स्वाभाविक राष्ट्र भारत का गौरवशाली इतिहास
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प्रो. कु सुमलता केडिया
वर्तमान भारत अत्यंत प्राचीनकाल से एक स्वाभाविक राष्ट्र है और 1922 ईस्वी तक इसमें अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश के नाम से जाने जा रहे वर्तमान क्षेत्र (देश) शामिल थे तथा श्रीलंका, म्यांमार और नेपाल को भी एक ही बड़े स्वाभाविक राष्ट्र के अङ्ग माना जाता था।
वर्तमान भारत अत्यंत प्राचीनकाल से एक स्वाभाविक राष्ट्र है और 1922 ईस्वी तक इसमें अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश के नाम से जाने जा रहे वर्तमान क्षेत्र (देश) शामिल थे तथा श्रीलंका, म्यांमार और नेपाल को भी एक ही बड़े स्वाभाविक राष्ट्र के अङ्ग माना जाता था।
रत एक स्वाभाविक राष्ट्र है और विश्व के स्वाभाविक राष्ट्रों में सबसे बड़ा है। अपने वर्तमान सिकुड़े हुए रूप में भी भारत अर्थात् 15 अगस्त 1947 के बाद का खण्डित भारत भी दुनियाँ का सबसे बड़ा स्वाभाविक राष्ट्र है। क्षेत्रफल की दृष्टि से इससे बड़े केवल 6 राष्ट्र हैं और जनसंख्या की दृष्टि से केवल चीन इससे बड़ा है। अन्य 5 बड़े राष्ट्र राज्य हैं:- संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, ब्राजील, सोवियत संघ और ऑस्ट्रेलिया।
ये छहों बड़े राष्ट्र अस्वाभाविक हैं-
1- संयुक्त राज्य अमेरिका के नाम से ही स्पष्ट है कि वह अनेक राज्यों को मिलाकर बना एक संघ है और स्वाभाविक राष्ट्र नहीं है। वर्तमान संयुक्त राज्य अमेरिका में यूरोप से जाकर रह रहे लोग ही शासन में हैं। वहाँ के स्वाभाविक बाशिंदे और नागरिक आज उस राष्ट्र के मालिक नहीं हैं। यहाँ तक कि इसका नाम भी अस्वाभाविक है। इसका अपना मानो कोई नाम ही वर्तमान में वहाँ रह रहे और शासन कर रहे लोगों की स्मृति में नहीं है।
12२- दूसरा बड़ा राष्ट्र राज्य है कनाडा- यह भी यूरोप से निकाले गए, भगाए गए अथवा सताए गए और सताए जाने पर यहाँ आकर बसे लोगों के द्वारा आबाद है। यह स्वयं में कोई स्वाभाविक राष्ट्र नहीं है।
3- तीसरा बड़ा राष्ट्र राज्य है ब्राजील, जो दक्षिणी अमेरिका में स्थित है और दूसरे महायुद्ध के पूर्व तक इसका कोई एक स्वतंत्र और बड़े राष्ट्र के रूप में नाम भी विश्व में विदित नहीं था। यह भी यूरोपीय उपनिवेशवादियों के द्वारा बसाया गया है। अत: यह स्वाभाविक राष्ट्र नहीं है।
4- चौथा बड़ा राष्ट्र राज्य है आस्ट्रेलिया, जो स्वयं वहाँ के मूल निवासियों को भगाकर यूरोप से आए हुए तमाम तरह के लोगों के द्वारा आबाद है। इस प्रकार वह भी कोई स्वाभाविक राष्ट्र नहीं है।
5- पाँचवाँ बड़ा राष्ट्र राज्य था सोवियत संघ जो अब विखंडित हो गया है। रूस का वर्तमान बड़ा रूप भी बीसवीं शताब्दी में एशिया के बड़े भूभाग पर जबरन कब्जे के कारण बना है। इसके अनेक टुकड़े हो चुके हैं। अत: यह स्वयं में एक अस्वाभाविक राष्ट्र राज्य है।
6- चीन का वर्तमान रूप 1947 ईस्वी उपरान्त बढ़ाया गया है और अस्वाभाविक है। मूल चीन तो प्रशांत महासागर कीमत तट पर पीत सागर से सटा बीजिंग से हेनान तक फैला छोटा सा इलाका था (देखें china : a history by John Keay, page 8-9, harper, london, 2008)। प्रशांत महासागर से लगा हुआ यह एक छोटा सा क्षेत्र था। यह द्वितीय महायुद्ध के बाद सोवियत संघ के द्वारा विशेष रूप से बढ़ाया। यद्यपि प्रथम महायुद्ध के बाद ही इसकी शुरुआत कर दी गई थी। इसके अनेक हिस्से ऐसे हैं जो 1947 तक स्वतंत्र और स्वाभाविक राष्ट्र थे, जैसे तिब्बत, जिसे जवाहरलाल नेहरू ने चीन को सौंप दिया। इसी प्रकार अक्साई चिन का इलाका या उत्तर के अनेक इलाके चीन के स्वाभाविक अङ्ग नहीं रहे हैं। इस प्रकार वर्तमान चीन एक अस्वाभाविक राष्ट्र है।
