वक्ष, उदर व प्रजनन संस्थान रोग निवारक आयुर्वेदिक घटक लवंग
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आयुर्वेद मनीषी आचार्य
बालकृष्ण जी महाराज
लवंग (लौंग) का मूल उत्पत्ति स्थल मलक्का द्वीप है। भारत के दक्षिण में केरल और तमिलनाडु में भी इसकी खेती की जाती है। भारतवर्ष में इसका अधिकांश आयात सिंगापुर से किया जाता है। लौंग के वृक्ष पर लगभग 9 वर्ष की आयु में फूल लगने शुरू हो जाते हैं। इसकी पुष्प कलियों को ही सुखाकर बाजार में लौंग के नाम से बेचते हैं। देवकुसुम, श्रीसंज्ञ तथा श्रीप्रसूनक आदि नामों से आयुर्वेदीय निघण्टुओं से इसका उल्लेख मिलता है। चरक तथा सुश्रुत आदि प्राचीन आयुर्वेदीय संहिताओं में पान के साथ लौंग के सेवन का विधान किया गया है तथा गर्भिणी के वमन में इसे उत्तम औषधि बताया गया है।
बाह्य स्वरूप
इसका पिरामिड आकार का अथवा शंक्वाकार, 9-12 मी. ऊँचा, सदाहरित वृक्ष होता है। इसका मुख्य काण्ड सीधा, कठोर तथा चौड़ा होता है, शाखाएँ अनेक होती हैं। इसकी तने की छाल-पाण्डुर पीताभ-धूसर वर्ण की तथा चिकनी होती है। इसके पत्र सरल, विपरीत, 7.5-15 सेमी. लम्बे, दीर्घ, अण्डाकार, भालाकार, दोनों ओर नुकीले, दोनों पृष्ठ पर चिकने, बिन्दुकित, गहरे हरित वर्ण के, चमकीले तथा अध:पृष्ठ पर पाण्डुर वर्ण के होते हैं। इसकी पुष्प कलिका शाखाओं के अन्त पर छोटे गुच्छों में, सुगन्धित, हल्के नील-अरुण वर्ण के लगभग 6 मिमी. लम्बे होते हैं। सूखी हुई पुष्प कलिकाओं को लौंग कहा जाता है। लौंग 10-15 मिमी. लम्बी तथा रक्ताभ-बादामी वर्ण की होती है। इसके फल माँसल, लगभग 2-5 सेमी. लम्बे, 1-5 सेमी. स्थूल, चिकने, अण्डाकार, दीर्घायत, गहरे गुलाबी से बैंगनी वर्ण के तथा बीज मुलायम, 1-5 सेमी. तक लम्बे होते हैं। इसका पुष्पकाल एवं फलकाल जनवरी से मई तक होता है।
रासायनिक संघटनसकी शुष्क पुष्प कलिका में विटामिन-बी, प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, युजिनॉल, ओलिऐनोलिक अल, कैरियोफाईलीन, टैनिन, युजिनॉल, वाष्पशील तेल, स्थिरतेल तथा फॉस्फोरस पाया जाता है। |
आयुर्वेदीय गुण-कर्म एवं प्रभाव
लौंग चरपरी, कड़वी, नेत्र के लिए हितकारी, शीतल, दीपन-पाचन, रुचिकारक, कफ-पित्त विकार, रक्तरोग, तृष्णा, वमन, अफारा, शूल, श्वास हिचकी और क्षय रोग का शमन करती है। लवंग तेल, अग्निवर्धक, वातशामक, दन्तशूल तथा कफ शामक है।
लौंग के कुछ विशेष गुण
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लौंग के सेवन से भूख बढ़ती है। आमाशय की रस क्रिया को बल मिलता है, भोजन के प्रति रुचि पैदा होती है और मन प्रसन्न होता है।
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लौंग कृमिनाशक है, जिन सूक्ष्म जन्तुओं के कारण से मनुष्य का पेट फूलता है, उन्हें यह नष्ट कर देती है, जिससे मनुष्य की रोग निवारण क्षमता बढ़ती है।
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यह चेतना शक्ति को जागृत करती है।
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यह शरीर की दुर्गन्ध को नष्ट करती है। शरीर के किसी भी बाह्य-अंग पर लेप करने से लौंग चेतना कारक, वेदना नाशक, व्रणशोधक और व्रणरोपक है।
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लौंग मूत्रल है। यह मूत्रमार्ग की शुद्धि कर, शरीर के विजातीय द्रव्यों को मूत्र के द्वारा बाहर निकाल देती है।
