उदर व प्रजनन संस्थान सम्बन्धी रोग निवारक आयुर्वेदिक घटक चिरौंजी

उदर व प्रजनन संस्थान सम्बन्धी रोग निवारक आयुर्वेदिक घटक चिरौंजी

आयुर्वेद मनीषी आचार्य बालकृष्ण जी महाराज

    भारत के शुष्क पर्णपाती प्रांतों में यह 900 मी. की ऊँचाई पर, मध्य भारत से पश्चिमी प्रायद्वीप एवं उत्तराखण्ड में 450 मी की ऊँचाई तक पाया जाता है। इसके वृक्ष की छाल अत्यन्त खुरदरी होती है इसलिए इसे संस्कृत में खरस्कन्ध तथा इसकी छाल अधिक मोटी होती है इसलिए इसे बहुलवल्कल कहते हैं। इसके बीज स्नेह युक्त होते हैं इसलिए इसे स्नेह बीज भी कहा जाता है। चरक संहिता के उदर्दप्रशमन, श्रमहर तथा सुश्रुत संहिता के न्यग्रोधादि गणों में इसकी गणना की गई है।

chiraunji

यह लगभग 12-18 मी ऊँचा, मध्यमाकार, सदाहरित वृक्ष होता है। इसका काण्ड सीधा, मोटा तथा बेलनाकार होता है। इसकी छाल 2.5 सेमी मोटी, गहरे धूसरवर्ण की या कृष्ण वर्ण की, खुरदरी होती है। इसकी शाखाएँ नवीन अवस्था में मुलायम होती हैं। इसके पत्र सरल, स्थूल, चर्मिल अथवा कठोर, 15-25 सेमी लम्बे एवं 6.3-12.5 सेमी चौड़े, गोलाकार, जालिका स्वरूपी सिरा युक्त होते हैं। इसके पुष्प छोटे, सघन, 6 मिमी व्यास के, वृंतहीन तथा हरिताभ-श्वेत वर्ण के होते हैं। पुष्प गुच्छे पिरामिड आकार के होते हैं। इसके फल 8-12 मिमी के अण्डाकार अथवा गोलाकार, कृष्ण वर्ण के, मांसल, काले बीज युक्त होते हैं। फलों को फोड़ कर जो गुठली निकाली जाती है उसे चिरौंजी कहते हैं। यह अत्यन्त पौष्टिक तथा बलवर्धक होती है। इसका पुष्पकाल एवं फलकाल जनवरी से मई तक होता है।

आयुर्वेदीय गुण-कर्म एवं प्रभाव

  • चिरौंजी का फल मधुर, अम्ल, कषाय, शीत, गुरु, स्निग्ध तथा कफपित्तशामक होता है।
  • यह वृष्य, हृद्य, बृंहण, तर्पण, बलकारक, विष्टम्भी, धातुवर्धक, वण्र्य तथा संग्राही है।
  • यह तृष्णा, दाह, ज्वर, क्षत, क्षय, रक्तपित्त, योनिदोष तथा मेदोरोग नाशक होता है।
  • प्रियाल तैल मधुर, गुरु, श्लेष्मवर्धक, किञ्चित् उष्ण तथा वातपित्तज विकारों में हितकर होता है।
  • प्रियाल मज्जा मधुर, वृष्य, शुक्रल, स्निग्ध, शीत, मलस्तम्भक, आमवर्धक, दुर्जर, हृद्य, शुक्रल, दाह तथा वातपित्त शामक होती है।
  • पक्वफल वृष्य, गुरु, मधुर, अम्ल तथा  देर से पचने वाला होता है।
  • इसके बीज मधुर, वृष्य, दाह, पीड़ा तथा पित्त-शामक होते हैं।
  • इसकी मूल कषाय, कफपित्त तथा रुधिर-विकार-शामक होती है।
  • चिरौंजी के बीज का गोंद अतिसार-नाशक होता है।
  • इसके पत्र शीतल, पाचक, कफनि:सारक, विरेचक, विशोधक, वाजीकर, अतिपिपासा, दाह, कास, श्वसनिका शोथ, अजीर्ण, आध्मान, विबंध, त्वचा रोग तथा शुक्राणु दौर्बल्यता शामक होते हैं।
  • इसके वायवीय भागों का ऐल्कोहॉलिक-सार कैंसर-रोधी क्रियाशीलता प्रदर्शित करता है।
  • इसका मेथेनॉल-सार शोथहर एवं अनॉक्सीकारक क्रियाशीलता प्रदर्शित करता है।
  • इसका ऐल्कोहॉलिक-सार एल्बिनो चूहों में व्रणरोपण प्रभाव प्रदर्शित करता है

