सोरायसिस का सफल उपचार पंचकर्म
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डॉ. विक्रम गुप्ता, पंचकर्म विभाग
सोरायसिस (Psoriasis) एक ऐसा चर्मरोग है जिसमें त्वचा के ऊपर मोटी परत (Plaques) जम जाती है। सामान्यत: हमारे शरीर की त्वचा एक महीने के अन्तराल में बदल जाती है। हर महीने धीरे-धीरे त्वचा का ऊपरी स्तर निकल कर नयी त्वचा आती है। सोरायसिस रोग में यह क्रिया एक महीने की जगह केवल 4 से 5 दिन में होती है और इसी कारण अपरिपक्व त्वचा के स्तर तैयार होकर, त्वचा पर मोटी चमकीली परत जम जाती है।
यह बीमारी कभी भी किसी को भी हो सकती है और आयुर्वेद के अनुसार कृच्छ्रसाध्य होती है क्योंकि ईलाज के दौरान यह ठीक हो जाती है परन्तु पुन:-पुन: उत्पन्न भी हो जाती है।
भारत की लगभग 1 प्रतिशत जनसंख्या अर्थात् करीब 1.2 करोड़ लोग इस रोग से ग्रस्त हैं। आयुर्वेद में सभी त्वचा विकारों को कुष्ठ रोग के अन्तर्गत रखा गया है। कुष्ठ रोग २ प्रकार के होते हैं- 1. महाकुष्ठ, 2. क्षुद्रकुष्ठ। क्षुद्रकुष्ठ में 'एककुष्ठ’ का वर्णन मिलता है, जिसके लक्षण सोरायसिस से मिलते हैं। आयुर्वेद में एककुष्ठ को वात-कफ प्रधान त्रिदोष व्याधि माना है।
कारण
Psoriasis का कोई स्पष्ट कारण अभी तक पता नहीं चला फिर भी वंशानुगत श्रेणी (Hereditary) में आने वाली बीमारी है।
इसके अलावा बिगड़ी हुई रोग प्रतिकार शक्ति (Autoimmune) और असंतुलित आहार भी इसके कारण हो सकते हैं।
आयुर्वेद के अनुसार 1. विरुद्ध अन्नपान, द्रव-स्निग्ध और गुरु पदार्थों का अधिक सेवन, 2. शीत-उष्ण, सन्तर्पण-अपर्तपण, गुरु-लघु पदार्थों का व्यतिक्रम से सेवन अर्थात् शीत के बाद उष्ण फिर शीत, गुरु के बाद लघु फिर गुरु आदि, 3. नवीन अन्न, दही, मछली, अतिलवण, अतिअम्ल पदार्थों को खाना, 4. भोजन के बाद व्यायाम करना, धूप में रहना, दिन में सोना, 5. धूप, परिश्रम या भय से आक्रान्त होकर सहसा ठंडे जल में नहाना, 6. विद्वान् या गुरुजन का अपमान करना, 7. इस जन्म में या पूर्वजन्म में पाप का आचरण करना, 8. मल-मूत्रादि अधारणीय वेगों को रोकना, 9. पञ्चकर्म का अविधि प्रयोग करना।
सोरायसिस छूत की बीमारी नहीं है अर्थात् यह छूने से, हाथ मिलाने से या गले मिलने से नहीं फैलती है।
ग्रीष्म ऋतु (Summer) की अपेक्षा शीत ऋतु (Winter) में इसका फैलाव अधिक होता है।
कुछ अन्य कारणों की वजह से भी Psoriasis का प्रभाव बढ़ सकता है, जैसे-तनाव (Stress), संक्रमण (Infection), चोट (Injury), दवा (Medicine), शराब (Alcohal), धूम्रपान (Smoking)।
लक्षण
सोरायसिस के लक्षण इस प्रकार हैं-
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सोरायसिस से पीडि़त त्वचा प्राकृतिक चमकविहीन, रूखी-सूखी, फटी हुई और मोटी दिखाई देती है।
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खुजली होना।
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सिर पर यह रूसी (ष्ठड्डठ्ठस्रह्म्ह्वद्घद्घ) की तरह नजर आती है।
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त्वचा पर मोटी परत निकालने पर थोड़ा खून निकलता है।
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हाथ और पैर के नाखूनों पर भी सोरायसिस हो सकता है, जिससे नाखून विकृत हो जाते हैं तथा जड़ से भी निकल सकते हैं।
प्रकार
सोरायसिस के लक्षण इस प्रकार हैं-
1 - प्लाक सोरायसिस (Plaque Psoriasis) : सोरायसिस का यह सबसे आम प्रकार है। इसे सोरायसिस वुलगेरिस (Psoriasis Vulgaris) भी कहते हैं। इसमें कोहनी, घुटने, सिर की त्वचा और पीठ की त्वचा पर लाल, मोटी परत जम जाती है जिसमें सूजन और दर्द होता है।
2 - गुट्टेट सोरायसिस (Guttate Psoriasis) : गले के संक्रमण, तनाव, चोट या दवा आदि सोरायसिस के ट्रिगर्स के कारण हाथ, जाँघ, सिर पर गोल निशान बन जाते हैं। यह अक्सर बिना किसी ईलाज के भी 2 से 4 हफ्तों में ठीक हो जाते हैं।
3 - इन्वर्स सोरायसिस (Inverse Psoriasis) : इसमें बगल (Side), जाँघ व पेट के बीच का भाग (Groin), स्तन के निचले हिस्से या त्वचा के Fold के हिस्से में लाल, चमकीले चकत्ते तैयार हो जाते हैं। अधिक पसीने या घिसने के कारण यह बढ़ भी जाते हैं।
