ऋतुओं की रानी- बरसात में कैसे बचा कर रखें स्वास्थ्य

ऋतुओं की रानी- बरसात में कैसे बचा कर रखें स्वास्थ्य

ऋतु की रानी बरसात के आगमन के साथ ही प्रचण्ड मार्तण्ड रविरश्मियों की क्रोधाग्नि से तप्त धरणि शीतल एवं शान्त हो जाती है। वसुन्धरा के गोद में पलने वाले सभी दृश्य अदृश्य पेड़ पौधे एवं प्राणी नया जीवन पाते हैं।
सभी माँ धरती को नयी नवेली दुल्हन की तरह सजाने में लग जाते हैं। नाना प्रकार के रंग-बिरंगे पुष्पों से कढ़ी गयी हरे-भरे चुनिरयों को ओढक़र माँ विश्वम्भरे का सौन्दर्य खिल उठता हैं। सुखी लताएं, पेड़-पौधें भी वर्षा की अमृतमयी जल को पीकर नये जोश तथा जवां उमंग के साथ खिल जाते हैं। सारी धरती पर हरियाली छा जाती हैं। चारों तरफ उमड़ते-घुमड़ते काली घटाएं लहराते इठलाते बरसने को आतुर रहते हैं।
प्रकृति का कण-कण आभा एवं प्रभामंडित हो जाता है। माँ उर्वी अपनी संतानों को सदा सुखी एवं स्वस्थ रहने का आशिष मुक्त हस्त से लुटाती हैं। सारा वातावरण, पेड़-पौधे, लता-लतिकाएं, पुष्प वाटिकाएं आदि बारिश के पानी से धूल जाते हैं। सरिता सरोवरों में सुर्य प्रकाश में कमल तथा चांद की चांदनी में कुमुदनी खिलकर प्रकृति के प्रेम भावनाओं का उद्घाटन करते हैं। गगन में मेघ मंजूषा नाना प्रकार के रूप धारण कर नित्य नवीन क्रीड़ा करते हुए कालीदास के मेघदूत की तरह माँ मही को रिझाने एवं दिखाने के लिए अनेक नित्य नाट्य-नृत्य करते हैं। मेघाच्छादित व्योम मंडल इन्द्र के वज्र प्रहार की चिंगारी दमकती दामिनी की विपुलता एवं चपलता बड़े-बड़े शूरवीरों के मन को भयाक्रान्त करती हैं। इस भय से महान् वीर भगवान् राम भी नहीं बच पाते हैं। संत तुलसीदास के अनुसार-
घन घमंड नभ गरजत घोरा।
प्रियाहीन डरपत मन मोरा।।
दामिनी दमक रही घन माहीं।
खल के प्रीति जथा थिर नाहीं।।
                                               - किष्किधाकांड
बरसात के मौसम में वन उपवन खेत-खलिहानों में मयूरों का रंगीन आकर्षक नृत्य, पोखर तालाबों में मेढक़ों का गलाफाड़ मेघमल्हार, मक्खी, मच्छरों की भिन-भिनाहट, झींगुरों की झंकार का संगीत कोयल की कूक एवं खग-गणों का कलरव गान, बिच्छू सर्प आदि अनेक रंगने वाले कीड़ों की आवृत्तीय गतिविधियां वातावरण की जैव विविधता मनोहर दिलचस्प भव्य दृश्य उत्पन्न करते हैं। बरसात में बर्फबारी और वह भी चांदनी रात में एक अलग की अतुल्य दृश्य पैदा करता है।

