारण प्रारंभ हुआ जो अभी तक चल रहा है। आस्था पर ही प्रात: 7.30 बजे तथा सायंकाल 9 बजे जड़ी-बूटियों पर कार्यक्रम प्रसारित हुआ जिससे करोड़ों लोगों तक योग के आयुर्वेद का संदेश भी एक आंदोलन की तरह पहुँचा। देश के दो सबसे बड़े एवं विश्वसनीय धार्मिक चैनल आस्था एवं संस्कार के स्वामित्व एवं संचालन उत्तरदायित्व हमने अपने हाथों में लिया। आज आस्था भजन, वैदिक, अरिहन्त, आस्था इन्टरनेशनल, आस्था तमिल-तेलुगु-कन्नड़ के रूप में बहुत बड़ा विस्तार पा चुका है, वहीं संस्कार सत्संग, शुभ एवं संस्कार इन्टरनेशनल की पहुँच देश-दुनिया के करोड़ों लोगों तक हो चुकी है। सोशल मीडिया में फेसबुक, ट्वीटर, यू-ट्यूब, इन्स्ट्राग्राम आदि पर 4 करोड़ से अधिक लोग हमें फोलो करते हैं। न्यूज चैनल मनोरंजन चैनलों एवं प्रिन्ट मीडिया में भी एक बहुत बड़ी पहुँच पतंजलि की है। दूसरी तरफ बुरी ताकतों ने संगठित रूप से पतंजलि के संदर्भ में दुष्प्रचार करने में पूरी ताकत झोंक रखी है। स्वार्थ, हठ, दुराग्रह, दुर्भावना एवं अहंकारादि के कारण देशी-विदेशी षड्यंत्रकारी ताकतें प्रायोजित रूप से अकूत धन-दौलत, झूठ एवं दुष्प्रचार के बल पर पतंजलि को तबाह करने पर तुली हुई हैं। क्योंकि पतंजलि एक व्यापार नहीं है, यह आयुर्वेद, स्वदेशी, भारतीय धर्म, दर्शन, अध्यात्म, संस्कृति, संस्कार एवं राष्ट्रीय स्वाभिमान व सेवा का आधार है। हमारे लिए देश एक बाजार नहीं अपितु एक परिवार है। भारत एवं भारतीयता की विरोधी ताकतें बेवजह पतंजलि से घोर घृणा नफरत करती हैं। स्वामी रामदेव, आचार्य बालकृष्ण या पतंजलि ने इन भारत, भारतीयता, वैदिक संस्कृति व सभ्यता विरोधी ताकतों का कुछ नहीं बिगाड़ा है, लेकिन क्योंकि उनकी आइडियोलॉजी अलग है, इसलिए विरोध के लिए विरोध करना है। इससे देश व देशवासियों का धार्मिक, आध्यात्मिक, सामाजिक व आर्थिक तौर पर चाहे कितना भी लाभ हो, लेकिन पतंजलि को नुकसान पहुँचाना है, बदनाम करना है। यही एकमात्र ध्येय कुछ लोगों ने संगठित रूप से बना लिया है। निष्कर्ष के रूप में सभी राष्ट्रभक्त, सात्विक आत्माओं से हम आह्वान करते हैं कि हम सब पूर्ण संगठित होकर इस दुष्प्रचार का जवाब दें और पतंजलि के सेवा संकल्प एवं योगदान के बारे में पूरी ताकत से प्रचार करें। तीन प्रकार की प्रवृत्ति या सोच समाज की होती हैं। एक समर्थक, दूसरे विरोधी तथा तीसरे उदासीन। लगभग 80 प्रतिशत लोग उदासीन, तटस्थ या न्यूट्रल हैं। हमें इनको पतंजलि से जोडऩा है। आज देश व दुनिया में लगभग 80 प्रतिशत लोग योग एवं प्रकृति को पसंद करते हैं। इसकेलिए हमें आप सब का पूर्ण सहयोग चाहिए।
पतंजलि के आगामी बड़े लक्ष्य व भावी योजना
शिक्षा क्रांति
