बुढ़ापे का रोग प्रोस्टेटाइटिस एवं प्रोस्टेट कैंसर
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डॉ. नागेन्द्र 'नीरज’
निर्देशक व चिकित्सा प्रभारी - योग-ग्राम, पतंजलि योगपीठ, हरिद्वार
पचास वर्ष की आयु के बाद पैंतीस प्रतिशत लोगों में प्राय: रात्रि को बार-बार पेशाब जाने की शिकायत हो जाती है। बूँद-बूँद करके पेशाब आता है। मूत्राशय में संचित मूत्र एक साथ नहीं निकल पाता है। ज्यादा जोर लगाकर मूत्र त्याग हेतु प्रयास करना पड़ता है, फिर भी पूर्ण सफलता नहीं मिलती है।
प्रौढ़ावस्था के लोग इस प्रकार की शिकायत करते हुए मिले तो समझ जाइये कि वे पौरुष ग्रंथि की वृद्धि इनलार्जमेंट ऑफ प्रोस्टेट ग्लैंड या पौरुष ग्रंथि की सूजन अर्थात् प्रोस्टेटाइटिस से ग्रस्त हैं। कुछ लोगों में प्रोस्टेटाइटिस से उत्पन्न संवेदना रतिसुख की तरह लहरें उत्पन्न करती हैं।
मूत्र एक साथ बाहर नहीं निकल पाने के कारण मूत्राशय में संचित मूत्र सड़ने लगता है। मूत्राशय में संक्रमण पैदा हो जाता है। कभी-कभी मूत्राशय के साथ समस्त मूत्र यंत्र ही संक्रमित होकर सूज जाता है। सामान्य अवस्था में मूत्र हमेशा स्वच्छ एवं पारदर्शी होता है। संक्रमण के कारण पेशाब धुंधला एवं गंदा हो जाता है तथा समय पर समुचित उपचार नहीं करने से संक्रामक रोग एवं अन्य जटिलतायें पैदा हो जाती हैं। दोनों गुर्दे खराब, निष्क्रिय एवं अक्षम हो जाते हैं। यूरेमिया की स्थिति पैदा होकर रोगी की मृत्यु तक हो सकती है। प्रत्येक गुर्दे 150 से 200 ग्राम के होते हैं। दोनों गुर्दे एक घंटे में रक्त को छानकर 1 से 2 सी.सी. मूत्र कुल वजन का प्रति किलो ग्राम प्रति घंटा पैदा करते हैं। मूत्राशय की कुल क्षमता 400-500 सी.सी. मूत्र की होती है। दिन भर में 180-200 लीटर खून किडनी द्वारा छनता है, जिसमें 2.५ लीटर मूत्र के रूप में बाहर निकलता है। माँसपेशियों की तंतुओं से बनी नौ से दस इंच लम्बी मूत्र नली यूरेटर द्वारा पेशाब गुर्दे से मूत्राशय में आकर जमा होता है। गुर्दे में करीब 20 लाख फिल्टर यूनिट होते हैं, जो 24 घंटे में दो सौ लीटर खून छानकर रक्त शुद्ध करते हैं। इनमें केवल दो-ढ़ाई लीटर पेशाब जिसमें यूरिया, क्रिटनिन, नमक आदि वेस्ट टॉक्सिक मैटर मूत्राशय में जमा होकर मूत्र नली द्वारा बाहर निकल जाता है। रक्तदाब को नियमित बनाये रखने तथा लाल रक्त कणों के सृजन में भी गुर्दे अपनी भूमिका अदा करते हैं। मूत्राशय में कुल 400 से 500 मिली. तक मूत्र जमा हो सकता है। इसकी दीवारें मजबूत इलास्टिक की तरह लचीली माँसपेशियों से बनी होने के कारण मूत्र को मूत्र नली से पूर्णतया बाहर निकालने में सक्ष्म होती हैं।
पुरुषों में मूत्राशय की ग्रीवा के नीचे मूत्र नली जहाँ से शुरू होती है। उसी के दोनों तरफ इर्द-गिर्द 9-9 ग्राम की लम्बी अखरोट के आकार की प्रोस्टेट ग्रंथि जुड़ी होती है। यह बाहरी नली के प्रथम भाग को घेरे रहती है। प्रोस्टेट ग्रंथि एक दूधिया तरल पदार्थ बनाता है। यह वीर्य का महत्त्वपूर्ण हिस्सा है। यह शुक्राणुओं को पोषण, भोजन एवं शक्ति प्रदान कर उन्हें सक्रिय बनाता है।
