रसायन द्रव्यों में सर्वश्रेष्ठ आयुर्वेदिक घटक आँवला

रसायन द्रव्यों में सर्वश्रेष्ठ आयुर्वेदिक घटक आँवला

आयुर्वेद मनीषी आचार्य

बालकृष्ण जी महाराज

आँवला रसायन द्रव्यों में सर्वश्रेष्ठ है। इसके सेवन से वृद्धावस्था मनुष्य पर अपना प्रभाव नहीं डाल पाती है। इसीलिये आयुर्वेद में इसे अमृतफल व धात्रीफल आदि कहा गया है। अति प्राचीनकाल तथा वैदिक काल से ही प्रभाव पूर्ण औषधि के रूप में इसका प्रयोग किया जाता रहा है। आयुर्वेद में इसे बहुत ऊँचा स्थान दिया गया है। काष्ठऔषधि से लेकर रसौषधि तक ऐसे बहुत कम प्रकरण या प्रयोग हैं, जिनमें इसका व्यवहार नहीं हुआ है। प्राय: सब ही प्रयोगों में यह किसी न किसी रूप में पाया जाता है।

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बाह्य स्वरूप
यह छोटे से मध्यम आकार का, 8-18 मी. ऊँचा, पर्णपाती वृक्ष होता है। इसके पत्र छोटे, इमली के पत्तों के जैसे, 8-12 मि.मी. लम्बे, 3 मि.मी. चौड़े, द्विपंक्तिक, हल्के हरित वर्ण के होते हैं। इसके फल 1.5-3 सेमी. व्यास के, गोलाकार, छ: पालियों से युक्त, माँसल, कच्चे फल हरित वर्ण के तथा पके फल पीताभ अथवा रक्ताभ वर्ण के, सूखने पर कृष्ण वर्ण के होते हैं। इसका पुष्पकाल मार्च से जून एवं फलकाल नवम्बर से मार्च तक होता है।
आयुर्वेदीय गुण-कर्म एवं प्रभाव
आमलकी ग्राही, मूत्रल, रक्तशोधक, रुचिकारक, अतिसार, प्रमेह, दाह, कामला, अम्लपित्त, विस्फोटक, पांडु, रक्तपित्त, वातरक्त, अर्श, बद्धकोष्ठ, अजीर्ण, अरुचि, श्वास, खाँसी इत्यादि रोगों को नष्ट करता है। दृष्टि तेज़ करता है और आयु की वृद्धि करता है। यह त्रिदोषहर हैै। अम्ल से वात, मधुर, शीत से पित्त तथा रूक्ष, कषाय होने के कारण कफ  का शमन करता है। आमलकी हृदय को बल देने वाला, शोणितस्थापन, वृष्य, गर्भस्थापन, अग्निदीपक है।
आँवला कफ -पित्त-शामक, प्रमेह व कुष्ठ को नष्ट करता है तथा आँखों के लिये हितकारी, अग्निदीपक और विषम ज्वर को नष्ट करता है।
औषधीय प्रयोग एवं विधि
शिरो रोग
  • केश कल्प- 30 ग्राम सूखे आँवले, 10 ग्राम बहेड़ा, 50 ग्राम आम की गुठली की गिरी और 10 ग्राम लौह भस्म को रात भर लोहे की कढ़ाई में भिगोकर रखें। बालों पर इसका नित्य प्रतिदिन लेप करने से छोटी आयु में श्वेत हुये बाल कुछ ही दिनों में काले पड़ जाते हैं।
  • आँवला, रीठा, शिकाकाई, इन तीनों का काढ़ा बनाकर सिर धोने से बाल मुलायम, घने और लम्बे होते हैं। ब्राह्मी तथा आँवला तेल भी बालों के लिये अच्छा होता है।
  • आँवले और आम की गुठली की मज्जा को एक साथ पीस कर सिर में लगाने से बालों की जड़ें मजबूत तथा केश लम्बे होते हैं।
