महर्षि कपिल

महर्षि कपिल

आचार्य प्रीतम

    ऋषि-मुनियों के रूप में इन महान् आत्माओं ने हमारे समक्ष हमारे कल्याण के लिए अखण्ड तथा शाश्वत विचार व्यक्त किये जो कि अनन्त कालों तक अज्ञानरूपी समुद्र से तरण के लिए एक विशाल नौका का काम करते रहेंगे।
 दिकाल से इस रहस्यमयी विश्व-पहेली ने मानव मस्तिष्क को सदा से व्यथित किया है और न जाने कब तक करती रहेगी। इस व्यथा को सुलझाने के लिए अनेक प्रखर-प्रज्ञावान् तपस्वी महापुरुषों ने अपना पूरा जीवन न्यौछावर कर दिया है। इस पहेली को अनेक तपस्वी महापुरुषों ने सांसारिक विषय भोगों को तिलाञ्जलि देकर सुलझाया और सामान्य चेतना के स्तर पर जीने वाले लोगों के लिए एक ज्योति जलाने का काम किया, जिससे कि ये सभी लोग उस चेतना के परम शिखर पर पहुँच कर अपने जीवन को कृतार्थ कर सकें।
उन कारुणिक महापुरुषों की करुणा और नि:स्वार्थ भाव से लोकोपकार कर्मसमुच्चय का ही परिणाम है कि आज हम इस स्थिति में हैं तथा कुछ सोचने, समझने का प्रयास करते हैं। यह कहना सर्वथा उचित ही है कि हम आज जो भी सत्यासत्य, धर्माधर्म, पुण्यापुण्य कर्मों को नीरक्षीर विवेकी होकर विवेचन करने का सामथ्र्य रखते हैं, तो यह उन्हीं महान्, जितेन्द्रिय, तपस्वी महापुरुषों के तप पुञ्ज का ही प्रताप है, जिन्होंने स्वार्थ की भावना को त्यागकर संयमित तथा अपरिग्रही जीवन व्यतीत करके हमारे मार्गदर्शक बने। वैसे तो इस वैदिक आध्यात्मिक परम्परा में असंख्य महापुरुष ऋषिमुनि हुए, जिन्होंने हमारा पथ प्रदर्शन कराया किन्तु हम कुछेक सीमित महापुरुषों को ही जान पाये हैं, जिनके संदर्भ में हम परम्परा से कुछ जानते और सुनते चले आ रहे हैं।
ये ऐसे महापुरुष हुये हैं जिनमें लोकैषणा का बीज भी प्रतीत नहीं होता तथा जो स्वयं के द्वारा रचित ग्रन्थों पर भी अपना हस्ताक्षर करने में पुण्य ह्रास तथा अहं भावना को पुष्ट करने के समान समझते थे। अनेक ऋषि-मुनि ऐसे हुए हैं जिन्होंने देश, धर्म, संस्कृति के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। उनमें से अनेक नाम आज इतिहास के पन्नों पर नहीं हैं। उन महापुरुषों के जीवन के बारे में हमारे अन्दर आज तक जिज्ञासा बनी रही कि उनके जीवन से प्रेरणा को प्राप्त करके हम भी अपना जीवन कृतार्थ कर सकें।
ऋषि-मुनियों के रूप में इन महान् आत्माओं ने हमारे समक्ष हमारे कल्याण के लिए अखण्ड तथा शाश्वत विचार व्यक्त किये जो कि अनन्त कालों तक अज्ञानरूपी समुद्र से तरण के लिए एक विशाल नौका का काम करते रहेंगे।
आश्चर्य की बात तो यह है कि विचारों का वैविध्य होने पर भी किसी भी बुद्धिजीवी का विरोध नहीं है। यह सक्रिय, प्रखर तथा स्वस्थ मस्तिष्क का चिन्ह है। इसको इसी सीमा में रखकर हमें अपने वैयक्तिक जीवन तथा समाज के उत्कर्ष के लिए इनके विचारों का सम्बल लेना चाहिए।
इन्हीं महापुरुषों में एक महापुरुष महर्षि कपिल के नाम से इस धरा धाम पर अवतरित हुए जिन्होंने इस जगत् को एक आध्यात्मिक दिशा देने का काम किया। भारतीय जनश्रुति के आधार पर महर्षि कपिल आदि-दार्शनिक विद्वान् थे जिन्होंने अमृतरूपी वेद के गूढ़ तथा दार्शनिक विमर्शों को सांख्य शास्त्र के रूप में हमारे समक्ष प्रस्तुत किया है।
