विश्व की जानी मानी कंपनी द्वारा 93 हजार से अधिक मरीजों की जान से खिलवाड़ की दर्दनाक कहानी

जॉनसन एंड जॉनसन ग्रुप द्वारा घटिया हिप इप्लांट्स सर्जरी ने दिया जिंदगी भर का दर्द

विश्व की जानी मानी कंपनी द्वारा  93 हजार से अधिक मरीजों की जान से खिलवाड़ की दर्दनाक कहानी

  • 2009 में ऑस्ट्रेलिया में हिप इम्प्लांट से मरीजोंको दिक्कत हो रही थी और भारत में लाइसेंस लेते समय कंपनी ने हिप इम्प्लांट को सही बताया
2016 में ज्योति शर्मा नाम की एक 52 वर्षीय बुजुर्ग महिला जिसके कुल्हे खराब हो चुके थे जब उसने डॉक्टर को दिखाया तो डॉक्टर ने उसको अच्छी से अच्छी कंपनी के महंगे हिप रिप्लेसमेंट के लिए सुझाव दिया। ज्योति शर्मा अपने दर्द से परेशान हो चुकी थी। उसने डॉक्टर के मुंह मांगे पैसे खर्च करके सितंबर 2006 में हिप रिप्लेसमेंट की सर्जरी करवाई। सर्जरी करवाते हुए डॉक्टर ने सुझाव दिया कि किस कंपनी के आर्टिफिशियल हिप्स बहुत अच्छी मेटल के बने हुए हैं। डॉक्टर ने बताया कि आर्टिकुलेट सरफेस रिप्लेसमेंट (A.S.R.) टाइप के जॉनसन एंड जॉनसन की सहयोगी कंपनी Depuy के बने हुए नकली कुल्हे को सर्जरी के माध्यम से इम्प्लांट करना सबसे अच्छा है। ज्योति शर्मा को उम्मीद थी कि इतनी बड़ी सर्जरी करवाने के बाद तथा लाखों रुपए खर्च करने के बाद उसे कूल्हे के दर्द से मुक्ति मिल जाएगी और वह अच्छी तरह से अपना जीवन जी पाएगी। लेकिन सितंबर 2006 के हिप रिप्लेसमेंट करवाने के तुरंत बाद उसको भयंकर दर्द की शिकायत होने लगी। चिकित्सकों से संपर्क किया तो चिकित्सकों ने कहा कि सामान्य तौर पर सर्जरी के बाद कुछ दिनों तक दर्द होता है, यह दर्द अपने आप ठीक हो जाएगा। अगले 3 सालों में जब उनका दर्द बहुत ज्यादा बढ़ गया और उनके शरीर में तरह-तरह की टोक्सीसिटी से होने वाली दिक्कतें होनी शुरू हुई, तो उनके परिवार व परिचितों ने किसी अच्छे हॉस्पिटल में जांच करवाने के लिए कहा। 2011 में जब उनके शरीर में कोबाल्ट और क्रोमियम के लेवल का चेक करवाया गया तो उनके शरीर में एक बहुत भारी धातु कोबाल्ट और क्रोमियम की बढ़ी हुई मात्रा ट्रेस की गयी।

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इसी बीच 2010 में पूरी दुनिया में जॉनसन एंड जॉनसन ग्रुप के खिलाफ घटिया हिप्स रिप्लेसमेंट सिस्टम के द्वारा होने वाले दर्द व नुकसान की आवाजें पूरी दुनिया में उठनी शुरू हुई। इंडियन एक्सप्रेस की खबर के अनुसार 2012 तक जब ज्योति शर्मा को पूरी दुनिया में जॉनसन एंड जॉनसन के घटिया हिप रिप्लेसमेंट सिस्टम के कारण दुनिया भर से आर्टिफिशियल हिप वापस मंगवाने की जानकारी हुई तो जून 2012 में उन्होंने दोबारा अपना हिप रिप्लेसमेंट करवाया लेकिन फिर भी उनके शरीर में दर्द की शिकायत दूर नहीं हुई तो उन्होंने फार्मा कंपनी पर मुकदमा दायर किया।

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2016 में 52 वर्ष की ज्योति शर्मा ने भारत की राष्ट्रीय उपभोक्ता अदालत में अपनी शिकायत करते हुए हजारों मरीजों की जान से खिलवाड़ करने वह लापरवाही के लिए जॉनसन एंड जॉनसन समूह के खिलाफ अपना मुकदमा दर्ज करवाया। इस बीच 2010 से लेकर 2012 तक पूरी दुनिया में जॉनसन एंड जॉनसन के खिलाफ हजारों मुकदमा दर्ज हो रहे थे तथा हजारों जगह जो अलग मुकदमों में जांच हुई तो उसमें जॉनसन एंड जॉनसन की लापरवाही स्पष्ट तौर पर सामने आ रही थी तथा विदेशों में जॉनसन एंड जॉनसन के ऊपर अदालतों में बड़ा जुर्माना भी किया जा रहा था।

