स्वास्थ्य और सौन्दर्य का दुश्मन मोटापा

स्वास्थ्य और सौन्दर्य का दुश्मन मोटापा

डॉ. नागेन्द्र कुमारनीरज

निदेशक-योगग्राम

समृद्ध एवं श्रमविरत समाज का विकृत आभूषण है- मोटापा। बैठे-ठाले जीवन का दर्पण है-मोटापा। आलस्य एवं स्वाद के प्रति समर्पण का नाम है- मोटापा। गलत आहार-विहार एवं चिन्तन के दुष्परिणामस्वरूप प्रकृतिप्रदत्त दण्ड है- मोटापा। विश्व में अरबों डालर की धनराशि मोटापे को कम करने मे खर्च हो रही है, लेकिन मोटापा विकसित देशों से होकर अब विकासशील देशों की ओर बढ़ रहा है।
मोटापा क्यों होता है? इसके कारण -

1. अत्यधिक कैलोरीयुक्त आहार का प्रयोग:

शरीर की कोशिकाओं के निर्माण, पोषण कार्य एवं स्वास्थ्य के लिए भोजन की आवश्यकता होती है। लेकिन कथित आधुनिक सभ्य-समाज ने आहार को इतना विकृत एवं स्वादिष्ट बना दिया है कि व्यक्ति स्वाद के वशीभूत होकर अधिक आहार अपने अन्दर ठूँस लेता है। फलस्वरूप शरीर में कैलोरी-असंतुलन पैदा होता है। अतिरिक्त कैलोरी चर्बी के रूप में शरीर में जमा होने लगती है। समृद्ध समाज के लोग बाहर तो जमाखोरी करते ही हैं, अपने शरीर के अन्दर भी चर्बी के रूप में जमाखोरी करते हैं। आज का आदमी स्वास्थ्य को लक्ष्य मानकर नहीं खाता अपितु स्वाद के आकर्षण में बीमारी के लिए खाता है। प्रतिदिन मात्र एक गिलास दूध तथा ब्रेड के स्लाइस अतिरिक्त  लेने से प्रति वर्ष १२ कि.ग्रा. अतिरिक्त वजन बढ़ जाता है। मोटापाग्रस्त लोगों में वजन बढ़ाना सरल किन्तु वजन घटाना कठिन होता है। एक मोटे व्यक्ति को एक कि.ग्रा. वजन कम करने के लिए प्रतिदिन कम से कम ६००० कैलोरी शक्ति खर्च करनी पड़ती है, जबकि सामान्य व्यक्ति के दैनिक कार्य के लिए मात्र ,५०० से ,००० कैलोरी शक्ति ही चाहिए। अत्यधिक कैलोरी वाले आहार हैं- चीनी, घी, तेल, मक्खन, चाट, पकौड़े, बे्रड, टॉफी, तले-भुने एंव कन्फेक्शनरी आहार, मैदा, आलू, केल, लिम्का आदि सॉफ्ट पेय, हलवा, नमकीन, मिठाई इत्यादि।
2. व्यायाम तथा शारीरिक श्रम का अभाव।
3. अंत:स्रावी ग्रंथियों के असंतुलित स्रावजन्य मोटापा-
) विशेषकर थायराइड तथा पैराथायरायड ग्रंथियों के स्राव के असंतुलन से शरीर में कोशिकाओं के विभाजित होने की गति बढ़ जाती है। कोशिका-विभाजन सूत्र के अनुसार दुगुनी वृद्धि के कारण मोटापा बढ़ता चला जाता है।
) एड्रिनल ग्रंथि के ट्यूमर या सूजन के कारण हार्मोन का स्राव अनियंत्रित हो जाता है। व्यक्ति भैंसे तक तरह मोटा एवं सुस्त हो जाता है। विशेष प्रकार के इस मोटापे में गर्दन एवं स्तन की सूजन बढ़ जाती है। इस रोग को कुशिंग सिण्ड्रोम कहते हैं।
