पतंजलि गुरुकुलम्
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साध्वी देवशक्ति, वैदिक कन्या गुरुकुलम्
बच्चे किसी भी देश के भविष्य होते है तथा माता-पिता की आशाओं और सपनों के केन्द्र होते हैं। प्रत्येक माता-पिता अपने बच्चों को दुनियां में सबसे ऊँचाई पर देखना चाहते हैं। माता-पिता बच्चों को दुनिया की सर्वश्रेष्ठ शिक्षा देने के साथ श्रेष्ठतम संस्कार भी देना चाहते हैं लेकिन माता-पिता के समक्ष पतंजलि से पूर्व ऐसा कोई विकल्प नहीं था, ऐसा कोई स्थान नहीं था जहाँ वे अपने बच्चों को आधुनिक शिक्षा के साथ उचित संस्कार भी दे सकें। दुर्भाग्य से भारत का भविष्य कान्वेंट स्कूलों एवं ऑक्सफोर्ड, कैम्ब्रिज हावर्ड स्कूलों, मैचाचुसेट्स इत्यादि में पढ़ रहा है।
प्राचीनकाल में जिस भारत की गुरुकुलीय शिक्षा व्यवस्था में अनन्त ज्ञान, वैभव, गौरव, संस्कार, सद्भाव, स्वाभिमान और कुशलताएं थी। इसी गुरुकुलीय शिक्षा पद्धति में महर्षि कणाद, जैमिनी, पाणिनी, पतंजलि, आर्यभट्ट इत्यादि ने शिक्षा प्राप्त की। इन्हीं गुरुकुलों में पढक़र मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान् श्रीराम ने मर्यादा का आदर्श स्थापित किया और योगेश्वर श्रीकृष्ण जी ने योगी बन अर्जुन को गीता ज्ञान दिया। लेकिन बीच में एक दौर ऐसा आया जब मुगलों और अंग्रजों ने हमारी गुरुकुलीय शिक्षा व्यवस्था को नष्ट कर दिया।
200 साल पहले मैकॉले ने शिक्षा व्यवस्था के साथ घोर अन्याय किया और आध्यात्म पर आधारित हमारी शिक्षा व्यवस्था को ध्वस्त कर दिया।
इस मैकोलिक शिक्षा व्यवस्था को नष्ट करने का सपना महर्षि दयानन्द और स्वामी श्रद्धानन्द जी ने देखा था। इन महापुरुषों के सपनों को मूर्त आकार परम श्रद्धेय स्वामी जी महाराज एवं परम श्रद्धेय आचार्यश्री जी ने अखण्ड-प्रचण्ड पुरुषार्थ से सभी चुनौतियों, बाधाओं, रूकावटों का सामना कर गुरुकुलीय शिक्षा को पुन: जीवित कर दिया। भारत को खोया हुआ वैभव, सम्मान पुन: वापस दिलाया। हम इन दोनों विभूतियों को हृदय से कोटि-कोटि नमन करते हैं। आज हमारे समक्ष वे विकल्प खुले हैं जैसे भारत की आर्ष शिक्षा परम्परा में शिक्षा एवं संस्कारों का श्रेष्ठतम दिव्य संगम था। उसी सनातन आर्ष ज्ञान परम्परा एवं आधुनिक शिक्षा व्यवस्था का दिव्य संगम है ‘पतंजलि गुरुकुलम्’।
पतंजलि गुरुकुलम् में एक ओर जहाँ आधुनिकतम शिक्षा प्राप्त होती है, वहीं दूसरी ओर संस्कारों द्वारा उनमें श्रेष्ठतम नेतृत्व पैदा होता है। ऋषि-ऋषिकाओं और वीर-वीरागंनाओं के सपनों का भारत बनाने की दिव्य भूमि है पतंजलि गुरुकुलम्।
गुरुकुल श्रेष्ठ क्यों है?
