विश्व निर्माण को समर्पित हमारे योग आंदोलन के मायने

विश्व निर्माण को समर्पित हमारे योग आंदोलन के मायने

स्वामी रामदेव

  पतंजलि योगपीठ के माध्यम से 2003 से योग की व्यापक जन क्रांति हुई तो इसके प्रयोग व प्रभाव से लाखों, करोड़ों लोगों की सब व्याधियों का समाधान हुआ और देश के कोटि-कोटि जनों ने योग को स्वीकार कर लिया और आज राष्ट्र के शून्य से शिखर तक अधिकांश लोग योग को कमोवेश अपनी जीवनशैली में आत्मसात् कर चुके हैं यह एक ऐतिहासिक घटना है। जब देश के गरीब, मध्यम एवं उच्चवर्ग के लोगों ने एक साथ व्यापक रूप में एक संस्कृति को अंगीकार कर लिया हो। यह भी सत्य है कि जब तक योग पर क्लिनिकल कन्ट्रोल ट्रायल का दौर पूरा नहीं हो जाता तब तक कुछ स्वार्थी व दुराग्रही लोग आरोप-प्रत्यारोप की निकृष्टं राजनीति भी जारी रखेंगे। यद्यपि इससे भी योग को और अधिक व्यापक स्वीकृति ही मिलेगी। हमने अभी तक जो प्रयोग किए हैं वे इस बात के प्रमाण हैं कि योग से विश्व की तमाम समस्याओं का समाधान हो सकता है। प्रयोग, परिणाम एवं प्रयास-यह एक क्रम है सत्य तक पहुंचने का। हम योग एवं आयुर्वेद को एक (Evidence based medicine) प्रयोग सिद्ध औषध की तरह विश्व पटल पर स्थापित करने के लिए कृत संकल्पित हैं।
    आज आम आदमी से लेकर उच्च पदासीन व्यक्ति तक ने भी योग की शिक्षा, दीक्षा ली एवं ले रहे हैं। अनेक न्यायाधीशों, सैनिक एवं अर्धसैनिक बलों, पुलिस एवं प्रशासन से जुड़े तमाम छोटे बड़े लोगों ने प्राणायाम सहित योग की सहज विधियों को सीखकर उसे व्यवस्था में लागू करने के प्रयास प्रारम्भ कर दिए हैं। प्रिन्ट मीडिया एवं इलैक्ट्रोनिक मीडिया ने योग को राष्ट्रव्यापी विस्तार देने में अहम् भूमिका निभाई है। बच्चे से लेकर बूढ़े तक प्रत्येक आयु, वर्ग, मत, पंथ एवं सम्प्रदायों ने योग को स्वीकार किया है। इसी क्रम में राजसत्ता एवं धर्मसत्ता से जुड़ी देश-विदेश की महान् विभूतियों से सीधा संवाद स्थापित कर विश्व की आध्यात्मिक एवं सात्त्विक शक्तियों को संगठित करने का एक अभूतपूर्व कार्य किया गया।
     योग को विश्वव्यापी बनाने की दिशा में प्रधानमंत्री आदरणीय मोदी जी के माध्यम से जो प्रखर प्रयास हुए, उसी का परिणाम है यू.एन.ओ. द्वारा २१ जून को विश्व में योग दिवस की घोषणा। आगे के लिए एक बड़ी कार्य योजना चल रही है। यू.के., आस्ट्रेलिया एवं यू.एस.ए. के बाद अब दुनियां के अधिकांश देशों में पतंजलि योगपीठ के प्रशिक्षित योग शिक्षक नि:स्वार्थ भाव से योग की शिक्षा दे रहे हैं। भारत के लगभग हर जिले में पतंजलि योग प्रशिक्षण समितियां पूर्ण निष्ठा एवं समर्पण से अपना अपना दायित्व निभा रही हैं। हमारा लक्ष्य है कि वर्ष 20२० तक पूरे भारत सहित सम्पूर्ण विश्व में १5 से २0 लाख मुख्य एवं सहयोगी प्रशिक्षक तैयार हो जायेगें। आप और हम मिलकर एक स्वस्थ भारत एवं स्वस्थ विश्व के निर्माण के लक्ष्य को शीघ्र ही प्राप्त कर सकेंगें। दैहिक आरोग्य के साथ-साथ योग से स्वस्थ चिन्तन, स्वस्थ विचार, सम्यक् एवं पवित्र व्यवहार का कार्य स्वत: प्रतिफलित हो रहा है। हम आश्वस्त हैं कि योग शीघ्र ही वैश्विक संस्कृति का हिस्सा बनेगा और पूरा विश्व भारतीय जीवनदर्शन को वैज्ञानिक मानदण्डों के साथ स्वीकार करेगा। यह हम भारतीयों के लिए गर्व की बात होगी ओर विश्व कृयाण व विश्वशान्ति का मार्ग भी इसी से प्रशस्त हेागा। योग से एक स्वस्थ व संवेदनशील समाज, राष्ट्र एवं विश्व का निर्माण होगा। शरीर एवं मन से स्वस्थ व संवेदनशील व्यक्ति हिंसा, अपराध, जातिवाद, प्रान्तवाद एवं मजहबी उन्माद से दूर होगा और संसार में मानवता, प्रेम, शान्ति, सौहार्द, सेवा, सद्भावना व सहिष्णुता का वातावरण तैयार होगा, धरती पर स्वर्ग का अवतरण होगा। विज्ञान एवं अध्यात्म के एक साथ मिलन से विकास में विनाश का खतरा नहीं होगा।
