भारत कैसे था सोने की चिडिय़ा भारत का अद्भुत वस्त्र विज्ञान

भारत कैसे था सोने की चिडिय़ा भारत का अद्भुत वस्त्र विज्ञान

डॉ. साध्वी देवप्रिया, 

प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्षा- दर्शन विभाग, पतंजलि विश्वविद्यालय, हरिद्वार

भारत का अद्भुद है वस्त्र विज्ञान

भारत का 17वीं और 18वीं शताब्दी तक विश्व के व्यापार में लगभग 35-40 प्रतिशत हिस्सेदारी रहती थी, पर भारत सोने की चिडिय़ा क्यों कहलाया जाता था? अगर हम देखें की भारत में पुराने जमाने से लेकर आज तक कोई सोने की, हीरे की बहुत बड़ी खदानें नहीं हैं। कर्नाटक में 1-2 खदानें हैं।
यह माना जाता है कि भारत का विज्ञान इतना उन्नत था, भारत के उत्पाद इतने उन्नत थे, भारत के मसाले, भारत का वस्त्र उद्योग, भारत की विज्ञान और टेक्नोलॉजी इतनी अच्छी थी कि विदेशों में लोग उसे लेते थे और बदले में सोना-चाँदी देते थे। कुछ शोधकर्ता तो यह कहते हैं सोना-चाँदी बह-बहकर भारत आता था, मतलब व्यापार के माध्यम से भारत की टेक्नोलॉजी इतनी उन्नत थी कि सोना-चाँदी बह बहकर देश में आता था।
यह सोना-चाँदी कैसे आता था इसका अंदाजा आप लगा लीजिये की दुनिया के लोग जब जंगलों में रहते थे, जब उन्होंने वस्त्र बनाना नहीं सीखा था। उस समय से भारत में वस्त्र बनाये जा रहे हैं। भारत से जो मसाले विदेश जाते थे उन्हें विदेश के अमीर लोग अपने घर के ड्राईंग रूम में दिखाने के लिए मर्तबान में रखते थे और यह अमीरी की निशानी मानी जाती थी कि मेरे पास 1-2 किलो काली मिर्च है।
भारत कैसे विश्वगुरु था, यह बात इसी से आँकी जा सकती है कि जो कपड़े भारत से निर्यात किए जाते थे वह इतने उन्नत होते थे कि विदेशी बाजारों के तराजू के एक पलड़े पर कपड़ा रखा जाता था और कपड़े की कीमत कोई मीटर या किलो में नहीं होती थी बल्कि तराजू के दूसरे पलड़े पर सोना, चाँदी आदि मूल्यवान धातुएँ रखी जाती थी। हमारे कपड़े के बराबर सोना, चाँदी, हीरे, जवाहरात हमारे देश में आता था। इतना उन्नत विज्ञान हमारा था।