  • पालित्य-लौह भस्म एवं आँवला चूर्ण को गुड़हल पुष्प के साथ पीसकर, कल्क बनाकर, प्रतिदिन स्नान के पूर्व सिर में लगाकर कुछ देर बाद स्नान करने वाले व्यक्ति के बाल जल्दी नहीं पकते हैं।

नेत्र, नासा एवं मुख रोग

  • नेत्ररोग- आँवले के रस से नेत्रपूरण करने से नवीन नेत्ररोग की वेदना आदि लक्षण शान्त होते हैं तथा वृक्ष पर पके हुए आँवले के रस का अंजन करने से नेत्र के सभी विकारों में लाभ होता है। आँवले के बीजों को घिसकर अंजन करना भी नेत्र रोगों में हितकर है।
  • 84 ग्राम पीली हरीतकी त्वक्, 12-12 ग्राम पिप्पली तथा मरिच को लगभग 400 मिली. आँवला स्वरस की भावना देते हुए खरल करके वर्ती बनाकर नेत्रों में अंजन करने से नेत्रपुष्प, तिमिर आदि व्याधिजन्य पीड़ाओं का शमन होता है।
  • 20-50 ग्राम आँवले के फलों को जौकुट कर दो घंटे तक 1/2 लीटर पानी में उबालकर उस जल को छानकर दिन में तीन बार 1-2 बूँद आँखों में डालने से नेत्र रोगों में बहुत लाभ होता है।
  • वृक्ष पर लगे हुये आँवले में छेद करने से जो द्रव पदार्थ निकलता है, उसका आँख के बाहर चारों ओर लेप करने से आँख के शुक्ल भाग की सूजन मिटती है।
  • आँवले के रस को आँखों में डालने अथवा 4 मिली. सहजन पत्र स्वरस तथा 250 मिग्रा. सैन्धव नमक, इन्हें एक साथ मिलाकर लगाने से नवीन अभिष्यन्द (आँख आना) नष्ट होता है।
  • नकसीर-जामुन, आम तथा आँवले को काँजी आदि से बारीक पीसकर मस्तक पर लेप करने से लाभ होता है।
  • स्वर भेद-अजमोदा, हल्दी, आँवला, यवक्षार तथा चित्रक को समान मात्रा में मिलाकर, 1 से 2 ग्राम चूर्ण को 2 चम्मच मधु तथा 1 चम्मच देशी घी के साथ चाटने से गले की खराश दूर होती है।
वक्ष रोग
  • हिचकी-पिप्पली, आँवला तथा सोंठ इनके 2-2 ग्राम चूर्ण में 10 ग्राम खाँड तथा 1 चम्मच मधु मिलाकर थोड़ी-थोड़ी देर में प्रयोग करने से हिचकी तथा साँस फूलना/दमा में लाभ होता है।
  • 10-20 मिली. आँवला रस तथा 2-3 ग्राम पीपल चूर्ण में 2 चम्मच शहद मिलाकर दिन में दो बार सेवन करने से हिचकी में लाभ होता है।
उदर रोग
  • छर्दि (उल्टी)-10-20 मिली. आमलकी रस में 5-10 ग्राम मिश्री मिलाकर देने से हिचकी तथा उल्टी बंद हो जाती है। यह दिन में दो-तीन बार दिया जा सकता है। 5-10 ग्राम चूर्ण को पानी के साथ भी दिया जा सकता है।
  • त्रिदोष जनित छर्दि में आँवला तथा द्राक्षा को पीसकर 40 ग्राम खाँड, 40 ग्राम मधु और 160 मिली जल मिलाकर कपड़े से छानकर पीना चाहिये।
  • आँवले के 20 मिली स्वरस में 1 चम्मच मधु और 2 ग्राम सफेद चन्दन का चूर्ण मिलाकर पिलाने से उल्टी बन्द होती है।
  • अम्लपित्त- 1-2 नग ताजे आँवले को मिश्री के साथ या आमलकी स्वरस को 25 मिली की मात्रा में लेकर समभाग शहद के साथ प्रात:-सायं देने से खट्टी डकारों में लाभ होता है।
