ओमिक्रोन की रोकथाम एवं उपचार में सहायक आयुर्वेद, योग व प्राकृतिक चिकित्सा
ओमिक्रोन क्या है?
ओमिक्रोन कोविड-19 सार्स कोव-2 वायरस का वेरियेन्ट बहुरूपिया है। विश्व के वैज्ञानिक कोविड-19 के अन्य वेरियेन्ट अल्फा, बीटा, गामा, डेल्टा से पहले ही परिचित हो चुके हैं। विश्व में कोविड-19 के डेल्टा वेरियेन्ट ने सर्वाधिक तबाही मचायी तथा लाखों लोगों की मृत्यु हुई। कोविड-19 का एक अन्य वेरियेन्ट बहुरूपिया ‘ओमिक्रोन’के रूप में प्रकट हुआ है।
बोट्सवाना, साउथ अफ्रीका में 11 नवम्बर 2021 को ओमिक्रोन के न्यू वेरियन्ट स्पेसिमेन को कॉलेक्ट किया गया। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) को 24 नवम्बर सार्स कोविड-2, बी1.1.529 वेरियेन्ट का पता चला। इस वेरियेन्ट वायरस से ग्रस्त अफ्रीका का यह पहला रोगी था। 26 नवम्बर 2021 को इस वायरस का नामकरण विश्व की टेक्नकिल एडवायजरी ग्रुप ऑन वायरस एवोल्यूशन (TAG-VE) द्वारा ग्रीक भाषा के अल्फावेट के पन्द्रहवा लेटर के आधार पर ओमी माइक्रोन नामकरण किया गया। ओमेगा से ओमि (अंतिम वृहद) तथा माइक्रोन (छोटा) मिलकर ओमिक्रोन रखा गया। ओमिक्रोन का अर्थ देखने में छोटा लगे- लेकिन घाव (प्रभाव) गम्भीर (बड़ा खतरनाक) होता है।
ओमिक्रोन के फैलने की दर -
अभी तक पता नही है। Let wait and see प्रतीक्षा करो, निरीक्षण करो और गहनता एवं सूक्ष्मता से देखो। सर्वप्रथम साउथ अफ्रीका के शोध कर्ताओं तथा विश्व के अनेक देशो के वैज्ञानिक इस वेरियेन्ट ओमिक्रोन को समझने का प्रयास कर रहे हैं तथा प्राप्त जानकारी के आधार पर आपस में साझा कर रहे हैं। यह एक वैश्विक खतरनाक समस्या है। इसके पूर्व के डेल्टा वेरियेन्ट ने आपसी सम्बन्धों का तार-तार तो किया ही साथ ही अनेक सगे-सम्बन्धियों को अकाल-काल कवलित करके लाखों बच्चों को अनाथ बना दिया।
ओमिक्रोन को कोविड-19 के अन्य वेरियेन्ट अल्फा, बीटा, गामा, डेल्टा के फैलने एवं उनके मारक क्षमता का तुलनात्मक शोध अध्ययन किया जा रहा है। मैथेमेटिकल मॉडलिंग के आधार पर उपलब्ध जीनोम डाटा का विश्लेषण किया जा रहा है। जापान के कायोटो यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने प्रमाणित किया है। कोविड-19 का डेल्टा वेरियेन्ट से चार गुना ओमिक्रोन की तेजी से फैलने की क्षमता है। यानि ओमिक्रोन जिस तेजी से फैल रहा है। यह एक वैश्विक समस्या है। इस फैलाव को रोकने के विश्व के अनेक वैज्ञानिक कार्य कर रहे हैं। इनमें से कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि ओमिक्रोन के बिहैवियर को लेकर कुछ भी नहीं कहा जा सकता है। 80 से 90 गुना तेजी से फैलने की संभावना बताई जा रही है।
