पतंजलि योगपीठ में सभ्यता और संस्कृति की रक्षा के संकल्प के साथ मनाया गया

पतंजलि योगपीठ में सभ्यता और संस्कृति की रक्षा के संकल्प के साथ मनाया गया

    पतंजलि योगपीठ  हरिद्वार  में सनातन संस्कृति के दिव्य प्रतीक श्रावणी उपाकर्म (रक्षाबन्धन) का पवित्र त्यौहार हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। परम पूज्य स्वामी रामदेव जी महाराज व श्रद्धेय आचार्य बालकृष्ण जी महाराज के संकल्प को अपना संकल्प मानकर योग-आयुर्वेद और स्वदेशी के दिव्य अभियान को इस धरा पर उतारती देशभर की लाखों बहनों की ओर से पूज्या साध्वी देवप्रिया जी, बहन रेणु जी, ऋतम्भरा जी, बहन आशु व पारुल जी सहित कई वरिष्ठ बहनों व विदेश से आई कई बहनों ने भी परम पूज्य स्वामी जी महाराज तथा परम श्रद्धेय आचार्यवर की कलाई में रक्षा सूत्र बाँधकर आशीर्वाद प्राप्त किया।
इसी क्रम में वैदिक कन्या गुरुकुलम् की ब्रह्मचारिणी बहनों, साध्वी बहनों व संस्थान की अन्य बहनों ने भी गुरुकुलम् के भाईयों, संन्यासी भाईयों तथा विशेष रूप से पधारे हमारे सीमा सुरक्षा बल के जवानों को रक्षा-सूत्र बाँधकर उनके संकल्पों की रक्षा के लिए प्रभू से प्रार्थना की।
इस अवसर पर संस्कारों की पावनी परम्परा को शक्ति प्रदान करते हुए द्विजत्व की सिद्धि के लिए आचार्यकुलम् शिक्षण संस्थान के नवागन्तुक छात्र-छात्राओं का उपनयन व वेदारम्भ  संस्कार कराया गया। साथ ही विदेश से पधारे कई भाई-बहनों का भी यज्ञपूर्वक पवित्र यज्ञोपवीत संस्कार कराया गया।
इस अवसर पर परम पूज्य स्वामी जी व श्रद्धेय आचार्यश्री ने सम्पूर्ण देशवासियों को रक्षा बन्धन की हार्दिक बधाई दी। परम पूज्य स्वामी जी महाराज ने बताया कि श्रावणी उपाकर्म (रक्षाबन्धन) का पर्व हम देश, धर्म और संस्कृति की रक्षा और सेवा के संकल्प के साथ मनाते हैं। यही हमारे ऋषियों द्वारा प्रेरित पर्व परम्परा है। श्रावणी उपाकर्म को उपनयन और वेदारम्भ संस्कार के लिए श्रेष्ठ व दिव्य समय माना गया है।
इस पावन पर्व पर श्रद्धेय आचार्यश्री ने  कहा कि रक्षाबन्धन और श्रावणी उपाकर्म का यह संयुक्त त्यौहार हमें अपने संकल्पों को सुदृढ़ करने की याद दिलाता है। आज करोड़ों बहनें भाईयों के हाथ में सुन्दर रक्षाबन्धन बाँधती हैं। आचार्यश्री ने कहा कि बहन कोई दीन-हीन नहीं, वह अपनी रक्षा में सक्षम है, फिर भी उसके जीवन में आदर्शों में कहीं कमी न आ जाए, ऐसी कामना करती है।
उन्होंने कहा कि श्रावणी उपाकर्म प्राचीन काल से चली आ रही परम्परा है, जिसमें हम नये विद्यार्थियों का उपनयन संस्कार कराते हैं। उपनयन संस्कार के समय बच्चे यह संकल्प लेते है कि हमें ऋषि-ऋण, देव-ऋण व पितृ-ऋण से उर्ऋण होना है। ऋषि दयानन्द की अनन्त कृपा से यज्ञोपवीत का संस्कार हम सबको प्राप्त हुआ है। यज्ञ और यज्ञोपवीत की लुप्त प्राय हो रही परम्परा ऋषि दयानन्द की कृपा से पुन: जीवित हुई है, उन्होंने उद्घोष किया था कि 'जन्मना जायते शूद्र: कर्मणा द्विज उच्यते’ हमारा जन्म किसी भी वंश, परम्परा और खानदान में हुआ हो, हम अपने कर्मों और पुरुषार्थ से महान् बन सकते हैं। आज पतंजलि उसी ऋषि कार्य को जन-जन तक पहुँचा रहा है।

42

20

परम पूज्य स्वामी जी महाराज तथा परम श्रद्धेय आचार्य जी की कलाई में रक्षासूत्र बांधती मातृशक्ति

44

45

पतंजलि योगपीठ में सीमा सुरक्षा बल के जवानों तथा संन्यासी भाईयों को श्रद्धापूर्वक रक्षासूत्र बांधती पूज्या साध्वी देवप्रिया जी एवं अन्य बहनें

46

21

संस्कारों की पावनी परम्परा में उपनयन संस्कार से संस्कारित होते आचार्यकुलम् के विद्यार्थी (बाएँ) तथा विदेशी बहनों में कुछ इस प्रकार दिखा यज्ञोपवीत संस्कार का उत्साह (दाएँ)

Advertisment

Latest News

परम पूज्य योग-ऋषि श्रद्धेय स्वामी जी महाराज की शाश्वत प्रज्ञा से नि:सृत शाश्वत सत्य ... परम पूज्य योग-ऋषि श्रद्धेय स्वामी जी महाराज की शाश्वत प्रज्ञा से नि:सृत शाश्वत सत्य ...
जीवन सूत्र (1) जीवन का निचोड़/निष्कर्ष- जब भी बड़ों के पास बैठते हैं तो जीवन के सार तत्त्व की बात...
संकल्प की शक्ति
पतंजलि विश्वविद्यालय को उच्च अंकों के साथ मिला NAAC का A+ ग्रेड
आचार्यकुलम् में ‘एजुकेशन फॉर लीडरशिप’ के तहत मानस गढक़र विश्व नेतृत्व को तैयार हो रहे युवा
‘एजुकेशन फॉर लीडरशिप’ की थीम के साथ पतंजलि गुरुकुम् का वार्षिकोत्सव संपन्न
योगा एलायंस के सर्वे के अनुसार अमेरिका में 10% लोग करते हैं नियमित योग
वेलनेस उद्घाटन 
कार्डियोग्रिट  गोल्ड  हृदय को रखे स्वस्थ
समकालीन समाज में लोकव्यवहार को गढ़ती हैं राजनीति और सरकारें
सोरायसिस अब लाईलाज नहीं