फार्मा कंपनी की सीनाजोरी

लेकिन कंपनी की सीनाजोरी देखिए कि कंपनी ने जुलाई 2016 में राष्ट्रीय उपभोक्ता अदालत में हलफनामा देते हुए कहा कि श्रीमती ज्योति शर्मा की मांग अनुचित है। उन्होंने दलील दी कि ज्योति शर्मा को मुकदमा 2006 से 2012 के बीच करना चाहिए था, जब उन्हें इन प्लांट और ऑपरेशन से दर्द हो रहा था लेकिन तब उन्होंने ऐसा नहीं किया। उनको जब पूरी दुनिया में अमेरिका में केस के बारे में पता चला तो हम पर मुकदमा दर्ज किया है। अगर उनको हमारे हिप रिप्लेसमेंट से दिक्कत थी तो 5 साल उन्होंने मुकदमा दर्ज क्यों नहीं किया। अब क्योंकि वह दोबारा सर्जरी करवाकर अपने इंप्लांट्स निकलवा चुकी हैं तो मुआवजा और हर्जाना देने का कोई सवाल नहीं उठता।
ऐसा कहकर वह कंपनी साफ-साफ अपनी लापरवाही और अपने A.S.R. हिप रिप्लेसमेंट सिस्टम से जो कोबाल्ट और क्रोमियम का जहर रोगियों के शरीर में फैला तथा रोगियों को असहनीय दर्द हुआ उससे अपने आपको बरी कर लिया।
भारत की ही रहने वाली एक और मरीज पूर्णी देवी गोयनका ने भी अपने आप को ठीक करवाने के लिए महंगा उपचार करवाते हुए उच्च स्तर की गुणवत्ता का दावा करने वाली जॉनसन समूह की कंपनी का हिप रिप्लेसमेंट करवाया। जब उनको भी दिक्कत हुई और उन्होंने मुकदमा दायर किया तो कंपनी ने उनको भी ऐसा ही जवाब दिया।
ऐसे ही भारत के एक मरीज विजय आनंद वझाला ने बताया कि सर्जरी के बाद मैंने छ: महीने तक काम नहीं किया। इसके बाद जब नौकरी शुरू की तो चलने फिरने में परेशानी हो रही थी जिस कारण मुझे नौकरी छोड़नी पड़ी। सर्जरी का दर्द सहना पड़ा और सर्जरी के बाद भी मेरा उपचार ठीक से नहीं हुआ तथा अब कंपनी किसी भी प्रकार से मुआवजा देने से भी इंकार कर रही है।

जॉनसन एंड जॉनसन कंपनी का आर्टिफिशियल हिप इम्प्लांट

जॉनसन एंड जॉनसन जो दुनिया की 500 बड़ी कंपनियों में से 36वें नम्बर की बड़ी कंपनियों में से एक है उसकी एक सहयोगी कंपनी Depuy ने पूरी दुनिया में लाखों की संख्या में कुल्हे के दर्द के रोगियों को देखकर अपनी कंपनी की ओर से आर्टिकुलर सरफेस रिप्लेसमेंट A.S.R. टेक्नोलॉजी से हिप इम्प्लांट में उपयोग की जाने वाली मेटल ऑन मेटल टेक्नोलॉजी पहली बार बाजार में पेश की तथा पेश करते हुए यह दावा किया कि 2005 में फार्मा कंपनी को अमेरिका के खाद्य एवं औषधि विभाग से इसकी मंजूरी मिल गई। यह हिप्स इम्प्लांट के बाद रोगियों को राहत देगी लेकिन उनका यह उत्पाद प्रारंभ से ही समस्याओं से ग्रसित था तथा बहुत से ट्रांसप्लांट के समय ही फैलियर हुए। कंपनी के ऊपर मुकदमे चलाए गए तथा आरोप लगाए गए इन्होंने जो हिप इन प्लांट सिस्टम रोगियों को लगाए उन्होंने रोगियों में गंभीर समस्याएं पैदा की, जिससे हजारों रोगियों को दोबारा सर्जरी करवानी पड़ी। दुनिया भर में 93,000 से अधिक लोगों के अंदर आर्टिफिशियल हिप्स ट्रांसप्लांट किया गया Depuy ऑर्थोपेडिक्स के खिलाफ संयुक्त राज्य अमेरिका में पहला मुकदमा 15 जून 2010 को दायर किया गया।

हिप रिप्लेसमेंट से दुनिया भर में समस्याएं

जब दुनिया भर से जॉनसन एंड जॉनसन के खिलाफ मुकदमा दायर होने शुरू हो गए, जिनको भी यह हिप रिप्लेसमेंट किए गए थे उनके अंदर प्रोस्थेटिक बॉल एंड सॉकेट जॉइंट जब आपस में रगड़ते थे तो यह खराब होने लगते थे और इन हिप इन प्लांट जो मेटल नॉनमेटल टाइप के हैं उनमें से क्रोमियम व कोबाल्ट जैसी धातुओं निकलकर खून में मिल जाती थी जिससे मरीजों को कई प्रकार की शारीरिक परेशानियां होती थी। बहुत से मरीजों को दोबारा सर्जरी करके इन हिप रिप्लेसमेंट को निकलवाना पड़ा। पूरी दुनिया में अपने खिलाफ मरीजों की शिकायतों से प्रभावित होकर अगस्त 2010 में जॉनसन एंड जॉनसन ने पूरी दुनिया के बाजारों से अपने ही इम्प्लांट्स को वापस मंगवा लिया।

