गुरु चरणों की भक्ति सर्वोत्तम उपलब्धि

गुरु चरणों की भक्ति सर्वोत्तम उपलब्धि

साध्वी देवशक्ति, पतंजलि संन्यासाश्रम

   भारत विश्व का हृदय है और इस हृदय का धडक़न सदा से ही गुरु शिष्य परम्परा रही है। जिस प्रकार किसी मूर्तिकार के बिना मूर्ति का अस्तित्व में आना। चित्रकार के बिना संगीत का उद्भव, कवि के अभाव में कविता का अर्थ को पाना जिस प्रकार यह सब असंम्भव है, ठीक उसी प्रकार जीवन की पूर्णता भी गुरु के बिना असंम्भव है।

अगर कोई साधक गुरुदेव के श्री चरणों में आता है यह परमपिता परमात्मा व गुरुदेव की अनन्त कृपा है। इससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण है, गुरुदेव के चरणों में मन से लगन का होना।

जीवन तो हम सभी जी रहे हैं, लेकिन दीप्तिमय और अर्थपूर्ण जीवन जीना यह गुरुदेव के चरणों में सच्ची लगन से होता है। जब एक शिष्य गुरुदेव की आज्ञाओं में चलता है। अपने अस्तित्व को  गुरुदेव की शिक्षाओं में समाहित कर लेता है, तो वह समाज युग और आने वाली पीढिय़ों के लिए उदाहरण बन जाता हैं।

जब एक शिष्य अपने रक्त के कण-कण में गुरुदेव के हर वचन को समा लेता है और अपनी श्वासों में समा लेता है तो वह जो बन जाता है वह उसकी कल्पना से भी परे होता है। क्या अर्जुन ने सोचा था? भगवान श्री कृष्ण के साथ उसका नाम भी अमर हो जायेगा। यह सब तो शिष्य के प्रति गुरुदेव की कृपा थी जोकि शिष्य श्री गुरुदेव के चरणों में सच्ची लगन से कृपा का पात्र बनता है।

एक सच्चे शिष्य की पहचान है शिष्य के चरित्र से आचरण से गुरुदेव की शिक्षाएं झलकें । उसके विचारों से, कर्मों से, वाणी से गुरुदेव की शिक्षाएं अलंकृत हो जाये। गुरुदेव तो हमारी कमियों को, नादानियों को एक तरफ रखकर हमारे ऊपर कितनी कृपा लुुटा रहे हैं। इस कृपा का हकदार वही जिसकी जैसी-जैसी भावना होगी, जिसका जितना समर्पण होगा। सब कुछ हमारे हाथ में हैं। हमें अपनी भावनाओं के पात्र को बढ़ाना होगा। समर्पण भाव को बढ़ाना होगा। हमें ऐसा बनना होगा सर्वस्व गुरुदेव के श्री चरणों में सौंप दे। हम हम ना रहे, हम गुरुदेवमय हो जायें।

इन्हीं गुरुदेव की श्री चरणों की महिमा को गोस्वामी तुलसीदास ने श्रीराम चरितमानस में गाया है-

वन्दऊ गुरु पद कंज कृपा सिन्धु नररूप हरि।

महामोह तम पुंज जासु बचन रविकर निकर ।।५।।

अर्थात् गोस्वामी तुलसीदास जी कहते है कि मैं उन गुरु महाराज के चरणकमल की वन्दना करता हूँ जो कृपा के समुद्र और नररूप में श्री हरि ही है और जिनके वचन महामोह रूपी घने अन्धकार में नाश करने के लिए सूर्य किरणों के समूह हैं।

बंदऊ गुरु पद पदुम परागा। सुरुचि सुबास सरस अनुरागा।।

अमिअ मूरिमय चूरण चारु । समन सकल भव रुज परिवारु।।

अर्थात् मैं गुरुदेव महाराज के चरण कमलों की रज की वन्दना करता हूँ। जो सुरुचि (सुन्दर स्वाद), सुगंध तथा अनुरागरूपी रस से पूर्ण हैं। वह अमर मूल (सञ्जीवनी जड़ी) का सुन्दर चूर्ण है, जो संम्पूर्ण भव रोगोंं के परिवार को नाश करने वाला है।

श्रीगुरु पद नख मनि गन जोती। सुमिरत दिव्य दृष्टि हियं होती।।

दलन मोह तम सो सप्रकासू। बड़े भाग 32 आवइ जासू।।

अर्थात् श्री गुरु महाराज के चरण नखों की ज्योति मणियों के प्रकाश के समान है। जिसके स्मरण करते ही हृदय में दिव्य दृष्टि उत्पन्न हो  जाती है। वह प्रकाश अज्ञानरूपी अंधकार का नाश करने वाला है, वह जिसके हृदय में आ जाता है, उसके बड़े भाग्य है।

श्री गुरु चरण सरोज रज। निज मन मुकुर सुधारि।।

श्री गोस्वामी तुलसीदास जी कहते है श्री गुरु महाराज के चरणों कमलो की धूलि से अपने रूपी दर्पण को पवित्र करता हूँ।