23

औषधीय प्रयोगविधि एवं मात्रा

शिरो रोग
  • शिर:शूल : चिरौंजी की गिरी के साथ, बादाम गिरी, खजूर, ककड़ी बीज और तिल को एक साथ पीसकर दूध अथवा जल के साथ 5 ग्राम मात्रा तक पिलाने से शिर:शूल में लाभ होता है।
मुख रोग
  • मुंहासे: चिरौंजी को गुलाब जल से पीसकर मालिश करने से चेहरे पर होने वाली फुन्सियाँ दूर होती हैं।
वक्ष रोग
  • पसलियों का दर्द: काण्ड से प्राप्त पाण्डुवर्णी या कृष्णवर्णी निर्यास का प्रयोग पर्शुकान्तरा शूल (Intercostan Pain)  अर्थात् पसलियों के दर्द की चिकित्सा में किया जाता है।
  • सर्दी: चिरौंजी को खाने से सर्दी मिटती है।
  • कास-प्रतिश्याय: चिरौंजी की 5-10 ग्राम गिरी को घृत में भूनकर, पीसकर 200 मिली. दूध मिलाकर उबाल लें। उबालने के पश्चात् उसमें 500 मिग्रा. इलायची चूर्ण व किंचित् शर्करा मिलाकर पिलाने से लाभ होता है।
उदर रोग
  • रक्तातिसार: यदि अतिसार के साथ खून आ रहा हो तो चिरौंजी की छाल को बकरी के दूध से पीसकर मधु मिला कर पीने से लाभ होता है।
  • अतिसार: चिरौंजी के तने से निकलने वाले निर्यास का प्रयोग अतिसार की चिकित्सा में किया जाता है।
  • 1-4 ग्राम चिरौंजी मूल एवं पत्र को पीसकर उसमें मक्खन मिलाकर सेवन करने से अतिसार का शमन होता है।
  • 1-4 ग्राम चिरौंजी मूल चूर्ण को खाने से अतिसार बंद हो जाते हैं।
प्रजनन संस्थान रोग
  • कामशक्तिवर्धनार्थ 5-10 ग्राम चिरौंजी के बीजों को पीसकर उसमें मिश्री मिलाकर दूध के साथ खाने से
  • वीर्य की वृद्धि होती है तथा कामशक्ति बढ़ती है।
अस्थि संधि रोग:
  • भग्न: खीरा के बीज, बहेड़ा तथा प्रियाल आदि द्रव्यों से पकाए गए तैल की मालिश तथा परिषेक रूप में प्रयोग करने से भग्न में लाभ होता है।
  • वातरक्त: तिल, चिरौंजी, मुलेठी, कमलनाल तथा बेंत-मूूल इन सब द्रव्यों को आवश्यकतानुसार लेकर बकरी के दूध में पीसकर लेप लगाने से वातरक्त की वजह से होने वाली दाह तथा लालिमा कम होती है।
त्वचा रोग
  • व्रण: मंजीठ, हल्दी, भार्गी, हरीतकी, नीला थोथा, तालीसपत्र, प्रियाल आदि द्रव्यों को पीसकर उसे तैल में पकाकर, छानकर लेप करने से समस्त घाव जल्दी भरते हैं।
  • कण्डु: चिरौंजी की गिरी को गुलाब जल में पीसकर उसमें सुहागा मिलाकर लगाने से आद्र्र कण्डू (खुजली) में लाभ होता है।
  • भल्लातकजन्य शोथ: प्रियाल गिरी और काले तिल को 10-10 ग्राम लेकर 250 मिली. गोदुग्ध में पीस छानकर मिश्री मिलाकर प्रात: सायं पीने से व चिरौंजी की गिरी तथा तिलों को दूध में पीसकर लेप करने से सूजन, खुजली आदि भल्लातक जन्य-विकारों का शमन होता है।
सर्वशरीर रोग
  • रक्तपित्त: चिरौंजी से पकाए दुग्ध का सेवन करने से रक्तपित्त में लाभ होता है।
  • अत्यधिक प्यास: 5-10 ग्राम चिरौंजी बीज चूर्ण में मिश्री मिलाकर खाने से अत्यधिक प्यास मिटती है।
  • ज्वर: ज्वर मिटाने वाली औषधियों के साथ मिलाकर इसका प्रयोग करने से ज्वर जन्य दाह का शमन होता है।
  • स्वास्थ्य वर्धक: ताजी चिरौंजी का सेवन करने से शरीर का पोषण होता है।
  • दूध में चिरौंजी की खीर बनाकर खाने से शरीर का पोषण होता है।
  • शीतपित्त: 5-10 ग्राम चिरौंजी की गिरी को खाने से तथा चिरौंजी की गिरी को दूध में पीसकर मालिश करने से शीत पित्त का शमन होता है।
बाल रोग
  • पोषणार्थ: स्तनपान छुड़ा देने पर बालक को चिरौंजी की मींगी, मुलेठी, मधु, धान का लावा तथा मिश्री से बनाए गए लड्डू (मोदक) का सेवन कराने से शरीर का समुचित पोषण होता है।
विष चिकित्सा
  • मकड़ी का विष: चिरौंजी को तेल के साथ पीसकर मालिश करने से मकड़ी का विष दूर होता है।
प्रयोज्यांग
  • पञ्चांग, फल, पत्र, तने की छाल, गोंद, बीजमज्जा तैल तथा मूल।
मात्रा
  • छाल का क्वाथ: 50-100 मिली. या चिकित्सक के परामर्शानुसार।
विशेष
  • औषधियों को स्वादिष्ट करने के लिये चिरौंजी का चूर्ण मिलाया जाता है। यह सारक औषधि है, अत: इसको दूसरी सारक औषधियों के साथ मिलाने से उनकी सारक शक्ति बढ़ती है।
  • इसको अत्यधिक मात्रा में नहीं खाना चाहिए क्योंकि इसके अत्यधिक मात्रा में सेवन करने से अफारा उत्पन्न होता है।