मंगोलिया और मंचूरिया का बहुत बड़ा हिस्सा कम्युनिस्ट चीन ने सोवियत संघ के सहयोग से दबाया है और इस प्रकार इन पर उसका अवैध कब्जा है और वे चीन राष्ट्र के स्वाभाविक अङ्ग नहीं हैं। इसके स्थान पर वर्तमान भारत अत्यंत प्राचीनकाल से एक स्वाभाविक राष्ट्र है और 1922 ईस्वी तक इसमें अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश के नाम से जाने जा रहे वर्तमान क्षेत्र शामिल थे तथा श्रीलंका, म्यांमार और नेपाल भी एक ही बड़े स्वाभाविक राष्ट्र के अङ्ग माने जाते थे। इस तरह भारत सदा से एक स्वाभाविक राष्ट्र है। 15 अगस्त 1947 के बाद इसका आकार बहुत सिकुड़ गया। तब भी भारत छठे नंबर का बड़ा राष्ट्र और इन सातों में एकमात्र स्वाभाविक राष्ट्र है।
युवान चुवांग (व्हेन त्सांग) के यात्रा वृतांतों से स्पष्ट है कि चीन का तत्कालीन क्षेत्रफल अभी से बहुत कम था। यहाँ तक कि चीन का 'चीन’ नाम भी भारतीयों ने रखा है। चीन स्वयं को ह्वांगहो ही कहता है, जिसका अर्थ होता है मध्यवर्ती राज्य।
शताब्दियों तक चीन भारत का शिष्य देश रहा है और वह कभी भी भारत का पड़ोसी नहीं था। भारत के पड़ोस में तिब्बत और तिब्बत के पड़ोस में चीन था। चीनी यात्रियों के यात्रा वृतांत से भी यह स्पष्ट होता है कि चीनी यात्रियों के लिए भारत सुदूर पश्चिम था।
भारतवर्ष की सीमाओं के ऐतिहासिक साक्ष्य
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महाभारत, पुराणों और शास्त्रों में तथा स्वयं महाकवि कालिदास द्वारा रघुवंशम् में भारत की सीमायें वर्णित हैं। महाभारत में भीष्म पर्व के जम्बुखंड विनिर्माण पर्व के 9 वें अध्याय में संजय धृतराष्ट्र को बताते हैं कि भारत वर्ष में 250 जनपद हैं और उनके नाम भी गिनाते हैं जिनमें यवन प्रान्त, बाह्लीक, पारसीक, गांधार, त्रिविष्टप और चीन आते हैं। इस प्रकार वैदिक काल से ब्रिटिश काल तक भारत की सीमाओं की निरंतरता है। इसीलिए भारतवर्ष एक स्वाभाविक राष्ट्र है।
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श्री माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर गुरूजी ने भी यह लिखा है (जो कि उनके लेखों और भाषणों के संग्रह विचार नवनीत में अंकित है, देखें-द्वितीय भाग, अध्याय 9)।उन्होंने कहा है कि भारत का अर्थ है समस्त हिमालय के समस्त उपान्तों और अंतर्गत प्रदेशों सहित हिन्द महोदधि तक फैला समस्त भूखंड जो तीन ओर से समुद्र से घिरा है।
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इससे स्पष्ट होता है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय सरसंघचालक की दृष्टि में भी तिब्बत से लेकर मंगोलिया तक उत्तर में और समस्त मध्य एशिया पश्चिमोत्तर में हजारों साल से भारत के अङ्ग रहे हैं।
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इसके बाद महाकवि कालिदास का साक्ष्य है। रघुवंशम् के चतुर्थ सर्ग में भारतवर्ष की सीमाओं का वर्णन है जिसके अनुसार 3 दिशाओं में महासमुद्र है और उत्तर में समस्त हिमालय क्षेत्र भारत का अङ्ग है। पश्चिमोत्तर में कांबोज, बाह्लीक और उससे भी आगे 7 पर्वतीय जनपद कालिदास के समय भारत के अङ्ग हैं। चीन और मंगोलिया से लेकर हंगरी तक फैले संपूर्ण क्षेत्र को भी सदा से भारत का ही अङ्ग कहा गया है। पश्चिमोत्तर में यवन जनपद सदा भारत का अङ्ग रहा है और पारसीक तो भारत का आंतरिक जनपद है।
