यज्ञ महिमा एवं आधुनिक अनुसंधान
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कुमारी अनुराधा गुप्ता
यज्ञ एवं योग शोधार्थी, पतंजलि विश्वविद्यालय
भारतीय संस्कृति में प्राचीन काल से ही विश्व बन्धुत्व एवं सहअस्तित्व की भावना को मूर्त रूप प्रदान करने हेतु यज्ञों की पावनी परम्परा चली आ रही हैं। मनुस्मृति में पंच महायज्ञों का विधान है -
ऋषियज्ञं देवयज्ञं भूतयज्ञं च सर्वदा।
नृयज्ञं पितृयज्ञञ्च यथाशक्ति न हापयेत।।
पंचमहायज्ञों (ब्रह्मयज्ञ, देवयज्ञ, भूतयज्ञ, नृयज्ञ व पितृयज्ञद्ध) से मनुष्य विकारों से ही नहीं दूर रहता अपितु अपने जीवन को सुखमय बनाते हुए जीवन निर्वहन करता है। मनुष्य के जीवन शरीर का प्रारम्भ व अन्त भी यज्ञ के अनुष्ठान से ही होता है, इसके साथ ही साथ विभिन्न त्योहारों व उत्सवों में भी यज्ञ अनुष्ठान की विशेष महत्ता रही है।
यज्ञ भारतीय संस्कृति का प्राण है। वेद, उपनिषद, पुराण संहिता व स्मृतियों में यज्ञ की महिमा का विस्तृत वर्णन मिलता है। वेदों में यज्ञ शब्द का प्रयोग 11184 बार किया गया है प्राचीन वैदिक ग्रन्थों में विभिन्न शारीरिक, मनोवैज्ञानिक, मनोशारीरिक, भावनात्मक, सामाजिक और आध्यात्मिक रोगों सहित सम्पूर्ण स्वास्थ्य की अवधारणा का वर्णन किया गया है। उदाहरण के लिए- प्रतिदिन यज्ञ करने से निम्नलिखित रोगों जैसे रोगों से बचाव (अथर्ववेद 6/55/3), स्वास्थ्य संरक्षण (ऋग्वेद 3/10/3, अथर्ववेद 3/11/1-8), दीर्घायु प्राप्ति (अथर्ववेद 7/55/6, अथर्ववेद 19/58/1), आध्यात्मिक उन्नति, मानसिक शांति, शक्ति (ऋग्वेद 3/10/3), और ऊर्जा (यजुर्वेद 21/21 एवं 12/19) अथर्ववेद 7/89/1), मानसिक शुद्धि, पर्यावरण शुद्धि, रोग निवारण (यजुर्वेद 18/1 से 18/23), भोजन, समृद्धि, खुशी (यजुर्वेद 3/63), मानसिक क्षमताओं का विकास (यजुर्वेद 30/1) इत्यादि का वर्णन मिलता है। इतना ही नहीं, प्राचीन शास्त्रों में यह भी उल्लेख है कि ऋतुओं के संक्रमण के दौरान जड़ी-बूटियों का उपयोग करके मौसमी यज्ञ किए जाते थे, जिससे पता चलता है कि यज्ञों का उपयोग महामारी रोगों को रोकने और उनका इलाज करने और समाज में स्वास्थ्य लाने के लिए किया जाता था (गोपथ ब्राह्मण 1/19)। वस्तुत: यज्ञ में, जीवन में उत्कृष्टता प्राप्त करने का रहस्य है।
यज्ञ दो दृष्टियों से अपनी महत्ता प्रस्तुत करता है एक तो आन्तरिक दृष्टि से और दूसरा बाह्य दृष्टि से। आन्तरिक दृष्टि से यज्ञ मनुष्य के भीतर त्याग, समर्पण, प्रेम, तेजस्विता, शान्ति, संगठन, शत्रुता, दमन आदि भावनाओं को उद्बुद् करता है तथा बाह्य रूप में यह वायुमण्डल को शुद्ध करता है तथा रोगों व महामारियों से हमें बचाता है। आज विभिन्न प्रकार के रोगों से व्यक्ति का आए दिन सामना हो रहा है जिसका प्रत्यक्ष रूप से कारण वातावरण में हो रहे वायु प्रदुषण ही है तथा इसका प्रत्यक्ष प्रभाव यज्ञ के माध्यम से ही ज्ञात होता है। यज्ञ पर हुए विभिन्न अध्ययन से यह सिद्ध होता है की यज्ञ केवल आध्यात्मिक अनुष्ठान मात्र नही अपितु यह वातावरण को शुद्ध कर हमें विभिन्न प्रकार के भयावह रोगों से भी बचाने वाला है। लाड और पालेकर (2016) के द्वारा पर्यावरण को शुद्ध करने के लिए प्राकृतिक जड़ी-बूटियों से बने धूप के योगों को तैयार करने और उनका मूल्यांकन करने के लिए एक अध्ययन किया गया था। हर्बल धूप में गाय का गोबर, गाय का घी, गाय का दूध, कपूर और कई अन्य जड़ी-बूटियों का उपयोग किया गया, जिनमें एक सराहनीय सुगंध होती है। तैयार धूप की रोगाणुरोधी गतिविधि की जाँच की गई और यह पाया गया कि यह विभिन्न अस्पतालों, होटलों, प्रयोगशालाओं आदि में कीटाणुशोधन के लिए एक संभावित स्रोत हो सकता हैं।