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दुनिया भर में कंपनी के खिलाफ जुर्माना

जॉनसन एंड जॉनसन पर अमेरिका में पहला मुकदमा जून 2010 को दायर किया गया। मुकदमे में हिप रिप्लेसमेंट को दोषपूर्ण बताते हुए आरोप लगाया गया कि कंपनी को इसकी कमियों की जानकारी थी लेकिन कंपनी ने जानबूझकर रोगियों तथा सर्जन को भविष्य में आने वाली समस्याओं के बारे में नहीं बताया। जब मुकदमों की संख्या हजारों हो गई तो देश भर के दायर सभी मामलों को वहीं आकर उत्तरी जिले में स्थानांतरित कर दिया गया तथा अदालत ने कार्रवाई करनी शुरू की। 2014 में जॉनसन एंड जॉनसन ने स्वेच्छा से यह घोषणा की कि वह 8 हजार से अधिक अलग-अलग हिप इम्प्लांट्स सिस्टम संबंधित मुकदमों का निपटारा करने के लिए $2.5 बिलियन अर्थात् लगभग 20,000 करोड़ रुपए का जुर्माना देने को तैयार है। मई 2019 में कंपनी लगभग 6,000 दूसरे हिप रिप्लेसमेंट मामलों को हल करने के लिए $1 बिलियन अर्थात् लगभग 8,000 करोड़ रुपए का जुर्माना देने के लिए सहमत हुई। जुलाई 2019 तक जॉनसन एंड जॉनसन की सहयोगी Dupuy  हिप रिप्लेसमेंट पर 11,000 से अधिक मुकदमे लंबित थे तथा हजारों पीड़ित ऐसे मरीज थे जिनकी ओर से मुकदमा दायर करने की संभावना शेष हैं।

भारत में मरीजों की दर्दनाक स्थिति

भारत में जॉनसन एंड जॉनसन की सहयोगी कंपनी ने लगभग 360 घटिया हिप रिप्लेसमेंट सिस्टम बेचे थे। मरीजों को जब इस आर्टिफिशियल हिप रिप्लेसमेंट सिस्टम से दिक्कतें होनी शुरू हुई और कंपनी ने किसी भी प्रकार से जिम्मेदारी लेने से बचने की कोशिश की तो भारत सरकार के केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने 8 फरवरी 2017 को एक समिति का गठन किया। समिति ने अपनी रिपोर्ट देते हुए कहा कंपनी ने कुछ मामलों में मरीजों को होने वाले नुकसान की बात को मानी है। जांच रिपोर्ट में समिति ने कंपनी की जमकर खिंचाई की समिति ने कहा कि ये हिप रिप्लेसमेंट बेहद घटिया सामग्री के इस्तेमाल से बने हैं। जिन 36 मरीजों को यह रिप्लेसमेंट सिस्टम लगा है उनका कोई अता पता नहीं है तथा कंपनी भी उनके बारे में जानकारी उपलब्ध नहीं करवा रही। लगभग 4 लोगों की मौत हो गई है।
समिति ने सिफारिश की कि कंपनी हर एक प्रभावित मरीज को 20,00,000 रुपए मुआवजा दें तथा अगस्त 2025 तक सभी मरीजों के खराब सिस्टम को बदले। समिति ने आगे सिफारिश की कि सरकार कंपनी से मुआवजा दिलवाने के लिए एक हाई लेवल कमेटी का गठन करें जिससे उन मरीजों को जिनकी जान को खतरा है, उनका हर साल चेकअप हो, मंत्रालय उनके लिए एक्सपर्ट टीम बनाएं जो मरीजों के मुकदमों का तेजी से निस्तारण करवाएं।
दु:खद बात यह है कि कंपनी को पूरी दुनिया में इन सिस्टम से होने वाले नुकसान के बारे में जानकारी थी लेकिन फिर भी उसने भारत में ऐसे ही प्लांट सिस्टम बेचे, जिससे पूरी दुनिया में नुकसान हो रहा था। दूसरे शब्दों में कहें तो उन्होंने भारत के मरीजों के दर्द व सुरक्षा की कोई चिंता नहीं की। केवल अपना मुनाफा कमाने के लिए पूरी दुनिया में रिजेक्ट किए गए इम्प्लांट भारत में बेचती रही।
4 वर्ष पहले दिल्ली हाईकोर्ट ने कंपनी को मंत्रालय के निर्देशानुसार 25,00,000 प्रत्येक पीड़ित रोगी को देने का निर्देश किया तथा कहा कि इस मुआवजे के बाद भी मरीजों का अधिकार रहेगा कि वह कंपनी के खिलाफ दावा कर सकते हैं।

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