मिलावट के जहर से रोज होता है सामना
डॉ. रुपेश शर्मा, योग संदेश विभाग
खाद्य पदार्थों में मिलावट ने आम आदमी का जीवन हराम कर दिया है। इस मिलावट के कारण मरने वालों की संख्या लाखों तक पहुँचा चुकी है, असंख्य व्यक्ति अपंग होकर अभिशप्त जीवन जी रहे हैं। सामान्यत: बाजार में उपलब्ध खाद्य पदार्थों में मिलावट का संशय बना रहता है। दालें, अनाज, दूध, मसाले, घी से लेकर सब्जी व फल तक मिलावट का सबसे अधिक कुप्रभाव हमारे रोजमर्रा के जीवन में प्रयोग होने वाली जरूरत की वस्तुओं पर भी पड़ रहा है। शरीर के पोषण, उसे स्वस्थ रखने हेतु प्रोटीन, वसा, कार्बोहाइड्रेट, विटामिन तथा खनिज लवण आदि की पर्याप्त मात्रा को आहार में शामिल कर प्राप्त किये जा सकते हैं। यह तभी संभव है कि जब बाजार में मिलने वाली खाद्य सामग्री, दालें, अनाज, दुग्ध उत्पाद, मसाले, तेल इत्यादि में मिलावट से गुणवत्ता में काफी कमी आ जाती है। खाद्य पदार्थों में सस्ते रंजक इत्यादि की मिलावट करने से उत्पाद तो अधिक आकर्षक दिखने लगता है परंतु यह स्वास्थ्य के लिए काफी हानिकारक होता है।
मिलावट से आर्थिक नुकसान -
खाद्य पदार्थों में बाहरी तत्व मिला कर उसमें से मूल्यवान पोषक तत्व निकाल लिये जाते हैं जिससे उसकी गुणवत्ता में भी कमी आ जाती है। एक तरफ तो खाद्य पदार्थों के भाव देश में सातवें आसमान को छू रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ उनमें मिलावट भी की जा रही है। लोगों को पूरे दाम चुकाने के बाद भी शुद्ध चीज नहीं मिल पा रही है। जिस कारण उन्हें आर्थिक नुकसान के साथ स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों का सामना भी करना पड़ रहा है। गंभीर बात यह है कि आज बाजार में मिलावटी खाद्य पदार्थ बिक रहेे हैं जिसकी जानकारी फूड सेफ्टी विभाग को भी होती है। इसके बावजूद भी मिलावटखोरों पर कार्यवाही नहीं की जाती है। इन दिनों फल और सब्जी को तरह-तरह के केमिकल का उपयोग कर तैयार किया जाता है। मसलन लौकी व कद्दू में ऑक्सीटोसिन का इस्तेमाल किया जाता है। एक सब्जी विक्रेता की माने तो केमिकल से सब्जी ताजी और हरी बनाये रखने के लिए उसे ऊपर से सुन्दर दिखाई रखने के लिए केमिकल का उपयोग किया जाता है।
दूध में मिलावट का धीमा जहर -
दूध में अब पानी मिलाना पुराने दिनों की बात हो गयी है। अब दूध का व्यापार करने वाले लोग केमिकल मिलाकर अधिक मात्रा में मिलावटी दूध बनाकर बेच रहे हैं। मिलावटखोर अब यूरिया ग्लूकोज जैसे केमिकल की मिलावट कर रहे हैं। इसके अलावा दूध में निरमा, साबुन सहित अन्य जानलेवा केमिकल भी दूध में मिलाकर आपके सामने परोस रहे हैं।