इस प्रकार गोस्वामी तुलसीदास ने श्री गुरुदेव चरणों की महिमा व हमारे जीवन में क्या महत्व है बताया।

गुरुदेव के चरणों में हमारी ऐसी लगन हो जैसे- पपीहे का स्वाति नक्षत्र के प्रति उसके पास और भी विकल्प पर्याय है वह अन्य किसी नदी, कुआं व अन्य किसी नक्षत्र के पानी से प्यास बुझा सकता है लेकिन उसका संकल्प तो स्वाति बूंद है। शिष्य के जीवन में भी संसार की तरफ से कई प्रलोभन आते हैं, कई रास्ते दिखते है। जिसको समझ में आ गया है कि गुरु के बिना जीवन व्यर्थ है। इसलिए उसका संकल्प भी अपने को अर्थमय बनाने हेतु श्रीगुरुदेव के श्री चरण कमलों में समर्पित होता है। आदि गुरु शंकराचार्य जी ने भी गुरु अष्टक के माध्यम से गुरुदेव की चरणों का महत्व बताया है। गुरु शंकराचार्य ने इन श्लोकों में संसार की सारी उपलब्धियों को बतलाया है। इन सबके होने के बावजूद भी यदि गुरुदेव के चरणों में मन नहीं लगा तो क्या अर्थात् गुरु चरणों में प्रीति के बिना यह संसार का समस्त एश्वर्य  व्यर्थ हैं।

आईये! आदि गुरु शंकराचार्य जी द्वारा लिखित गुरु अष्टकम् का स्वाध्याय करते है-

शरीरं सुरुपं तथा वा कलत्रम्, यशश्चारु चित्रं धनं मेरु तुल्यम्।।

गुरारघ्रिपक्षे मनश्चेन लग्नं, तत: किं तत: किं तत: किं तत: किम्।।

यदि सुन्दर शरीर अथवा सुन्दर पत्नी हो चारों और यश फैला हो, धन भी मेरु पर्वत के समान हो फिर अगर गुरु चरणों में मन नहीं लगा हो तो फिर सब कुछ व्यर्थ हैं।

कलत्रं धनं पुत्र पौत्रादिसर्वम्। ग्रहं बान्धवा: सर्वमेतद्धि जातम्।।

गुरोरध्रिपद्धे मनश्चेन लग्नं। तत: किं तत: किं तत: किं तत: किम्।।

पत्नी, धन, पुत्र, पौत्रादि सभी घर में हो। बन्धु, बान्धव प्राप्त हो, फिर भी यदि श्री गुरु चरणों में मन नहीं लगा तो सब व्यर्थ है। सांस टूटते ही सब रिश्ते टूट जायेंगे, मां, बाप, बहन इत्यादि सब छूट जायेंगे। सभी नाते इस स्थूल देह के साथ समाप्त हो जाते है। वही गुरु का शाश्वत सम्बंध मृत्यु के पश्चात भी साथ निभाता है।

षङ् गादिवेदो मुखे शास्त्राविद्या। कवित्वादि गद्यं सुपद्यं करोति।।

गुरोरध्रिपदमे मनश्चेन लग्नं। तत: किं तत: किं तत: किं तत: किंम्।।

चाहे शास्त्र, चारों वेद सभी कण्ठस्थ हो, गद्य, पद्य रचना करने में निपुण हो फिर अगर गुरु चरणों में मन नहीं लगा हो, तो यह शास्त्र पुराण किस काम के और क्या लाभ? अर्थात् सभी व्यर्थ है। अर्थात् इन सभी का जीवन में एक महत्व है लेकिन अगर इनके अनुसार जीवन नहीं हुआ, इन शास्त्रों की राह चल गुरु चरणों में (श्रद्धा) प्रीति नहीं तो सब व्यर्थ हैं।

विदेशेषु मान्य: स्वदेशेषु धन्य:।

सदाचारवृत्तेषु मत्तो न चान्य:।।

गुरुनेरध्रिपद्मे मनश्चेन लग्नं।

तत: किं तत: किं तत: किं तत: किम्।।

विदेशों में मान-सम्मान प्राप्त हो, अपने देश में धन-दौलत खूब हो। आप जैसा सदाचार वृत्ति वाला कोई ना। फिर भी अगर श्री गुरु चरणों में शरणागति नहीं हुई तो इन सबका क्या लाभ?, सब व्यर्थ हैं।

क्षमामण्डले भूप भूपलवृन्दै:। सदा सेवितं यस्य पादारविन्दम्।।

गुरोरध्रिपद्मे मनश्चेन लग्नं। तत: किं तत: किं तत: किं तत: किम्।।

आप पृथ्वी पर राजाओं से घिरे रहते हो, सभी आपके चरणों की सेवा लग्न हो, फिर आपके गुरुदेव श्री चरणों में मन नहीं लगा तो इस मान-प्रतिष्ठा से क्या लाभ? यह सब गौण है।

जिन्दगी एक सिक्का है जिसे हम खर्च तो कर सकते हैं लेकिन केवल एक बार सब सवाल यह है कि इस सिक्के को खर्च करें तो कैसे? ताकि इससे की गई कमाई हमें सच्ची सफलता दे सकें।