पतंजलि गुरुकुलम्, वैदिक गुरुकुलम् व वैदिक कन्या गुरुकुलम् के द्वारा देश में विद्वान् तपस्वी संन्यासियों के मार्गदर्शन, पूर्णकालिक सात्विक कार्यकर्ताओं की निष्काम सेवा एवं स्थानीय लोगों के सात्विक योगदान से देश के आध्यात्मिक, अहिंसक, स्थाई, समग्र, संतुलित विकास या सात्विक समृद्धि के उदाहरण प्रस्तुत करना। भारतीय शिक्षा बोर्ड के माध्यम से मैकॉले की शिक्षा पद्धति को ध्वस्त कर शिक्षा व्यवस्थाओं को भारतीय मूल्यों के आधार पर स्थापित कर आध्यात्मिक भारत व आध्यात्मिक विश्व का निर्माण करना।
* विश्वविद्यालय- शिक्षा की क्रांति बहुत बड़ी है, उसके संदर्भ में पहला पक्ष पतंजलि विश्वविद्यालय का है। अभी पहले चरण में 10 हजार विद्यार्थियों के लिए पतंजलि विश्वविद्यालय का निर्माण हो चुका है। हमारा लक्ष्य 1 लाख विद्यार्थियों के लिए तक्षशिला व नालंदा जैसा विश्वविद्यालय स्थापित करना है जिसमे हम आगामी कुछ ही वर्षों में पूरा कर लेंगे। अगले चरण में लगभग 2 हजार एकड़ भूमि में विश्वविद्यालय स्थापित होगा जहाँ करीब 1 लाख विद्यार्थियों की पढऩे की व्यवस्था होगी।
* पतंजलि गुरुकुलम्- अभी हाल ही में हमनें पतंजलि कन्या गुरुकुलम् की आधारशिला रखी है। अभी 1 हजार बच्चों के लिए पतंजलि गुरुकुलम् में व्यवस्था है। अभी इसे 10 हजार बच्चों तक करने की योजना है तथा फिर धीरे-धीरे यह बढ़ता चला जायेगा प्राचीन ऋषि परम्परा के गुरुकुल का बृहद् स्वरूप लेगा।
कृषि क्रांति
पतंजलि ने किसानों की आय बढ़ाने के उद्देश्य से विस्तृत योजना बनाई है। हाल ही में हमने पतंजलि अनुसंधान संस्थान के माध्यम से एक विजन डाक्यूमेंट तैयार किया है जिसके तहत कृषि को तकनीकि रूप विकसित किया जाएगा। अन्नदाता व हरितक्रांति एप्प इसकी आधारशिला रखेंगे। हमने इन एप्प के जरिए किसान की भूमि को भू-लेख से जोड़ दिया है जिससे सरकार की सभी योजनाओं का लाभ देश के अंतिम किसान तक सीधा पहुँचेगा। साथ ही कृषि भूमि की जीयो-मैपिंग, जीयो-फैंसिंग के साथ-साथ मौसम का पूर्वानुमान भी इन्हीं एप्प के जरिए सुलभ हो सकेगा। पतंजलि अनुसंधान संस्थान ने मृदा परीक्षण किट ‘धरती का डॉक्टर’ तैयार की है जिसमें मिट्टी की जाँच कर आवश्यक तत्वों की कमी का पता लगाया जा रहा है। इससे रसायनों व कीटनाशकों पर अनावश्यक व्यय को रोका जा रहा है। साथ ही किसानों को जैविक कृषि प्रशिक्षण के तहत जैविक कृषि की ओर प्रेरित किया जा रहा है।
पतंजलि वैलनेस के माध्यम से एकीकृत चिकित्सा पद्धति (Integrated Pathy)
एलोपैथिक दवाओं के दुष्प्रभाव व दवा माफियाओं की लूट से जनमानस को बचाने तथा योग, आयुर्वेद, प्राकृतिक चिकित्सा, पंचकर्म, षट्कर्म के माध्यम से लोगों के शारीरिक रोगों तथा अध्यात्म के द्वारा मानसिक व आत्मिक रोगों से मुक्ति दिलाने के लिए देश के कोने-कोने में पतंजलि वैलनेस सेंटर्स की स्थापना हमारी आगामी योजना का मुख्य भाग है।