हमारे भारत में एक पूरा सिल्क रूट रहा है, जो रूट केवल सिल्क और वस्त्र उद्योग के लिए बनाया गया था। हमारे भारत में वस्त्रों का विज्ञान कितना उन्नत रहा है इसका अंदाजा आप स्वयं लगा लीजिये। दुनिया के दूसरे लोग या तो भेड़ के या तो दूसरे जंगली जानवरों के बालों से धागा बनाते थे, उनसे वस्त्र बनाते थे वह कपड़े नहीं होते थे अपितु लबादे होते थे। वे उनको शरीर पर धारण करते थे, जो बहुत गर्म और मोटे होते थे। भारत में वस्त्र विज्ञान इतना उन्नत था किजब विदेशी भारत आए तो उन्होंने पहली बार रुई देखी।रूई देखकर उन्होंने कहा किभारत के अंदर तो भेड़ का पौधा होता है।उनको यह नहीं पता था की रुई जैसी कोई चीज वनस्पति, पेड़ के ऊपर लगती है। भारत का वस्त्र विज्ञान कितना उन्नत था इसके मैं एक दो उदाहरण आपके सामने रखूँगा। नवीं शताब्दी में भारतीय वस्त्र उद्योग के बारे में यह कहा जाता था की कपड़े का पूरा थान एक अंगूठी के अंदर से निकल जाता है।
17वीं शताब्दी में फ्रांसीसी यात्री वेर्नियर भारत आया तो यहाँ के कपड़े को देख कर कहता है किकपड़े की बुनाई इतनी महीन की गई है कि किसी ने पहन लिया तो यह नहीं लगता की कुछ पहना हुआ है, इतना बारीक कपड़ा यहाँ पर बनता था।
एक बार पर्शियन राजदूत भारत आया और अपने सुल्तान के लिए एक उपहार यहाँ से लेकर गया। उसने भरे दरबार में उसने सुल्तान को एक नारियल का खोल उपहार दिया। उस नारियल के खोल को दरबारियों ने आश्चर्य से देखा। जब सुल्तान ने खोला तो उस नारियल के खोल के अंदर 30 गज का मलमल का थान निकला, यह टेक्नोलॉजी केवल हमारे भारत देश के अंदर थी।
हमारे यहाँ जब अंग्रेज आये तब उन्होंने 18वीं शताब्दी में भारत से बना हुआ एक कपड़ा जाँच के लिए इंग्लैंड भेजा और उस कपड़े को जब count किया गया कि यह कितना बारीक है, तो यह पाया कि उस कपड़े में जो धागा लगा हुआ वह 2425 count का है। आज भी हम आधुनिक मशीनों से जब हम धागा बनाते हैं तो 500 से 600 count का ही धागा बना पाते हैं। जहाँगीर के समय की बात करें तो जहाँगीर के काल में लगभग 15 मीटर लम्बे, लगभग 1 मीटर चौड़े मलमल के कपड़े का वजन केवल 100 ग्रेन होता था (1 ग्राम में 15.5 ग्रेन होते हैं) इसका मतलब क्या है कि एक ग्रेन एक ग्राम का 15वां हिस्सा है, तो 6 ग्राम में 15 गज लम्बा तथा एक गज चौड़ा मलमल का कपड़ा रहता था, इतनी उन्नत तकनीक भारत में थी। अभी भारत का वह वस्त्र विज्ञान दोबारा से विलुप्त हो गया है।