बहुत से लोगों ने इस सिक्के से नाम, धन, ताकत, रूतबा कमाया क्या वे सफल हो पाए, नहीं। तभी तो सिकन्दर जैसा नामी योद्धा भी जब दुनियां से गया तो यह ऐलान किया। मेरे दोनों हाथ कफऩ के बाहर रखना ताकि लोग यह जान सकें कि सिकन्दर बादशाह खाली हाथ संसार से जा रहा है। कहने का आशय है ताकत, नाम, शोहरत इत्यादि में खर्च किया गया जीवन सच्ची सफलता दिलाने में व्यर्थ हैं।

यशो में गतं दिक्षु दानप्रतापात्। जगद्वस्तु सर्वं करे यत्ध्रसादात्।।

गुरोरध्रिपद्मे मनश्चेन लग्नं। तत: किं तत: किं तत: किं तत: किम्।।

सभी दिशाओं में यश फैला हो, आप बहुत बड़े दानी, प्रतापी हो, संसार की वस्तु, सभी वस्तुएं प्राप्त करने वाले हो, फिर भी अगर गुरु के श्री चरणों में मन नहीं लगा तो यह सब व्यर्थ हैं।

न भोगं न योगे न वा वाजिराजौ। न कन्तामुखे नैव वित्तेषु चित्तम्।।

गुरोरध्रिपद्मे मनश्चेन लग्नं। तत: किं तत: किं तत: किं तत: किम्।।

भोग में ध्यान में अथवा घोडा राजा पत्नी की सुन्दरता व धन में लगा हुआ मन। इस सब में कोई सुख नहीं अगर आपका मन गुरु के श्री चरणों में नहीं लगा तो यह सब व्यर्थ हैं।

अरण्ये न वा स्वस्थ गेहे न कार्ये। न देहे मनो वर्तते  मे त्वनध्र्ये।।

गुरोरध्रिपद्मे मनश्चेन लग्नं। तत: किं त: किं तत: किं तत किम्।।

जंगल में अथवा अपने घर में, कार्य में, शरीर की सुन्दरता में, मन लगाने पर भी और पाप से रहित होने पर भी यदि आपका मन गुरु चरणों में नहीं लगा तो यह सब व्यर्थ हैं। गुरु अष्टकम् की सारी पंक्तियां का हम सारांश निकाले तो पायेंगे संसार की सारी उपलब्धियां गुरु चरणों के समक्ष तुच्छ हैं।

हम विचार करें गुरु चरणों की ऐसी भव्य महिमा, ऐसी अनुपम गाथा क्यों? इसे हम एक उदाहरण से समझते है, अगर हमें एक पात्र को पानी से भरना है तो हम पात्र को कहाँ रखेंगे? नल के ऊपर या नीचे स्वाभाविक सी बात है नीचे। ठीक उसी प्रकार अगर शिष्य को अपनी हृदयरूपी गागर गुरुदेव की कृपारूपी अमृत से भरनी है, तो उसे अपनी ऊँचाई को छोडऩा होगा, दीनता से झुकना होगा।

ऐसा कौन सा दिव्य ऐश्वर्य है जो गुरु चरणों में न समाया हो। अखिल ब्रह्माण्ड में गुरुदेव चरणों सा पुण्य धाम कोई भी नहीं। इनकी धूली से अखण्ड पद्वी मिल जाती है। इसलिए आईये! प्रिय साधकों गुरु चरणों में अपना मन अर्पित कर सदा के लिए जीवन को वास्तविक उत्कर्ष से भर लें।

 

Advertisment

Latest News

परम पूज्य योग-ऋषि श्रद्धेय स्वामी जी महाराज की शाश्वत प्रज्ञा से नि:सृत शाश्वत सत्य ... परम पूज्य योग-ऋषि श्रद्धेय स्वामी जी महाराज की शाश्वत प्रज्ञा से नि:सृत शाश्वत सत्य ...
जीवन सूत्र (1) जीवन का निचोड़/निष्कर्ष- जब भी बड़ों के पास बैठते हैं तो जीवन के सार तत्त्व की बात...
संकल्प की शक्ति
पतंजलि विश्वविद्यालय को उच्च अंकों के साथ मिला NAAC का A+ ग्रेड
आचार्यकुलम् में ‘एजुकेशन फॉर लीडरशिप’ के तहत मानस गढक़र विश्व नेतृत्व को तैयार हो रहे युवा
‘एजुकेशन फॉर लीडरशिप’ की थीम के साथ पतंजलि गुरुकुम् का वार्षिकोत्सव संपन्न
योगा एलायंस के सर्वे के अनुसार अमेरिका में 10% लोग करते हैं नियमित योग
वेलनेस उद्घाटन 
कार्डियोग्रिट  गोल्ड  हृदय को रखे स्वस्थ
समकालीन समाज में लोकव्यवहार को गढ़ती हैं राजनीति और सरकारें
सोरायसिस अब लाईलाज नहीं