छगंती, वी.आर. (2020) द्वारा किया गया शोध जिसका उद्देश्य वायु प्रदूषण पर अग्निहोत्र के प्रभावों का पता लगाना था। अध्ययन के लिए 2012 से 2019 तक हर साल संयुक्त राज्य अमेरिका के जॉर्जिया राज्य में अटलांटा के पास वर्ष में अलग-अलग समय पर यज्ञ प्रयोग किया गया। यज्ञ से पहले और बाद में PM मूल्यों के बारे में डेटा एकत्र किया गया था। उन सभी ने वायु प्रदूषण के समाधान के रूप में अग्निहोत्र की प्रभावशीलता के बारे में उत्साहजनक परिणाम दिखाए।
वंदना श्रीवास्तव व अन्य द्वारा 2020 में मृदु हृदबृहत्ता (Mild Cardiomegaly) के साथ तीव्र फुस्फुसीय शोथ (Acute Pulmonary Edema) के प्रबंधन में यज्ञ थेरेपी के प्रभाव का पता लगाना था। इस अध्ययन में रोगी को यज्ञ चिकित्सा और कुछ अन्य आयुर्वेदिक उपचारों सहित एकीकृत दिया गया और 2 वर्षों के बाद रोगी से प्राप्त प्रतिक्रिया के अनुसार रोगी की सभी शिकायते पूरी तरह से ठीक हो गयी थी। एक अन्य शोध टाइप-1 मधुमेह मेलिटस (T2DM) के प्रबंधन में हर्बल औषधीय-धुएं (धूम-नस्य) के प्रभावों का पता लगाने हेतु किया गया। इस अध्ययन के लिए 6 वर्षों से T2DM से पीडि़त एक रोगी को सुबह और शाम 24 जड़ी-बूटियों से बनी 4 अगरबत्तियों को जलाकर और गहरी सांस के माध्यम से लगभग 45 मिनट तक औषधीय-धुएं को ग्रहण करने के लिए कहा गया था। रोगी को इस प्रक्रिया को कम से कम 10 सप्ताह तक जारी रखने को कहा गया। उपचार के 13 सप्ताह के बाद, HbA1C का स्तर 7 से नीचे आ गया जोकि पहले 10 तक पहुंच गया था और साथ ही रोगी ने बार-बार भूख लगना, जलन आदि जैसे संबंधित लक्षणों में भी राहत का अनुभव किया।
इसी प्रकार अलका मिश्रा व अन्य द्वारा (2019) में किये गये अध्ययन का उद्देश्य घुटने के पुराने ऑस्टियोआर्थराइटिस (Osteoarthritis) से जुड़े लक्षणों के प्रबंधन में यज्ञ चिकित्सा के प्रभाव का पता लगाना था। दाहिने घुटने में OA से पीडि़त एक 68 वर्षीय पुरुष रोगी को यज्ञ चिकित्सा और पूरक आयुर्वेदिक उपचार सहित एकीकृत दृष्टिकोण के साथ निर्धारित किया गया था। रोगी ने बताया कि दर्द लगभग पूरी तरह से ठीक हो गया है और वह आराम से चल पा रहा है, ऐसे ही एक अन्य शोध विकास कुमार व अन्य, 2019 ने Galvanic Skin Response (GSR) संकेतों में यज्ञ में गायत्री मंत्र के प्रभावों का पता लगाने के लिए किया गया था। अध्ययन के लिए 17 से 24 आयु वर्ग के 12 स्वयंसेवी छात्रों (पुरुषों) का चयन किया गया, जो यज्ञ क्रिया से अनभिज्ञ थे। भावनात्मक परिवर्तनों के लिए GSR सिग्नल पैटर्न को बायोफीड बैक मशीन के माध्यम से मापा गया। इस अध्ययन से पता चलता है कि यज्ञ के दौरान गायत्री मंत्र के उच्चारण के साथ आहुति देने से GSR संकेतों में उल्लेखनीय कमी आती है।
इसके अलावा भी यज्ञ के क्षेत्र में विभिन्न अनुसन्धान हो चुके हैं जो दर्शाते है कि यज्ञ पर्यावरण प्रदूषण को दूर करने के साथ-साथ रोगों के निवारण में भी अत्यंत उपयोगी है। अनेक चिकित्सा पद्धतियों में कुछ न कुछ खामियाँ देखने को मिलती है किन्तु यज्ञ चिकित्सा पद्धति सम्पूर्ण गुणों को धारण किए हुए है। यह गौण तथा मुख्य रूप से छिपे हुए सभी रोगों के मूलभूत कारणों का निवारण करता है।
यज्ञ में हुए विभिन्न अनुसन्धान से अब यह सिद्ध हो चुका है कि यज्ञ न केवल आध्यात्मिक जीवनशैली के लिए आवश्यक है अपितु यह जन सामान्य को स्वस्थ रखने हेतु भी अत्यंत कारगर है। शारीरिक, मानसिक एवं सामाजिक स्वास्थ्य और पर्यावरण शुद्धि के लिए अपने अद्वितीय योगदान के कारण यज्ञ वास्तव में सम्पूर्ण प्राणी जगत के लिए एक वरदान है। पतंजलि संस्थान यज्ञ की महिमा और वैज्ञानिकता को जन-जन तक पहुचाने के प्रतिबद्ध है, ताम्र यज्ञ पात्र एवं रोगानुसार शोध करके विभिन्न यज्ञ सामग्रियों का निर्माण इसी दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है। वैदिक ऋषियों की इस प्राचीन सांस्कृतिक एवं कल्याणकारी विरासत को पोषित करना प्रत्येक मनुष्य का परम कर्तव्य है।
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