अनदेखा न करें सायटिका को

अनदेखा न करें सायटिका को

डॉ. अरुण कुमार पाण्डेय 

पतंजलि आयुर्वेद हास्पिटल, हरिद्वार

साइटिका रोग बहुत ही ज्यादा पीड़ादायक रोग है। साइटिका तंत्रिका रीढ़ की हड्डी से प्रारंभ होती है तथा इसकी शाखाएँ कूल्हों तथा नितम्बों से होती हुई पैर के निचले हिस्से तक जाती हैं। इस रोग में सबसे पहले रोगी की कमर में दर्द होना शुरू होता है। फिर यह दर्द धीरे-धीरे रोगी की कमर से होता हुआ टांग तथा बाद में पैरों की ओर चला जाता है। जिससे रोगी को अपने पैरों में कमजोरी महसूस होती है और चलते समय वह लडख़ड़ाने लगता है। रोग के बढऩे पर रोगी की हालत ऐसी हो जाती है कि जरा सा हिलने पर उसके शरीर में दर्द की तेज लहरें उठती हैं और कमर से लेकर पैरों में करंट सा दौडऩे लगता है। ऐसे में रोगी चलने-फिरने में असहाय सा होकर रह जाता है। गलत ढंग से उठने-बैठने तथा झुकने से शरीर में इस रोग की उत्पत्ति होती है। शरीर की गलत अवस्थाओं के कारण हमारी रीढ़ की हड्डियाँ अपनी प्राकृतिक अवस्था से हट जाती हैं।
मुख्यत: कमर दर्द होने के तीन कारण होते हैं- (1) स्लिप डिस्क (2) पोस्चुरल (गलत ढंग से उठना-बैठना, चलना और लेटना) (3) स्लिपवर्टिबा। कमर दर्द की शिकायत ज्यादातर 40 से 50 वर्ष की उम्र में होती है। पुरूषों की अपेक्षा महिलाओं को कमर दर्द की शिकायत ज्यादा हुआ करती है। शरीर में विटामिनडीऔर कैल्शियम की कमी होने पर हमारी हड्डियाँ और हमारे शरीर के ऊतक कमजोर हो जाते हैं। इस अवस्था में हड्डियाँ कमजोर और भूर-भूरी हो जाती हैं। ऐसे में हड्डियों के घनत्व में असामान्य रूप से बढ़ोतरी, ट्यूमर और तीव्र संक्रमण की वजह से आस्टियोस्क्लेरोसिस हो जाता हैै। इससे कमर में खून और स्नायु संचार में रूकावट पैदा हो जाती है, जिससे कमर में दर्द की उत्पत्ति होती है।

सायटिका रोग के लक्षण

सबसे पहले रोगी की कमर के निचले हिस्से में दर्द होता है और धीरे-धीरे कमर से उतर कर यह रोगी की टांग और पांव की ओर चला जाता है। रोगी की मांसपेशियों में दर्द और अकडऩ होने लगती है। रोगी झुककर अपने पैरों की उंगलियों को छूने में कष्ट का अनुभव करता है। दर्द के कारण रोगी लंगड़ाकर चलने लगता है। रोगी कभी झुककर, कभी सीधा और और उचक-उचक कर चलने लगता है। ज्यादातर यह रोग रोगी की एक टांग में होता है। कभी-कभी रोगी की दोनों टांगों में भी इस तरह के दर्द की उत्पत्ति होती है। वैसे तो रोगी की कमर में दर्द हर वक्त बना रहता है, पर रोगी के खांसने छींकने बिना घुटने मोड़े आगे की तरफ झुकने से दर्द में ज्यादा बढ़ोतरी हो जाती है। रोगी की टांग और पैर सुन्न रहने लगते हैं और रोगी को अपने पैरों में सुई सी चुभती प्रतीत होती है। बिस्तर पर सीधा लेटकर जब रोगी टांग को बिना मोड़े ऊपर उठने की कोशिश करता है तो उसे तेज दर्द की अनुभूति होती है।