प्रौरुष ग्रंथि या प्रोस्टेट ग्लैण्ड के कारण ही पुरुषों में मूत्र नली आठ इंच लम्बी तथा महिलाओं में मात्र दो इंच लम्बी होती है। प्रोस्टेट ग्लैण्ड लैंगिक अवयव है, जो रति क्रिया में सहभागी है। यह मूत्राशय में खुलता है। रति क्रिया के दौरान यह एक दूधिया क्षारीय द्रव पैदा करती है, जो वीर्य के निर्माण तथा सहवास में सहायता करता है। प्राय: उम्र बढ़ने के साथ यह ग्रंथि बड़ी हो जाती है। पौरुष ग्रंथि के बढ़ जाने से मूत्राशय की ग्रीवा पर दबाव बढ़ जाता है। कई बरसों के दौरान धीरे-धीरे इसके आकार में वृद्धि प्रारम्भ हो जाती है। मूत्राशय पर नियंत्रण की खराबी से अनेक समस्यायें पैदा होती है।
प्रोस्टेट वृद्धि से मूत्र निष्काषक नली यूरेथ्रा पर दबाव के कारण मूत्राशय ज्यादा देर तक फैला रहता है। परिणाम स्वरूप मूत्राशय की माँसपेशियों के लचीलेपन में कमी आने लगती है। पेशाब के अतिरिक्त दबाव के दुष्प्रभाव से गुर्दे में स्थित छानने वाली यूनिट नेफ्रान नष्ट होने लगती है। गुर्दे की क्षमता दुष्प्रभावित होती है। पॉलीसिस्टिक किडनी, पथरी, अतिसार, पेचिश, अधिक उल्टी, जलन, गुर्दे के संक्रमण से फ्ल्यूड की कमी, निम्न रक्तचाप, गुर्दे पर आघात, चोट आदि कारणों से गुर्दे को पूर्ण पोषण तथा रक्त नहीं मिल पाता है। अनेक घातक रसायनों, मिलावटी मसाला, आहार, प्रदूषण तथा औषधियों से गुर्दे के लाखों नेफ्रान यूनिट क्षतिग्रस्त होने लगते हैं। दोनों गुर्दे में कुल 20 लाख फिल्टर यूनिट होती है। इनमें दस लाख से ज्यादा नेफ्रान क्षतिग्रस्त या नष्ट होने पर गुर्दे का कार्य लड़खड़ाने लगता है। किडनी फेल्योर की स्थिति उत्पन्न होती है। गुर्दे के संक्रमण, मधुमेह, पॉलिसीस्टिक किडनी में गुर्दे हमेशा के लिए खराब हो जाते हैं। पेशाब में लम्बे समय तक रूकावट के कारण गुर्दे में स्थायी गड़बड़ी पैदा होती है। अनेक जटिलताएँ उत्पन्न हो जाती हैं। हाथ तथा पैरों में सूजन, भूख नहीं लगना, कमजोरी, खुजली, रक्तचाप की वृद्धि, सर्दी, उल्टी, साँस लेने में कठिनाई, मूत्र कम हो जाना आदि लक्षण रोग की भयावहता का संकेत करते हैं।
मूत्र नली की बनावट में विषमता, मूत्र नली का सँकरा होना, मूत्र नली में वाल्व (कपाट) की खराबी होना, चोट, आघात, सूजाक आदि गुप्त रोगों से भी मूत्र में रुकावट आ सकती है। प्राय: देखा गया है कि 50 साल के बाद शरीर में हार्मोनल असंतुलन होता है। पुरुषों में इस असंतुलन से प्रोस्टेट ग्लैण्ड में वृद्धि या सूजन हो जाती है। इस सूजन से मूत्र नली पर दबाव पड़ता है। पेशाब में रूकावट आ जाती है। प्रोस्टेट ग्लैण्ड के कैन्सर में भी मूत्र त्याग में रूकावट आती है। इन तकलीफों के चलते मूत्र त्याग के समय मूत्राशय पर अधिक दबाव डालने पर भी खाली नहीं होता है। बार-बार लघुशंका की इच्छा बनी रहती है। इस दबाव के कारण सूक्ष्म, नाजुक एवं बारीक रक्तवाहिनियों की टूट-फूट से पेशाब में खून आने लगता है।
प्रोस्टेट ग्लैंड की सामान्य एवं आम समस्यायें :