हाइपोफाइसिस (पिट्यूटरी) ग्लैण्ड के हाइपोथैलेमिक तथा एसीडोफिल ट्यूमर या अन्य ट्यूमर के कारण मोटापा होता है। मोटापा के साथ-साथ सारे शरीर एवं हड्डियों की लम्बाई दैत्याकार में बढऩे लगती है। इस रोग को जियानटिज्म कहते हैं।
पैंक्रियास के लैंगर हैन्स द्वीप के अनियंत्रित हार्मोन स्राव हाइपर इन्सुलिज्म के कारण मोटापा होता है।
फ्रोलिक्स सिण्ड्रोम के कारण मोटापा होता है। इसे हाइपोथैलेमिक मोटापा भी कहते हैं।
महावारी बन्द होने के समय गर्भावस्था तथा परिवार नियोजन शल्यक्रिया के बाद का मोटापा गोनेड्स एवं अन्य अन्त:स्रावी ग्रंथियों से निकलने वाले हार्मोन में असंतुलन के कारण होता है।
4. मस्तिष्क के हाइपोथैलेमस के समीप क्षुधा एवं तृप्ति को केन्द्र है। इसके पास ही सच्ची प्यास को केन्द्र भी होता है। कैम्ब्रिज वि.वि. के डॉ. जेम्स टी. फिजसाइमन्स तथा नार्थवेस्टर्न वि.वि. के डॉ. एस. डब्ल्यु रैन्सन ने अपने अनेक प्रयोगों से यह सिद्ध किया कि भूखे रहने के बावजूद भी यदि क्षुधा-केन्द्र सुप्त है, सामने छत्तीसों भोजन तथा छप्पनों भोग रखे हो तथा भूख से मरने की नौबत तक गयी हो, फिर भी आप खाना नहीं खा सकते। किसी-किसी व्यक्ति में तृष्णा कोशिकाएँ (न्यूरान्स) उत्तेजित होकर भूख का अत्याधिक बढ़ा भी देती हैं, फलत: व्यक्ति अधिक खाकर मोटापा से पीडि़त हो जाता है।
5. वंशानुगत मोटापा- माता-पिता या उनकी सात पीढिय़ों के मोटे होने पर ८० प्रतिशत संभावना रहती है कि बच्चे मोटे होंगे। आनुवंशिक मोटापे में सारा शरीर मोटा होता है जबकि अन्य मोटापे में बीच का हिस्सा मोटा होता है।
6. मानसिक मोटापा- बाह्य खतरें एवं परिस्थितियों से पलायन के फलस्वरूप व्यक्ति ज्यादा खाने लगता है, फलत: मोटापा बढ़ता है।
7. दवाओं के दुष्प्रभावजन्य मोटापा- पारा संखिया युक्त औषधियों के प्रयोग से मोटापा होता है।
अमेरिका शोधकर्ताओं के अनुसार जुकाम एवं खाँसी के लिए जिम्मेदार एडी-३६ नामक वायरस भोजन से ऊर्जा ग्रहण करने की क्षमता को असंतुलित कर मोटापा बढ़ाता है।
आधुनिक खोज के अनुसार मोटापा पैदा करने में कई प्रकार के जीन जिम्मेदार है। फ्रांसीसी शोधकर्ताओं के अनुसार यूरोप के अधिकतर लोगों में टाइप एक किस्म का जीन पाया जाता है। यही जीन मध्य यूरोप तथा उत्तरी अफ्रीका में मोटापे को महामारी के रूप में फैलाने का प्रमुख कारण है। पेरिस के अनुसंधानकर्ताओं ने इन्सुलिन निर्माण तथा उससे सम्बन्धित विकास रसायन को नियंत्रित करने वाले डी.एन.. अंश का अध्ययन किया है। इन्सुलिन शरीर मे शर्करा एवं वसा को नियंत्रित करता है। जब वसा को खपाने की प्रक्रिया धीमी हो जाती है तो शरीर में वह जमकर मोटापा पैदा करता है। पिता से मिलने वाला टाइप एक किस्म का जीन वसा के मेटाबॉलिज्म को धीमा कर बच्चे को मोटा बना देता है।