सायटिका रोग के कारण

सायटिक रोग उन लोगों को ज्यादा सताता है, जो ज्यादा वक्त तक बैठे-बैठे, खड़े-खड़े या गलत पोजीशन में लेटकर अथवा बैठकर काम करते हैं। ऐसे लोगों की एक तरफ की नसों में अकड़ाव जाता है। नरम बिस्तर पर सोने से भी लोग इस रोग की गिरफ्त में आसानी से जाते हैं। ज्यादा वजन उठाने के कारण कई बार शरीर में खिंचाव पैदा हो जाता है, जिससे इस रोग की शरीर में उत्पत्ति हो जाती है। कई बार मांसपेशियों में खिचाव आने से और मानसिक तनाव से भी कमर में दर्द रहने लगता है।
लगभग 80 प्रतिशत लोगों को चोट लगने की वजह से कमर का दर्द रहने लगता है। 20 प्रतिशत लोगों में इस रोग की उत्पत्ति ज्यादा संभोग करने से, ठण्डा रूखा भोजन करने से, साईकिल, रिक्शा, ऊंटगाड़ी, ट्रेक्टर जैसे वाहन ज्यादा चलाने से, बीमारी की वजह से कमजोरी आने से वजह से, पैदल ज्यादा चलने से, जोड़ों की बीमारियाँ हो जाने से, रीढ़ के कैंसर के कारण, हृदय रोग के कारण, कूल्हे हड्डियों की टी.बी. हो जाने से, पेट के अल्सर से, डायबिटीज आदि के कारण कमर में दर्द रहने लगता है।

सायटिका का उपचार जड़ी-बूटियों से

  •   अजवायन खुरसानी को तिल के तेल में सिद्ध कर लें। इस तेल की मालिश करने से कमर का दर्द ठीक हो जाता है।
  •   अश्वगंधा के 2-5 ग्राम चूर्ण को गाय के घी या शक्कर के साथ चाटने से कमर का दर्द ठीक होता है।
  •   बबूल की छाल, फली और गोंद समभाग मिलाकर पीस लें। एक चम्मच की मात्रा में एक दिन में तीन बार सेवन करने से कमर दर्द में आराम मिलेगा।
  •  बड़ के दूध का लेप करने से कमर दर्द में लाभ होता है।
  •  गेंहू का आटा, घी और ग्वालपाठा का गुदा इतना होना चाहिए जितना आटे में गूंथने के लिए काफी हो। आटे को गूदे में गूंथकर रोटी बना लें। इस रोटी का चूर्ण बनाकर शक्कर और घी मिलाकर लड्डू बनाकर खाने से कमर की बादी और पीड़ा मिटती है।
  • सायटिका रोग में मांसपेशियों को झटका लगने के कारण आई सूजन में सिंदुवार की छाल का 5 ग्राम चूर्ण या पत्र का क्वाथ कम अग्नि में पकाकर 20 ग्राम की मात्रा में दिन में तीन बार लेने से कष्ट तुरंत समाप्त हो जाता है।
  • पवाड़ के बीजों को भूनकर 2-4 ग्राम चूर्ण कर, खांड, गुड़ आदि मीठा और थोड़ा सा घी मिलाकर लड्डू बना लें। इन लड्डूओं को खाने से कमर दर्द में लाभ होता है।
  • एरण्ड के 10 ग्राम बीजों के छिलके हटाकर दूध में पका लें। इस दूध में शक्कर मिलाकर पीने से सायटिका रोग में फायदा होता है।
  • सौंठ जायफल की छाल के पाउडर को सरसों के तेल में गर्म करके पीड़ा वाले स्थान पर मालिश करें।
  • गाय के मूत्र में अरण्ड का तेल तथा 1 ग्राम छोटी पीपल का चूर्ण मिला लें। इसे सुबह-शाम एक हफ्ते तक सेवन करने से कमर दर्द में आराम मिलता है।
  • हरसिंगार के थोड़े से पत्तों को पानी में उबालें। जब पानी आधा रह जाये तो ठंडा होने पर पत्तों को उसी पानी में मसलकर फेंक दें। और पानी को छान लें। इसमें आधा ग्राम केसर मिला लें। इसके सेवन से रोग में फायदा होता है। निर्गुण्डी के पत्तों को काढ़ा पीने से रोग में फायदा होता है।
  • एक चम्मच अदरक का रस नारियल के तेल में पका लें। ठंडा होने पर दर्द वाले स्थान पर इस तेल की मालिश करने से फायदा होता है। नहाने से पहले लौंग के तेल की मालिश करें।
  • सहजन की फलियों की सब्जी खाने से कमर दर्द में फायदा होता है।
  • घरेलू उपचार