विद्ययामृतमश्नुते ।। ईशा.।।
उपनिषद् में ऋषि कहते हैं कि विद्या से मनुष्य अमृतपद प्राप्त करता है।
गीता में योगेश्वर जी कहते हैं-
न हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह लभ्यते।।
इस संसार में ज्ञान के समान पवित्र करने वाला कुछ भी नहीं है।
जब हम इन पवित्र मंत्रों, श्लोकों के उद्घोष को सुनते हैं तो एक प्रश्न खड़ा होता है कि जो शिक्षा कान्वेंट स्कूल में दी जा रही है, क्या वह ज्ञान विद्या शिक्षा ऐसी है? तो उत्तर आयेगा नहीं। हाँ, वह शिक्षा आपको नौकरी, आजीविका तो दे सकती है, परन्तु जीवन के मूल्यों को देने में समर्थ नहीं है। लेकिन ऋषिगण एक स्वर में कह रहे हैं कि विद्या अमृत पद को देने वाली है। हाँ, उनका आशय उस शिक्षा से है जो गुरुकुल पर चरितार्थ है। आज ये सारा संसार मनुष्य के विकास के लिए जुटा हुआ है, लेकिन इस भौतिकता की चकाचौंध में हम मनुष्यों का विकास भी होना अत्यन्त आवश्यक है। ऋषियों ने इसी को धर्म कहा है-
यतोऽभ्युदय नि:श्रेयस: सिद्धि स धर्म:।
तो इसी हेतु परम् पूज्य स्वामी महाराज ने पतंजलि गुरुकुलम् शिक्षण संस्थान की स्थापना की जहाँ शिक्षा के साथ-साथ संस्कार भी प्राप्त हो, अभ्युदय संग नि:श्रेयस दोनों का समन्वय हो। वह गुरुकुलीय शिक्षा पद्धति ही है जहाँ वैश्विक नागरिकों की सर्जना हो सकती है। जब हम वेदों और उपनिषदों की ओर देखते हैं तो पाते हैं कि किस प्रकार बहुविध शिक्षा का रूचिकर ढंग से प्रकृति के समस्त रहस्यों ज्ञान, शरीर, मन,आत्मा और ब्रह्म का ज्ञान भी गीतात्मक स्वरूप में सहज और सरल में अभिव्यक्त हो सकता है। गुरुकुल पद्धति में मात्र आध्यात्म ही नहीं अपितु अभ्युदय और नि:श्रेयस दोनों का समग्र दृष्टिकोण है। हमारे ऋषियों का ज्ञान अनुभूति जन्य था। गुरुकुलीय शिक्षा पद्धति के मुख्य तीन बिन्दु और समन्वय शिक्षा शब्द सुनते ही हमारे मन व मस्तिष्क में कई प्रकार के विचार उठते हैं, प्रथम- शिक्षा की गुणवत्ता स्तर, दूसरा- शिक्षा के बाद विद्यार्थी का भविष्य अर्थात् शिक्षा पूर्ण होने पर विद्यार्थी के शेष जीवन में उस शिक्षा के आधार पर उसकी आध्यात्मिक, वैयाक्तिक, पारिवारिक, आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक, राजनैतिक या वैश्विक उपयोगिता क्या होगी? तीसरा- एक आदर्श एवं सर्वाङ्गीण शिक्षा व्यवस्था का स्वरूप कैसा होना चाहिए? जिससे विद्यार्थी का सम्पूर्ण विकास हो सके।