अतिवृष्टि-अभिशाप

नदी-नाले, ताल-तलैया, झील-पोखर सभी पानी से लबालब भर जाते हैं। नदियों की बात ही कुछ और होती है। बरसात में पूरे यौवन के साथ इतराती-इठलाती, अठखेलियां करती, मान मर्यादा स्वरूप तटों को तोड़ती, गाँव-शहर, घर-द्वार, जीव-जन्तुओं को बहाती पूरे वेग के साथ प्रियतम सागर से मिलने मचलती उमड़ती-घुमड़ती चल पड़ती हैं। ऋतु सम्राज्ञी वर्षा ऋतु के प्रकुपित होने से अतिवृष्टि से उत्पन्न जल-प्रलय अत्यन्त कारूणिक भयानक यातनादायी दृश्य उत्पन्न करता है। घर-द्वार, मकान-दुकान, गांव-शहर, सडक़, वाहन-परिवहन, पेड़-पौधे सब जल देवता को समर्पित। जल मग्न में सभी विकराल रूप धारण करते हैं। गांव के गांव, यहाँ तक शहर के लोग अपने घरों को छोड़ शरणार्थी बनने के लिए मजबूर हो जाते हैं। सबसे बुरी हालत झुग्गी, झोपडिय़ों में रहने वाले ग्राम्य एवं शहर निवासियों की होती है। यहाँ तक कि कुछ लोगों का उठना-बैठना, खाना-पीना, सोना-जागना, ओढना-पहनना आदि जीवन के लिए आवश्यक कर्म भी प्रकृति के इस निष्ठुर प्रकोप से अभिशप्त हो जाता है।
दूसरा सुखद पहलू यह है कि बारिश राष्ट्र को अन्न-धन धान्य से समृद्ध करती हैं, क्योंकि भारत वर्षा आधारित कृषि प्रद्यान देश है। किसान बारिश को देखकर झूम उठते हैं। क्योंकि किसान ही समस्त देश का अन्नदाता है। इतना ही नहीं कडक़ती आकाशीय बिजली की वज्रपात से हर साल सैकड़ो मनुष्यों एवं प्राणियों का जीवन भी हर लेता हैं।
बरसात तीज त्योहारों का मौसम है:- वर्षा ऋतु के हरियाली तीज, जन्माष्ठमी, अनन्त चतुर्दशी, गणेशोत्सव, नागपंचमी, ओणम, बहुरा, सावन सोमवार कांवडिय़ा व्रत, चरक जयंती, इद-उल-अदहा, देवशयनी एकादशी, शीतला सप्तमी तथा जीवित्पुत्रिका (जीवितिया) आदि मुख्य व्रत त्यौहार हैं।

बरसात में मौसमी बीमारियों का साथ

एक तरफ सावन के उमड़ते घटाओं की छटा, दूसरी तरफ घर-द्वार, बाग-बगीचे में झूले पड़ जाते हैं। बाल-बच्चे तथा महिलाएं उमंग एवं उल्लास के प्रतीक लहरियाँ वस्त्रों से सजधज कर हास-परिहास के साथ आनन्दोत्साह के साथ झूला झूलती हैं, तो दूसरी तरफ घर में अनेक रोगों का प्रकोप भी बढ़ जाता है। जुलाई, अगस्त, सितम्बर बरसात का मौसम होता है। बरसात का मौसम, जल जमाव होने की जड़, गंदे गढ्ढ़े एवं नाले नालियों के दुषित पानी में बीमारी पैदा करने वाली मक्खी, मच्छर बैक्टीरिया तथा वायरस का प्रकोप बढ़ जाता है। हवा में नमी के कारण रोगाणुओं के पनपने, फलने-फूलने का खूब अवसर मिलता है। ये पानी एवं खाद्य पदार्थों को प्रदूषित करके अनेक संक्रामक रोग पैदा करते हैं।

बरसात में स्वास्थ्य की बात

बरसात के मौसम में होने वाली मुख्य नौ बीमारियां हैं। सर्दी जुखाम खांसी, बुखार, डेंगू, मलेरिया, हैजा, टॉयफायड, चिकनगुनिया, डायरिया (अतिसार), पीलिया (हिपेटाइटिस-) तथा अंमौरी (pricklyheat)-

    सर्दी जुकाम खांसी

      यह एक आम बीमारी हैं। बारिश के मौसम में प्राय: होती ही हैं। नमी युक्त वातावरण में सर्दी जुकाम खांसी के वायरस एवं बैक्टीरियाओं का विकास तेजी से होता हैं। बादलो के कारण धूप कभी तेज तो कभी मंद होती हैं उसी प्रकार इस मौसम में जठराग्नि भी मंद तीक्षण एवं विषम होती रहती हैं अत: तले भूने गलत एवं गरिष्ठ आहार चिन्ता, रात्रि में ज्यादा देर तक जागना, धूल, धुआ, धूंध, बरसात में बार-बार भीगने आदि से सर्दी जुकाम खांसी तेजी से फैलता हैं।