पत्र सार के ओलिआनॉलिक अल
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मधुमेह रहित और एस.टी.जैड. (स्ञ्र्जं) प्रेरित मधुमेही चूहों में उच्चरक्तशर्करारोधी क्रियाशीलता प्रदर्शित करता है।
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पुष्प कलिका का एथेनॉलिक सार विस्टर (ङ्खद्बह्यह्लड्डह्म्) चूहों में मस्तिष्क उद्दीपनरोधी और शोथरोधी क्रियाशीलता प्रदर्शित करता है।
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लौंग का वाष्पशील तेल चूहों में व्याधिक्षमत्व उत्तेजक क्रियाशीलता प्रदर्शित करता है। लौंग के सेवन से भूख बढ़ती है। आमाशय की रस क्रिया को बल मिलता है, भोजन के प्रति रुचि पैदा होती है और मन प्रसन्न होता है।
औषधीय प्रयोग एवं विधि
शिरो रोग
6 ग्राम लौंग को पानी में पीसकर सुखोष्ण (किंचित् गर्म) कर गाढ़ा लेप कनपटियों पर करने से शिर: शूल एवं आधाशीशी के दर्द में लाभ होता है।
नेत्र रोग
लौंग को ताँबे के बर्तन में पीसकर, शहद मिलाकर अंजन करने से नेत्र के सफेद भाग के रोग मिटते हैं।
मुख रोग
लौंग तेल को रूई के फाहे में लगाकर दाँतों में लगाने से दंतशूल तथा दंतकृमियों का शमन होता है।
वक्ष रोग
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कफ निष्कासन के लिये- लौंग के 2 ग्राम यवकुट (मोटा-मोटा कूटकर) किये हुये चूर्ण को 125 मिली. पानी में उबालें, चतुर्थांश शेष रहने पर इसे उतारकर छान लें और थोड़ा गर्म अवस्था में पी लें। यह कफ को द्रवित कर निकाल देता है।
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श्वास की दुर्गन्ध- लौंग को मुँह में रखने से मुँह और श्वास की दुर्गन्ध मिटती है।
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दमा-लौंग, आँकड़े के फूल और काला नमक को समभाग लेकर पीस लें। तत्पश्चात् चने के आकार की गोली बनाकर, मुख में रखकर चूसने से दमा और श्वास नलिका के रोग मिटते हैं।
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कुक्कुरकास- 3-4 नग लौंग को आग पर भूनकर, पीसकर, शहद मिलाकर चाटने से कुक्कुर खाँसी मिटती है।
उदर रोग
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विसूचिका (हैजा) जन्य तृष्णा- एक या डेढ़ ग्राम लौंग को करीब डेढ़ लीटर जल में डालकर उबालें, 2-3 उबाल आने पर नीचे उतार कर ढक देें, इसमें से 20-25 मिली. जल को बार-बार पिलाने से विसूचिका जन्य तृष्णा का शमन होता है।
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अजीर्ण- 1 ग्राम लौंग और 3 ग्राम हरड़ को मिलाकर क्वाथ (काढ़ा) बनाकर उसमें थोड़ा-सा सेंधा नमक डालकर पिलाने से अजीर्ण तथा अतिसार में लाभ होता है।
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हृल्लास- लौंग को पानी के साथ पीसकर किंचित् उष्ण कर थोड़ा-थोड़ा पिलाने से हृल्लास (जी मिचलाना) और तृष्णा में लाभ होता है।
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क्षुधावर्धन हेतु- लौंग और छोटी पिप्पली दोनों को समभाग लेकर, पीसकर चूर्ण बना लें, इस चूर्ण को डेढ़ ग्राम की मात्रा में लेकर मधु मिलाकर प्रात: सायं चाटने से ज्वर जन्य मंदाग्नि व निर्बलता दूर होती है।