पतंजलि गुरुकुलम् का लक्ष्य आध्यात्मिक क्षेत्र बड़े कार्यों का निष्पादन करना है। इसका उद्देश्य ऐसे विद्यार्थियों का निर्माण करना है जो आधुनिक ज्ञान, विज्ञान के साथ-साथ वैदिक ज्ञान परम्परा में भी पूर्ण दीक्षित हों। ऐसे श्रेष्ठ व्यक्तित्व तैयार करना जो गुरुकुलीय शिक्षा व्यवस्था में पूर्ण शिक्षित, दीक्षित होकर अपने व्यक्तित्व को शारीरिक, बौद्धिक, आध्यात्मिक व सामाजिक रूप से सर्वाङ्गीण विकसित करके समाज, राष्ट्र व विश्व में सफलता समृद्धि एवं विकास का नया इतिहास रच सकें। वैयक्तिक या चारित्रिक रूप से गुरुकुलम् के विद्यार्थी एक महामानव, महापुरुष की तरह विकसित होंगे। उनके जीवन में विविध कुशलताओं के साथ-साथ मानवता देवत्व व ऋषित्व का पूर्ण विकास हो, संस्कृत एवं विविध शास्त्रों की कुशलता, वृक्तत्व, कला, संगीत, कृषि, व्यवसाय, प्रबंधन अनुसंधान एवं विविध प्रकार के नेतृत्व की कुशलता सात्विक रूप से विकसित हो। विविध भाषाओं की पूर्ण कुशलता व आर्ष ज्ञान की पूर्ण शिक्षा होने से विद्यार्थी पूरे विश्व की नयी संभावनाऐं खोजने एवं नये-नये कीर्तिमान बनाने में सक्षम हो।
श्रेष्ठ तीन व्रतों का पालन:
जैसा की परम् पूज्य स्वामी जी महाराज का लक्ष्य श्रेष्ठ दिव्य व्यक्तित्व निर्मित करना है, इसलिए पतंजलि गुरुकुलम् में विद्याभ्यास, योगाभ्यास, श्रेष्ठ व्रताभ्यास इन व्रतों को समान रूप से महत्व दिया जाता है। क्योंकि विद्याभ्यास विद्यार्थियों का समग्र बौद्धिक विकास, योगाभ्यास से शारीरिक भावनात्मक व आध्यात्मिक विकास तथा श्रेष्ठ-दिव्य विकास व्रतों के अभ्यास से चारित्रिक विकास के द्वारा प्रकृति में पूर्ण दिव्यता को विकसित करना, यही परम् पूज्य स्वामी जी महाराज एवं परम् श्रद्धेय आचार्य जी का ध्येय है। और इसी ध्येय की प्राप्ति हेतु पतंजलि गुरुकुलम् की दिनचर्या अत्यन्त सुव्यवस्थित बनायी गई है।
पतंजलि गुरुकुलम् के सभी कक्षा 5 से कक्षा 8 के ऋषि कुमार, ऋषिकाएं प्रात:काल 4:00 बजे ब्रह्ममूर्त में पवित्र वेद मंत्रों के उद्घोष से जागरण कराया जाता है। प्रात:काल इन ऋषि कुमारों व ऋषिकन्याओं को पवित्र ग्रन्थों- उपनिषद्, गीता, पञ्चोपदेश, दर्शन इत्यादि शास्त्रों का स्मरण कराया जाता है। प्रतिदिन 1 घण्टा योगाभ्यास एवं पवित्र वेद मन्त्रों से सुगन्धित व दिव्य औषधियों से युक्त सामग्री से यज्ञ किया जाता है। पतंजलि के छात्रों को प्रतिदिन प्रात:काल 4:00 से लेकर रात्रिकाल 8:00 बजे तक मानसिक, बौद्धिक, वैचारिक शारीरिक स्तर पर अखण्ड-प्रचण्ड पुरुषार्थ कराया जाता है। इसी तरह अहर्निश निरन्तर पुरुषार्थ करता हुआ पतंजलि गुरुकुलम् परम पूज्य श्रद्धेय स्वामी जी एवं परम् श्रद्धेय आचार्यश्री जी अनन्त कृपा से नालंदा तक्षशिला की तरह सहस्राब्धियों, सहस्र अब्धियों तक भारतीय शिक्षा पद्धति की ध्वजा को फहराता हुआ नया कीर्तिमान स्थापित करता रहेगा।
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