ओमिक्रोन की आक्रामकता
अभी तक यह पता नहीं चल सका है कि अन्य वेरियन्ट के अपेक्षा कोविड-19 के इस ओमिक्रोन वेरियेन्ट से इसकी मारक क्षमता कितनी अधिक है अथवा यह डेल्टा वेरियेन्ट जैसा खतरनाक तो नहीं है। साउथ अफ्रीका ओमिक्रोन संक्रमित रोगियों की संख्या में जिस तेजी से वृद्धि हुई है। उसके वनिस्पत इसकी घातक मारक क्षमता का निश्चित मापदण्ड तय नहीं हो सका है। अफ्रीका के विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों, युवाकर्मियों तथा युवाओं में यह रोग अतिसाधारण रूप में प्रकट हुआ है- लेकिन इसके घातक क्षमता का पैमाना का अभी तक निर्धारण नहीं हो सका है। भारत में भी सर्वप्रथम कर्नाटक, महाराष्ट्र तथा राजस्थान आदि प्रान्तों में ओमिक्रोन वेरियेन्ट संक्रमित रोगी पाये गये हैं। अब तक कुल 1700 केस पाये गये हैं जिसमें सर्वाधिक संख्या महाराष्ट्र केरल, राजस्थान और दिल्ली में है। वर्तमान स्थिति में WHO के साप्ताहिक एपिडेमियोलॉजी रिपोर्ट के अनुसार ओमिक्रोन 95 से अधिक देशों में फैल चुका है तथा इससे ग्रस्त लोगों की हॉस्पिटलाइजेशन का दर भी तेजी से बढ़ रहा है। 95 देशों के अलावा अन्य देशों में भी ओमिक्रोन के फैलने की खतरा तीव्र गति से बढ़ रहा है। WHO के अनुसार इसके वेरियेन्ट को लेकर किसी प्रकार की लापरवाही न बरती जाये। इस वेरियन्ट से ग्रस्त लोगों में मरने का खतरा कम दिख सकता है- परन्तु पोस्ट कोविड के यातनादायी लक्षण फैल सकते हैं। उम्मीद की जा रही कि 3-4 सप्ताह में इनके लक्षणों को समझ लिया जायेगा।
ओमिक्रोन वेरियेन्ट से रोग प्रतिरोधक क्षमता (इम्यूनिटी) का सत्यनाश हो जाता है। गम्भीर लक्षण न होते हुए भी ओमिक्रोन में मौजूद म्यूटेशन के कारण एण्टीबॉडीज बनने की प्रक्रिया कमजोर हो जाती है। परिणाम स्वरूप नेचुरल इम्यूनिटी से होने वाली रक्षात्मक पंक्ति पर विध्वंसक प्रभाव होता है।
ओमिक्रोन के स्पाइक प्रोटीन में 35 से अधिक म्यूटेशन हो चुके हैं ऐसे में इस पर मौजूद टीके का असर समाप्त होने का खतरा बना हुआ है। साउथ अफ्रीका में ओमिक्रोन फैलने का खतरा तेजी से बढ़ रहा है। इस वेरियन्ट वायरस से ग्रस्त 5 साल से कम उम्र के बच्चे सर्वाधिक संख्या में अस्पतालों में भर्ती हो रहे हैं। दिसम्बर 2021 को अमेरिका में पहला ओमिक्रोन केस का पता लगा। सेन्टर फॅार डिजीज कन्ट्रोल एवं प्रीवेंशन सी.डी.सी. इसके जीनोमिक सर्विल्लेंस पर लेकर अमेरिका के सभी केन्द्रों को आगाह एवं सावधान कर रहा है। कई देशों में लोकल पब्लिक हेल्थ ऑफिशियल के साथ मिलकर WHO इसके फैलाव की मॉनिटरिंग कर रही है।
ओमिक्रोन की जाँच