     यह सम्पूर्ण योगान्दोलन जिस सूत्र से संचालित है वह है 'सर्वेभवन्तु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामया:-सब सुखी हो सभी निरोग हों। न किसी को भय हो न विपन्नता। इसी के लिए हम सभी आज भी योगशिविरों के रूप में अल सुबह अलख जगाने निकल पड़ते हैं। देश-विदेश में अब तक हजार से अधिक विशाल योगशिविरों का आयोजन किया जा चुका है। इन शिविरों का उद्देश्य समग्र मानवता को स्वस्थ करना, बीमारियों के संत्रास से मुक्त कर उन्हें पुष्ट और संतुष्ट जीवन प्रदान करना है। 'हमारा यह भी सपना है कि भारत अपनी सनातन गुरु की प्रतिष्ठा को पुन: प्राप्त करे और मानवता को जीवन के परम लक्ष्य का रास्ता दिखा कर उसका जीवन धन्य बनाएं। बाहुबल के जरिए विश्व पर छा जाना मानवीय सिद्धान्त नहीं हो सकता। विश्व गुरु की बात के पीछे चिन्तन यह है कि भारत अध्यात्म के रूप में पहचाने गए अपने वैश्विक मानवीय मूल्यों के प्रसार हेतु कार्य करते हुए विभिन्न प्रकार के दबावों और अभावों की चोट झेल रही मानवता का सम्बल बने एवं उसे नेतृत्व दें।
    स्वस्थ भारत, स्वस्थ विश्व से पवित्र उद्देश्य और क्या हो सकता है? अपने इसी पवित्र उद्देश्य के लिए हम 'योगको दुनिया के अंतिम व्यक्ति तक पहुंचाने के लिए प्रयासरत हैं। वैसे अंतिम व्यक्ति तक 'योगको पहुंचाना आज के परिवेश में कठिन चुनौति है। क्योंकि आज  प्रिंट मीडिया एवं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के कारण जहां एक और पूरे विश्व में ज्ञान विज्ञान का प्रचार व उसकी स्थापना में योगदान मिला है वहीं दूसरी और इसने जाने अजनाने में वासना, हिंसा आदि जीवन के नकारात्मक पक्षों का भी प्रचुरता से प्रचार व प्रचलन किया है। सुखद यह है कि योग की विरासत को जन-जन तक पहुंचांने में मीडिया का रूख सकारात्मक रहा है।
    आज यह मिशन स्वस्थ भारत-स्वस्थ विश्व के सपने के साथ-साथ विश्व निर्माण को साकार करने की ओर बढ़ रहा हैं। योग के साथ जीवन को सर्वांगीण रूप से उन्नत व समृद्ध बनाने के लिए वैदिक सिद्धान्त युक्त आदर्श जीवन की आवश्यक सभी जानकारियां व सम सामयिक विषयों पर उन के दिशाबोधक उद्बोधन निश्चित ही मनुष्य मात्र को अत्यधिक प्रेरित व आन्दोलित करते हैं। दुनिया में जितने तनाव, जितने संत्रास हैं उनसे दुनिया के अंतिम व्यक्ति तक को मुक्ति दिलाने के लिए योग का जो मार्ग चुना है वह न तो बहुराष्ट्रीय कंपनियों की तरह मुनाफा कमाने का है और न ही निहित स्वार्थों के लिए छल, छद्म से लोगों को भ्रमित करने का। जहाँ सम्पूर्ण देश के लगभग सभी बड़े शहरों में योग शिविरों का आयोजन किया जा चुका है, वहीं यू.के., यू.एस.ए., कनाडा, थाईलैण्ड (बैंकाक), दुबई (यु.ए.ई), इण्डोनेशियामारीशस, हालैण्ड, केन्या, युगान्डा, युगोस्लाविया, तंजानिया, नेपाल आदि देश में भी व्यापक व वृहत् स्तर पर योग शिविर व अन्य कार्यक्रम आयोजित हो चुके हैं। उसके अतिरिक्त विभिन्न स्कूल, कॉलेज, जेल व अन्य सामाजिक, आध्यात्मिक व विविध कार्यक्रमों को सम्बोधित व प्रशिक्षित किया गया।