पतंजलि ने एक नई पहल वस्त्र विज्ञान में की है जिसके तहत पतंजलि ने बांस के वस्त्र बनाए हैं।

पूरी दुनिया में बांस पाया जाता है। बांस की लगभग 1500 प्रजातियाँ होती हैं, कुछ प्रजातियाँ ऐसी हैं जो बहुत धीरे-धीरे बढ़ती हैं तथा कुछ एक दिन में ही 1 मीटर बढ़ जाती हैं। बांस को उगाने के लिए किसी प्रकार की अलग से खेती करने की, कीटनाशक फर्टिलाइजर डालने की, अलग से पानी देने की जरुरत नहीं पड़ती। कम देखभाल में बांस खूब उगता है। पतंजलि ने इस बांस के वस्त्र बनाये हैं। विदेशों में बांस के वस्त्रों का प्रचलन पहले से है, यूरोप में तो इसे फैशन माना जाता है और जो बड़े-बड़े एथलीट हैं वे बांस से बनी जुराबें पहनते हैं। बांस से वस्त्र कैसे बनाये जाते हैं यह भी एक रोचक विषय है। बांस के गूदे (पल्प) से धागा बनाया जाता है और उसी धागे की बुनाई करके कपड़ा बनाया जाता है। बांस के वस्त्र चमत्कारिक होते हैं। पतंजलि ने बांस का प्रयोग कर वस्त्र बनाए हैं। ये वस्त्र अत्यधिक गर्मी में भी पसीना सोखने का काम करते हैं। बांस के दो महत्वपूर्ण गुण हैं- एक एंटी-फंगल तथा दूसरा एंटी-बैक्टीरियल। अत: इसमें फंगस अपने आप नहीं पनपती और पनपती है तो मर जाती है। जीवाणु और विषाणु एक कोशिका के बने होते हैं, यह कहीं भी आसानी से पैदा हो जाते हैं। कहीं भी नमी, सीलन या पसीने का वातावरण मिलता है तो ये अपने शरीर तथा शरीर के बाहर वातावरण के सम्पर्क में आकर पैदा होते रहते हैं। 
इस वस्त्र की और खास बात है। कश्मीर के पश्मीना की तरह यह बहुत कोमल होता है। कश्मीर का यह पश्मीना पशुओं से प्राप्त किया जाता है, लेकिन यह पौधों से प्राप्त किया जाता है।
हमारे वस्त्रों के तीन मुख्य स्रोत हैं, एक जानवरों के बाल से, इसमें रेशम का कीड़ा तथा अन्य जानवर जैसे- भेड़, बकरी या खरगोश आदि के बाल से धागा बनाया जाता है। दूसरा स्रोत है वनस्पति का, जैसे कपास, बांस या दूसरी चीजों से कपड़ा बनाना और तीसरा स्रोत है औद्योगिक स्रोत, जिसमें प्लास्टिक, नायलॉन आदि से कपड़ा बनाया जाता है। पशुओं के माध्यम से बना कपड़ा बहुत गर्म होता है किन्तु उसकी बुनाई बहुत बारीक नहीं हो सकती तथा उसके अन्दर जीवाणुरोधक गुण भी नहीं होते। बल्कि इसके विपरीत उनमें जीवाणु आसानी से पैदा हो जाते हैं। सूती कपड़ा सबसे अच्छा माना जाता है किन्तु कपास के अंदर एक बड़ा षड्यंत्र हो रहा है। कपास में बी.टी. कॉटन चुकी है। बी.टी. कॉटन क्या है? कपास के बीज में आनुवंशिक रूप से संशोधित करके बिच्छू का जहर डाल दिया गया जिससे कपास के ऊपर कीड़े-मकोड़े ना लगें। जब किसान इस बीज से उत्पादित फसल से कपास निकालते हैं तो उनको खुजली होती है। उस बिनौले को जब पशुओं को खिलाते हैं तो वह बीमार हो जाते हैं, उनमें कैंसर जैसे रोग पैदा होते हैं। कृषि वैज्ञानिक भाई देवेन्द्र शर्मा ने बताया की बी.टी. कॉटन बीज जब चूहों को खिलाया गया तो कुछ ही महीनों में उनमें कैंसर के ट्यूमर निकल आए। बी.टी. कॉटन का रेशा बनता है तो उसके अन्दर भी जहर आता है। वस्त्र 24 घण्टे हमारे शरीर आसपास के वातावरण के बीच एक परत का काम करते हैं, यदि इसमें किसी प्रकार का जहर है तो वह हमारी त्वचा के स्पर्श में आता है, और स्पर्श की क्या ताकत है आपको पता होगा कि जब किसी को पीलिया होता है तो कुछ औषधियाँ ऐसी हैं जिनकी जड़ी-बूटी की माला बना कर गले में डाल देने मात्र से ही पीलिया ठीक हो जाता है। इसका अर्थ है कि स्पर्श से गुण आते हैं। तांबे के जग में पानी डालते हैं तो स्पर्श से ही तांबे के गुण पानी में जाते हैं। वस्त्रों का स्पर्श भी हमारे शरीर से होता है तो उनके गुणों-अवगुणों