कोलम्बिया वि.वि. के डॉ. मार्विन सुस्सेर तथा डॉ. जेना स्टीन अपने विविध प्रयोगों से इस निष्कर्ष पर पहुँचे हैं कि गर्भावस्था के प्रारम्भिक महीनों में अत्यधिक कैलोरीयुक्त आहार देने से गर्भस्थ बच्चे के हाइपोथैलेमस पर प्रभाव पड़ता है। बच्चों को प्रारम्भ में अधिक पोषक आहार देने से वसा कोशिकाएँ बढ़ जाती हैं तथा मोटापे की विकसन-क्षमता को ताजिन्दगी बनाए रखती हैं। बाद में उसे कितना भी कम भोजन दिया जाय, वजन कम नहीं हो पाता है। गर्भवती महिला को अन्तिम तीन महीने संतुलित तथा न्यून कैलोरी का भोजन देने पर बच्चे आगे चलकर छरहरे एवं स्वस्थ होते हैं। हमने भी यह प्रयोग कर के देखा कि गर्भावस्था के समय अंकुरित अनाज, फल ताजी हरी सब्जियाँ तथा दूध के प्रयोग से बच्चे स्वस्थ एवं छरहरे होते हैं।
मोटा होकर रोगों को आमन्त्रित करें- मोटे व्यक्तियों में बिना आमंत्रण के ही निम्नलिखित रोग घर कर जाते हैं-
() मधुमेह () उच्च रक्तचाप () विभिन्न हृदय रोग () फ्लैट फूट () घुटने नितम्ब, कमर का अस्थि-संधिवात  () गठिया () संधिवात () र्युमेटिक पेन () श्वास कष्ट (१०) एसीडोसिस (११) रक्त-विषाक्ता (१२) आयुह्नास (१३) हर्निया (१४) कोलेसिस्टाइटिस (१५) पित्ताशय की पथरी (१६) वेरिकोस वेन्स (१७) गुर्दे के विभिन्न रोग (१८) एन्जाइना (१९) हृदय की मांसपेशियों का अपविकास तथा अत्यधिक तनाव (२०) कमर दर्द (२१) अनियंत्रित रक्तसंचार (२२) उदर रोग (२३) नपुंसकता (२४) स्नायविक रोग साइटिका (२५) अपेण्डि-साइटिस (२६) लकवा (२७) दमा (२८) वन्धयत्व (२९) संत्रास (३०) जीवनी शक्ति का ह्नास (३१) शल्य चिकित्सा के बाद के अनेक रोग (३२) कैन्सर (३३) ऑस्टियोपोरोसिस (३४) मासिक धर्म की अनियमितता तथा (३५) पथरी।
चरक के मतानुसार मोटे लोगों में चर्बी तथा अन्य धातुओं में विषमता जाने से अनेक रोग होते हैं। एक किलो ग्राम अतिरिक्त वजन बढऩे पर हृदय को १० मील लम्बी अतिरिक्त रक्तवाहिनियों में रक्त भेजना पड़ता है। हृदय की कार्यक्षमता कम होने लगती है, हृदय को उचित पोषण नहीं मिल पाता हैं। मोटे लोगों की रक्तवाहिनियों में कॉलेस्टेरॉल, लाइपोप्रोटिन तथा अन्य तत्त्व जम कर उसे संकरी बना देते हैं। फलत: एथरोस्क्लेरोसिस, उच्चरक्तचाप तथा अन्य रक्तसंचार सम्बंधी रोग उत्पन्न होते हैं। माँसपेशियों पर चर्बी जमा होने के कारण डायफ्राम के कार्य में बाधा उत्पन्न होती है, फलत: श्वास सम्बंधी रोग होते हैं। रक्त में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है। मोटे व्यक्तियों के गुर्दे को अधिक कचरे की सफाई करनी पड़ती है। फलत: गुर्दे सम्बंधी रोग होते हैं। अधिक चर्बी के कारण पित्ताशय में पथरी बनने लगती है तथा कमर घुटने पर अतिरिक्त भार पडऩे से संधिशोथ उत्पन्न होता है।