  • आँवले के 10 ग्राम बीजों को रात भर जल में भिगोकर अगले दिन गाय के दूध में पीसें, इसको 250 मिली. गाय के दूध के साथ देने पर पित्ताधिक्य में लाभ होता है।
  • संग्रहणी-मेथी दाना के साथ आँवले के पत्तों का काढ़ा बनाकर, 10 से 20 मिली. दिन में दो बार पिलाने से लाभ होता है।
  • विरेचनार्थ-रक्त-पित्त रोग में, विशेषकर जिन रोगियों को विरेचन (दस्तावर प्रयोग) कराना हो, उनके लिये आँवले के 20-40 मिली. रस में पर्याप्त मात्रा में मधु और चीनी को मिलाकर सेवन कराना चाहिये।
  • कब्ज-3-6 ग्राम त्रिफला चूर्ण को कोष्ण (गुनगुने) जल के साथ रात में सोते समय लेने से कब्ज मिटता है।
  • रक्तातिसार-रक्त अतिसार में अधिक रक्तस्राव हो, तो आँवले के 10-20 मिली. रस में 10 ग्राम शहद और 5 ग्राम घी मिलाकर पिलाएँ और ऊपर से बकरी का दूध 100 मिली. तक दिन में तीन बार पिलाएँ।
  • रक्त गुल्म-10-20 मिली. आँवले के रस में 500 मिग्रा. काली मिर्च डालकर पीने से रक्त गुल्म नष्ट होता है।
  • मंदाग्नि-पकाये हुए आँवलों को कस कर उसमें उचित मात्रा में काली मिर्च, सोंठ, सेंधानमक, भुना जीरा और हींग मिलाकर, छाया में सुखाकर सेवन करने से जठराग्नि प्रदीप्त होती है तथा विबन्ध व अग्निमांद्य आदि विकारों का शमन होता है।
  • अतिसार-5-6 आँवलों को जल में पीसकर रोगी की नाभि के आसपास नाभि को बचाते हुए लेप कर दें और नाल (नाभि) में अदरक का रस भर दें।
  • आँवले के 10-12 ग्राम कोमल पत्तों को पीसकर, छाछ के साथ नित्य प्रात:-सायं सेवन करने से अजीर्ण एवं अतिसार में लाभ होता है।
गुदा रोग
  • अर्श-आँवलों को भली-भाँति पीसकर उस पीठी को एक मिट्टी के बर्तन में लेप कर देना चाहिये। फिर उस बरतन में छाछ भरकर उस छाछ को रोगी को पिलाने से बवासीर में लाभ होता है।
  • बवासीर के मस्सों से अधिक रक्त- स्राव होता हो, तो 3-8 ग्राम आँवला चूर्ण का सेवन दही की मलाई के साथ दिन में दो-तीन बार करना चाहिए।
यकृत् व प्लीहा रोग
  • कामला-आँवले की चटनी बनाकर उसमें शहद मिलाकर सेवन करने से यकृत् दौर्बल्य तथा पीलिया में लाभ होता है।
  • कामला व पांडु-125-250 मिग्रा. लौह भस्म के साथ 1-2 नग आँवले का सेवन करने से कामला (पीलिया) तथा पाण्डु (खून की कमी के रोगों में) अत्यन्त लाभ होता है।
वृक्कवस्ति रोग
  • मूत्रकृच्छ्र- आँवले की ताजी छाल के 10-20 मिली. रस में 2 ग्राम हल्दी और 10 ग्राम मधु मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से मूत्रकृच्छ्र (मूत्र त्याग में कठिनता) में लाभ होता है।
  • आँवले के 20 मिली. स्वरस में इलायची का चूर्ण डालकर दिन में दो-तीन बार पीने से मूत्रकृच्छ्र (मूत्र त्याग में कठिनता) में लाभ होता है।