ओमिक्रोन की सटीक एवं विश्वस्तरीय जाँच आर.टी.पी.सी.आर. ही है। वैसे रेपिड एण्टोजेन डिटेक्शन जाँच भी की जाती है। परिवर्तन तथा वैश्विकस्तर पर ओमीक्रोन के बिहैवियर, म्यूटेशन की निगरानी सतत रखी जा रही है। इनका मूल्यांकन एवं अध्ययन भी सतत जारी है।
ओमिक्रोन के संभावित शिकार लोग
उम्र दराज लोग, बच्चे, किशोर तथा वे लोग जो पूर्व में कोविड-19 के शिकार रहे हैं तथा जिनका दवाईयों से सटीक उपचार हुए हैं। जिन लोगों की जीवनी शक्ति (वायटलिटी) रोग रक्षात्मक प्रणाली अत्यन्त कमजोर है, ऐसे बड़े, बूढ़े, बच्चे एवं क्षीणकाय लोग भी ओमिक्रोन के शिकार हो सकते हैं।
लन्दन स्कूल ऑफ हाइजिन एण्ड ट्रापिकल मेडिसिन तथा साउथ अफ्रीका स्टेलेबोस्क यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने रिसर्च के आधार पर प्रमाणित करने का प्रयास किया है कि अप्रैल 2022 के अन्त तक ओमिक्रोन से मरने वाले लोगों की संख्या 25 से 75,000 तक होगी।
ओमिक्रोन के लक्षण
वेरियन्ट ओमिक्रोन से ग्रस्त लोगों में कोविड-19 की तरह न खांसी होती है न बलगम होती है। ऑक्सीजन का लेवल (SPO2) भी सामान्य रहता है। ओमिक्रोन वेरियन्ट में गंध एवं स्वाद की संवेदना रहती है। नाक बन्द नहीं होता है, छींकना, नाक बहना, नाक में ज्यादा म्यूकस तथा द्रव के कारण अवरूद्धता (Nasal Clogged) तथा ज्यादा तापमान वाला तीव्र ज्वर आदि लक्षण नहीं दिखते है। सिर में हल्का सा दर्द एवं भारीपन होता है। कुछ रोगियों में सुखी खांसी, हल्का ज्वर, डायरिया, गले में खरोच, खिचखिच (Scratchy throat), गले में उत्तेजना, रात्रि में पसीना आना, तीव्र पसीना से कपड़े भीग जाना, ठण्ड वातावरण में भी तेज पसीना आना, कमर, नितम्ब व पैर में दर्द, गले की खरास (Sore throal), चिड़चिड़ापन, नाराजगी (Soren head), मूड खराब होना आदि लक्षण दिखते हैं।
उपचार
प्राय: अस्पतालों में कोविड-19 वेरिएन्ट डेल्टा वाला प्रचलित चिकित्सा का ही प्रयोग वेरिएन्ट ओमिक्रोन में किया जा रहा है। प्राय: मुख्य रूप से कथित लाइफ सेविंग मेडिसिन कॉटिकोस्टेरॉयड तथा एण्टी इन्फ्लामेटरी IL-6 (Interlukin-6) रेसेप्टर्स ब्लाकर्स का उपयोग किया जाता है। वास्तव में IL-6 (Interlukin-6) प्रोइन्फ्लामेटरी साइटोकाइन तथा एण्टीइन्फ्लामेटरी मायोकाइन होते है। IL-6 दोनों प्रकार की सन्देहास्पद विरोधाभासी भूमिका निभाते हैं। वास्तव में बीमार होने पर अपने इम्यून सिस्टम के जाबाज सैनिक रोगाणु से हमें बचा लेते हैं- लेकिन कोविड संक्रमित रोगी के शरीर के अन्दर रक्षक सैनिकों को रोगाणुओं द्वारा इतना कन्फ्यूज कर दिया जाता है कि वह शरीर के स्वस्थ एवं सबल कोशिकाओं को ही मारने लगते हैं। कन्फ्यूज रक्षक कोशिकाएँ दिग्भ्रमित होकर स्वस्थ कोशिकाओं को ही नष्ट करने लग जाती है। इसे ही साइटोकाइन्स स्ट्रोम सिण्ड्रोम कहते हैं। कोविड-19 में साइटोकाइन सिण्ड्रोम के कारण ही लाखों लोगों की मृत्यु हुई थी। वैज्ञानिकों का मानना है कि डबल डोज का टीका भी ओमिक्रोन के कहर से बचा नही सकेगी अत: एक अतिरिक्त बूस्टर डोज लेना पड़ेगा।