(1) बिनाइन प्रोस्टेटिक हाइपरप्लेसिया:- सामान्यत: 45 से 55 वर्ष के आयु के लोगों में प्रोस्टेट के आकार क्षमता में क्रमश: वृद्धि होने लगती है। अपने स्वाभाविक गोल्फ बॉल के आकार से तीन गुना बढ़ जाता है। आम प्रोस्टेट का आकार क्षमता लगभग 20 से 25 सी.सी. होता है। यदि आकार बढ़कर 25 से ज्यादा होने लगे तो पोस्टवोइड रेसिड्यूअल यूरिन वाल्यूम का पता लगाते है। अधिकतम 80 सी.सी. तक बढ़ने पर चिकित्सक ऑपरेशन की सलाह देते है। यह स्थिति अत्यन्त कष्टप्रद यातनादायी होती है। यूरोफ्लो मीटरी प्रक्रिया से पेशाब की प्रवाह गति तथा बल का पता लगाते है। किडनी फंक्शन टेस्ट भी आवश्यक होता है। ब्लड टेस्ट के द्वारा जी.एफ.आर. जाँच भी करा लेना चाहिए। पी.एस.ए. जाँच भी करा लेना चाहिए। पी.एस.ए. यानि प्रोस्टेट स्पेसिफिक एण्टीजेन ग्लाइको प्रोटीन एन्जाइम है, जो प्रोस्टेट ग्लैड के एपिथलियल सेल्स द्वारा स्रावित होता है। प्रोस्टेट वृद्धि, बेनाइन प्रोस्टेटिक हाइपरप्लेसिया (बी.पी.एच.) प्रोस्टेट के इन्फेक्शन, इन्फ्लामेशन इन्जुरी तथा प्रोस्टेटिक कैंसर में बढ़ जाता है। इसका सामान्य लेवल 0 से 5-0 ठ्ठद्द प्रति द्वद्य होता है। कई लोगों में 5 से 10 नेनोग्राम प्रति मिलीलीटर होने के बावजूद भी कैंसर नहीं होता है। लाल टमाटर उबालकर खाने, दही, छाछ, अंकुरित मसूर, मूंग, चना, ग्रीन-टी, प्रर्याप्त मात्रा में साग-सब्जियाँ, ताजे फल, रोज व्यायाम करने तथा तनाव मुक्तरहने से पी.एस.ए. कम होने लगता है। मूँगफली, बादाम, अखरोट, काजू आदि भीगोकर छिलका हटाकर खायें।
सामान्यत: प्रोस्टेट की वृद्धि उम्र के साथ जुड़ा हुआ है। दूसरा कारण टेस्टिकल्स यानि अण्डकोष से जुड़ा हुआ है। अण्डकोष टेस्टोस्टोरॉन तथा थोड़ी मात्र में स्त्री-हार्मोन एस्ट्रोजन बनाता है। उम्र बढ़ने के साथ या किसी कारण वश टेस्टोस्टेरॉन का लेवन रक्त में कम हो जाता है तथा एस्ट्रोजेन का लेवल बढ़ जाता है, तो बी.पी.एच. का खतरा बढ़ जाता है। एस्ट्रोजन का लेवल बढ़ना भी बी.पी.एच यानि प्रोस्टेट वृद्धि का कारण होता है।
एक अन्य रिसर्च के अनुसार पुरुष हार्मोन डिहाइड्रोटेस्टोस्टरोन (डी.एच.टी.) का प्रोस्टेट ग्रंथि के विकास एवं वृद्धि में मुख्य भूमिका होती है। डी.एच.टी. टेस्टोस्टेरॉन का मेटाबोलाइट्स है, परन्तु डी.एच.टी. टेस्टोस्टेरॉन के मुकाबले 5-6 गुना सर्वाधिक शक्तिशाली होता है। उम्रदराज लोगों में टेस्टोस्टेरॉन का लेवल कम होता चला जाता है तथा डिहाइड्रोटेस्टोस्टेरॉन का लेवल बढ़ता चला जाता है। डी.एच.टी. का लेवल बढ़ने से प्रोस्टेट की कोशिकाए भी बढ़कर प्रोस्टेट वृद्धि रोग पैदा करती है। 40 साल की उम्र तक प्रोस्टेट ग्लैंड की वृद्धि कम ही पायी जाती है। 51 से 60 वर्ष वालों में 50 प्रतिशत 80 वर्ष से ज्यादा उम्र वालों में 90 प्रतिशत प्रोस्टेट वृद्धि के लक्षण पाये जाते है।
१980 ई में विश्व स्वास्थ्य संगठन प्रोस्टेट ग्रंथि की वृद्धि के एक अन्य प्रकार क्लीयर सेल क्रिब्रिफॅार्म हाइपरप्लेसिया (ष्टष्टष्ट॥) जिसमें गांठदार वृद्धि होती है। यह एक प्रकार का आटोइम्यून डिजीज़ है।
प्रोस्टेट गंथि वृद्धि पारिवारिकका इतिहास, मोटापा, हृदय, रक्त संचार संबंधित बीमारी, टाइप-2 डाइबिटीज, नपुंसकता, व्यायाम की कमी आदि मुख्य कारण हैं। प्रोस्टेट ग्रंथि वृद्धि होने पर दिनभर में 8 से 10 बार रूक-रूक कर के पेशाब होने, मूत्र त्याग एवं रतिक्रिया के बाद तीव्र दर्द, मूत्र का असामान्य रंग एवं गंध, मूत्र नली एवं पेशाब में रूकावट, पेशाब के साथ खून, मूत्र नली संक्रमण, गुर्दे की क्षति, पथरी आदि लक्षण दिखते है।
