यज्ञ की यह शुद्ध हवा सब रोगों की है दवा
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स्वामी यज्ञदेव, वैदिक गुरुकुलम्
जीव मात्र को जीवन जीने के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है, वह ऊर्जा हम आहार के माध्यम से प्राप्त करते हैं जिसे तीन रूपों में लेते हैं- ठोस, द्रव्य एवं गैस। इन तीनों आहारों से मिलने वाली ऊर्जा को देखें तो गैस रूप में हम सर्वाधिक ऊर्जा प्राप्त करते हैं। क्योंकि हम दिन में दो से तीन बार भोजन करते हैं, जिसमें ठोस रूप में रोटी, चावल आदि एवं द्रव रूप आहार के रूप में दिन में 5 से 10 बार सामान्य रूप से जल लेते हैं तथा गैस रूप आहार के रूप में वायु को ले रहे हैं- जिसे खाते, पीते, उठते, सोते हर समय (चौबिस घण्टे) ले रहे हैं। इससे यह सिद्ध होता है कि गैस रूप आहार (Air) हमारे तीनों आहारों में सर्वाधिक लिये जाने वाला आहार है। इसी प्रकार उस आहार का महत्व (Importance) देखे तो भी वायु रूप आहार ही है। जैसे हम भोजन रूप ठोस आहार न ले तो भी दो से तीन महीने जीवित रह सकते हैं, इसी प्रकार द्रव रूप आहार न लेने पर हम दो से तीन सप्ताह जीवित रह सकते है। परन्तु वायु (Air) रूप आहार न ले तो हमारा दो से तीन मिनट भी जीवित रहना सम्भव नहीं है। इससे यह सिद्ध होता है कि हमारे तीनों आहारों में सबसे ज्यादा व महत्वपूर्ण आहार वायु ही है। आयुर्वेद ग्रंथों में ऋतुओं के आधार पर शरीरों में वात, पित्त एवं कफ दोष बढ़ते-घटते रहते हैं, जिसका सीधा सम्बंध वायु से है। ग्रीष्मऋतु में वायु-मण्डल गर्म हो जाता है अर्थात् उस समय पित्त दोष बढ़ जाता है। उसी प्रकार वर्षा ऋतु में वात व शीत ऋतु में कफ दोष बढ़ जाता है। वहीं वायु हमारे आहार का सबसे ज्यादा व सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा होने के कारण हमारे शरीरों में भी वात, पित्त व कफ दोष बढ़ते व घटते रहते हैं। जैसे आयुर्वेद ग्रंथों में ठोस रूप भोजन में जिस प्रकार रूक्ष भोजन वात को, उष्ण भोजन पित्त को व स्निग्ध तथा शीतल भोजन कफ दोष को बढ़ाते हैं, वैसे ही वायु रूप आहार में भी जानना चाहिए। अत: ऋतु अनुसार जड़ी-बूटियों से यज्ञ करने से वायुमण्डल में वात, पित्त एवं कफ दोष संतुलित हो जाते हैं व संतुलित दोषयुक्त वायु में रहने से शरीरों में वात-पित एवं कफ दोष संतुलित हो जाते हैं। जिससे हमें स्वास्थ्य लाभ विशेष रूप से प्राप्त होता है।
आयनीय चिकित्सा (Iontherapy)