   इलाज

पेट को साफ रखें। पेट का गरम ठण्डा सेक, हल्की मालिश देकर नीम के पत्ते उबले शीतोष्ण पानी का एनिमा दें। कुंजर एवं जलनेति करें। इससे नाक से लेकर समस्त वायुमार्ग का संक्रमण दूर होता हैं। आवश्यकता के अनुसार गरम पैर स्नान, अजवाइन या जीरा का स्थानीय चेहरे तथा गले पर भाप लें। सुबह की गुन-गुनी धूप में छाती पीठ की मालिश करें। कपालभांति अनुलोम विलोम, सूर्यभेदी तथा उद्गीठ प्राणायाम करें। पवनमुक्तासन, भुजंगासन, मंण्डूक आसन, वक्रासन आदि हल्के आसन करें। एक दिन फल तथा दूसरे दिन सब्जी पर रहें। सुपाच्य भोजन में रोटी, सब्जी, जौ, गेहूँ, ज्वार या ओट्स का दलिया सब्जी के साथ खायें। प्रर्याप्त मात्रा में सब्जी लें।

37

 घरेलू उपचार

  •     तुलसी की ग्यारह पत्तियाँ, तुलसी बीज 1 ग्राम, दो ग्राम अदरक, ग्यारह काली मिर्च, 200 मिलीलीटर पानी में उबालें। 100 ग्राम बचने पर ढक़ कर 20 मिनट छोड़ दें। शहद या मिश्री मिलाकर पीयें। 3-5 दिन लगातार प्रयोग करें लाभ होगा।
  •     तुलसी पत्ते अदरक तथा हल्दी का आधा-आधा चम्मच रस में एक चम्मच शहद मिलाकर दिन में 3 बार दें।
  •     इसबगोल भूसी या चौकर, 5 मुन्नका, एक अंजीर, 150 मि.ली. जल में उबालें। 75 मि.ली. बचने पर गरम-गरम पीयें।
  •    आधा चम्मच अजवाइन, आधा चम्मच जीरा, 100 मि.ली. जल में उबाले 50 मि.ली. बचने पर शहद डालकर पीयें।
  •     धनिया के बीज का चूर्ण मिश्री के साथ 3 घंटे के अन्तर से लें।
  •    प्रतिदिन 2-2 बूंद सरसों तेल नाभि नाक तथा कान में लगायें।
  •    सोंठ, काली मिर्च, हल्दी तथा पिप्पली को सम मात्रा में चूर्ण बनाकर रखें। दिन में 1.5 से 2 ग्राम गरम पानी के साथ लें।
  •     खांसी होने पर गिलोय घनवटी, नीम या अश्वगंधा वटी चूसें।
उपर्युक्त प्रयोग वैज्ञानिक एवं प्रामाणिक हैं। तुलसी में मौजूद कपूर, ओलियोनॉलिक एसिड, यूरोसोलिक एसिड, रोसामेरिनिक एसिड, यूजेनॉल, 1-हाइड्रोक्सी-2 मेथोक्सी-4 अलाइल बेन्जिन, कारवाक्रोल, कैरियोफाइलोन, लिनालूल, यूजीनल यूजेनिक एसिड, लिमाट्राल, मिथाइल कार्वीकोल, सिटोस्टेरॉल एस्ट्रागोल-1, अलाइल-4, मेथोक्सीबेन्जीन, एन्थोसायनन्स, एपिजेनिन तथा अदरख में फेनोलिक एवं टरपेन कम्पाउण्ड जिंजेरॉल, शॉगेओल्स तथा पेराडॉल्स होते हैं। इसी प्रकार धनिया में लिनालूल, अल्फापिनेन, पैरासायमन, ओलिक, लिनोलीक एसिड, जेरानियाल हाइड्रोक्सी कॉमरिन्स, अजवाइन में थायमोल, कारेवाक्राल, पैरासायमन, गामाटर्पेनी, अल्फा तथा बीटा पिनेन जीरा में थायमोक्यूनॉन, थायमोहाइड्रोक्सीक्यूनोन, पैरासायमेन कारवाक्रोल टर्पेनॉल आदि अनेक जैव सक्रिय औषध रसायन होते हैं। ये सभी एण्टी वैक्टीरियल, शक्तिशाली इम्यूनोमॉडयूलेटर, रोग प्रतिरोधक सैनिक टी तथा बी सेल्स को सक्रिय एवं शक्तिशाली बनाते हैं। रोग तथा रोगणुओं से रक्षा करते हैं।