  • थोड़ी सी अफीस सरसों के तेल में डालकर पका लें। इस तेल की मालिश कमर पर करने से कमर दर्द से छुटकारा मिलता है।
  • एक दो चम्मच सौंठ का चूर्ण दूध में डालकर दूध को उबालें। रात को सोने से पूर्व इस दूध का सेवन करें।
  • जायफल को घिसकर रात के वक्त कमर पर इसका लेप करने से फायदा होता है।
  • कमरदर्द से छुटकारा पाने के लिए कमर पर बादाम के तेल की मालिश करनी चाहिए।
  • मेथी की सब्जी खानी चाहिए और कमर पर मेथी की पुल्टिस बांधनी चाहिए।
  • एक पोटली में आजवायन बांधकर इसे तवे पर गर्म कर लें। इस गर्म हुई पोटली से कमर को सेंकना चाहिए।

व्यायाम योग द्वारा उपचार

नियमपूर्वक लगातार व्यायाम उपचार योगासन करते रहने से कमर दर्द से हमेशा के लिए छुटकारा पाया जा सकता है। व्यायाम और योगासन को करते रहने से मेरूदण्ड की मांसपेशियां, रक्तवाहिनियाँ और स्नायु लचीली और ताकतवर हो जाती हैं। इससे कमर दर्द की शिकायत कम ही उत्पन्न होती है। योगासन और व्यायाम एक तरह से कमर दर्द के लिए रामबाण औषधि के समान है। सुबह को हल्का व्यायाम करना चाहिए और थोड़ी टहलने की भी आदत डालनी चाहिए। पैदल चलने, तैरने जैसे सरल व्यायामों के द्वारा शरीर रीढ़ की हड्डियाँ और मांसपेशियों की सहनशक्ति में बढ़ोतरी की जा सकती है।
  • आगे की ओर झुकें।
  • भारी वजन उठायें।
  • भुजंगासन, मकरासन, मर्कटासन, शलभासन, कटिपृष्ठ उत्तान आसन।
 स्वानुभूत योग द्वारा उपचार
  • दिव्य पीड़ान्तक रस द्वारा उपचार-दिव्य पीड़ान्तक रस के सेवन से सायटिका रोग से छुटकारा पाया जा सकता है।
  • दिव्य पीड़ान्तक क्वाथ द्वारा उपचार-दिव्य पीड़ान्तक क्वाथ के प्रयोगों से कमर दर्द (सायटिका) रोग में फायदा होता है। इसके 5 से 10 ग्राम क्वाथ को लगभग 400 ग्राम पानी में पकाकर जब लगभग 100 ग्राम शेष रह जाये, तब छानकर सुबह खाली पेट रात को सोते समय पीएँ।
  • त्रयोदशंग गुग्गुलू एक-एक गोली दिन में 3 बार भोजन के बाद गुनगुने पानी से सेवन करें।
  • एक-एक कैप्सूल अश्वशिला भोजन के बाद दूध से लें।

क्वाथ स्नान विधि

अगर वाष्प (भाप) लेनी हो तो निर्दिष्ट औषध को 1 से 1-5 किलो पानी में प्रेशर कुकर में डालकर पकाएँ। जब सीटी से वाष्प निकलने लगे, तब सीटी को हटाकर उसके स्थान पर गैस वाला रबड़ पाइप लगाएँ तथा पाइप के दूसरे सिरे से निकलती हुई वाष्प को रोगयुक्त स्थान पर वाष्प दें, पाइप के जिस सिरे से वाष्प निकलती है। वहाँ कपड़ा लगा कर रखें, अन्यथा तेज जल के छींटे शरीर को जला सकते हैं। उचित समय तक वाष्प लेने के बाद शेष बचे हुए जल में पीड़ा युक्त स्थान पर मध्यम उष्ण पानी डालते हुए सिकाई करें।
अगर वाष्प लेना हो तो औषध का आवश्यकतानुसार 3-4 लीटर पानी में पकाएँ। जब उबलते हुए लगभग लगभग आधा पानी शेष रह जाये तो उचित गर्म जल को आदि के माध्यम से लेकर रोगयुक्त स्थान की शिकाई करें।
 

दिव्य पीड़ान्तक तेल द्वारा उपचार

पीड़ायुक्त स्थान पर दिव्य पीड़ान्तक तेल की धीरे-धीरे मालिश करनी चाहिए। यह तेल बाह्य प्रयोग के लिए ही है। मालिश हमेशा हृदय की ओर उचित बल का प्रयोग करते हुए शनै: शनै करनी चाहिए।