मोटापा उम्र को कम करता है- जितनी मोटी कमर उतनी छोटी उम्र- विभिन्न देशों में जीवन बीमा कम्पनियों ने अपने सर्वेक्षणों से सिद्ध किया है कि २० से ६४ वर्ष की आयु मे मरने वाले ५० प्रतिशत मोटापा से ग्रस्त होते हैं। ४० बीमा कम्पनियों के सर्वेक्षणों के अनुसार सामान्य वजन से कम वजन वाले दीघार्यु होते हैं। अंग्रेजी में एक कहावत भी है, ‘‘the longer the belt the shorter the life’’  अर्थात् पेट का घेरा बढऩे पर आदमी की आयु कम होती जाती है। अमेरिका आयुर्विज्ञानिकों ने इस कहावत को सिद्ध कर दिखाया है। उनका मानना है कि जिनकी तोंद जितनी बड़ी होती है उनमें कमर दर्द तथा हृदय रोग के दौरे भी उतने ही ज्यादा पड़ते हैं। मोटे बच्चे अस्थमा के ज्यादा शिकार होते हैं।

स्वास्थ्य एवं सौन्दर्य का दुश्मन-मोटापा

स्वास्थ्य एवं सौन्दर्य एक-दूसरे के पूरक हैं। मोटापे से पीडि़त रोगियों को उपर्युक्त किसी--किसी रोग की शिकायत बनी रहती है। मोटे व्यक्तियों मे नाक, आँख, गला, ठोड़ी पर अधिक चर्बी जमा होने से समाज में उसे विभिन्न नामों जैसे- मोटूराम, भैंसा, मोटूमल, मोटल्ला, मोटी अक्ल वाला आदि विशेषणों से पुकारा जाता है। उसे हर जगह बस, टे्रन, जहाज आदि से यात्रा करते समय उपहास की दृष्टि से देखा जाता है। इटली में मोटे आदमियों से अतिरिक्त भाड़ा वसूला जाता है। दयनीय स्थिति से बचने के लिए मोटापे को अपने पास भी नहीं फटकने देना चाहिए। सौन्दर्य, स्वास्थ्य सम्मानहीन जीवन से अच्छा है अपने स्वाद पर आत्म-नियंत्रण रखना।

मोटापे का उपचार

औषधि चिकित्सा-पद्धति में मोटापे के उपचार के लिए थायरॉक्सिन (थायराइड) हार्मोन का प्रयोग किया जाता है, जो काफी नुकसानदेह है। भूख मारने के लिए एमफेटामिन, फेनमेट्राजिन, डायएथाइल, प्रोपिआन, फेन्टरमिन, क्लोरफेन्टरमीन, फेनफ्ल्यूरएमिन आदि औषधियाँ काम में लाई जाती हैं। इन औषधियों के दुष्प्रभाव से अनिद्रा, चिड़चिड़ापन, अवसाद, तथा स्नायु मानसिक विकृतियाँ परिलक्षित होती हैं। कुछ चिकित्सक चर्बी को कम करने के लिए बहुमूत्रल औषधियों का प्रयोग करते हैं जिससे शरीर में पोटेशियम की कमी हो जाती है, फलत: हृदय, गुर्दे एवं अन्य अंगों के रोग हो जाते हैं। मिथाइल सेलुलोज जैसा रसायन भी प्रयोग में लाया जाता है जो पेट में जाकर पानी अवचूषित कर पेट को भर देता है फलत: लोग आहार कम लेते हैं लेकिन इसका प्रयोग भी सुरक्षित नहीं है।