निराश जीवन में आशा की किरण है योग’:
प्राचीन काल से ही ऋषियों का उद्घोष रहा है कि - 'शरीरमाद्यं खलुधर्म साधनम्कर्म करने से लेकर जीवन में आनन्द प्राप्त करने तक का एक मात्र साधन स्वस्थ शरीर ही है। आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में भी रोग  न हो, इसको मुख्य माना गया है। इसके लिए जरूरी है कि हम योग को जीवन में अपनी दिनचर्या का एक अभिन्न अंग बना लें। यह सच है कि रोगी होने पर आपके पास साधन हैं तभी बड़े-बड़े अस्पताल व संसाधनों का लाभ ले सकते हैं जबकि भारत में बसने वाले 33 प्रतिशत, लोगों सहित विश्व में करोड़ों की संख्या में रहने वाले वे लोग जो चिकित्सा की सोच भी नहीं पाते उनके लिए योग-प्राणायाम के रूप में संजीवनी बूटी मिल गयी है। योग उन लोगों के लिए भी वरदान साबित हुआ है जो साधन-सम्पन्न होने पर भी असाध्य रोगों के कारण मृत्यु को सुनिश्चित जान कर जीते जी मर रहे हैं। उनके पास साधन होने पर भी रोगोपचार का कोई मार्ग न था। वास्तव में योग प्राणायाम- ने उन करोड़ों लोगों का रोग रूपी अन्धकुओं में जाने से रोका है। जो हताश निराश थे, उनके जीवन का सहारा बना- योग। जहाँ सारे रास्ते बन्द हो जाते हैं, वहाँ रास्ता दिखाता है योग
  भारत की विविधता में एकता को साक्षात् देखना है तो हमारे किसी शिविर में चले आइये, जहाँ वस्त्रों में तो भिन्नता हो सकती है पर दिलों में नहीं, रूप में भिन्नता हो सकती है पर मनों में नहीं, अभिरुचियों में भिन्नता हो सकती है पर सृजनात्मकता में नहीं। यहाँ हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाईयों सहित कम्युनिस्टों की भागीदारी के रूप में सभी धर्मों, मतों, पन्थों, समुदायों एवं नास्तिकों तथा सभी भाषाओं एवं प्रान्तों सहित विभिन्न देशों का समागम दृष्टिगत होता है।
 जहाँ गरीब से लेकर अमीर तक बालक, वृद्ध, स्त्री, पुरुष सब इस योग से कुछ पाने के लिए एक साथ लाखों की संख्या में बैठते हैं। वास्तव में जहाँ भी योग शिविर होता है, वहाँ रात नहीं होती। वहाँ सवेरा ही होता है, क्योंकि रात को जिस समय सोने का समय होता है उस समय लोग योग कक्षा में जाने की तैयारी कर रहे होते हैं। चाहे सर्दी हो या गर्मी, वर्षा हो या आंधी-तूफान, पांच बजे की जगह- यह क्या? लोग सुबह दो तीन बजे ही योग शिविर की ओर दौड़ लगा रहे हैं। ओह!  क्या उमंग है, कहीं दादी का हाथ थामे पोती साथ में है तो कहीं दादा के कन्धे पर बैठ कर योग कक्षा में भाग लेने को जाता हुआ पोता, क्या सुन्दर मनोहारी दृश्य है। सवेेरे भी सूनी सड़क पर कहीं जाम होता है तो वहाँ निश्चित ही शिविर चल रहा होगा। यदि इंगलैण्ड जैसे देश में जहां कहीं जाम नहीं लगता, जहां लोग प्रात: जल्दी सोकर उठते भी नहीं हैं वहां भी यदि कभी बिल्कुल सवेरे कहीं मार्ग में हजारों गाड़ियां लाईन में जाम लगाये खड़ी मिलें, और लोग कतारबद्व होकर एक ही ओर चले जा रहे हों तो निश्चय मान लें कि वहां योग शिविर होगा।
ऐसे जीवनोपयोगी, समाज व राष्ट्रोपयोगी योग को विश्व निर्माण की अगली कड़ी से जोड़ने के लिए हम सब एक साथ बढ़ें, जीवन में दिव्यता लायें।
 

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