कृषि मंत्रालय की रिपोर्ट कहती है कि भारत इस समय हर साल १७ करोड़ टन दूध का उत्पादन कर रहा है। यह आंकड़े देखकर तो अच्छा लगता है लेकिन स्थिति तब ज्यादा भयावह हो जाती है जब पता चलता है कि देश में दूध की खपत तो ६४ करोड़ टन सालाना हो रही है यानि उत्पादन से लगभग ४ गुना ज्यादा। ऐसे में सवाल यह उठता है कि मांग की पूर्ति हो कैसे रही है। मतलब उत्पादन और खपत के बीच खेल हो रहा है। इस खेल में आपकी सेहत तो बिगड़ ही रही है। पशु पालकों के फायदे पर भी बट्टा लग रहा है। देश में डेयरी उद्योग करीब ६ लाख करोड़ रुपए का है और महज एक लाख करोड़ ही संगठित क्षेत्र में है, बाकि असंगठित हैं। ताजा रिपोर्ट के अनुसार डेयरी क्षेत्र का कारोबार सालाना १५ प्रतिशत की दर से बढ़ता हुआ २०२० तक ९४०० अरब रुपए तक पहुँचने की उम्मीद है। लेकिन इसकी तुलना में पशु-पालकों की आमदनी बढऩे की बजाए घट रही है।
दूध में मिलावट के नुकसान -
लगातार मिलावटी दूध पीते रहने से इंटेस्टाइन, लिवर या किडनी डैमेज हो जाती है। खासतौर पर मिलावटी दूध से बच्चों की ग्रोथ पर असर पड़ता है, उससे दूध पचाने में परेशानी होती है और पेट दर्द, डायरिया, फूड प्वाइजनिंग जैसी समस्या बच्चों में देखने को मिलती है।
मिलावटी मिठाईयाँ -
दीपावली और अन्य त्यौहारों के समय मिठाइयों की माँग बहुत बढ़ जाती है। इसी का फायदा उठाकर मिलावटखोर मावे व मिठाइयों में मिलावट करके उसकी मात्रा तो बढ़ा देते हैं, लेकिन उसकी गुणवत्ता पूरी तरह से खत्म हो जाती है। इसका नतीजा कई बार लोगों के बीमार होने, उल्टी, दस्त, घबराहट, मौत के रूप में भी सामने आता है।
दरअसल मिठाइयाँ बनाने के लिए दूध, मावे और घी की आवश्यकता होती है जिसकी मांग सबसे ज्यादा होती है। लेकिन खपत बढऩे से मिलावटखोर इन उत्पादों में सोडा, डिटर्जेंट, कास्टिक सोडा, यूरिया और चरबी का प्रयोग करते हैं और इनसे बने उत्पाद बाजार में बेचते हैं।
त्यौहार के समय यह मिलावट चरम पर होती है क्योंकि दूध, मावे की मांग काफी होती है और इससे व्यापारियों को मुनाफा होता है। यही कारण है कि मिलावटखोर द्वारा सिंथेटिक दूध, मावा और अन्य सामान धड़ल्ले से तैयार किए जाते हैं। इसमें प्रयोग में लाई जाने वाली सभी चीजें इतनी घातक होती हैं कि कल्पना भी नहीं की जा सकती।
कुछ दिनों बाद पूरा भारत त्यौहारों के सीजन में रंग जायेगा। इस तीज-त्यौहार में एक दूसरे का मुँह मीठा करवाने की परम्परा है और सभी मिठाईयां दूध से बने मावे से बनती हैं और मिलावटी दूध से बनी मिठाईयां कई बार खुशियों के माहौल को गम में तब्दील कर देती हैं। जिसका जीता जागता उदाहारण त्यौहारों पर धड़ल्ले से पकड़े जाने वाला जहरीला मावा है।
चटकीले रंगों में है धीमी मौत -