(2) प्रोस्टेटाइटिस:- यह भी चार प्रकार का होता है।
(क) एक्यूट बैक्टीरियल प्रोस्टेटाइटिस में अचानक तीव्र लक्षण होते है।
(ख) क्रोनिक बैक्टीरियल प्रोस्टेटाइटिस- इसमें से लक्षण तीव्र न होकर कम हो जाते है, लेकिन लम्बे अवधि तक चलते है।
(ग) क्रोनिक प्रोस्टेटाइटिस या क्रोनिक पल्विक पेन सिण्ड्रोम के अन्य कई कारण होते है। नर्वससिस्टम की गड़बड़ी, इम्यूनसिस्टम का अस्त-व्यस्त होना, मानसिक तनाव, पूर्व का संक्रमण, सूजन तथा अनियमित हॉर्मोन का स्राव।
(घ) एसिम्प्टोमेटिक इन्फ्लामेटरी प्रोस्टेटाइटिस में कोई कारण नहीं होता है और न कोई लक्षण दिखते है फिर भी प्रोस्टेट का इन्फ्लामेशन सूजन पाया जाता है।
मूत्र त्याग के समय जलन, तड़पन, रूकावट, रात्रि को बार-बार मूत्र त्याग, धूंधला मूत्र, मूत्र में खून, पेट, कमर तथा जंघा मूल, नितम्ब, मूत्रंश, अण्डकोष तथा गुदा द्वार के मध्य दर्द, दर्दनाक वीर्य स्खलन, ठण्ड, ज्वर, मांस पेशीय दर्द आदि लक्षण दिखते है।
युवा एवं मध्यवय का प्रोस्टेट वृद्धि मूत्र तथा प्रजनन संस्था के संक्रमण, एच.आई.वी., एस.टी.डी. आदि यूरिनरी कैथेटर, प्रोस्टेट उत्तको वायोप्सी हेतु सेम्पल लेते समय इन्फेक्शन, इन्जुरी एवं इन्फ्लामेशन के कारण हो सकता है।
प्रोस्टेटाइटिस के कारण खून का संक्रमण बैक्टेरेमिया, नितम्ब एवं रीढ की हड्डी का संक्रमण, प्रोस्टेट का घाव, अण्डकोष नली सूजन, एपिडिडीमाइटिस आदि अन्य उपद्रव हो सकते है।
इसके कारण दुश्चिन्ता, नपुंसकता, ऐरेक्टाइलडिस फंक्शन, वीर्य तथा शुक्राणु के दुष्परिवर्तन होने से बच्चे पैदा करने में अक्षम एवं असमर्थता पैदा होती है।
पेट के निचले हिस्से में मूत्राशय के नीचे मूत्र मार्ग के दोनों तरफ मलाशय के आगे 9-9 ग्राम की प्रोस्टेट ग्रन्थि कुल 18 ग्राम की होती है। टेस्टोस्टोरोन हार्मोन द्वारा यह सक्रिय होकर तरल दूधिया पदार्थ प्रोस्टेटिक फ्ल्युड पैदा करता है, जो सेमिनल वेसिकल्स ग्लैंड से स्रावित द्रव वीर्य के साथ मिलकर शुक्राणु को ताकत, पोषण, गति एवं शक्ति प्रदान करता है। प्रोस्टेटिक फ्ल्युड में जिंक, साइट्रिक एसिड, कैल्शियम, फास्फेटस तीन प्रकार के प्रोटीन एसिड फास्फेट प्रोस्टेट सेल द्वारा पी.एस.ए. का नियमन करता है। पी.एस.ए. प्रोटिएसेस एन्जाइम है, जिसका एण्टीक्लॉटिग प्रभाव थक्का बनाने वाले सिमेनोजेलिन्स को ब्रेकडाउन करके उसे द्रव रूप में शुक्राणु स्खलन को सहज बनाकर गर्भ स्थापना में सहायता करता है।
कैल्सिटोनिन एन्जाइम स्पर्म सेल्स के ग्रीवा से जुड़कर उसके चाल को तेज करता है, ताकि अण्डाणु से शीघ्रता एवं सहजता से मिल सके। प्रोस्टेटिक फ्ल्युड में साइटोकाइन्स तथा असंख्य सूक्ष्म तत्व होते हैं, जिससे सीमेन वॉल्युम बढ़ जाने से गर्भ स्थापना में सहायता मिलती हैं। प्रोस्टेट ग्रंथि में अनेक नलिकाए होती है, जिनसे उपरोक्त प्रोस्टेटिक फ्ल्युड का स्राव होता रहता है और इनका सम्बन्ध वीर्य स्खलन नलिका से जुड़ा होता है। नलिका के अंतिम सिरे फाइब्रोमस्कुलर की मांसपेशीय संकोचक एकिनी कपाट होती है, जो वीर्य स्खलन के समय खुलता है। बाकी