बच्चे मेरे लिए भगवान का रूप हैं

बच्चे मेरे लिए भगवान का रूप हैं

 -डॉ विजय कुमार मिश्र

     पिछले गर्मी की बात है, बाहर से कुछ बच्चे स्वामी जी से मिलने आये थे। स्वामी जी सरलता के साथ बच्चों से मिले, बातचीत की, उनका हाल-चाल पूछा। पढ़ाई-लिखाई जानी, भविष्य के लिए मार्गदर्शन दिया। कुछ ही क्षण में बच्चे स्वामी जी से ऐसे घुल मिल गये कि उन्हें जैसे लगा हम अपने बराबर उम्र के दोस्तों से बात कर रहे हैं। जैसे बच्चों को कोई उन्हीं के उम्र जैसा किन्तु अनुभवी बच्चा मिल गया हो।
    मुलाकात के बाद बच्चों में इच्छा हुई कि वे संत कुटी प्रांगण का भी भ्रमण कर लें। उन्होंने व्यवस्था से अनुमति ली और संत कुटी की एक-एक छटा को गौर से देखने लगे। कुटीर घूमते उन्हें लगभग 1 घंटा से अधिक हो चुका था।
तभी स्वामी जी भी अपने कक्ष से बाहर निकले, उनकी बच्चों पर नज़र पड़ी, देखा बालक अभी संत कुटी के परिसर में ही घूम रहे हैं, जबकि धूप तेज है। स्वामी जी उसके बाद कुछ क्षण के लिए अपने कक्ष में चले गये, लेकिन कुछ क्षण बाद  ही वे पुन: निकल कर बच्चों को निहारने लगे। यह क्रम बार-बार चलने लगा। स्वामी जी फिर बच्चों को निहारें और कुटिया में चले जायें। स्वयं सेवक व सुरक्षाकर्मी स्वामी जी के इस तरह कुटिया से बार-बार बाहर आने, फिर अंदर चले जाने को भांप नहीं पा रहे थे।
स्वामी जी को इस तरह आधा घंटा और बीत गया; तभी लोगों ने देखा स्वामी जी दो बोतल पानी लेकर कक्ष से बाहर निकले और संत कुटी में दूसरी छोर पर भ्रमण कर रहे बच्चों की ओर चल दिये। सुरक्षाकर्मी, स्वयंसेवक स्वामी जी के पीछे-पीछे दौड़े, किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि आखिर स्वामी जी चाह क्या रहे हैं? जा कहां रहे हैं।
इस प्रकार स्वामी जी लम्बे कदम से बच्चों के पास पहुँच गये और बोले- बेटे बड़ी धूप है, मैं देख रहा हूँ तुम बड़ी देर से बिना पानी पिये टहल रहे हो, प्यास लग गयी होगी, लो पानी पी लो। वे बच्चे भी आश्चर्यचकित और इस दृश्य को देखने वाले भी। स्वयं सेवक भी सोचने लगे कि यह काम तो हमारा था। बच्चों के प्यासे होने की बात हमें समझ क्यों न आयी।
वास्तव में बच्चे पानी के बिना व्याकुल हो रहे थे, पर संत कुटीर की मनमोहक आध्यात्मिक शांति और वहां के वातावरण की सुरम्यता से मन नहीं हटाना चाहते थे। स्वामी जी की इस सक्रियता, सरलता को देख बच्चे भाव-विहवल हो उठे, उन्हें स्वामी जी में अपने मां का स्वरूप दिखा। बच्चे भावुक हो बोले स्वामी जी आप!
तभी स्वामी जी ने उनके भावों को बदला और कहा- बेटे यह हमारी पतंजलि का पानी है, मैंने सोचा आप जैसे निश्छल बच्चों के साथ बैठ कर इस जल के स्वाद का आनंद लेते हैं। इसीलिए आपके पास चला आया, लो तुम भी पियो, हम भी पीते हैं। और फिर पास खड़े स्वयं सेवकों की ओर रुख करते हुए बोले- इन्हें भोजन कराकर भेजना।  
इस घटना ने सभी उपस्थित प्रत्यक्षदर्शियों को भाव विह्वल कर दिया। स्वामी जी ने उपस्थित जनों की भावना को ताड़ते हुए  कहा मेरे भाइयों, किसी घटना में दिखने वाले दृश्य कोई माने नहीं रखते, महत्वपूर्ण है उसके पीछे छिपे भाव जो कार्य को अंजाम देते हैं। यही भावना अपने साथ-साथ दूसरों के लिए सोचने को मजबूर करती है। श्रेष्ठ भावना से निहित छोटी-छोटी घटना की प्रेरणा भी मनुष्य को आमूलचूल बदल डालती है और जीवन में महामानव बनने के द्वार खुलते हैं।
लोगों ने कहा स्वामी जी पानी हमें दे देते, हमी बच्चों तक उसे पहुंचा देते। इन छोटे-छोटे बच्चों के लिए आप  यहां तक दैाड़कर आ गये, बड़े-बड़े लोग वहां आपसे मिलने के लिए प्रतीक्षा में हैं। स्वामी जी ने उत्तर में कहा 'कोई उम्र व पद से बड़ा नहीं होता बेटे, बड़ी व्यक्ति की पवित्र भावनायें और अंदर की निश्छलता होती है। उन्होंने कहा हमारे लिए ये बच्चे कहीं अधिक महत्वपूर्ण हैं, फिर जब पुकार आत्मा की निश्छलता से भरी हो तो प्रतीक्षा कैसे की जा सकती है? सहायता के लिए कदम उठ ही जाते हैं, फिर हमारे लिए ये बालक तो परमात्मा के रूप हैं, इनकी निश्छलता यदि हमें कमरे से बाहर इनके पास खीच लाई तो इसमें आश्चर्य ही क्या है। मेरे लिये बालक भगवान का रूप हैं, इनकी सेवा मेरे लिये  परमात्मा  की सेवा से कम नहीं है, इनके कष्ट देखकर हमसे रहा ही नहीं जाता , आप ही बतायें बच्चे प्यासे हैं, यह अनुभव होने के बाद मैं क्या करता।
सत्य ही है कि पूज्यवर का यह स्नेह भरा सानिध्य ही है जो पतंजलि योगपीठ में चल रहे गुरूकुलम विद्यालय, आचार्यकुलम विद्यालय में शिक्षण ग्रहण करने वाले छात्र-छात्रायें को शिक्षण पूर्ण करने के बाद भी उन्हें अपने माता-पिता के पास जाने से रोक लेता है। पतंजलि योगपीठ में आने वाले हर वर्ष लाखों व्याक्तियों में अपने युगऋषि से एक बार मिलने के बाद उत्पन्न होने वाले समर्पण भाव के पीछे पूज्यवर का यह दिव्य हृदय ही तो है, और जिसका हृदय दिव्य होगा, उसके लिए कठिन से कठिन यात्रा क्यों न सुगम हो जायेगी। पतंजलि का कम समय में यह करोड़ों लोगों तक विस्तार यही संदेश चीख-चीख कर कहता है।
 
 

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