अनुसंधान के क्षेत्र में व्यापक योजना
* आयुर्वेदिक अनुसंधान- साध्य-असाध्य रोगों से त्रस्त मानवता को आरोग्य प्रदान करने के उद्देश्य से पतंजलि अनुसंधान के माध्यम से आयुर्वेद पर गहन अनुसंधान कर औषधि निर्माण।
* विश्वभेषज संहिता एवं योग विश्वकोष- ये दोनों ही ग्रन्थ सदियों तक एक धरोहर के रूप में होंगे। पूरे विश्व में लगभग 4 लाख पेड़-पौधे, जड़ी-बूटियाँ एवं वनस्पतियाँ हैं। इस वल्र्ड हर्बल इंसाइक्लोपीडिया में औषधीय गुणों की पहचान हो चुके लगभग 65 हजार औषधीय पौधों के सन्दर्भ में उपलब्ध सम्पूर्ण ज्ञान का समावेश होगा। 30 हजार पौधों की कैन्वास पेंटिंग तथा 35 हजार की लाइन ड्राइंग होगी। विश्व की 2 हजार जनजातियों के जड़ी-बूटियों के पारंपरिक ज्ञान का समावेश होगा। विश्व की 1800 भाषाओं में 12 से 15 लाख नामों का समावेश के साथ लगभग एक लाख बड़े पृष्ठों से युक्त 100 वॉल्यूम का यह आयुर्वेद के क्षेत्र में विश्व का बृहत्तम एवं श्रेष्ठतम महाग्रन्थ होगा। विश्व भेषज संहिता में लगभग ढ़ाई लाख सन्दर्भ का समावेश होगा। संहिता की लगभग 5 लाख संस्कृत श्लोकों की संरचना के साथ रचना होगी। इसी प्रकार योग विश्वकोष में प्रत्यक्ष रूप से 700 ग्रन्थों तथा गौण रूप से 300 ग्रन्थों के सन्दर्भों के साथ लगभग कुल एक हजार ग्रन्थों के सन्दर्भों के साथ लगभग 5000 पृष्ठों का महाग्रन्थ होगा। इसमें 2300 आसनों, 500 मुद्राओं, 150 प्राणायामों एवं 150 शोधन क्रियाओं के सचित्र समावेश के साथ 5 हजार पारिभाषिक शब्दों का योग एवं अध्यात्म के ग्रन्थों के सन्दर्भ के साथ प्रामाणिक अर्थ होगा।
* शास्त्रों का शुद्धिकरण- वैदिक शास्त्रों के विशुद्ध रूप में प्रकाशित करने का आगामी 20-25 वर्षों का एक बहुत बड़ा कार्य है। देश एवं विश्व की धर्म, शास्त्र, राष्ट्र एवं संस्कृति विरोधी शक्तियों के द्वारा हम पर जो झूठे आरोप लगाए जाते हैं तथा भारत की सनातन आर्य वैदिक संस्कृति एवं हमारे महान् पूर्वजों को दुराचारी, व्यभिचारी, क्रूर, हिंसक, हत्यारे, शैतान व हैवान बताकर उनका अपमान किया जा रहा है। इस पापपूर्ण वैश्विक षड्यंत्र को हमें मिटाना है।
* गौ-अनुसंधान केन्द्र- करोड़ों गायों की इंजेक्शन के जरिए नस्ल खराब कर दी गई है तथा करोड़ों गायों की हमारी अविवेकशीलता, लापरवाही एवं अदूरदर्शिता के कारण नस्लें खराब हो गई हैं। 2-3 किलो औसत दूध देने वाली गाय को हम 20-25 किलो से लेकर ब्राजील की तरह 50 किलो तक दूध देने वाली नस्लों में तब्दील कर सकें यह बहुत बड़ा ध्येय है हमारा। इसके लिए एक बहुत बड़ा अनुसंधान केन्द्र गोशाला एवं नन्दीशाला बनाने का हमारा संकल्प है। समय चाहे जितना लगे, लेकिन इसे हम अवश्य पूरा करेंगे।