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इतना ही नहीं, सम्राट् अशोक और सम्राट् कनिष्क से लेकर महाराजा रणजीतसिंह तक समस्त अफगानिस्तान और बाह्लीक तक का क्षेत्र भारत का अङ्ग रहा है।
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उससे पहले समस्त मद्धेशिया (मध्य एशिया) भारत का ही अङ्ग था क्योंकि उस पूरे क्षेत्र में अन्य किसी राष्ट्र का उल्लेख प्राचीनकाल में नहीं मिलता। केवल नगरों और व्यापार केन्द्रों के ही उल्लेख हैं और वह सभी भारतीय व्यापारियों के ही मुख्य केन्द्र हैं।
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गुरुनानक देव जब मक्का गए तब तक उन्हें यही ज्ञात था कि वहाँ मक्केश्वर महादेव का एक प्राचीन मंदिर है और वह पूरी तरह स्पष्ट थे कि वह भारत के क्षेत्र में ही घूम रहे हैं अर्थात् मक्का तक भारत है, यह गुरुनानक देव के समय स्पष्ट था।
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अशोक के शिलालेख संख्या-8 से प्रमाणित है कि यवन भारतीय नागरिक (प्रजा) थे। वह शिलालेख यावनी लिपि में है। सम्राट् अशोक के बाद भारतीय सम्राट् कनिष्क हुए जिनकी राजधानी पुरुषपुर थी और चीनी तुर्किस्तान तक उनका राज्य था।
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महान् सम्राट् विक्रमादित्य ने रोम के शक शासक को पराजित किया था और बांधकर भारत लाए थे तथा उज्जैन में घुमाकर फिर छोड़ दिया था, इसके अभिलेख हैं।
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इस प्रकार भारत की सीमाएं प्राचीनकाल से ही स्पष्ट निरूपित हैं और इसीलिए भारत एक सनातन स्वाभाविक राष्ट्र है।
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वातापी के चालुक्य शासक ब्रह्मदेश यानी म्यांमार तक शासन करते थे। इसके ऐतिहासिक अभिलेखीय साक्ष्य हैं। पुलकेशिन प्रथम एवं पुलकेशिन द्वितीय दोनों ने अश्वमेध यज्ञ किया था।
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पूर्वी चालुक्यों ने 12वीं शताब्दी ईस्वी में म्यांमार तक शासन किया। और भी अनेक देशों में शासन किया और वहाँ सभ्यता और संस्कृति का विस्तार किया।
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महाराजा रणजीतसिंह के समय तक अफगानिस्तान भारत का ही अङ्ग था और बीसवीं शताब्दी ईस्वी के आरम्भ में भी भारत राष्ट्र से आशय वर्तमान नेपाल, म्यांमार और श्रीलंका सहित अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बांग्लादेश था। 1922 ईस्वी तक अफगानिस्तान भारत ही था। इस समस्त क्षेत्र में भारतीय नरेशों का शताब्दियों शासन रहा और स्वयं अफगान मूलत: भरतवंशी हैं और पाटन के क्षत्रियों तथा अन्य नागरिकों को ही वर्तमान रूप में पठान कहा गया है, यह बात बीसवीं शताब्दी ईस्वी के आरंभ में अनेक ब्रिटिश एवं अन्य यूरोपीय लोगों ने कही है, जिनमें अलेक्जेंडर डाउ मुख्य है (देखें, अलेक्जेंडर डाउ, दि हिस्ट्री ऑफ हिन्दोस्तान, दिल्ली रीप्रिंट 1973, मूल प्रकाशक : एस. बेकार्ट, लन्दन,1770 ईस्वी)।
अत्यंत प्रामाणिक ऐतिहासिक साक्ष्य हैं भारत के पास