मोटापे को कम करने के लिए समाचार पत्रों में अनेक प्रकार के मनमोहक विज्ञापन निकाले जाते हैं। इन भ्रामक विज्ञापनों के जाल में फँसकर अनेक लोग अपने शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य को बर्बाद कर देते हैं। लोगों के सिर पर शेरी लुईस के कोर्स का भूत कम हो गया क्योंकि एकाधिकार और प्रतिबंधात्मक व्यापार आचरण आयोग (एम.आर.टी.पी.सी.) की जाँच से पता चला कि इस कोर्स से गंभीर शारीरिक रोग हो जाते हैं। उपभोक्ता शिक्षण शोध केन्द्र, अहमदाबाद की शिकायत पर यह जाँच की गई थी। जाँच में बताया गया कि शेरी लुईस अपने विज्ञापन में दावा करती है कि यह कोर्स सुरक्षित है तथा अन्य कोई दुष्प्रभाव नहीं होते। बिना औषधि तथा व्यायाम के वजन कम होते हैं। यह गुमराह करने वाला विज्ञापन लोगों को धोखे में रखता है। यह झूठा तथा फरेबी है। आयोग ने इस कोर्स के खिलाफ और अधिक जाँच करने का फैसला किया है। शेरी लुईस की तरह रेपिंग, बुथरा, लुथरा तथा अन्य विज्ञापन भी आने लगे हैं, जो उसी प्रकार से खतरनाक हैं। अत: इन विज्ञापनों के जाल में फँसें। जब तक इस क्षेत्र में शोध कार्य के निष्कर्ष सामने आते हैं तब तक हजारों अपने स्वास्थ्य को बर्बाद कर यातनादायी एवं अपंग जीवन जी रहे होते हैं। इन कथित कोर्सों का अत्यधिक प्रभाव हृदय यकृत पर होता है। मोटापे को कम करने वाले कुछ कथित केन्द्र रसायनों के चूर्ण देते हैं, जिनसे हृदय, गुर्दे, फेफड़े, प्लीहा एवं यकृत क्षतिग्रस्त हो जाते हैं।
मोटापे को कम करने के लिए शल्य-क्रिया की सलाह दी जाती है, जिसमें आँतों को काटकर लम्बाई कम कर दी जाती है ताकि पचित आहार का अवचूषण कम हो। लेकिन यह पद्धति भी खतरे से खाली नहीं है। इससे आँतों में पैथोजेनिक कीटाणुओं का ओवरग्रोथ द्वारा अरबों की संख्या में सम्वद्र्धन होता है। ये कीटाणु रक्तसंचार द्वारा यकृत, संधियों की माँसपेशियों, स्नायु बन्ध तथा मस्तिष्कीय कोशां को क्षतिग्रस्त करते हैं। फलत: पॉली अर्थराइटिस, मानसिक विभ्रम, कोष्ठबद्धता एवं अन्य उदर सम्बन्धी विकृतियाँ उत्पन्न होती हैं।
मोटापे के योग्य उपचार: योग प्राकृतिक चिकित्सा एवं जैविक आहार- मोटापे को कम करने के लिए प्राकृतिक योग चिकित्सा एवं जैविक आहार ही एकमात्र वैज्ञानिक कार्यक्रम हैं। मोटापे को दूर करने के लिए कम कैलोरी का जैविक आहार दें। दैनिक कार्य के लिए २५०० से ३०० कैलोरी की आवश्यकता होती है। हल्का-फुलका कार्य (सिलाई-कढ़ाई, टाइप, लेखन) के लिए ७५ कैलोरी टहलने तथा अन्य सामान्य कार्य के लिए १०५ से १८० कैलोरी, साइकिल चलाने तथा बढ़ईगिरी आदि अधिक श्रम के लिए १५० से २५० कैलोरी, कुदाल चलाने, लकड़ी काटने, खान के कार्य करने, बोझा ढोने आदि अत्याधिक परिश्रम का कार्य करने के लिए २५० से  ३५० कैलोरी तथा विश्राम के  