गीत
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सखी री मोहे मिल गए 'मेरे राम’
सखी री मोहे मिल गए मेरे राम।
हर पल मेरे साथ रहे, जुबां पर उनका ही नाम।
सखी री मोहे मिल गए मेरे राम।
मन से प्रभू नाम देख जपना,
कोई नहीं शिवाय उनके अपना।
हर सांस से डोर बंधी है उनकी,
देखूं राम-राज का रोज सपना।
उतारो पार भव सागर से मुझको,
इतनी लाज प्रभू मेरी रखना।
पहचान लूं पाप-पुण्य दुनिया में,
बना लो भक्तमुझे प्रभू अपना।
जले ज्योति हृदय में तुम्हारी, कैसी सुबह और शाम।
सखी री मोहे मिल गए मेरे राम।
वो क्या शिक्षा जिसने हृदय में
स्वदेशी प्रेम का न दीप जलाया।
जड़ों को काटकर कितने दिन तक,
वृक्ष से मिलेगी फल और छाया।
पाकर जन्म भूल जाए मां को,
अरे! जिससे मिली तुझे यह काया।
देश अपना और सोच विदेशी,
इस तन को भी तू नहीं ढ़क पाया।
अपनों से बैर व गैरों से प्यार,
यह देखकर दिल मेरा भर आया।
अगर न संभले गिरकर भी, हो जाओगे फिर गुलाम।
सखी री मोहे मिल गए मेरे राम।
नहीं मन बहकेगा अब कभी मेरा,
मिटा अज्ञान का मन से अंधेरा।
हृदय में बस गए तुम अब मेरे,
लाया ज्ञान मेरे जीवन में सवेरा।
हृदय में बहती जैसे गंगा भारत के,
मिला प्यार सभी को तेरा।
जैसे युग-युग से पापों को धोती,
हर दिल कहे काम यही मेरा।
बने समृद्ध भारत फिर से, मिले सभी को काम
सखी री मोहे मिल गए मेरे राम।
एक मानव जो दीप बनाकर,
अंधेरी रात में जलाकर दिखाए।
मन में अपार खुशी मिले किसान को,
खड़ी फसल खेत में जब लहराए।
फलदार वृक्ष भी हैं देखो कितने,
कोई बोए आम कोई बम बनाए।
ऐसे बोए बीज यहाँ ऋषियों ने हृदय में,
सभी लगाएं बाग नहीं गोली चलाए।
अपनाओ संस्कृति तुम भारत की,
गो-सेवा करें व गुरुकुल में पढ़ाएं।
है जीवन कितना अनमोल सभी का,
बिना वजह क्यों खून बहाएं।
सात्विक आहार लें सभी, न छलके कहीं जाम।
सखी री मोहे मिल गए मेरे राम।
उजड़ रही ऋषियों की फुलवारी,
करमहीन बन गए देख नर-नारी।
भूल रहे सभी संस्कृति भारत की,
विदेशी माल लाए यहाँ व्यापारी।
कमीशन खोरी का लालच देकर,
मचाई लूट भारत में भारी।
भूल गए देश भक्ति को नेताजी,
करें देश के साथ गद्दारी।
सत्यार्थ प्रकाश जैसी कृति पढ़कर,
आई ऋषि दयानंद याद तुम्हारी।
लौटी ऋषि परम्परा फिर से देखो जब पतंजलि धाम।
सखी री मोहे मिल गए मेरे राम।
मांस-मदिरा नहीं अब खानी,
गुरुकुल में रहकर यही सिखाया।
पहचाना फिर स्वरुप प्रकृति का,
जड़ी-बूटियों को यहाँ फिर से उगाया।
हैं संजीवनी ये जीवन के लिए,
शरीर से रोगों को दूर भगाया।
होती खेती आंवला की यहां अब,
एलोवेरा का जूस बनाकर पिलाया।
नीम तुलसी है बहुत ही गुणकारी,
करके शोध दुनिया को दिखाया।
गाय का घी है संजीवनी जैसे,
करके सिद्ध गो-धन को बचाया।
खोल दी आँखें तुमने सभी की,
फिर से स्वदेशी का पाठ पढ़ाया।
जीत लिया हृदय भारत का, गुन गाएंगे लोग तमाम।
सखी री मोहे मिल गए मेरे राम।
आओ मिलकर सभी यह गीत गाएं,
ऋषि परम्परा को आगे बढ़ाऐं।
अच्छे संस्कार डालें नई पीढ़ी में,
कभी न बुझें वो चिराग जलाएं।
भेद-भाव को खत्म करें हृदय से,
मानवता जीवन में अपनाएं।
है विशाल हृदय देख भारत का,
अपनी उदारता दुनिया को दिखाएं।
मंदिरा-मांस व नशाखोरी पर, लगे तुरन्त लगाम।
सखी री मोहे मिल गए मेरे राम।
अज्ञान का जो एहसास कराए,
भटके हुए को राह दिखाए।
ज्ञान से मानव महामानव बनकर,
प्यार के हृदय में दीप जलाएं।
भटक गया यहाँ राह जो अपनी,
वही राक्षस बन कितनों को सताए।
प्यास में एक बूंद भी जल की,
जैसे बनकर प्राण जिस्म में जाए।
है दवा राम ही उसके लिए देखो,
जो मौत से लड़कर जीवन पाए।
आयुर्वेद का फिर से ज्ञान कराने,
योगगुरु बन ऋषि रामदेव आए।
हैं वो भी राम ही जो सद्बुद्धि दे, बचाया देश व ग्राम।
सखी री मोहे मिल गए मेरे राम।
धर्म के क्या-क्या अर्थ बताए,
है धर्म वही जो मानव बनाए।
दिलाए मुक्ति अज्ञान से सभी को,
मन से जो अंधविश्वास भगाए।
पहचानें सत्य को सभी नर-नारी,
स्वामी रामदेव भी यही समझाए।
क्या गुणगान करूं योगऋषि का,
वो शब्द भी मुझे नहीं मिल पाए।
हुआ चमत्कार कलयुग में देखो,
फिर 'वेद उन्हें हृदय में बताए।
सुना है दूर से ही मैंने उनको, लो अब मेरा भी दामन थाम।
सखी री मोहे मिल गए मेरे राम।
हर पल मेरे साथ रहें, जुबां पर उनका ही नाम।
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