Advertisment

Latest News

परम पूज्य योग-ऋषि श्रद्धेय स्वामी जी महाराज की शाश्वत प्रज्ञा से नि:सृत शाश्वत सत्य ... परम पूज्य योग-ऋषि श्रद्धेय स्वामी जी महाराज की शाश्वत प्रज्ञा से नि:सृत शाश्वत सत्य ...
जीवन सूत्र (1) जीवन का निचोड़/निष्कर्ष- जब भी बड़ों के पास बैठते हैं तो जीवन के सार तत्त्व की बात...
संकल्प की शक्ति
पतंजलि विश्वविद्यालय को उच्च अंकों के साथ मिला NAAC का A+ ग्रेड
आचार्यकुलम् में ‘एजुकेशन फॉर लीडरशिप’ के तहत मानस गढक़र विश्व नेतृत्व को तैयार हो रहे युवा
‘एजुकेशन फॉर लीडरशिप’ की थीम के साथ पतंजलि गुरुकुम् का वार्षिकोत्सव संपन्न
योगा एलायंस के सर्वे के अनुसार अमेरिका में 10% लोग करते हैं नियमित योग
वेलनेस उद्घाटन 
कार्डियोग्रिट  गोल्ड  हृदय को रखे स्वस्थ
समकालीन समाज में लोकव्यवहार को गढ़ती हैं राजनीति और सरकारें
सोरायसिस अब लाईलाज नहीं