समय २० से ८० कैलोर प्रतिघंटा शक्ति चाहिए। मोटे व्यक्तियों को प्रतिदिन मात्र ५०० से १००० कैलोरी का आहार देना चाहिए ताकि अतिरिक्त इकट्ठी कैलोरी खर्च होकर वजन कम हो। न्यूयार्क के मेथोडिस्ट अस्पताल के डॉ. मार्टिन हाफमैन के अनुसार आहार में प्रतिदिन मात्र १५. ग्राम मक्खन बढ़ा देने के श्रम के अभाव में ४५,००० कि. कैलोरी अतिरिक्त शक्ति जमा होती है, फलत: प्रतिमाह ५०० ग्राम वजन बढ़ जाता है। ३० वर्ष के बाद भोजन की कैलोरिक शक्ति कम करते जाना चाहिए का निर्माण कार्य तेजी से होता है अत: अत्यधिक शक्ति का भोजन चाहिए लेकिन यही भोजन ४० साल के बाद भी करें तो फिर मोटापा तथा अन्य बीमारियों होगी ही। मोटापे से ग्रस्त रोगियों के लिए निम्नलिखित न्यून कैलोरी का आहार उपयुक्त होता है-
5.00am एक नींबू + एक गिलास पानी + चम्मच शहद
9.00am - मौसमानुसार उपलब्ध फल या सब्जियों का रस एक गिलास अथवा मौसमानुसार फल या कच्ची सब्जी २५० ग्राम+ बिना मक्खन का दही २०० ग्राम अथवा भीगा अंकुरित चना २५ ग्राम+दूध एक कप।
11.30am रोटी (प्रति रोटी २५ ग्राम) +५०० ग्राम उबली सब्जी + सलाद २०० ग्राम+अंकुरित अनाज २५० सी.सी.
2.00pm नींबू+पानी+शहद अथवा छाछ २५० सी.सी.
4.30pm सब्जियों का रस एक गिलास २०० सी.सी.
6.30pm फल मौसमानुसार इच्छा के अनुरूप + अंकुरित अनाज ५० ग्राम।
8.30pm नींबू+पानी+शहद
निषेध- ध्रूमपान, शराब, जमीकंद, आलू, रतालू, चीनी, मिठाई, केला, आम, बैंगन, चाय, कॉफी, चीनी आदि सेचुरेटेड तले-भुने वसा एवं शर्करायुक्त आहार।
उपर्युक्त आहार से मात्र ८०० से १००० कैलोरी उपलब्ध होती है। इसमें बहुमूल्य तथा शरीर में शीघ्र अवचूषित होकर शक्ति देने वाले तथा पाचक रस एन्जाइम, विटामिन, खनिज कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन होते हैं। उपर्युक्त आहार पर दिन रहने के बाद दिन तक फलाहार एवं दिन तक रसाहार, दिन नींबू+पानी+शहद प्रत्येक - घंटे के अतंराल पर लें। फिर दिन तक सिर्फ पानी पर रहें। पुन: नींबू+पानी+शहद, रसाहार, फलाहार पर आएँ। फिर उबली सब्जी दोनों समय लें। दो दिन के बाद पुन: उपर्युक्त आहार पर जाएँ। पहले माह वजन शीघ्रता से कम होता है फिर धीरे-धीरे कम होता है। रसाहार तक व्यक्ति आत्मसंयम से रह सकता है लेकिन नींबू+पानी+शहद एवं पानी पर उपवास किसी प्राकृतिक चिकित्सा विशेषज्ञ के निर्देशन में करना चाहिए। ब्रिटेन की कैथरीन केन्द्र में भर्ती थी। उसने मात्र एक माह में २० कि.ग्रा. वजन कम किया। इस प्रकार से सैकड़ों लड़कियाँ जिनकी शादी में मोटापा बाधक था, इनडोर तथा आउटडोर उपचार लेकर इच्छानुसार से ३५ कि.