मोटापे की चिकित्सा में पतंजलि का चमत्कारिक नवीन अनुसंधान 'वेट गो’

जानिए! ओवर वेट से होने वाली कॉम्प्लिकेशन और उसके कंट्रोल के बारे में

मोटापे की चिकित्सा में पतंजलि का चमत्कारिक नवीन अनुसंधान 'वेट गो’

डॉ. अनुराग वार्ष्णेय  
उपाध्यक्ष- पतंजलि अनुसंधान संस्थान.

सब जानते हैं कि यदि वजन ज्यादा बढ़ जाए, तो इसको ओवर वेट कहते हैं। किसका ओवर वेट है और किस का नहीं, ये हमारे शरीर की लंबाई, शरीर की चौड़ाई और उम्र इन तीनों के अनुपात के हिसाब से निर्भर होता है। नॉर्मल वजन कितना होना चाहिए? अगर वह एक लिमिट से ज्यादा हो जाता है तो ओवरवेट हो जाता है। उसके बाद अगर शरीर के अलग-अलग अंगों में पानी खत्म होना शुरू हो जाए वॉटर रिटेंशन, तो हम फिर मोटापे की ओर आना शुरू हो जाते है, पूरी दुनिया में 2 अरब लोग ओवर वेट है और लगभग 65 करोड़ लोग मोटापे के शिकार हैं। भारत में भी इसका लेवल बढ़ता जा रहा है और लगभग 13.30 करोड़ लोग भारत के अंदर मोटापे के शिकार हैं। मोटापे का मतलब सिर्फ खाते-पीते घर से भी नहीं है। इसका होना बहुत सारी बीमारियों से भी है। उसके बारे में समझें। हम यह जानेंगे कि मोटापा होता कैसे है? उसके कारण क्या हैं?

अनहेल्दी लाइफ स्टाइल व अनहेल्दी भोजन

मोटापे की सबसे बड़ी वजह

सबसे महत्वपूर्ण खानपान है, हम हेल्दी खाना खाते हैं तो हमारा शरीर स्वस्थ रहता है, वजन ज्यादा नहीं बढ़ता है। लेकिन इसके विपरीत जो लोग जंग फूड खाते हैं या अनहेल्दी भोजन करते हैं, उनमें मोटे होने की सम्भावना अधिक बनी रहती है। खाना खाने से उत्पन्न ऊर्जा जो हमारे शरीर के अन्य कार्यों में लगती है। यानि हम समझें कि यदि इनपुट-आउटपुट का अनुपात अगर चेंज हो जाता है, तो उसकी वजह से भी मोटापा बढ़ सकता है। देखें तो जो बहुत मेहनती हैं, जो खेत में काम कर रहे हैं और अच्छा खाना खा रहे होते हैं, ज्यादा भी खा रहे हों तो वह मोटे नहीं होते।

फिजिकल एक्टिविटी कम होना भी है वजह

अगर कोई ऐसे लोग जिनका ऑफिस में बैठकर काम करना, वो भी मोटापे का शिकार हो सकते हैं। अच्छी चीजें भी खाकर मोटापा आ जाता है, जैसे-दाल, रोटी, सब्जी, दूध, दही, छाछ सब चीजें खाने पर भी फिजिकल एक्टिविटी न होना मोटापे के बड़े कारणों में से एक है।

मोटापे के कारण होने वाले अन्य रोग

ओवर ईटिंग, अनहेल्दी लाइफ स्टाइल से फिर थायराइड, स्टेरॉयड और फिर अलग-अलग बीमारियां आने लगती हैं। शरीर में हार्मोंस का बिगड़ना भी इसमें शामिल है।
जो लोग मोटे होते हैं उनमें मेंटल डिसऑर्डर, कार्डियोवैस्कुलर डिसऑर्डर, स्किन प्रॉब्लम है, हार्ट की प्रॉब्लम, यूरोजेनिटल प्रॉब्लम, सांस लेने में दिक्कत होती है। बहुत केस में ओवेसिटी कैंसर को भी मोटापा जन्म देता है। ओबेसिटी में शरीर में ग्लूकोस की मात्रा ज्यादा हो जाती है और जितना ज्यादा ग्लूकोस होता है, उतनी ही कैंसर होने की संभावना बढ़ जाती है। बीड़ी, शराब आदि मादक पदार्थों का जो सेवन करता है या जो खराब चीजों को मनुष्य ग्रहण करता है, उनसे भी ज्यादा बीमारियां मनुष्य के शरीर को ग्रसित करती है।