अमेरिका के ओरेगॉव हेल्थ एण्ड साइंस यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने प्रमाणित किया है कि जिन लोगों ने वैक्सीन के दोनों डोज लगवा ली हैं, उनके अन्दर एण्टीबॉडी का लेवल 1,000 से 2,000 प्रतिशत तक बढ़ जाने से ‘सुपर इम्यूनिटी’पैदा हो रही है। इस शोध का मौलिक बात यह है कि सभी प्रकार के वेरिएण्ट से सुरक्षा मिलेगी।
कोविड-19 तथा ओमिक्रोन वेरियन्ट के उपचार में योग, यज्ञ, आयुर्वेद, प्राकृतिक चिकित्सा ने अपना महत्त्व प्रमाणित कर दिया है। परम पूज्य स्वामी जी के सानिध्य एवं श्रद्धेय आचार्य श्री के नेतृत्व में कोविड-19 की विषम परिस्थितियों में भी पतंजलि शोध संस्थान द्वारा अन्वेषित औषधियों ने कमाल का काम किया है। परम पूज्य स्वामी जी द्वारा अन्वेषित सहज सरल एवं सर्वसाध्य कपालभाति क्रिया, अनुलोम-विलोम, भस्त्रिका, शीतली, शितकारी, भ्रामरी, उज्जायी, उद्गीथ प्राणायाम, प्रणव ध्यान तथा आसन का प्रयोग प्रतिदिन न्यूनतम एक से डेढ़ घंटे (सूक्ष्म एवं सामान्य आसन) करने से हमारे इम्यून सिस्टम के सभी जांबाज सैनिक सजग संचेत एवं सावधान रहते हैं। इससे आदमी कोविड वेरिएन्ट ओमिक्रोन से बचा रहेगा।
पी.आर.आई. (पतंजलि रिसर्च इन्स्टीट्यूट) द्वारा अन्वेषित कोविड-19 की जनप्रिय औषधि कोरोनिल की किट के अन्र्तगत कोरोनिल वटी, श्वासारि वटी तथा नाक में डालने के लिए अणु तेल, इसके अतिरिक्त ज्वर की स्थिति में गिलोय सत्व से बना गिलोय घन वटी, महासुदर्शन घन वटी, ज्वरनाशक वटी भी दिया जाता है। कोरोनिल किट के अन्तर्गत कोरोनिल वटी में मौजूद गिलोय, अश्वगंधा, तुलसी तथा श्वासारि होता है। रिसर्च के अनुसार गिलोय में मौजूद मैग्नोफ्लोरिन, टिनोकार्डिसाइड्स, कार्डियोफोलियोसाइड्स, अश्वगंधा का विथानोसाइड- iv, विथानासाइड-v, विथानोन, विथानफेरिन ए तुलसी का रोसमेरिक एसिड, यूरोसोलिक एसिड, बेटुलिनिक एसिड यानि कोरोनिल में मौजूद स्टेरॉयडल, लेक्टोन्स, टर्पेनॉयडस एल्केलॉयडस मानव ACE-2 रेसेप्टर्स तथा वायरल-S-Protein रेसेप्टर्स बाइडिंग डोमेन के मध्य अटल दीवार बनकर खड़ा हो जाता है जिससे खतरनाक उग्रवादी सिरम लेवल इन्टरल्यूकिन-6, टूयूमर नेक्रोसिस फैक्टर अल्फा (TNF-α) तथा सीरिएक्टिव प्रोटीन स्वत: नियंत्रित होकर कोविड-19 के मारक (तुफानी) प्रतिक्रिया भी नियंत्रित होने लगता है।