समय मूत्र निष्कासन शुक्रवाहिका नली के लिए बन्द रहता है। पुरुषों के दोनों अण्डकोश के वासडिफरेन्स सेमिनल वेसिकलडक्ट से तथा सेमिनलवेसिकल डक्ट एजाकुलेटरी डक्ट यानि वीर्य स्खलन नलिका से प्रोस्टेट फ्ल्युड के साथ सीमेन में मिल जाता है तथा अन्य एन्जाइम एवं पोषक तत्व होते है, जो वीर्य एवं शुक्राणु को शक्तिमान बनाते है। वास्तव में वीर्य शुक्राणु संयुक्त तरल पदार्थ है, जो रति क्रिया या स्वप्न दोष के दौरान होने वाले वीर्य स्खलन के साथ मूत्र मार्ग से निकलता है।
प्रोस्टेटग्लैंड का कैंसर
प्रोस्टेट कैंसर की असामान्य घातक मारक वृद्धि से ट्यूमर या गांठ बन जाती है, इसे प्रोस्टेट कैंसर कहते है। कोशिकाओं के फैलने, विकास एवं वृद्धि के आधार पर से दो भाग में विभाजित किया जा सकता है। यह बहुत तेजी से फैलने वाला आक्रामक या एग्रेसिव तथा धीरे-धीरे फैलने एवं विकसित होने वाला नॉन एग्रेसिव प्रोस्टेट कैंसर कहलाता है।
बुढ़ापा, पारिवारिक इतिहास, मोटापा, काले लोगों में अफ्रीकन, अमेरिकन, नार्थ अमेरिका, नर्दन यूरोप में लाल मांस, धूम्रपान तथा हायर एजीइ कूकिंग प्रोसेस से तैयार आहार का प्रयोग करने वालों में प्रोस्टेट कैंसर होता है।
प्रोस्टेट कैंसर का उपचार एवं सही निदान नही होने पर कैंसर रक्त प्रवाह के द्वारा मूत्राशय, अस्थियों, रीढ की हड्डियों तक पहुच जाता है, जिसका दुष्प्रभाव पैरों तथा मूत्राशय तक पहुँचता है। इसे मेटास्टेटिक कैंसर कहते है।
प्रोस्टेट कैंसर का पता लगाने के लिए प्रारम्भिक जाँच पी.एस.ए. द्वारा की जाती है। पी.एस.ए. वॉल्यूम तथा पी.एस.ए. घनत्व की जाँच होती है। ज्यादा घनत्व कैंसर होने के खतरे का सूचक है। डिजिटल रेक्टल एक्जाम के अपेक्षा डिजीटल रेक्टल एक्जाम के अर्न्तगत विशेषज्ञ डॉक्टर लुब्रिकेटेड ग्लोव्ड अंगूली गुदाद्वार के अन्दर घुसाकर प्रोस्टेट की जाँच करता है। प्रोस्टेट के असामान्यता, टेक्सचर, शेप-साइज का पता लगाने के बाद किसी प्रकार की गड़बड़ी होने पर अन्य जाँच हेतु परामर्श देता है। महिलाओं मे डी.आर.इ. गर्भाशय एवं अण्डाशय के कैंसर के जाँच हेतु किया जाता है। पी.एस.ए. जाँच ज्यादा सटीक है। कभी-कभी कैंसर की स्थिति में पी.एस.ए. का लेबल सामान्य होता है। पेशाब तथा वीर्य के साथ खून आना, मूत्र त्याग अत्यन्त यातनादायी, बार-बार मूत्र त्याग खास करके रात्रि काल में रूक-रूक कर के पेशाब आना अचानक एरेक्टाइल डिसफंक्शन नपुंसकता, नामर्दी की स्थिति होने पर प्रोस्टेट कैंसर की संभावना हो सकती है।
धीरे-धीरे फैलने वाला नन प्रोग्रेसिव कैंसर का उपचार नेचुरोपैथी योग एवं आयुर्वेद के समन्वित प्रयोग से चमत्कारिक लाभ मिलता है। प्रोग्रेसिव उग्र एवं मेटास्टेसिस अस्थि मेटास्टेसिस का उपचार के लिए सर्जरी रेडिएशन, केमोक्रेयो थैरेपी, हार्मोन थैरेपी तथा इम्यूनोथैरेपी दिया जाता है। प्रोस्टेटेट का पूर्णतया आपरेशन के बाद पेशाब पर नियंत्रित का अभाव तथा नपुंसकता, नामर्दी एवं इरेक्टाइल डिस फंक्शन हो जाता है।
रोग के लक्षण
