चिकित्सा शास्त्र का उपयोगी घटक 'गुग्गुल’

चिकित्सा शास्त्र का उपयोगी घटक 'गुग्गुल’

डॉ. डी.एन. तिवारी, पूर्व  चिकित्साधिकारी, चम्पावत

इंटरनेट, पिंरट मीडिया, इलेक्ट्रानिक मीडिया और चिकित्सा वैज्ञानिक समुदाय में आजकल मानव चिकित्सा हेतु गुग्गुल की उपयोगिता बहुत विशेष मानी जा रही है। हजारों वर्षों से भारतीय चिकित्सा पद्धति में मोटापे, गठिया और कई प्रकार की हृदय संबंधी समस्याओं को ठीक करने वाले गुग्गुल की औषधीय क्षमता को अमेरिकी शोघकर्ताओं ने अपनी प्रयोगशालाओं में कठिन परीक्षणों के उपरांत निर्विवाद रूप से अव्वल पाया।
हॉस्टन स्थित 'बेयलर कालेज ऑफ मेडीसन’ के डेविड मूर चिकित्सा वैज्ञानिक के विज्ञान पत्रिका साइंस में प्रकाशित एक लेख में कहा गया कि काँटेदार गुग्गुल भारतीय चिकित्सा पद्धति में ६०० ईसा पूर्व से मोटापे सहित धमनियों की कई बीमारियों के उपचार स्वरूप प्रयोग किया जाता रहा है, उन्होंने शोध में पाया कि गुग्गुल  अर्क का अत्यन्त सक्रिय तत्व स्टेरॉयड गुग्गुल स्टेरॉन कोशिकाओं के फार्नेस्वॉयड एक्स रिसेप्टर (स्न ङ्ग क्र) की सक्रियता को रोक देता है, जिससे कॉलेस्ट्रॉल पित्त अम्ल के रूप में परिणत हो जाता है। लेकिन यह प्रक्रिया बहुत तेजी से हो, तो शरीर को कॉलेस्ट्रॉल से मुक्ति पाने का यथेष्ट अवसर नहीं मिल पाता। परिणामत: शरीर में कॉलेस्ट्रॉल की मात्रा बढ़ने से हृदय रोगों के खतरे बढ़ जाते हैं, जबकि गुग्गुल आमाशय में पैदा होने वाले अम्ल को प्रभावित कर कॉलेस्ट्रॉल नियमित करता है।
अमेरिका में किये गये इस शोध से यह साबित हो गया है कि यदि कॉलेस्ट्रॉल का स्तर अधिक हो तो गुग्गुल उसे कम तो करता ही है, कॉलेस्ट्रॉल नियंत्रक अन्य दवाओं के साथ बेहतर संयोजन भी कर लेता है।
आयुर्वेदानुसार गुग्गुल कड़वा, उष्ण वीर्य, पित्तकारक, मृदु विरेचक, पाक में चरपरा, हड्डी को जोड़ने वाला, वीर्यवर्धक, स्वर को सुधारने वाला, उत्तम रसायन, प्रमेह, पथरी, कुष्ठ, आमवात, बवासीर, गण्डमाला और कृमि रोग को नष्ट करने वाला प्रमुख घटक है। यह मधुर रसयुक्त होने से वात, कसैला होने से पित्त और कटु होने से कफ नष्ट करता है, इसलिए गुग्गुल त्रिदोषनाशक भी कहा जाता है। ताजा गुग्गुल वीर्यवर्धक और बलकारक होता है, जबकि पुराना गुग्गुल शरीर को दुर्बल करने वाला और अनिष्ट कारक माना जाता है।
मूर एवं उनके शोध दल के साथियों ने गुग्गुल अर्क के कॉलेस्ट्रॉल कम करने के प्रभावों की बेहतर समीक्षा के लिए चूहों को अध्ययन का आधार बनाया। शोध दल ने उन्हें भोज्य पदार्थ खिलाए। तत्पश्चात उनके लिवर में कॉलेस्ट्रॉल का स्तर मापा गया। स्पष्टत: यह स्तर काफी अधिक था। दूसरे समूह के चूहों को उच्च कॉलेस्टॉल वाला भोजन खिलाए जाने के साथ ही गुग्गुल स्टेरॉन दिया गया एवं पाया गया है कि उनके लीवर में कॉलेस्ट्रॉल का स्तर उच्च कॉलेस्ट्रॉल वाला भोजन खिलाएँ जाने से पूर्व जितना ही था।
आज अमेरिका के इस शोध परिणाम के प्रचार में आ जाने के बाद जिस गुग्गुल की चर्चा तेज हो गयी है, वह बाणभट्ट की चिकित्सा शास्त्र में ढ़ाई-तीन हजार वर्ष पूर्व (मेदोरोग) अथवा मोटापे के सफल उपचार का सशक्त माध्यम मानी जाती थी, उन्होंने गुग्गुल को रक्त में अवांछित वसा का स्तर कम करने वाली औषधि माना है। विभिन्न वसा के शरीर में इकट्ठा हो जाने से पैदा होने वाले 'हाइपरलिपेमिया’ रोग के ईलाज में इसके व्यापक प्रयोग का वर्णन बाणभट्ट के औषध लेखन में मिलता है। आमवात दोष के कारण होने वाला 'गठिया (रियूमैटिक)’ के सफल इलाज का वर्णन भी इसमें मिलता हैं।
