लंग्स कैंसर के लिए गुणकारी औषधि 'काकड़ा सिंगी’
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डॉ. अनुराग वार्ष्णेय
उपाध्यक्ष- पतंजलि अनुसंधान संस्थान
कैंसर होता कैसे है? उसको कैसे परिभाषित करते हैं? कैंसर ऐसी कोशिकाएं हैं जो विभाजित होकर अपने कार्यक्षेत्र पर जाने से पहले रुक जाती है। वो कोशिकाएं एक जगह इक्ट्ठा हो जाती हैं और कैंसर का रूप ले लेती हैं या ट्यूमर कहलाती हैं।
क्या है कैंसर?
ट्यूमर कोशिकाओं एक बहुत बड़ा समूह है। हमारे पूरे शरीर की ऊर्जा कैंसर या ट्यूमर से लड़ने लगती है। इस पर हम कैसे काम करते हैं? पिछले 30 वर्षों में भारतवर्ष में कैंसर के मामले बढ़ गए हैं। डिटेक्शन पहले से बेहतर हुए हैं, पर उत्तर और दक्षिण भारत कैंसर के मामले भी बढ़े हैं। इसमें भी सबसे ज्यादा मरीज ब्रेस्ट कैंसर के हैं। लेकिन यदि कैंसर के कारण होने वाले मृत्यु के आँकड़ों को देखें तो सबसे ज्यादा मौत का कारण लंग्स कैंसर है। हमने विचार किया कि लंग्स कैंसर पर हम क्या काम कर सकते हैं। हमने पाया कि उपलब्ध उपचार ज्यादातर एलोपैथिक दवाएं और कीमोथेरेपी है, जिससे कैंसर कोशिकाओं को जला या फंूक सकते हैं। ये सब क्रियाएं की तो जाती हैं लेकिन इनके दुष्प्रभाव बहुत ज्यादा हैं। सभी लोग इस विषय में जानते ही हैं। लंग्स कैंसर के उपचार हेतु आयुर्वेद में तीन बड़ी औषधियाँ हैं, उनमें से एक है काकड़ा सिंगी।
काकड़ा सिंगी है कैंसर में प्रभावी
आयुर्वेद में काकड़ा सिंगी का प्रयोग लंग्स की बीमारियों में किया जाता है। हमने इसका प्रयोग कोरोनाकाल में भी किया है। आप देंखे कि प्रकृति ने बहुत सारी औषधियों को कुछ ऐसे बनाया कि वो देखने में आतंरिक अंगों जैसी लगती हैं। तो हम इस काकड़ा सिंगी औषधि को देंखे तो यह बिल्कुल लंग्स के जैसा दिखती है। लंग्स जिनके अन्दर हवा भरी रहती है और अन्दर से खाली होते हैं, ठीक वैसे ही काकड़ा सिंगी भी अन्दर से खाली होती है। तो हमने सोचा कि क्यों न हम इसे लंग्स की बीमारियों पर प्रयोग करके देखें। शोध करें कि लंग्स की बीमारियों में या फेफड़े संबंधी रोगों की अलग-अलग परिस्थितियों में ये कैसे काम करता है। इस पर हमारी टीम ने बहुत सारा कार्य किया और निष्कर्ष निकाले। हमने पाया कि भिन्न-भिन्न स्थिति में भिन्न-भिन्न बॉयोलोजिकल तरीके से कैंसर की अलग-अलग अवस्थाओं व अलग-अलग कारकों पर काबू पाया जा सकता है। वास्तव में उन चीजों को जेनेटिक लेवल पर तैयार किया जा सकता है। हमने काकड़ा सिंगी के अलग-अलग प्रकार के एक्सट्रैक्ट बनाये और सारी व्यापक रासायनिक प्रयोग किए। हमने पाया कि इसमें हाइड्रोमैथानॉल एक्टै्रक्ट है जिसे अलग किया जा सकता है। हमने देखा कि लंग्स कैंसर सैल्स पर हमने काकड़ा सिंगी का रस अलग-अलग डोज (अनुपात में) 1 माइक्रोग्राम, 2 माइक्रोग्राम, 3 माइक्रोग्राम एवं 100 माइक्रोग्राम/एमएल तक निचोड़ना शुरू किया, तो हमने देखा कि काकड़ा सिंगी का रस लंग्स के कैंसर सेल्स को बढ़ने से रोक रहा है और ये कैंसर सेल्स मरने लगे।
एनिमल ट्रॉयल में काकड़ा सिंगी का सफल प्रयोग