रोग से बचाव

  • हमेशा सख्त तख्त पर पतला सा गद्दा बिछाकर ही लेटना चाहिए क्योंकि मुलायम गद्देदार बिस्तर पर लेटने से रीढ़ की हड्डियों को समुचित सहारा मजबूती नहीं मिलती है जिससे कमर दर्द की शिकायत पैदा हो जाया करती है।
  • कमर दर्द से पीडि़त व्यक्ति को सपाट टेबल पर नहीं, बल्कि थोड़ी तिरछी टेबल पर काम करना चाहिए।
  • हमेशा पीठ को पीछे सटाकर रीढ़ को सीधा रखते हुए ही कुर्सी पर बैठना चाहिए।
  • धुम्रपान नहीं करें, क्योंकि धुम्र्रपान डिस्क कोशिकाओं के बीच खून के दौरे में बाधा डालता है, जिससे खराबी पैदा होती है।
  • आड़े-तिरछे चले, ही बैठें तथा रीढ़ को सीधा रखते हुए चलना चाहिए।
  • पेट के बल नहीं सोना चाहिए।
  • लेटकर नहीं पढऩा चाहिए।
  • कसे हुए वस्त्र तथा ऊंची एड़ी के जूते चप्पल पहनें।
  • पोछा लगाने, बर्तन धोने या कपड़ों पर प्रेस करते वक्त रीढ़ और कमर को गलत ढंग से नहीं झुकानी चाहिए।
  • अगर कमर में दर्द है तो आराम करने के लिए बिस्तर का सहारा लेते हुए सक्रिय रहना चाहिए।
  • बोझ उठाते समय बोझ का भार समस्त शरीर पर एक सा होना चाहिए।
  • समान को जब भी उठायें, पहले घुटनों को मोड़ें, फिर झुकें। इसके बाद दोनों हाथों से सामान उठायें।
  • जिस कुर्सी पर बैठें वह हत्थे वाली हो और पीठ कमर का सहारा देने वाली हो।
  • मोटा ताकिया सोते वक्त नहीं लगाना चाहिए।
  • शरीर पर मोटापे को हावी होने दें।
  • लगातार एक ही स्थान पर 30-40 मिनट से ज्यादा बैठें और कुछ खड़े रहने के पश्चात् टहलना चाहिए। ऐसा करने से थकी हुई मांसपेशियों को नयी ऊर्जा मिलती है।

आहार

पथ्य- सायटिका रोग में रोगी को हल्का तरल भोजन कम मात्रा में करना ठीक रहता है। रोगी गेंहू, चावल, दूध, घी का सेवन कर सकता है। रोगी को तिल के तेल का सेवन करना चाहिए। सब्जियों में रोगी को मैथी, परवल, सहजिना के फूल, लहसुन का सेवन कर सकता है। रोगी को धनिया जीरे का प्रचुर मात्रा में सेवन करना चाहिए। रोगी को फलों में बेर, नारंगी, आम, अनार, कालीदाख, अखरोट आदि का सेवन करना चाहिए। दालों में रोगी को मसूर, मूंग अरहर की दालों का सेवन करना चाहिए।
अपथ्य- चाय, कॉफी, फास्टफूड जैसे खाद्य पदार्थ शरीर में यूरिक एसिड और कोलेस्ट्रोल की मात्रा बढ़ाते हैं। इसलिए इन खाद्य पदार्थों को सेवन करें। सायटिका रोग के रोगी को चने की दाल भुना हुआ चना, खट्टे पदार्थ, छाछ, दही, ठंडे शीतलपेय पदार्थ, कैरी की खटाई, ठंडा बासी खाना नहीं खाना चाहिए। रोगी को मटर का सेवन भी नहीं करना चाहिए। इसी के साथ ही रोगी को चिंता, क्रोध, शोक को पास नहीं फटकने देना चाहिए। मल-मूत्र के वेग को कभी भी जबरन नहीं रोकना चाहिए। रोगी को दोडऩे, कूदने, साइकिल चलाने भार उठाने से परहेज करना  चाहिए।

पतंजलि में उपलब्ध चिकित्सा

सायटिका के उपचार में पतंजलि की योगराज गुग्गुलु, महायोगराज गुग्गुलु, सिंहनाद गुग्गुलु, यदि रोग की उत्पत्ति चोट के कारण हुई हो तो लाक्षादि गुग्गुलु, पीड़ांतक क्वाथ वटी, पीड़ांतक तेल (मालिश हेतु) अत्यंत लाभकारी हैं। भुजङ्गासन, विपरित नौकासन, उत्तानपादासन, शलभासन तथा कमर पैर के सूक्ष्म व्यायाम प्राणायाम इस रोग में लाभकारी हैं।

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