महर्षि कपिल के विषय में कहा जाता है कि यह ब्रह्मा के मानसपुत्र थे। महर्षि कपिल के ही सांख्य शास्त्र पर आधारित एक ग्रन्थ सांख्य कारिका जो ईश्वर कृष्ण की रचना है। यह कारिका करते हुए आचार्य गौड-पाद ने लिखा-
इह ब्रह्मसुत: कपिलो नाम। तद्यथा-
सनकश्च सनन्दश्च तृतीयश्च सनातन:।
आसुरि: कपिलश्चैव वोढ़: पञ्चशिखस् तथा।
इत्येते ब्रह्मण: पुत्रा: सप्त प्रोक्ता महर्षय:।।
इसी पद्य से ठीक मिलता-जुलता तैलंग महोदय का एक पद्य मिलता है।
सनकश्च सनन्दश्च तृतीयश्च सनातन:।
कपिलश्चासुरिश्चैव वोढु: पञ्चशिखस्तथा।
सप्तैते मानसा: पुत्रा ब्रह्मण: परमेष्ठिन:।।
इस पद्य में सात मानसपुत्र- सनक, सनन्दन, सनातन आदि के साथ महर्षि कपिल को भी कहा गया है। उपरोक्त पद्यों से एक बात स्पष्ट है कि महर्षि कपिल के वास्तविक माता-पिता कोई दूसरे थे।
महर्षि कपिल को ब्रह्मा का मानसपुत्र इसलिए कहा गया है कि इनमें ब्रह्म के सदृश अपूर्व वैदुष्य के अद्भुत गुण थे। ऐसा नहीं कि केवल मन से अथवा मनुष्य के संकल्प से किसी व्यक्ति का जन्म हो जाये। यह सर्वथा युक्ति विरुद्ध तथा सृष्टिक्रम के विरुद्ध है।
इनको ब्रह्मा का मानसपुत्र कदाचित् इसलिए बताया गया हो कि इनके जन्म के समय ब्रह्मा ने स्वयं उपस्थित होकर अनेक सूचनाएँ दी थी। अथवा ये ब्रह्मा के समान स्वत: सिद्ध ज्ञानी थे।
महर्षि कपिल का जन्म
इनके जन्म के संदर्भ में बताया जाता है कि प्रजापति के पुत्र सम्राट् मनु की कन्या देवहूति का विवाह कर्दम ऋषि के साथ हुआ था। विवाह के अनन्तर देवहूति ने कई कन्याओं को जन्म दिया। इसके पश्चात् कर्दम ऋषि सांसारिक धर्मों से विरक्त हो चुके थे। कर्दम ऋषि की ऐसी भावना देखकर देवहूति बहुत खिन्न हुई। देवहूति को पुत्र की इच्छा हो रही थी, वह कर्दम को विरक्त होने देना नहीं चाहती थी क्योंकि वह अभी सांसारिक कर्मों में अनुरक्त थी।
देवहूति के इन्हीं संशयों के उच्छेद के लिए इन्हीं के गर्भ से महर्षि कपिल का अवतरण हुआ। तब सरस्वती नदी के किनारे कर्दम ऋषि के आश्रम में मरीचि आदि ऋषियों के साथ ब्रह्मा उपस्थित हुए और बड़ी प्रसन्नतापूर्वक कर्दम से कहने लगे कि 'मैं जानता हूँ कि आपके यहाँ एक ऐसी महान् विभूति का जन्म हुआ है जिसके जन्म धारण का मुख्य उद्देश्य इस धरा-धाम से अविद्याजन्य संशयों को दूर करके विद्या तथा धर्म का प्रचार-प्रसार करना है और यह सिद्ध समुदायों में सबसे श्रेष्ठ सांख्याचार्यों में सुप्रतिष्ठित कपिल नाम से प्रसिद्ध होगा।’
आदि-विद्वान् परमकारुणिक भगवान् कपिल के करुणावशात् मनुष्य मात्र के उद्धार के लिए सांख्यशास्त्र (जिसे मोक्षशास्त्र भी कहा जाता है) जैसा कालजयी ग्रन्थ रचकर अद्वितीय एवं अविस्मरणीय कार्य किये। इस ग्रन्थ के सिद्धांतों से संस्कृत वाङ्मय भरा पड़ा है। यह अत्यन्त प्राचीन दर्शन है। बौद्ध पण्डित अश्वघोष ने अपने बुद्धचरित नाम के काव्य में भगवान् बुद्ध के गुरु आचार्य अराड को सांख्यशास्त्र का वेत्ता कहा है। इन्हीं से भगवान् बुद्ध भी सांख्य पढ़े थे। इस प्रकार से महर्षि कपिल भारतीय ज्ञान परम्परा में एक गरिमामयी स्थान रखते हैं। जो प्रत्येक मुमुक्षुओं (दु:ख से दूर हटने की इच्छा करने वाले) को भवसागर से पार कराने के लिए इनके मन मस्तिष्क में बैठकर कुशल नाविक की भाँति तरण करवाते रहेंगे।
 

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