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भारत का इतिहास अत्यंत प्राचीन है। महाभारत के समय से तो भारतीय इतिहास के सभी तथ्य विस्तार से अभिलिखित हैं अर्थात् आज से 5,150 वर्ष पूर्व से भारत का इतिहास विस्तार से अभिलिखित है। महाभारत 3,138 ईसापूर्व में हुआ और 3,102 ईसापूर्व से कलियुग का प्रारंभ हुआ। तब से अब तक के समस्त ऐतिहासिक तथ्यों का विवरण हमारे पुराणों, इतिहास ग्रंथों, अभिलेखों, ऐतिहासिक एवं अन्य प्रमाणिक स्रोतों में उपलब्ध हैं।
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पुलकेशिन द्वितीय के ऐहोल अभिलेख में स्पष्ट लिखा है कि अभिलेख के समय तक कलयुग के 3,735 वर्ष बीत चुके हैं। ऐहोल अभिलेख 634 ईस्वी का है। इसी प्रकार 943 ईस्वी में लिखे गए चोल सम्राट् परान्तक प्रथम के अभिलेख में कलियुग के 4,044 वर्ष बीत जाने का उल्लेख है। वैसे तो महाभारत युद्ध के भी 5,00,000 वर्ष पूर्व तक का प्रामाणिक इतिहास भारतीय भाषाओं में उपलब्ध हैं।
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परंतु महाभारत में तो सेनाओं और शस्त्रों का संपूर्ण वैभव विस्तार से वर्णित है और वह स्वयं में इतिहास ग्रंथ ही कहा जाता है।
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इन लगभग 5,200 वर्षों में 3,000 वर्षों तक भारत वर्ष की केन्द्रीय राजधानी हस्तिनापुर थी। उसके पहले कई हजार वर्षों तक भारत वर्ष के चक्रवर्ती सम्राटों की राजधानी अयोध्या रही। हस्तिनापुर के बाद पाटलिपुत्र भारत की राजधानी रही। शिशुनाग वंश, नंद वंश, मौर्य वंश और शुंग वंश की राजधानी पाटलिपुत्र थी। 1,161 वर्षों तक पाटलिपुत्र भारत के चक्रवर्ती सम्राटों की राजधानी रहा। इसके बाद प्रतिष्ठान या पैठन सातवाहन चक्रवर्ती सम्राटों की राजधानी 506 वर्ष रहा।
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फिर ईसापूर्व 328 में द्वितीय गुप्त सम्राट् समुद्रगुप्त ने सातवाहनों को पराजित किया और तब से लगभग 1,000 वर्षों तक पाटलिपुत्र पुन: भारत के चक्रवर्ती सम्राटों की राजधानी रहा।
पुराणों में वर्णित है भारतीय राजवंश
पुराणों में भारतीय राजवंशों का विशद प्रामाणिक विवरण है। ऋषभ पुत्र भरत के द्वारा शासित जंबूद्वीप का खंड भरतखंड और भारतवर्ष कहलाया। एक अन्य मत से मूलत: स्वयं मनु ही भरत हैं क्योंकि प्रलयकाल के बाद उन्होंने इस खण्ड का विशेष पालन पोषण किया। एक अन्य मत से मनु पुत्री इला के वंश में पुरु हुए। उस कुल में विश्वविजयी सम्राट् दुष्यंत के पुत्र तेजस्वी सर्व दमन भरत हुए, जिनके कारण यह देश भारतवर्ष कहलाया। वस्तुत: भारतवर्ष का नाम दुष्यंत पुत्र भरत से बहुत पहले से है और इसलिए मनु को ही भरत मानना उचित है।
यदि आधुनिक काल की ही बात लें तो महाभारत के समय से ईसा पूर्व छठी शताब्दी तक तो भारत पर किसी ने भी आक्रमण का साहस नहीं किया। जबकि उसी समय में विश्व के सभी क्षेत्रों में अनेक आक्रमणकारी निरंतर आक्रमण कर रहे थे। इसका अर्थ है कि महाभारत के बाद भी 3,000 वर्षों तक भारत पूर्ण स्वाधीन और अपराजेय रहा। यह कोई सामान्य बात नहीं है।
वर्तमान में यूरोप के राज्य के किसी भी क्षेत्र का कोई इतिहास नहीं हैं और बाद का जो इतिहास मिलता है, उससे केवल यह पता चलता है कि उस क्षेत्र के राज्य एक दूसरे के पराधीन ही होते रहे हैं।
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