पेशाब में जलन, मूत्र रोक पाने में असमर्थता, शीघ्र लघुशंका, विलम्ब से मूत्र त्याग, बार-बार मूत्र त्याग, मूत्र त्याग की प्रवृत्ति, मूत्र की धार एवं दाब में कमी, कुछ बूँदे कपड़े पर पड़ने, रात्रि को बार-बार पेशाब जाने, मूत्र के हर समय टपकने तथा कपड़ा खराब होने का भय आदि लक्षण परिलक्षित होते हैं। प्रोस्टैट कैंसर में हल्का, गहरा एवं अकड़न-जकड़न स्टीफनेस वाला दर्द, लिंग, अण्डकोष, नितम्ब, कमर, पसली, गुदा, पेडू, ऊपरी जाँघ तथा पेडू में महसूस होता है। भूख एवं वजन की कमी, थकान, मितली तथा उल्टी के लक्षण दिखते है। तीव्र प्रोस्टेटाइटिस में कुछ रोगियों के मूत्र मार्ग से एक पतला चिपचिपा द्रव निकलने लगता है। इस लक्षण को प्रोस्टेटोरिया कहते हैं। रोग ठीक होने पर स्राव रूक जाता है। रोग में संक्रमण होने से दर्द होता है। रोग बढ़ने पर नपुंसकता आ सकती है। कभी-कभी कामुक उत्तेजना बढ़ती है। उपचार नहीं होने पर पेशाब कम होते-होते अचानक रूक सकता है।
प्राकृतिक उपचार
प्राकृतिक उपचार में अन्य रोगों की तरह सारे शरीर में संचित विकार ही पौरुष ग्रंथि की सूजन तथा वृद्धि का मुख्य कारण है। जिसके शरीर में विषाक्त पदार्थ एवं विषमयता अधिक होती है, उसें यह रोग कठिन एवं जटिल हो जाता है।
आधुनिक चिकित्सा के अनुसार तीव्र तथा जीर्ण प्रोस्टेटाइटिस कीटाणुओं के संक्रमण से होता है। तीव्र प्रोस्टेटाइटिस में पेशाब के संक्रमण के सभी लक्षण दिखते हैं। पेरिनियल (गुदा द्वार तथा अण्डकोष के मध्य) क्षेत्र में तीव्र दर्द तथा कम्पन हो सकता है। आरम्भ में माना जाता था कि वृद्धावस्था के कारण अण्डकोष से निकलने वाले पुरुष हार्मोन एण्ड्रोजेन्स तथा स्त्री हार्मोन एस्ट्रोजेन्स की अधिकता के कारण पौरुष ग्रंथि में विकार उत्पन्न होता है। नियोप्लास्टिक टाइप मल्टीपल तन्तुमय कोषों की वृद्धि के कारण पौरुष ग्रंथि का आकार बढ़ता जाता है। इसके बढ़ने से मूत्र प्रेरक यौन क्रिया में वृद्धि तथा ह्नास के लक्षण दिखते हैं। प्रोस्टेट ग्रंथि की वृद्धि या सूजन में फाइब्रोएडीनोसिस, मूत्र मार्ग की वक्रता, मूत्राशय ग्रीवा का तंग होना, मूत्राशय में निरन्तर मूत्र भरे रहने के कारण संक्रमण, प्रदाह, स्थूलता, पथरी, हाइड्रोनेफ्रोटिक, गुदा मार्ग में दबाव के कारण कब्ज, गुदभ्रंश, रक्तार्श आदि रोग होने की संभावना बढ़ जाती है।
पौरुष ग्रंथि तथा इनसे उत्पन्न सभी रोगों में सर्वप्रथम रोगी के पेडू तथा गुदाद्वार पर मिट्टी की पट्टी दें। पेट तथा रीढ़ की मालिश देकर नीम के पत्ते उबले गुनगुने पानी का एनीमा दें। गरम-ठण्डा, कटि स्नान पौरुष ग्रंथि की अत्यन्त कारगर चिकित्सा है। पेशाब में कष्ट होने पर गरम पानी के टब में 30 मिनट बैंठें, पैर बाहर रखें। गरम कटिस्नान से मूत्र नली शिथिल हो जाती है। रूकावट दूर होने से मूत्र त्याग में सहजता होती है। पौरुष ग्रंथि की सूजन कम होती है। टब के अभाव में गुदाद्वार तथा जननेन्द्रिय के मध्य के स्थान पेरिनियम पर तीन मिनट गरम, तीन मिनट ठण्डा क्रम से 5 बार सेक बस्ति प्रदेश पर देकर टी-पैक दें। भीगे-निचोड़कर सूती कॉपिन के ऊपर ऊनी कॉपिन पहनें। यही बस्ति प्रदेश का टी-पैक हैं। दर्द एवं पेशाब में तकलीफ होते ही पैरों की लपेट देकर थैली से पैरों को गरम रखें। दर्द में राहत मिलने पर पैरों को गरम पानी में रखकर गरम-ठण्डा कटि स्नान लें। दर्द की स्थिति