ग्रा. तक वजन कम कर चुकी हैं। प्राकृतिक योग एवं उपर्युक्तसे बिना किसी दुष्प्रभाव के मोटापा १० से २० कि.ग्रा. प्रतिमाह तक कम होता है। मोटापा कम करने में तरबूज कल्प, ककड़ी, खीरा आदि न्यून कैलोरी का आहार विशेष उपयोगी होता है, क्योंकि इन्हें कितना भी खाने पर पेट तो भर जाता है, मानसिक संतोष भी होता है और वजन कम होता चला जाता है। कोकुम एवं नींबू आदि खट्टे फलों में हाइड्रोक्सी साइट्रिक एसिड काफी मात्रा में होता है जो शरीर के चर्बी एंव कोलेस्टेरॉल को कम करता है। प्राकृतिक चिकित्सा में रोगी को दिन तक मिट्टी की पट्टी, गरम-ठण्डा सेक, पेट, कमर नितम्ब की मालिश देकर नींबू को एक लीटर गुनगुने पानी में डालकर एनिमा दें। मोटापे के रोगी प्राय: कब्ज से पीडि़त रहते हैं। बाद में भी आवश्यकतानुसार सप्ताह में एक-दो बार एनिमा देकर पेट साफ कर लें। एनिमा के बाद रोगी को गरम पादस्नान, गीली चादर लपेट, वाष्प स्नान, पूर्ण टब, इमर्शन स्नान, गरम-ठण्डा कटि स्नान, जैट स्नान बदल-बदल कर दें। चिकित्सा में पानी के अन्दर स्थूल अंगों का हाइड्रोमसाज दें तथा चिऊँटी भरें। इन उपचारों से वसा की दहन किया तीव्र होकर चर्बी कम होती है।
यौगिक चिकित्सा में सूक्ष्म व्यायाम की सभी क्रियाएँ, इंजिन दौड़, आसनों में जानुशिरासन, पश्चिमोत्तानासन, योग मुद्रा, पक्षी आसन, उत्तानापादासन, धनुरासन, शलभासन, भुजंगासन, नौकासन, तारामत्स्यासन, (राम बाण आसन) सर्वांगासन, हलासन, कर्णपीड़ासन, मत्स्यासन विशेष उपयोगी होते हैं। प्राणायाम में कपालभाति, अनुलोम-विलोम, सूर्यभेदी तथा दीर्घ श्वसन प्राणायाम करें। पन्द्रह दिन में एक बार शंख-प्रक्षालन तथा सप्ताह में एक बार कुंजल करें।
प्रारम्भ में ग्लाइकोजिन तथा जल का चयापचय होने से वजन तेजी से कम होता है। बाद में पैक्ड ऊर्जा के पैकेट फैट का मेटाबॉलिस्म होने से वजन का घटना धीमा हो जाता है। एक किलो एडिपोज टिशु (फैट) : से सात हजार कैलोरी ऊर्जा देता है इसलिए प्रतिदिन ५०० से १०० कैलोरी कम करके या अधिक श्रम करके प्रति सप्ताह आधा से एक किलो एडिपोज (फैट) टिशु घटा सकते हैं। तनाव में, बोर होकर खाने या बिना सोचे-समझे टी.वी. देखते समय खाने की आदत से मुक्त हों।
प्राकृतिक एवं योग चिकित्सा की उपर्युक्त विभिन्न प्रविधियों की जानकारी के लिए किसी प्राकृतिक-योग चिकित्सा केन्द्र में भर्ती होकर प्रशिक्षणात्मक-उपचार लेना चाहिए। किसी विशेषज्ञ के निर्देशन में ही उपर्युक्त क्रियाएँ करें, अन्यथा लाभ के बदले हानि हो सकती है। आत्मानुशासन एवं धैर्य के साथ उपर्युक्त कार्यक्रम में लगें, मोटापा अवश्य कम होगा। यही मेरा अनुसंधानात्मक विश्वास है।
 

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