मोटापे की दवाओं के हैं घातक साइड इफेक्ट्स

अगर हम देखें ओबेसिटी की दवाईयां कैसे काम करती हैं? दवाईयों को खाने के बाद हमारे पेट के अन्दर फैट यानि चर्बी का उत्पादन नहीं होता। जो भी फैट हम खा रहे हैं, वह मल के रूप में शरीर से बाहर निकल जाता हैै। ऐसा नहीं है कि कुछ सिलेक्टिव फैट का एब्जोर्बशन नहीं हो रहा, या सबका नहीं हो रहा। जितनी हमें जरूरत है शरीर उतना एब्जार्ब कर लेता है। हम बताते हैं कि रोज इतना देसी घी खाना चाहिए जो हमारे स्वास्थ्य के लिए जरूरी है। इसके साथ-साथ वह वाला कंपोनेंट भी चला जाता है और कुछ विटामिन एप्स ऑप्शन कम हो जाते हैं तो उसकी वजह से अलग-अलग टाइप के साइड इफेक्ट आने शुरू हो जाते हैं और सबसे कॉमन साइड इफेक्ट है हाईपर टेंशन एवं बीपी का बढ़ जाना। कई लोगों में पेट फूलने की दिक्कत आती है, कई लोगों में पेट में दर्द शुरू हो जाते है, और कई लोगों के मल में ऑयल के टोक्स देखने शुरू हो जाते हैं, लोगों को डर लगता है कि यह क्या हो गया। ये वही फैट है जो हमने खाया और वह हमारे शरीर ने नहीं अपनाया। ये एक तरह से साइड इफेक्ट का एक बड़ा ग्रुप से बन जाता है और कई लोगों को रात में नींद नहीं आती।

सर्जरी नहीं है मोटापे का सही उपचार

मोटापा ज्यादा हो जाने पर एक समय ऐसी स्थिति आ जाती है कि मोटापे को कम या फैट को कम करने का तरीका सिर्फ ऑपरेशन द्वारा फैट या अतिरिक्त चर्बी को निकालना ही लगने लगता है। जैसे हम अपने घर पर बड़ी गंदगी को वैक्यूम क्लीनर के सहायता से खींचकर निकाल देते हैं ठीक उसी तरह भी अतिरिक्त फैट को ऑपरेशन द्वारा निकाल दिया जाता है लेकिन इन सभी क्रियाओं या चिकित्सा का हमारे शरीर पर काफी साईड इफेक्ट पड़ता है। बैरीटिक सर्जरी में पेट को छोटा कर देते है, बांध देते हैं। जिससे मनुष्य अपने भोजन में कम खाना खा पाता है, कम खाने में पेट भर जाएगा। लेकिन कई सालों बाद भी लगातार भोजन करने के उपरान्त ये बंध कमजोर पड़ जाता है और वह धीरे-धीरे बंध खुलने लग जाता है, जिससे फिर वही व्यक्ति मोटापे का शिकार हो जाता है।

पतंजलि की शोध आधारित 'वेट गोमोटापे के उपचार में प्रामाणिक औषधि

पतंजलि ने अपने नवीन शोध से मोटापे की प्रामाणिक औषधि तैयार की है। मोटे व्यक्ति के लिए पतंजलि ने वेट-गो औषधि का निर्माण किया है जो एक नया फॉर्मूलेशन है। इसमें हमने अश्वगंधा की पत्तियों का इस्तेमाल किया है आयुर्वेद के क्षेत्र में अश्वगंधा के रूट, रस का इस्तेमाल करते हैं। इस विषय में महर्षि चरक सुश्रुत ने भी कहा है कि जो व्यक्ति भेड़-बकरियां पालते हैं, जो गो-पालन करते हैं, जो जंगलों में रहते हैं, वे जानते हैं कि इन जड़ी-बूटियों से क्या फायदा होता है। तो इस प्रकार यदि कोई व्यक्ति अश्वगंधा के पत्ते भी लगातार खाता रहे तो उसका वजन भी कम होगा। इसलिए पतंजलि रिसर्च सेन्टर ने फैट-गो औषधि में अश्वगंधा के साथ-साथ, लौकी, आंवला, बहेड़ा और अंगूर के बीज का पाउडर, गिलोय और गोखरू मिश्रित किए। इसलिए जो भी मोटापा कम करने वाली औषधियां हैं- जैसे मेदोहर वटी आदि उनमें अश्वगंधा का प्रयोग किया गया है। इसी तरह इन सब की कैलकुलेशन बनायी और वॉटर रिटेंशन को भी कम करने वाली बॉडी के अंदर के इन्फ्लेमेशन को भी कम करने वाली और बॉडी के मेटाबॉलिज्म को अच्छा करने वाली उन सब चीजों का कॉन्बिनेशन करके रिफॉर्मूलेशन तैयार किया है। जिसका नाम वेट-गो है।