में ठण्डा कटि स्थान लेने से तकलीफ बढ़ जाती है। तकलीफ कम होने पर रोगी की स्थिति के अनुसार वाष्प-स्नान, गरमपाद-स्नान, गीली चादर लपेट, थर्मोलियम, सूर्य-स्नान आदि उपचार बदल-बदलकर देने से प्रोस्टेट ग्लैण्ड धीरे-धीरे स्वाभाविक स्थिति में आ जाती है। मूत्र त्याग की कठिनाई दूर होती है। मूत्रावरोध को दूर करने में कैथेटर का प्रयोग अत्यन्त सावधानी से करें, अन्यथा संक्रमण हो सकता है। अश्विनी मुद्रा, मूलबंध तथा दीर्घ श्वसन प्राणायाम करें। योग चिकित्सा में गणेश क्रिया करें।
मल त्याग करते समय बायें हाथ की नाखून कटी हुई मध्यमा या अनामिका अंगुली को गुदा के अंदर प्रवेश कर चारों तरफ तथा आगे की ओर फिराते एवं दबाते हुए मालिश करें इसे गणेश क्रिया या डिजिटल रेक्टल इक्सरसाइज या मसाज कहते हैं। 6 से 8 सेकण्ड तक गिनते हुए सांस निकालें। रात्रि को सोते समय 20 बार यह क्रिया करें। साँस निकालकर गुदा द्वारा तथा मूत्रेन्द्रिय को आन्तरिक बल से ऊपर की ओर खींचते हुए संकोचकर मूलबन्ध करें। मल त्याग के समय तथा दिन में कभी भी घोड़े की तरह गुदा को 25 बार संकोच करें तथा छोड़ें। प्रोस्टेट ग्लैण्ड की मृदुता, कठिनता तथा प्रमाण का पता लग जाता है। रेक्टल म्यूकोसा तथा सैमिनल वैसिकल्स मृदु तथा चौड़ी प्रतीत होती है।
आसनों में उदर शक्ति विकासक क्रिया, वज्रासन, पद्मासन, योगमुद्र्रा, गोमुखासन, उत्तानपादासन, पवनमुक्तासन, शलभासन, भुजंगासन, विपरीत करणी, सर्वांगासन तथा शवासन करें। योग की क्रियायें किसी योग्य योग विशेषज्ञ के निर्देशन में करें। आहार-चिकित्सा, क्षार प्रधान शोधक आहार, ताजे फल, सब्जी तथा अंकुरित अनाज आदि के प्रयोग से तन तथा मन की सफाई करें। एक सप्ताह तक फल तथा सब्जियों के रस पर रहें। आवश्यकता एवं रोग की स्थिति के अनुसार तीन दिन नीबू, शहद, पानी तथा तीन दिन सिर्फ पानी पर उपवास करें। सामान्य आहार में मेथी, पत्तागोभी, पालक, मूली, लौकी, टिण्डा आदि की सब्जी खायें। फलों में अंगूर, पपीता, संतरा, मौसमी, नीबू, नाशपाती, स्ट्राबेरी, आडू, आलु बुखारा तथा सेब खायें। मेथी तथा तिल का अंकुरण खायें। सौ ग्राम तिल, 50 ग्राम गुड़, 15 ग्राम अजवाइन इन तीनों को मिलाकर पन्द्रह लडडू बनायें। एक-एक लडडू सुबह-शाम खायें। पेट ठीक रहने पर भुने चने खा सकते हैं। भोजन में पालक के रस की चार घंटे पूर्व गूँथी चोकर समेत मोटे आटे की रोटी, सलाद, सब्जी पर्याप्त मात्रा में लें। प्रोस्टेट ग्लैण्ड से निकलने वाले स्राव में जस्ता होता है। जस्ता की कमी से प्रोस्टेट ग्लैण्ड सम्बन्धी विकार होते हैं। इसकी आपूर्ति के लिए कद्दू के बीज, मटर, सेम, बेवर्स यीस्ट, दूध, काजू, बादाम, अखरोट भीगोकर छिलका हटाकर नारियल आदि मेवे, गेहँू का अंकुरण, सूर्यमुखी तिल आदि के बीज का प्रयोग अधिक करें।
अमेरिकी पोषण विशेषज्ञ हैरी हॉवेल के शोधों के अनुसार कद्दू के बीज मे एण्ड्रोजन, जस्ता तथा कुछ ऐसे हार्मोन पाये जाते हैं, जो प्रोस्टेट ग्लैण्ड को स्वस्थ रखते हैं। ये हार्मोन यौन क्षमता को बनाये रखते हैं। महिलाओं में यौन हार्मोन को सक्रिय रखते हैं। गर्भधारण की क्षमता को बढ़ाते हैं। स्तन को मजबूत तथा सुडौल बनाते हैं। गुर्दे तथा हृदय रोग से बचाते है।