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अफारे में-10 ग्राम लौंग, 10 ग्राम सोंठ, अजवायन और 10 ग्राम सेंधा नमक तथा 40 ग्राम गुड़ को पीसकर 325-325 मिग्रा. की गोलियाँ बना लें। १-१ गोली को दिन में 2-3 बार सेवन करने से अफारा व मंदाग्नि दूर होती है।
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बदहजमी- लौंग, शुंठी, मिर्च, पीपल, अजवायन 10-10 ग्राम, सेंधा नमक 50 ग्राम तथा मिश्री 50 ग्राम को महीन पीसकर चीनी मिट्टी के बरतन में रखकर उसमें नींबू का रस इतना डालें कि सभी चूर्ण उसमें तर हो जायें। इसे धूप में सुखाकर सुरक्षित कर लें। इसे एक चम्मच भोजन के बाद सेवन करने से मुँह का स्वाद अच्छा हो जाता है तथा बदहजमी व खट्टी डकारें आदि बन्द हो जाती हैं।
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1-2 ग्राम लौंग को यवकुट कर 100 मिली. जल में क्वाथ कर 20-25 मिली. शेष रहने पर इसे छानकर ठंडा कर पीने से, मंदाग्नि, अजीर्ण एवं हैजे में लाभ होता है।
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लौंग का फाण्ट या लौंग का तेल देने से अफारे में तुरन्त लाभ होता है।
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लौंग के दरदरे 10 ग्राम चूर्ण को आधा लीटर उबलते हुये जल में डालकर ढक दें, आधे घंटे बाद छान लें। 25-50 मिली. जल को दिन में 3 बार पिलाने से उदरगतवात और अपच दूर होकर अग्नि प्रदीप्त होती है।
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लौंग, सोंठ, 10-10 ग्राम तथा अजवायन व सेंधा नमक 12-12 ग्राम का चूर्ण कर डेढ़ ग्राम मात्रा को भोजन के बाद जल के साथ सेवन करें। यह अजीर्ण और अम्ल रोग नाशक है।
प्रजनन संस्थान रोग
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गर्भकाल में वमन- 1 ग्राम लवंग चूर्ण को मिश्री की चाशनी व अनार के रस मेें मिलाकर चाटने से गर्भवती स्त्री की उल्टी (वमन) बन्द होती है।
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लौंग का फाण्ट पिलाने से गर्भवती स्त्री की छर्दि (वमन) बन्द हो जाती है। ज्वर में यह फाण्ट न दें।
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स्तम्भन के लिये- लौंग व जायफल को घिसकर नाभि पर लेप करने से स्त्री और पुरुष की स्तम्भन शक्ति बढ़ जाती है।
अस्थिसंधि रोग
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वातजन्य शूल- लवंग की त्वचा को उष्णोदक के साथ पीसकर लेप करने से वातजन्य शूल का शमन होता है।
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संधिवात-लौंग का तेल लगाने से संधिवात में लाभ होता है।
त्वचा रोग
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5-6 लौंग और 10 ग्राम हल्दी को पीसकर लगाने से नासूर ठीक हो जाता है।
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सर्वशरीर रोग
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दाह-2-4 नग लौंग को शीतल जल में पीसकर, मिश्री मिलाकर पीने से हृदय की दाह मिटती है।
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ज्वर-लौंग तथा चिरायता दोनों को समान भाग लेकर पानी में पीसकर पिलाने से ज्वर में लाभ होता है।
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