हमने देखा कि क्या काकड़ा सिंगी का रस ही कैंसर सेल्स को मार रहा है? वह शरीर में जो सही सेल्स हैं उनको तो नहीं मार रहा है? या उनकी ग्रोथ को रोक तो नहीं रहा है? हमने लंग्स कैंसर सेल्स के साथ, लंग्स, किडनी सेल्स लिए और लंग्स हयूमन सेल्स लिए और देखा कि जिस डोज पर या खुराक पर लंग्स कैंसर सेल्स मर रहे थे, उस डोज पर लंग्स किडनी सेल्स पर या हयूमन सेल्स पर कोई असर नहीं हो रहा था। हमने देखा ये जो काकड़ा सिंगी का रस है वो केवल कैंसर सेल्स को ही मार रहा है। इसके अलावा हमने चूहों के सेल्स के अलावा अलग-अलग सेल्स पर काकड़ा सिंगी के रस का उपयोग करके देखा तो वो केवल कैंसर सेल्स पर ही काम कर रहा था। फिर उसके बाद हमने तीन बड़े प्रयोग किए। कैंसर के सेल्स जहाँ भी जाते हैं अपनी एक कॉलोनी (ग्रुप) बना लेते हैं। सभी तरह के बैक्टीरिया, फंगस इत्यादि भी अपना एक ग्रुप बना लेते हैं। ऐसे ही कैंसर भी भोजन या सिगनल की तलाश में एक जगह से दूसरी जगह जाते हैं। वे अपना एक गु्रप बनाते हैं जिसको वैज्ञानिक भाषा में स्पेराइड (एक अण्डाकार आकृति) कहते हैं।
कैंसर की विभिन्न स्टेज में पतंजलि का शोध
हम सबको पता ही है कि कैंसर फैलता बहुत तेजी से है। इसके फैलने को मेटास्टेसिस कहते हैं। जैसे कि पहले किसी को लंग्स कैंसर था, फिर उससे ब्रेस्ट कैंसर हुआ या ब्रेेन कैंसर हुआ तो ये फैलाव है, जिसको हम स्टेज-1, स्टेज-2, स्टेज-3 कहते हैं। इस तरह के प्रयोग हम लगभग 3 हफ्ते में खत्म कर देते हैं लेकिन यह प्रयोग हमने लगभग 2 महीने तक किया। जब हमने काकड़ा सिंगी की डोज बढ़ाकर दी तो कैंसर सेल्स के ग्रुप या समूह बनाना कम हो गये। ये ग्रुप कम करने से, तोड़ने से जो ऊर्जा शरीर को मिलती है, उस ऊर्जा को लेकर शरीर को एक ताकत मिलती है। इससे शरीर भी कैंसर सेल्स से लड़ने के लिए ताकत लगाता है।
उसके बाद हमने कुछ और प्रयोग किए। उसके लिए हमने माइग्रेशन पर शोध किया। उसके लिए हमने सेल्स को 2 टायर में ग्रो किया। फिर उसमें ऊपर वाले टायर में सेल्स को रखा और नीचे कुछ लिक्विड और अंदर कुछ ऐसी कंपाउंड रखे जो सेल्स को अपनी तरफ खींचते हैं। ये जो पूरा माइग्रेशन है वह एक जगह से दूसरी जगह जाता है। हमारे शरीर के अंदर भी ऐसा होता है। सब माइग्रेशन 14 घंटे में, 48 घंटे में, 72 घंटे में एक जगह से दूसरी जगह घूम रहे थे। वो माइग्रेशन क्या हम काकड़ा सिंगी से कन्ट्रोल कर सकते हैं? तो हमने देखा कि काकड़ा सिंगी ने इस लंग्स कैंसर के माइग्रेशन को भी कन्ट्रोल किया।
हमारे शरीर में जितनी भी कोशिकाएं हैं, सेल्स है वह जन्म लेती हैं और मरती हैं, फिर नई बनती हैं। ये चक्र चलता रहता है।
ये सारी प्रक्रियाएं या शोध जो काकड़ा सिंगी औषधि से हो रही है पहले इसका मूल्यांकन नहीं किया गया था। इसका कोई सांइटिफिक वेलिडेशन नहीं किया गया था। पहले हम कहते थे कि कैंसर वाले मरीज अच्छे हो गये, लेकिन हमारे पास कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं था।
मानवता की सेवा में समर्पित पतंजलि ओरोग्रिट
हमने वैज्ञानिक मापदण्डों पर काकड़ासिंगी को कसा और पूरे प्रमाणों के साथ विज्ञान जगत के समक्ष रखा। हमने इन सब प्रक्रियाओं में देखा कि औषधीय प्रयोग से पहले सेल्स कैसे थे? और औषधि लेने को बाद सेल्स में क्या बदलाव आया। हमने पाया कि औषधी के सेवन के उपरान्त कैंसर सेल्स मर गए और तेजी से कम हुए। इन सारी शोध प्रक्रिया से निष्कर्ष निकलता है कि काकड़ा सिंगी औषधि कैंसर से लड़ने में सहायक है। सबका शरीर अलग है तथा प्रत्येक शरीर का बीमारियों से लड़ने का अपना एक तरीका होता है। जिसको ओज कहते हैं। कैंसर से लड़ने के लिए पतंजलि रिसर्च सेन्टर ने ओरोग्रिट नामक औषधि का निर्माण किया। जिससे काफी कैंसर पीड़ितों को लाभ मिल सकेगा। जिससे पीड़ित व्यक्ति एक स्वस्थ एवं खुशहाल जीवन जी कर सकेंगे।
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