  • प्रमेह-आँवला, हरड़, बहेड़ा, नागर-मोथा, दारु-हल्दी एवं देवदारु, इन सबको समान मात्रा में लेकर क्वाथ बनाकर 10-20 मिली. की मात्रा में सुबह-शाम प्रमेह के रोगी को पिलाएँ।
  • मूत्राघात- 5-6 आँवलों को पीसकर नलों (बस्ति प्रदेश) पर लेप करने से (मूत्र का रुक जाना) मूत्राघात मिटता है।
प्रजनन संस्थान रोग
  • शुक्रमेह-धूप में सुखाये हुये गुठली निकाले हुए आँवले के 10 ग्राम चूर्ण में दुगनी मिश्री मिलाकर, 250 मिली. तक ताजे जल के साथ 15 दिन तक लगातार सेवन करने से स्वप्नदोष, शुक्रमेह आदि रोगों में निश्चित रूप से लाभ होता है।
  • रक्त प्रदर- 20 मिली. आँवला स्वरस में एक ग्राम जीरा चूर्ण मिलाकर दिन में दो बार सेवन करें। ताजे आँवलों के अभाव में 20 ग्राम शुष्क आँवला चूर्ण रात्रि में भिगोकर सुबह सेवन करें और प्रात: काल भिगोकर रात्रि में छानकर सेवन करें। पित्तप्रकोप से होने वाले रक्तस्राव में धैर्यपूर्वक आँवले का सेवन करने से विशेष लाभ होता है।
  • श्वेत प्रदर- आँवले के 20-30 ग्राम बीजों को पानी के साथ पीसकर, उस पानी को छानकर, उसमें 2 चम्मच शहद और पिसी हुई मिश्री मिलाकर पिलाने से श्वेत प्रदर में लाभ होता है।
  • योनिदाह- 20 मिली. आँवले के रस में 5 ग्राम शक्कर और 10 ग्राम शहद मिलाकर पीने से योनि की जलन में अत्यन्त लाभ होता है।
  • सूजाक- 2-5 ग्राम आमलकी चूर्ण को एक गिलास जल में मिलाकर पिलाने से और उसी जल से मूत्रेन्द्रिय को धोने से सूजन व जलन शान्त होती है और धीरे-धीरे घाव भरकर पीव आना बन्द हो जाता है।
अस्थिसंधि रोग
  • गठिया-20 ग्राम सूखे आँवले और 20 ग्राम गुड़ को 500 मिली. पानी में उबालकर 250 मिली. पानी शेष रहने पर छानकर प्रात: सायं पिलाने से गठिया में लाभ होता है, परन्तु उस समय नमक छोड़ देना चाहिये।
  • वातरक्त-आँवले के स्वरस से सिद्ध घी को 10-20 मिली. की मात्रा में सेवन करने से वातरक्त में लाभ होता है। यदि वातरक्त में कफ  की प्रबलता हो, तो आँवला तथा हल्दी के 50 मिली काढ़े में, 10 ग्राम मधु मिलाकर पीना हितकर होता है।
त्वचा रोग
  • नीम पत्र तथा आँवले को घृत (घी) के साथ नियमित रूप से सेवन करने से फोड़े, कोठ, क्षत, पित्ती रोग, खुजली, रक्तपित्त एवं खाज में शीघ्र लाभ होता है।
  • विसर्प- आँवले के 10-20 मिली. रस में 10 ग्राम घी मिलाकर दिन में दो-तीन बार पिलाने से विसर्प रोग मिटता है।
  • कुष्ठ- आँवला और नीम पत्र को समभाग लेकर महीन चूर्ण कर रखें, 2 से 6 ग्राम तक या 10 ग्राम तक नित्य प्रात: काल शहद के साथ चाटने से भयंकर गलित कुष्ठ में भी शीघ्र लाभ होता है।
  • खुजली- आँवले की गुठली को जलाकर भस्म करें और उसमें नारियल तेल मिलाकर, गीली या सूखी किसी भी प्रकार की खुजली पर लगाने से लाभ होता है।