भारतीय शिक्षा बोर्ड एवं इंटरनेशनल योगासन स्पोर्ट्स फैडरेशन
1835 में मैकाले द्वारा स्थापित शिक्षा तन्त्र के स्थान पर भारतीय शिक्षा तन्त्र की प्रतिष्ठा करके श्रेष्ठतम वैदिक, आध्यात्मिक शिक्षा एवं श्रेष्ठतम आधुनिक शिक्षा-दीक्षा के साथ 21वीं सदी की नई शिक्षा क्रान्ति को हम एक बहुत बड़े आंदोलन के रूप में लेकर चल रहे हैं। बोर्ड का गठन हो चुका है। पाठ्य पुस्तकों के निर्माण का कार्य बहुत बड़े रूप में आगे बढ़ रहा है। इसके बाद नए एवं पुराने विद्यालयों को देश भर में इस बोर्ड से मान्यता (एफिलेशन) देकर उन विद्यालयों में एक आदर्श शिक्षा-दीक्षा, संस्कार एवं आदर्श शिक्षकों के साथ ही श्रेष्ठ वातावरण उपलब्ध कराकर एक आदर्श शिक्षा व्यवस्था की प्रतिष्ठा करेंगे। योगासनों के माध्यम से युवाओं एवं विद्यार्थियों को संस्कारित करके योगविद्या एवं अध्यात्म के संस्कारों का समावेश हम राष्ट्र एवं विश्व पटल पर करना चाहते हैं। अन्य खेलों की तरह अब योगासनों का भी राष्ट्रीय स्तर से लेकर ओलम्पिक तक समावेश होगा। वैश्विक स्तर पर यह एक बड़ा ऐतिहासिक कार्य होगा। कालान्तर में इसका बड़ा परिणाम सामने आएगा। योगासनों के जरिए पूरी दुनिया में भारतीय संस्कृति एवं अध्यात्म विद्या का प्रथम बीजारोपण होगा और अन्तत: एक आध्यात्मिक विश्व के निर्माण का हमारा दिव्य संकल्प पूरा होगा। योग प्रत्येक व्यक्ति एवं विश्व का स्वभाव बन जाए, तो सभी समस्याओं का समाधान सहज नैसर्गिक रूप से ही हो जाएगा। स्वभावो-अध्यात्मम्उच्यते। (गीता 8/3) योग एवं अध्यात्म ही मानवमात्र का वस्तुत: मूल स्वभाव, प्रकृति या संस्कृति है। यह अकाट्य निर्विवादित, वैज्ञानिक, व्यवहारिक व स्वाभाविक सत्य है। इसे सत्य को हमें जानना, जगाना व पाना है। योग व भोग दोनों के बीज हमारे भीतर हैं, योग के बीजारोपण से भोग निर्बीज हो जाते हैं, हम निर्विकार, निर्दोष, निर्द्वन्द, निर्बैर, निर्भय व निर्विकल्प होकर मनुष्यत्व, देवत्व, ऋषित्व व ब्रह्मत्व को उपलब्ध हो जाते हैं।
आध्यात्मिक विश्व का निर्माण
दुनिया के प्रत्येक देश की भाषा में योगाचार्यों, वैदिक विद्वानों तथा संन्यासियों को प्रशिक्षित करके आने वाले 25 से 50 वर्षों में सम्पूर्ण विश्व में योग एवं वैदिक संस्कृति को विश्व कल्याण हेतु प्रतिष्ठित करना हमारी बहुत बड़ी कार्य योजना है। यह भारत के विश्वगुरु होने का तात्पर्य है और पूरे विश्व के मंगल हेतु यह नितान्त आवश्यक है। विश्व के आध्यात्मिक, अहिंसक, समग्र व स्थाई विकास के लिए यही एकमात्र मार्ग है।
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