हेमंत ऋतुचर्या

हेमंत ऋतुचर्या

डॉ. अभिषेक भूषण शर्मा

प्रो. काय-चिकित्सा विभाग,

डॉ. श्रेया जोशी

एम.डी. शोधार्थी, काय-चिकित्सा विभाग

मनुष्य के स्वास्थ्य के साथ ऋतुओं का गहरा संबंध हैं। ऋतु अर्थात् मास चर्या अर्थात् आहार-विहार, रहन सहन, खानपान ऋतुचर्या कहलाता है। माघ से प्रारम्भ करके दो-दो मासों को मिलाने पर क्रमश: शिशिर, बसन्त, ग्रीष्म, वर्षा, शरद और हेमन्त : ऋतुएँ होती हैं। प्रत्येक ऋतु की अपनी ऋतुचर्या का पालन करने के शरीर में बल-वर्ण की अभिवृद्धि स्वस्थ्यता रहती है। : ऋतुओं को दो काल में विभाजित किया जाता है-   
 
  •   आदान काल (सूर्य का बल अधिक, चन्द्रमा का बल कम)
  •    विसर्गकाल (चन्द्रमा का बल अधिक, सूर्य का बल कम)
हेमन्त ऋतु विसर्गकाल के अन्तर्गत आती है जिसमें चन्द्रमा बलवान होता है और सूर्य का तेज कम होता है। स्वास्थ्य की दृष्टि से शीतकाल की ऋतुएँ मनुष्य के लिए अधिक अच्छी मानी गई है। हेमन्त ऋतु में औषधियों भी अधिक गुणयुक्त होती है। हेमन्त ऋतु में शरीर बलयुक्त, दिन छोटे तथा रातें लम्बी होने के कारण शरीर को आराम करने के साथ-साथ भोजन के पाचन के लिए भी अधिक अनुकूलता मिलती है। इन दोनों कारणों से हेमन्त ऋतु में अधिक पुष्टि मिलती है और भूख भी अधिक लगती है। पाचन शक्ति तेज होने से भारी और अधिक मात्रा में लिया गया आहार भी आसानी से पच जाता हैं। अत: इस ऋतु में भूखा रहना और रूक्ष भोजन खाना हानिकारक होता है। पर्याप्त मात्रा में भोजन रूपी इन्धन मिलने से जठराग्नि धातुओं रस, रक्तादि धातुओं की वृद्धि करती हैं एवं शरीर में वातदोष को बढ़ाती है, इसलिए इस ऋतु में मधुर, अम्ल, लवण रसों का उपयोग करना चाहिए।

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हेमन्त ऋतु में आहार

हेमन्त ऋतु में स्निग्ध घी, तैल आदि के युक्त, मधुर अम्ल तथा लवण रसयुक्त भोज्य पदार्थों का सेवना करना चाहिए
इस ऋतु में बृहणकारक खानपान और जो द्रव्य गुरू (देर से पचे) प्रयोग करना चाहिए।
हेमन्त ऋतु में उपयोगी आहार निम्नवत् हैं
  • दूध् दूध् के विकार (दही, मलाई, रबडी, छेना आदि)
  • ईख के विकार (गुड़, खाण्ड, मिश्री आदि
  •  नये चावल
  •  तैल, सरसों, तिल, अलसी आदि
  •  घृत (Ghee)
  •  गेहूँ, बाजर
  •  मूंग, मसूर, अरहर, उड़द, कुलत्थ दाल
  •   उष्ण जल
  •  तिल, मेथी एवं गुड़ के बने लड्डू

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हेमन्त ऋतु में औषधीय प्रयोग

रसायन:- ऋतु हरितकी- हरितकी का प्रयोग = 1 चम्मच हरितकी + 1/4 चम्मच शुण्ठी के साथ प्रात:कालीन लेना चाहिए।
च्वयनप्राश:- अमृतभल्लातक, ब्रह्मरसायन प्रयोग
पंचकर्म:- अभ्यंग, उत्सादन, सिर पर तैल लगाना
(Massage, Power Massage, Massageover head) जेन्ताक स्वेद (dry hot bath), आतप सेवन (sun bath), उष्ण गर्भ गृह में निवास करना चाहिए।

हेमन्त ऋतु में विहार

  • हेमन्त ऋतु में प्रात: तैल (सरसों, तिल तैल आदि) से अभ्यंग (मालिश) तथा सिर में तैल लगाना चाहिए।
  • धूप का सेवन, गर्म वस्त्रों का धरण, उष्ण गृह में निवास करना चाहिए।
  • शीतकाल में वाहन, शयन कक्ष, बैठक कक्ष अथवा भोजन कक्ष चारों ओर से घिरा या ढका होना चाहिए।
  • हेमन्त ऋतु में वात का प्रकोप रहता है तथा वातावरण शीतल रहता है, इसलिए शीत से बचने का पूरा प्रयत्न करना चाहिए (विशेषकर वृद्धावस्था में)

हेमन्त ऋतु में वर्जनीय आहार

  • हेमन्त ऋतु में लघु (शीघ्र पचने वाला) तथा वातवर्धक आहार का सेवन नहीं करना चाहिए।
  • प्रमिताहार (थोड़ा नपा-तुला भोजन) नहीं करना चाहिए।
  • शीतल जल में घुले सत्तू का सेवन नहीं करना चाहिए।

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