  • सफेद दाग- लम्बे समय तक प्रतिदिन आँवला तथा खदिर के 10-20 मिली क्वाथ में 2-4 ग्राम बाकुची चूर्ण मिलाकर पीने से सफेद दाग का शमन होने लगता है।
  • शीतपित्त- 10 ग्राम आँवले के चूर्ण को समभाग गुड़ के साथ खाने से पित्ती रोग में लाभ होता है।
  • विसर्प- 25 मिली. आँवला स्वरस में 6 ग्राम घी मिलाकर पीने से और यदि क्रूर कोष्ठ हो तो 6 ग्राम निशोथ मूल चूर्ण भी मिलाकर पीने से, विरेचन होकर कोष्ठगत दोषों का शमन होता है तथा विसर्प में लाभ होता है।
  • मसूरिका- शीतला रोग में यदि मुख तथा गले में घाव उत्पन्न हो गया हो, तो समभाग आँवला तथा मुलेठी के काढ़े (10-20 मिली.) में मधु मिलाकर गण्डूष धारण करने से लाभ होता है।
  • झाइयाँ- गोमूत्र में सात दिन तक रखे कच्चे आँवले को, बकरी के दूध से पीसकर प्रतिदिन लेप करने से झाइयाँ दूर होती हैं।
  • व्रण- घावों पर आँवला पत्र-स्वरस का लेप करने से शीघ्र घाव भर जाता है।
  • चाकू का घाव- चाकू आदि से शरीर में कोई घाव हो जाए और रक्तस्राव हो तो तत्काल आँवले का ताजा रस निकालकर लगा देने से लाभ होता है।
  • पामा- सिन्दूर, आँवलासार, गन्धक तथा नीलाथोथा को आँवले के रस में घोंट कर गाय के घी में मिलाकर लेप लगाने से पामा ठीक होती है।
सर्वशरीर रोग
  • वातरक्त-आँवला, हल्दी तथा मोथा से बनाए 10-20 मिली. काढ़े में 2 चम्मच मधु मिलाकर दिन में 3 बार पीने से वातरक्त शान्त हो जाता है।
  • पित्तशूल-2-5 ग्राम आमलकी चूर्ण में 1 चम्मच मधु मिलाकर प्रात:काल खाली पेट सेवन करने से पित्तशूल का शमन होता है।
  • कफ ज्वर-मोथा, इन्द्रजौ, हरड़, बहेड़ा, आँवला, कुटकी तथा फालसा का क्वाथ बनाकर, 10-30 मिली. में पीने से कफ -ज्वर में लाभ होता है।
  • रक्तपित्त- आँवले के 10-20 मिली. रस  में 2 ग्राम हल्दी तथा 1 चम्मच मधु मिलाकर दिन में 3 बार पिलाने से रक्तपित्त में लाभ होता है।
  • 5-10 ग्राम आँवला चूर्ण को दही के साथ अथवा 10-20 मिली. आँवला के क्वाथ में गुड़ मिलाकर पीने से रक्तपित्त में लाभ होता है।
  • ज्वरदोष-आँवला, चमेली की पत्ती, नागरमोथा तथा जवासा को समान भाग में लेकर काढ़ा बनाने के बाद उसमें चतुर्थांश गुड़ मिलाकर सेवन करने से बुखार में अत्यन्त लाभ होता है।
  • श्रम, दाह-आँवले के 100 मिली. काढ़े में 10 ग्राम गुड़ डालकर थोड़ा-थोड़ा पीने से थकान, जलन, दर्द, रक्तपित्त या कठिनता से मूत्र आने में लाभ होता है।
  • पित्तरोग-ताजा फलों का मुरब्बा, विशेष रूप से आँवले का मुरब्बा 1-2 नग प्रात:काल खाली पेट खाने से पित्त के रोग मिटते हैं।

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