हम जिस वायु के समुद्र में श्वास लेते हैं, उसमें दो प्रकार के धूलि कण (Ion) से हमारा सामना होता हैं- प्रथम ऋण आवेशित कण ऋणायण (Anion), दूसरे धन आवेशित कण धनायन (Cation)। ऋणायण से युक्त वायु प्राणधारी जीव मात्र के लिए विशेष रूप से स्वास्थ्य लाभ देने वाली होती है। झरनें, नदी के तट, समुद्रीय तट, वन, पर्वतीय क्षेत्र तथा ग्रामीण क्षेत्रों में ऋणायन की मात्रा पर्याप्त पायी जाती है। इसी कारण लोग वायु परिवर्तन के लिए इन स्थानों पर जाना पसंद करते हैं व उस वायुमण्डल में स्वास्थ्य लाभ भी बहुत ही शीघ्र होता है। जिसको सामान्य भाषा में ‘आयनिक थैरेपी’कहते हैं। जहां पर नियमित रूप से यज्ञ होता है, वहाँ ऋणायन की मात्रा 200 से 400 आयन प्रति सेमी. की मात्रा में पायी जाती है। इससे यह सिद्ध होता है कि हम भी अपने घर के वायुमण्डल को झरने, नदी, जंगल व पहाड़ी क्षेत्र के वायुमण्डल जैसा बनाना व विशेष स्वास्थ्य लाभ प्राप्त करना चाहते हैं, तो प्रतिदिन यज्ञ करें।
इसी प्रकार जिस वायु में धन आवेशित कणों का आधिक्य हो, उस वायु में रहने से स्वास्थ्य हानि होती है। जहां भीड़भाड़ वाले, प्रदूषण भरे शहरी इलाकों में व औद्योगिक क्षेत्रों में इन कणों की भरमार रहती है, वहां लोगों का स्वास्थ्य लडख़ड़ाने लगता है तथा रोगी व्यक्ति को वहाँ सभी प्रकार की सुविधा-साधन व उपचार आदि के रहते हुए भी ठीक होने में लम्बा समय लगता है। इसी तथ्य को एक वैज्ञानिक अल्बर्ट कुर्जर ने भी शोध-परिक्षणों से सिद्ध कर बताया है, कि धनायन से युक्त वायु में रहने से ‘ब्लड सिरोटीन’की मात्रा बढ़ जाती है। जिसके परिणाम-स्वरूप स्वास्थ्य की हानि तथा रोगी को स्वास्थ्य लाभ प्राप्त होने में बहुत कठिनाई होती है तथा ऋणायन से युक्त वायुमण्डल में रहने से ‘ब्लड सिरोटीन' की मात्रा में भारी कमी आती है। जिससे स्वास्थ्य लाभ विशेष रूप से प्राप्त होता है तथा रोगी को अपने रोग से निजात पाने में तत्काल परिणाम प्राप्त होते हैं।
रोगजनक सूक्ष्मजीव-नाशी (Microbial Killer)
यज्ञाग्नि में जब औषधीय द्रव्यों एवं गोघृत की आहुति देते हैं तो उसके जलने पर एथिलीन-ऑक्साईड, प्रोपलीन-ऑक्साईड से लेकर अनेक प्रकार की गैसों का निर्माण होता है। जिन गैसों के प्रभावों से हानिकारक बैक्टिरीया, फंगस एवं वायरस आदि नष्ट हो जाते हैं। जिसके कारण होने वाली अनेकों बीमारियां होगी ही नहीं तथा यदि हो भी गयी हैं, तो इस यज्ञ-गैसों के सम्पर्क में आने से वे जीव नष्ट हो जाते हैं व उसके कारण हुई बीमारी का भी अंत हो जाता है। जो कि वर्तमान समय में पूरी दुनिया में इन सूक्ष्म-जीवों के कारण होने वाली बीमारियों से करीब दो करोड़ लोग मौत के मुख में समा जाते हैं, जिसे इस छोटे से यज्ञ को अपनाने से बचाया जा सकता है।
यह यज्ञ चिकित्सा के कई पहलुओं में एक महत्वपूर्ण पहलु है। जोकि वर्तमान मॉडर्न साइंस से भी सिद्ध हो चुका है, कि ‘यज्ञ’से (Communicable Disease) सूक्ष्म जीवों द्वारा उत्पन्न बीमारियों को खत्म किया जा सकता है।
-क्रमश: अगले अंक में
द्रव्य यज्ञ, योग यज्ञ एवं ज्ञान यज्ञ का त्रिवेणी संगम यज्ञमहोत्सव
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