आज आइसक्रीम, विभिन्न प्रकार की दालें, बेसन, मसालों एवं अन्य आहार को चटकीले लाल, हरे, पीले रंग से आकर्षक बनाया जाता है। वैसे तो वैज्ञानिक भाषा में यह किसी धीमी मौत से कम नहीं है। इनके प्रयोग से पाचन संबंधी रोग, रक्तहीनता मस्तिष्क यकृत, गुर्दे, आमाशय एवं आंतों में सूजन तथा विभिन्न अंगो के कैंसर होते हैं। उसी प्रकार आजकल बर्फ के गोले पर छिडक़ा जाने वाला रंग जो शर्बत युक्त होता है जिसमें रोडमाइन की तथा हरा कच्चा रंग मेलकाइट ग्रीन पानी में घुलनशील घातक रसायन ट्राइएमाइल मिथेन मिथेन डाई से बनता है। जिस बर्फ के गोले को बड़े प्यार से हम अपने बच्चों को खिलाते हैं वह गले, मुंह एवं यकृत का कैंसर पैदा करता है।
खाद्य पदार्थों में मिले रंग-रसायनों के कारण कभी-कभी लकवा तक हो जाता है। कौख में पल रहे बच्चे का विकास तक रूक जाता है। उनकी आँखें, हड्डियाँ, चमड़ी तथा फेफड़े रूग्ण होते हैं। रंगों का सबसे घातक प्रभाव कोशिकाओं, गुणसूत्र तथा जीन तक पर होता है। जिससे आने वाली संतानें मानसिक, बौद्धिक एवं शारीरिक दृष्टि में अपंग हो सकती हैं।
खाद्य पदार्थों को अधिक दिन तक सुरक्षित रखने के लिए मिलाए जाते हैं रसायन -
आज खाद्य पदार्थों को अधिक दिन तक सुरक्षित रखने वाले, उसे स्वादिष्ट एवं आकर्षक बनाये रखने वाले रसायनों से युक्त होते हैं। जो रोगों के अलावा एलर्जी, अस्थमा, नपुंसकता, रिटार्डेड मस्तिष्क आदि रोगों के लक्षण दिखाते हैं। शरीर में तीव्र प्रतिक्रिया स्वरूप रसायन शरीर के लिए विजातीय है, इससे घातक रोग पैदा होते हैं। इन सभी से बचने के लिए प्रकृति की ओर लौटना ही एकमात्र विकल्प है। शरीर का आहार केन्द्र मुख के अतिरिक्त वे स्थल भी हैं, जो हमें संवेदित एवं क्रियेटिव बनाते हैं जैसे-नाक, त्वचा, कान तथा नेत्र आदि पर आज इनके द्वारा भी शरीर में जहर घुल रहे हैं। कल- कारखाने से उत्पन्न स्ह्र२, ष्टह्र२, ष्टह्र, मिथाइल आयसोसाइनेट तथा जहरीली गैसें नाक द्वारा ग्रहण करने के लिए हम मजबूर हैं। एस्बेस्टस कारखाने से कैंसर तथा एस्बेस्टोसिस नामक भयंकर रोग होते हैं।
मिलावट के आगे मजबूर है आम आदमी -
आज सब कुछ कमोवेश दूषित हो चुका है। सब कुछ जहरीला हुआ जा रहा है, कुछ कीटनाशकों के प्रभाव से तो कुछ मिलावटखोरों की दूषित मानसिकता और लालच के कारण, यह जो जहर तिल-तिल कर के मानव शरीर में भेजा जा रहा है। इससे मानव गंभीर बीमारियों का शिकार होता जा रहा है। आज आम आदमी जहर खाने को मजबूर है क्योंकि उसके पास आज और कोई विकल्प भी तो नहीं है। पेट भरने के लिए अन्न और सब्जियों तो खाएगा ही लेकिन कुछ गैर जरूरी चीजों से दूरी बनाकर अपने शरीर में जाने वाले जहर के कुछ अंश कम कर ही सकता है।
वर्तमान में प्रत्येक सामान्य व्यक्ति यह बात अच्छी तरह से जान समझ रहा है कि वह जिस खाद्य सामग्री का इस्तेमाल कर रहा है वह मिलावट से अछूती नहीं है। लेकिन समय-समय पर खाद्य सामग्री में मिलावट की सूचनाओं को हवा मिलने के बाद स्वास्थ्य के प्रति हो रहे इस खिलवाड़ के प्रति एक जागरूकता अभियान चलाने की आवश्यकता है। इस कार्य में पतंजलि अपना कर्तव्य निभाने के लिए सभी देशवासियों के प्रति संकल्पित है।