वायरल बुखार डेंगू, चिकनगुनिया, मलेरिया, टाइफायड

इस समय प्राय: लोग वायरल फीवर से ग्रस्त रहते हैं। डेंगू चिकनगुनिया एडिस मच्छरों के काटने से होता हैं। ये काफी ढीढ, बेहया एवं साहसी मच्छर होते हैं जो रहते साफ पानी में और दिन में भी काटते हैं। मच्छरों से फैलने वाले रोगों में मलेरिया, डेंगू, चिकनगुनिया, पीला बुखार, जापानी एन्सेफलाइटिस, जिकाज्वर वेस्टनाइल वायरस होते हैं।
मलेरिया: मादा एनाफेलस नामक संक्रमित मच्छर के काटने से प्लस्मोडियम वीवेक्स नामक वायरस मनुष्य के रक्त संचार में चला जाता हैं। इसके तीन प्रकार पी फालसीपेरम (सबसे खतरनाक) पी मलेरिया तथा पी ओवेल पैरासाइटिक प्रोटोजोआ होते है, रक्त संचार द्वारा प्लासमोडियम लीवर तथा अन्य अंगो में पहुँच जाता है जहाँ वे बहुगुणित संख्या में बढ़ जाते हैं। पी. वीवेक्स का रोगोद्भवन काल (Incubation period) 10 दिन से 10 माह तक हो सकता है। मलेरिया में 1-2 दिन के अन्तर से ज्वर, ठंड लगाना कमजोरी, फ्लू, पसीना, सिरदर्द होता हैं। लाल रक्त कोशिकाएं नष्ट होने लगती हैं। मलेरिया संक्रमित मरीज को मच्छर के काटने से मच्छर के पेट में मलेरिया प्लासमोडियम चला जाता है और वह मच्छर जिसे काटता हैं उसे मलेरिया हो जाता हैं।
  डेंगू फीवर: डेंगू वायरस एडीज मच्छर के काटने से होता हैं। इसमें तेज ज्वर, सिर दर्द, शरीर पर चकते, जोड़ो में दर्द, चक्कर आना थकान आदि लक्षण दिखते हैं। पहले से संक्रमित व्यक्ति को एडीस मच्छर काटा हो वही मच्छर दूसरे को काटने से डेंगू फीवर होता है, इसे लंगड़ा ज्वर भी कहते हैं।
   चिकनगुनिया: एडीज एजेप्टाए तथा एडीज अल्बोपीक्टस के काटने से होता हैं। इसके मुख्य लक्षण है, जोड़ों मे दर्द, उल्टी, मिचली, पीठ कमर कन्धे में दर्द, त्वचा पर चकते आना, कमजोरी थकान आदि संक्रमित होने के 5-7 दिन के बाद लक्षण दिखते हैं।
   जिका ज्वर: एडिस (Aedes aegypti and aedes albopictus) मच्छर के द्वारा ही जीका फ्लेविवायरस से जिका ज्वर होता हैं। सर्वप्रथम युगाण्डा के जिका जंगल में जिका वायरस की खोज हुई। इसी के नाम पर नामकरण हुआ इस रोग से संक्रमित लोग अफ्रीका, दक्षिण पूर्व एशिया तथा पेसिफिक द्वीपो से अन्य देशों में भी फैल गया हैं। जिका वायरस गर्भवती माता एवं होने वाले शिशु के लिए खतरनाक होता हैं। ज्वर, त्वचा पर चकते, मांसपेशियों एवं जोड़ो में दर्द, आँखों में सूजन एवं संक्रमण के लक्षण दिखते हैं। लकवा खास करके ग्यूल्लेइन बेयर सिण्ड्रोम के लक्षण बढ़ जाते हैं, कई रोगियों में कोई लक्षण नहीं दिखता हैं। भारत में प्रति साल लगभग पांच हजार रोगी संक्रमित होते हैं। असुरक्षित यौन सम्बन्ध भी कारण हैं।
   येलो (पीला) फीवर: यह भी एडीस एजेप्टाए मच्छर के काटने से होता हैं। 4-7 दिन में संक्रमित रोगी में सिर दर्द मितली, उल्टी, ज्वर ठण्ड लगना, शरीर कमर से पैरों में दर्द कमजोरी आदि लक्षण दिखते हैं। इसके वायरस लीवर तथा किडनी को क्षतिग्रस्त करते हैं। मूत्र की मात्रा कम एवं प्रोटीन एल्व्यूमिन को निष्कासन बढ़ जाता हैं। अफ्रीका का साउथ अमेरिका का ये प्रसिद्ध रोग हैं। इन देशों की यात्रा करने वालों को टीका लेना आवश्यक हैं।
 टॉयफायड: बैक्टीरियम सालमोनेला टायफी द्वारा पाचन संस्थान के सक्रमण से टॉयफायड ज्वर होता है। इसमें सामान्य कमजोरी, तीव्र ज्वर, पेट तथा छाती पर लाल चकत्ते, ठण्डे पसीना आना, रोग बढऩे पर तिल्ली (Spleen) लीवर तथा हड्डियों का संक्रमण, प्रलाप, आंतों में छाले एवं रक्तस्त्राव होता है। टॉयफायड रोग संक्रमित आहार, पेय या जल, संक्रमित रोगों के मल तथा पेशाब से संक्रमण फैलता है। टॉयफायड को मियादी बुखार भी कहते हैं। जिसकी मियाद 7, 14, 21 दिन मानी जाती है।
  एन्सेफलाइटिस: फ्लेवि वायरस संक्रमित क्यूलेक्स मच्छर के कारण वेस्टनाइल फीवर, फाइलेरिया सेन्टलूइस एन्सेफ्लाइटिस तथा जापानी एन्सेफ्लाइटिस होता हैं। यह पक्षियों तथा जानवरों में भी वायरस रोग पैदा करता हैं।
उपर्युक्त सभी रोगाणुओं (Pathogens) को नष्ट करने के लिए अनेक प्रकार के वनौषधियों नीम, गिलोय, चिरायता, कुटकी, अश्वगंधा, तुलसी, अजवाइन, जीरा, धनियां, सौंफ, अदरक इत्यादि ऐसे मसाले औषध हैं जिनमें रोगाणुओं को नष्ट करने की क्षमता है।
 