4 - पुस्टुलर सोरायसिस (Pustular Psoriasis) : यह एक प्रकार का गम्भीर सोरायसिस का प्रकार है, जिसमें पूरे शरीर में छाले बन जाते हैं। इनमें मवाद (Pus) भरा रहता है। समय पर ईलाज न करने पर बुखार, जी मिचलाना, कमजोरी, बदनदर्द जैसे लक्षण नजर आते हैं।
5 - एरिथ्रोडर्मिक सोरायसिस (Erythrodermic Psoriasis) : इस प्रकार के सोरायसिस में शरीर के 80 प्रतिशत हिस्से तक इसका फैलाव हो जाता है। इस प्रकार के सोरायसिस में शरीर का तापमान बदल जाता है, हृदय गति तेज हो जाती है तथा जलन के साथ त्वचा की परत निकलती है।
6 - नेल सोरायसिस (Nail Psoriasis) : इसमें रोगी के हाथ और पैरों के नाखुनों में सोरायसिस फैलने से नाखून विकृत हो जाते हैं और जड़ से निकल भी सकते हैं।
7 - सोरायटिक अर्थराइटिस (Psoriatic Arthritis): 10 वर्ष से अधिक सोरायसिस होने पर इसके दुष्प्रभाव के कारण शरीर के जोड़ों में दर्द और सूजन आ जाती है, जिसकेे कारण रोगी को अपनी नियमित गतिविधियों में मुश्किल होने लगती है।
उपचार (शोधन चिकित्सा)
पंचकर्म विधि से शरीर का शोधन (विरेचन) करने से सोरायसिस से पूर्णत: छुटकारा पाया जा सकता है। इस पूरी प्रक्रिया को तीन भागों में बाँट सकते हैं-
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पूर्वकर्म : 3 से 5 दिन तक दीपन/पाचन, 3 से 7 दिन तक स्नेहन व पञ्चतिक्तघृत तथा 3 दिन तक सर्वांग अभ्यंग और मृदु वाष्प स्वेद।
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प्रधानकर्म : विरेचन कर्म व त्रिवृतलेह
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पश्चात् कर्म : संसर्जन कर्म
शमन चिकित्सा
1 - 200 ग्राम सर्वकल्प क्वाथ तथा 100 ग्राम कायाकल्प क्वाथ को मिलाकर एक चम्मच दवा 400 मिली. पानी में तब तक पकायें जब तक यह 100 मिली. शेष रह जाए। इस काढ़े का सेवन सुबह-शाम खाली पेट करें।
2 - 20 ग्राम कायाकल्प वटी, 2 ग्राम रसमाणिक्य, 1 ग्राम तालसिन्दूर, 10 ग्राम प्रवाल पिष्टी तथा 20 ग्राम गिलोय सत लें। इन सबको महीन पीसकर 60 पुडिय़ा बना लें तथा सुबह, दोपहर तथा शाम के समय नाश्ते व खाने से आधा घण्टा पहले जल, शहद या मलाई के साथ लें।
3 - 2-2 गोली कैशोल गुग्गुल, आरोग्यवर्धिनी वटी तथा नीम घनवटी खाने के बाद गुनगुने पानी से लें।
4 - 2-2 चम्मच खदिरारिष्ट तथा महामंजिष्ठारिष्ठ ४ चम्मच पानी के साथ मिलाकर सेवन करें।
5 - व्याधि के स्थान पर हल्के हाथ से कायाकल्प तेल से मालिश करें।
योगासन व प्राणायाम
रोजाना योग और प्राणायाम करें। योग और प्राणायाम करने से शरीर के दूषित पदार्थ बाहर निकालने में मदद मिलती है और साथ ही मन को शांत कर तनाव को दूर किया जा सकता है। सोरायसिस में आप निम्र योग और प्राणायाम कर सकते हैं-
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सूर्य नमस्कार
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वज्रासन
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कपालभाति प्राणायाम
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भस्त्रिका प्राणायाम
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भ्रामरी प्राणायाम
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अनुलोम-विलोम प्राणायाम
सोरायसिस में पथ्य
सोरायसिस के रोगी को अंकुरित अनाज, दाल, तेल, ताजे फल व सब्जियों का प्रयोग करना चाहिए। रोगी मूंग, मोठ, गेहूँ, चना, बाजरा, राई, मेथी आदि अंकुरित किए हुए अनाज प्रयोग कर सकते हैं।
फलों में सोरायसिस के रोगियों को संतरा, मौसमी, आम, जामुन, पपीता, सेव, अंगूर, तरबूज, खरबूजा, सिंघाड़ा, अनार, नाशपाती, केला व चीकू दे सकते हैं।
सब्जियों में रोगी को ककड़ी, खीरा, लौकी, करेला, टमाटर, कद्दू, तोरई आदि दे सकते हैं।
सोरायसिस में अपथ्य
सोरायसिस के रोगी को चाय, कॉफी, तले-भुने खाद्य पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए। रोगी को शराब, धूम्रपान, तम्बाकू का सेवन नहीं करना चाहिए।
रोगी को कोल्ड ड्रिंक्स, बिस्कुट, जैम, जैली, अण्डा, माँस, मछली, मक्खन, पनीर, पेस्ट्री, चाकलेट, आइसक्रीम आदि का भी सेवन नहीं करना चाहिए।
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