आयुर्वेदिक ग्रंथों में गुग्गुल की औषधीय महत्ता का बहुत वर्णन मिलता है।
महर्षि चरक ने इसे मेदोरोग शामक (रक्त में वसा स्तर कम करने वाला), वात (गठिया की स्थिति) शामक माना। चरक संहितानुसार इसका इस्तेमाल कुष्ठ, त्वचा रोग, भगंदर, इन्द्रलुप्त (गंजापन), सोराइसिस, अर्श, श्वेतप्रदर सहित स्त्री जननांगों के रोग और साइनस की सूजन सहितयौन-शिथिलता जैसे रोगों के उपचार में किया जाता हैं। शिलाजीत तथा गो दुग्ध के साथ इसके पाक को उपयोग में लाते हैं।
सुश्रुत ने इसे मोटापे के उपचार में अद्वितीय औषधि बताया है। इसके साथ ही उन्होंने गुग्गुल को हृदय रोग, अरुचि (भूख न लगना), गुल्म (गाँठ), फोड़ा/घाव आदि रोगों के उपचार में उत्तम माना है।
भारतीय वैज्ञानिक सत्यवती ने अपने शोध में पाया कि सीरम लिपिड अर्थात् कॉलेस्ट्रॉल, ट्राइग्लिसाइड्स और फॉस्पोलिपिड्स के साथ ही शारीरिक वजन को कम करने में गुग्गुल पूर्ण रूप से सक्षम है।
आयुर्वेद में गुग्गुल के साथ अन्य औषधीय द्रव्यों को मिलाकर निम्र अनेक दवाईयाँ बनाई जा रही हैं, जो स्वास्थ्यप्रद साबित हो रही हैं, इनमें:-
महायोगराज गुग्गुल
प्रमेह, पाण्डुरोग, सूजन, मंदबुद्धि, प्रसूती रोग, नेत्ररोग, उदर रोग, नष्टार्तव, स्नायुशून्य, कुष्ठ तथा इसके अतिरिक्त उदावर्त, क्षय, गुल्म आदि रोग इस औषधि के सेवन से दूर होते हैं।
कैशोर गुग्गुल
कुष्ठ, व्रण, गुल्म, प्रमेह, पिंडिका, उदर रोग, पाण्डु रोग आदि रोग इस औषधि के सेवन से दूर होते है, कैशोर गुग्गुल उत्तम रसायन भी है, इसके सेवन करने से किशोर अवस्था के समान बल प्राप्त होता है।
त्रिफला गुग्गुल
भगन्दर, गुल्म, सूजन और बवासीर आदि रोगों का नाश इस औषधि के सेवन से होता है।
कांचनार गुग्गुल
इस गुग्गुल को उचित अनुपात के साथ देने से गण्डमाला, अर्बुद, गाँठ, व्रण, भगन्दर, कुष्ठ, गुल्म आदि रोग नष्ट होते हैं।
गोक्षुरादि गुग्गुल
गोक्षुरादि गुग्गुल उचित अनुपातों के साथ प्रमेह, मूत्र कृच्छ्र, प्रदर, मूत्राघात, वातरक्त, वीर्य दोष और पथरी को नष्ट करता है।
सिंहनाद गुग्गुल
सिंहनाद गुग्गुल के सेवन से तिल्ली की वृद्धि, सूजन, उदर रोग, नाभिव्रण, बवासीर, कुष्ठ वातरक्त, पाण्डु रोग आदि दूर होते हैं।
चन्द्रप्रभा गुग्गुल
इसके सेवन से वीर्य और बल बढ़कर वृद्ध मनुष्य भी युवा के समान हो जाते हैं। बवासीर, प्रदर, पथरी, मन्दाग्नि, पाण्डु रोग, क्षय, वीर्यदोष आदि भी इसके सेवन करने से दूर होते हैं।
वस्तुत: गुग्गुल के आत्यंतिक गुणों का विस्तार उसके प्रकारों में समाया हुआ है। भाव प्रकाश के मतानुसार गुग्गुल निम्र पाँच प्रकार का बताया गया है:- महिषाक्ष गुग्गुल भौंरे के रंग के समान काले रंग का होता है। महानील गुग्गुल गहरे नीले रंग का होता है। कुमुद गुग्गुल कुमुद के फूल के समान उज्जवल-धवल रंग का होता है। पद्म गुग्गुल माणिक रत्न के समान लाल रंग का होता है। हिरण्याक्ष गुग्गुल सोने के समान पीत वर्ण वाला होता है, यह गुग्गुल सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। मनुष्यों के रोगों के उपचार हेतु आयुर्वेदिक औषधियों के निर्माण में इसका ही प्रयोग किया जाता है। महिषाक्ष और महानील गुग्गुल का प्रयोग हाथियों के रोगों के इलाज हेतु किया जाता है तथा कुमुद एवं पद्म गुग्गुल का प्रयोग घोड़ों के इलाज के लिए अधिकतर किया जाता है अर्थात् इसका प्रयोग पशुओं के इलाज हेतु किया जाता है।

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