अमेरिका में शर्वड स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ द्वारा सैंतालीस हजार पुरुषों पर छब्बीस साल तक एक अपूर्व शोध कार्य किया गया। इनमें 46 से 188 पुरुष प्रोस्टेट ग्लैण्ड के कैंसर से ग्रस्त थे। वाशिंगटन के राष्ट्रीय कैंसर संस्थान से प्रकाशित जर्नल में इस शोध कार्य की सविस्तृत चर्चा की गई है। इस शोध निष्कर्ष के अनुसार जो व्यक्ति टमाटर से बने व्यंजनों का सेवन बार-बार प्रति सप्ताह करते हैं, उसे प्रोस्टेट ग्लैण्ड की कैंसर होने की संभावना 45 फीसदी कम हो जाती है। अध्ययन के अनुसार टमाटर के रस तथा सॉस की अपेक्षा मंद आँच पर 30 मिनट तक उबालकर पकाया गया टमाटर ज्यादा फायदेमंद है। टमाटर में लाल केरोटिनाइड पिगमेंट लाइकोपिन पाया जाता है। लाइकोपिन प्रबल एण्टी ऑक्सीडेन्ट है। टमाटर को पकाने से गर्मी के कारण टमाटर की कोशिकाए फटकर लाइकोपिन का स्राव बढ़ा देती है। एण्टी ऑक्सीडेन्ट लाइकोपिन प्रोस्टेट कैंसर से लोहा लेने में सक्षम है। इस संस्थान के डॉ. एडवर्क के अनुसार प्रकृति ने टमाटर के अतिरिक्त स्ट्राबेरी, लाल अमरूद, तर्बूजा, लाल गाजर, पपीता, मीठी लाल मिर्च, पैशन फ्लावर, फु्रट, ग्रेप फु्रट में प्रोस्टेट कैंसर से बचने के गुण भरे हैं। प्रोस्टेट कैंसर से लोहा लेने में टमाटर का स्थान मेरिट लिस्ट में प्रथम रहा। इंग्लैण्ड के कील विश्वविद्यालय के रसायन विभागाध्यक्ष प्रो. जार्ज ट्रस्कॉट की खोजों एवं शोध के अनुसार बीटा कैरोटिन की अपेक्षा टमाटर का लाइकोपिन कैंसर कोशिकाओं को नष्ट करने में चौगुना प्रभावी है। इस अध्ययन के अनुसार टमाटर का लाइकोपिन धूम्रपान तथा अन्य धात्त्विक प्रदूषणों से भी सुरक्षा प्रदान करता है।
कम वसा वाला आहार लें। अधिक वसा वाले आहार टेस्टोस्टेरॉन तथा अन्य हार्मोन का उत्पादन बढ़ा देता है। जो प्रोस्टेट कैंसर का कारण है। अत्यधिक आंच ट्रान्स एवं सेचुरेटेड फैट वाले आहार जैसे- मांसाहार, कचौरी, पुरी, पकौड़ी आदि नही लें।
सुबह आसन तथा सैर आदि व्यायाम के बाद पिसी छोटी इलायची खाकर दूध पिएँ। जौ, गेहूँ तथा कुल्थी को चौबीस घंटा पूर्व चौगुने पानी में भिगोकर, उस पानी को लगातार तीन दिन तक पीयें। नारियल का पानी तथा भोजनोपरांत 300 ग्राम छाछ में दस ग्राम धनिये का रस मिलकार पीयें। मूली तथा मूली के पत्ते का रस सौ ग्राम रोज लें। पेशाब खुलकर आता है।
आयुर्वेद एवं जड़ी-बूटी चिकित्सा
दिव्य गोखरू क्वाथ 100 ग्राम तथा दिव्य दशमूल क्वाथ 200 ग्राम दोनों को मिलकार संग्रहित करें। उनमें से 15 से 10 ग्राम लेकर 400 मिली पानी में पकायें। 100 मिली- शेष रहने पर खाली पेट या भोजन के एक घण्टा पूर्व सेवन करें। दिव्य प्रोस्टेट ग्रीट वटी भोजन के पहले तथा दिव्य चन्द्रप्रभा वटी, शीलाजीत रसायन वटी 2-2 वटी भोजन के बाद गुन-गुने जल से सेवन करें। पतंजलि न्यूट्रीला डेली एक्टिव दिन में 2-2 कैप्सुल प्रात: सायं भोजन के पूर्व लें। नीम तथा पीपल के पत्ते का स्वरस प्रात: खाली पेट लें।
धैर्य तथा विश्वास के साथ प्रोस्टेट ग्लैण्ड विकार का प्राकृतिक उपचार करें। सफलता अवश्य मिलेगी।
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