Advertisment

Latest News

परम पूज्य योग-ऋषि श्रद्धेय स्वामी जी महाराज की शाश्वत प्रज्ञा से नि:सृत शाश्वत सत्य ... परम पूज्य योग-ऋषि श्रद्धेय स्वामी जी महाराज की शाश्वत प्रज्ञा से नि:सृत शाश्वत सत्य ...
जीवन सूत्र (1) जीवन का निचोड़/निष्कर्ष- जब भी बड़ों के पास बैठते हैं तो जीवन के सार तत्त्व की बात...
संकल्प की शक्ति
पतंजलि विश्वविद्यालय को उच्च अंकों के साथ मिला NAAC का A+ ग्रेड
आचार्यकुलम् में ‘एजुकेशन फॉर लीडरशिप’ के तहत मानस गढक़र विश्व नेतृत्व को तैयार हो रहे युवा
‘एजुकेशन फॉर लीडरशिप’ की थीम के साथ पतंजलि गुरुकुम् का वार्षिकोत्सव संपन्न
योगा एलायंस के सर्वे के अनुसार अमेरिका में 10% लोग करते हैं नियमित योग
वेलनेस उद्घाटन 
कार्डियोग्रिट  गोल्ड  हृदय को रखे स्वस्थ
समकालीन समाज में लोकव्यवहार को गढ़ती हैं राजनीति और सरकारें
सोरायसिस अब लाईलाज नहीं