का प्रभाव हमारी त्वचा पर होता है। अगर वस्त्र खराब है, नायलॉन इत्यादि का है तो उसका नुकसान हमें उठाना पड़ता है। लेकिन बांस के वस्त्र लचीले तथा पश्मीने जैसे लायम कोमल हैं, दूसरा यह biodegradable है, साथ ही इसमें thermocontrol के गुण हैं। ये वस्त्र गर्मी में पहनेंगे तो यह ठण्डे रहेंगे, सर्दी में पहनेंगे तो गर्म रहेंगे। बांस का रेशा नमी सोखता है, यदि आपको पसीना आयेगा तो पसीने की नमी को यह सोख लेगा। सूती कपड़े के मुकाबले इसमें कई गुना नमी सोखने का गुण है। बांस से बने वस्त्र धोने में बहुत आसान है। अभी बांस के कपड़े यूरोप में फैशन बना हुआ है, बड़े-बड़े लोग जो महंगे-महंगे कपड़े पहनने के शौकीन हैं, वे भी बांस के कपड़े पहनने लगे हैं, जितने बड़े athlete हैं, वे बांस से बनी जुराब ही पहनते हैं, क्योंकि पैर एक ऐसी जगह है जहाँ पसीना ज्यादा आता है जिससे दुर्गन्ध भी ज्यादा आती है। जो athlete दौड़ते हैं उनको पसीना भी ज्यादा आता है। थोड़ा सा भी पसीना और नमी होती है तो फिसलने से उनकी जो grip नहीं बन पाती, इसलिए वे बांस की बनी जुराबें प्रयोग करते हैं। Nylon और bamboo की बात करें तो bamboo biodegradable है। वातावरण के ऊपर इसका कोई हानिकारक प्रभाव नहीं हैं। बांस का एक और फायदा है कि इसे कहीं भी लगाया जा सकता है। इसके लिये किसी खेत की आवश्यकता नहीं है। पहाड़ के ऊपर भी लगा सकते हैं। मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश में यह अपने आप उगता है। इसके अंदर एक गुण यह भी है कि यह सामान्य पौधे की तुलना में वातावरण से 5 गुना ज्यादा carbon-di-oxide लेता है तथा 30 प्रतिशत ज्यादा oxygen देता है, वातावरण की रक्षा के लिये बांस को प्रोत्साहित किया जाय तो वह हमारे लिये अच्छा है। वहीं दूसरी तरफ Nylon एक petroleum product है, nylon को जब बनाया जाता है तो इसमें बहुत सी ऊर्जा लगती है, बहुत सारा पानी लगता है, वातावरण के लिये बिल्कुल अनुपयोगी है। nylon बनाना तो बहुत आसान है लेकिन इसको degrade होने में सैकड़ों वर्ष लग जाते हैं।
बांस के कपड़े को यदि धूप में, मिट्टी में छोड़ दिया जाए तो यह 5-7 साल में जमीन के अन्दर मिल जायेगा, मिट्टी हो जायेगा, लेकिन nylon का कपड़ा एक बार बन गया तो आप जमीन में दबा दीजिये, पानी में फेंक दीजिये, कहीं पहाड़ पर डाल दीजिये तो वह 100-150 साल तक ऐसा ही रहता है, क्योंकि nylon एक तरह का प्लास्टिक है। इसका प्रयोग वैसे भी कम ही करना चाहिये। सूती कपड़े की तुलना में भी बांस का कपड़ा बहुत अच्छा है।
पतंजलि का मानना है कि लोगों को अच्छी चीज मिलनी चाहिये, अच्छी चीजों के बारे में जानकारी होनी चाहिये। आप एक बार पतंजलि के वस्त्र लेकर अनुभव कर सकते हैं। इनको प्रयोग कीजिये, अनुभव कीजिए, आपको कैसा महसूस हो रहा है।
पतंजलि ने यह रु LiveFit के नाम से पूरा ब्रांड बनाया हुआ है, यह ब्रांड पतंजलि परिधान के अंतर्गत है। ये वस्त्र सभी जगह उपलब्ध नहीं हैं, केवल 5-7 जगह हमारे स्टोर्स खुले हैं। यदि इन्हें प्राप्त करने में किसी भी प्रकार की कोई समस्या आती है तो आप हमारी website patanjaliayurved.net से online क्रय कर सकते हैं। दिल्ली के पीतमपुरा में हमारा एक स्टोर है वहाँ से या पतंजलि योगपीठ-, हरिद्वार स्थित मेगा स्टोर से प्राप्त कर सकते हैं। हम चाहेंगे कि हमारे भारत के वस्त्र उद्योग की प्राचीन प्रणाली जिसका अनुसरण करते हुए पतंजलि ने नई पहल की है, इसका प्रयोग आप जरूर करके देखें। इसको एक बार महसूस करें।
भारत माता की जय, वन्दे मातरम्।
 

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