6 महीने के कठोर परीश्रम का परिणाम है 'वेट गो

इन प्रयोगों के लिए पतंजलि रिसर्च सेन्टर ने दो विषय पर कार्य किया। पहला सेल्स विषय पर शोध एवं दूसरा एनिमल ट्रायल पर शोध। यह शोध पतंजलि रिसर्च सेन्टर का सबसे लम्बा शोध था। इस शोध पर पतंजलि रिसर्च सेन्टर के वैज्ञानिक लगभग 6 महीने तक शोध करते रहे। जिसका परिणाम बहुत ही अच्छा रहा।
इस औषधि में कौन-कौन से कंपाउंड हैं? इसमें 100 से लेकर 1000 के बीच में कंपाउंड्स होते हैं। इनमें से 10 या 12 को हम सिग्नेचर कंपाउंडस मान लेते हैं ताकि हम बैच टू बैच क्वालिटी को नाप पायें। हमने पाया कि यह औषधि उसे कंट्रोल कर सकती है और उनके साथ इन्हीं सेल के अंदर ट्राइग्लिसराइड जो कि फैट का मार्कर है, वह भी ठीक हो गया।

एनिमल ट्रायल है पतंजलि के अनुसंधान का प्रमाण

फैट को जनरेट करने का बहुत अच्छा जेनेटिक मेकअप हमारे शरीर के अंदर होता है। बड़े स्तर पर भोजन करने से हम ज्यादा ग्लूकोस इस्तेमाल करते हैं। जितना शरीर के लिए आवश्यक है वह तो एनर्जी में कंज्यूम हो जाएगा तथा जो एक्स्ट्रा है शरीर उसको फ्यूचर के लिए संरक्षित करके रख लेता है और वह फैट के तौर पर जमा हो जाता है।
इसको जानने के लिए हमने लगभग 5 से 6 महीने एनिमल डाइट पर शोध किया और हमने चूहों को हाई फैट वाली डाइट खिलाई। हमने एनिमल सप्लायर तथा डाइट सप्लायर से डाइट खरीदी। वह डाइट ऐसी बनायी जाती है जिसमें फैट की मात्रा ज्यादा होती है उस डाइट को खिलाने से चूहें काफी मोटे हो गये। इसमें भी हमने शोध के लिए 2 गु्रप बनाए। पहला जिसमे हमने वेट-गो औषधि दी और दूसरा जिनको हमने वोट-गो औषधि भी दी और साथ में हमने उनको एक्ससाईज भी करवाई, इसमें हम चूहों को भागना शुरू कर देते हैं। हमने लगभग 14 हफ्ते तक इनको दवा खिलायी और 14 हफ्ते तक इनको दौड़ाया। इनको 14 हफ्ते तक कंपैरिजन करके देखा भी।
हमने देखा जिनको हमने वेट-गो दिया था, वह संतुलित मात्रा में भोजन करने लग गये थे व उनकी जो हेल्दी डाईट थी वो उतना ही खा रहे थे, जिनकी उनको जरुरत है। हमने इसमें दोनों चीजे देखते है कि पानी कितना पी रहे हैं और खाना कितना खा रहे हैं। इसके अलावा हमने देखा जो चूहे दौड़ लगा रहे थे, उनका भी वेट कम होना शुरू हो गया था। लेकिन जो चूहे भाग रहे थे और वेट-गो औषधि का सेवन किये हुए थे उनका तो वजन दूसरों की अपेक्षा ओर कम हो गया।
दूसरा एक्सपेरिमेंट हम करते हैं ग्लूकोज टॉलरेंस का। इसमें हम चूहों इत्यादि को ग्लूकोज पिलाते है। और हर एक 15 मिनट के बाद उनका ब्लड हम लेकर उसका लेवल हम नापते हैं। जैसे ही हम ग्लूकोज लेते हैं, तो 15 मिनट के बाद हमारा ग्लूकोज बढ़ने लगता है और लगभग 1 घंटे के बाद वह नार्मल होना शुरू हो जाता है। जिसको ग्लूकोज टांलरेंस कहते हैं।
हम देखते हैं जो फैटी चूहे या एनिमल हैं, उनके अन्दर इस टालरेंस में बदलाव आता है। फैटी चूहों या एनिमल में ग्लूकोज टालरेंस खराब हो जाता है। इसके विपरीत जिनको हमने वेट-गो दिया था, तो उनका ग्लूकोज टालरेंस भी सामान्य हो गया था। इसके बाद हम फैट की बात करते हैं तो कॉलेस्ट्राल का लेवल, ट्राईग्लीसराइड का लेवल नापा और देखा कि जिन-जिन के अन्दर कॉलेस्ट्राल बढ़ गया था, वेट-गो वाले ग्रुप में उनका लेवल भी नार्मल आ गया था। हमने ब्लड के अन्दर और लीवर के अन्दर वाला कॉलेस्ट्राल नापा वो भी नार्मल पाया गया।
हमने पाया कि अतिरिक्त फैट होने से मनुष्य के शरीर को विभिन्न प्रकार की बीमारियां घेर लेती हैं। अत: अपने शरीर एवं जीवन को स्वस्थ बनाने के लिए मनुष्य को चाहिए कि अपना शरीर स्वस्थ रखें। मोटापा या फैटी होने पर अपने खानपान पर ध्यान रखते हुए पौष्टिक आहार के साथ-साथ पतंजलि के वेट-गो औषधि भी लें। जिससे मनुष्य की काया निरोगी रहे।

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