डेंगू, उदर, त्वचा, यकृत् व प्लीहा रोग निवारक आयुर्वेदिक घटक पपीता
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पपीते का मूल निवास स्थान दक्षिण अमेरिका है। 400 वर्ष पूर्व पोर्तुगीज लोग इसे भारत में लाये थे। भारत में सर्वप्रथम यह केरल प्रांत में आया। केरल निवासी इसे 'कप्पकाय कहते हैं। कप्पकाय का शब्दार्थ जहाज से आया हुआ फल है। अत: अनुमान किया जाता है कि यह भारतीय फल नहीं है। यह शायद पहले जहाज से केरल के किनारे उतारा गया था।
इसीलिये अभी भी केरल में इसकी विशेष अधिकता है। किन्तु अब तो यह सम्पूर्ण भारतवर्ष में न्यूनाधिक प्रमाण में घरों में और बागों में पाया जाता है। मुम्बई, पूना, बंगलौर, मद्रास और राँची के पपीते प्रसिद्ध और उत्तम माने जाते हैं।
बाह्यस्वरूप
इसके पेड़ हल्के छोटे और आसानी से उगने वाले होते हैं। पानी के निकास व छायारहित हर किस्म की खुली जमीन में बीज पड़ जाने से सहज ही यह उग आता है। यह लगभग 5-6 मी. तक ऊँचा, छोटा, सीधा, मुलायम काष्ठीय, आक्षीरी, एकल-काण्ड युक्त, अल्प वर्षायु वृक्ष होता है। इसका काण्ड सीधा, बेलनाकार, धूसर वर्ण का, पत्र-क्षतचिह्नयुक्त होता है। इसके पत्र बृहत्, हस्ताकार रूप में विभाजित एवं तंत्रिका युक्त होते हैं। इसके पुष्प एकलिंगी, सुगन्धित, पाण्डुर-पीतवर्ण के अथवा श्वेत वर्ण के, कक्षीय गुच्छों में होते हैं। इसके फल विभिन्न आकार के, गोलाकार अथवा बेलनाकार, कच्ची अवस्था में हरे तथा पकने के पश्चात् पीले रंग के हो जाते हैं।
फलों के अन्दर काले धूसर वर्ण के गोल मिर्च जैसे बीज रहते हैं। इसकी फलमज्जा पकने पर मीठी होती है। इस पौधे के किसी भी भाग में चीरा लगाने पर आक्षीर (दूध) निकलता है। इसका पुष्पकाल एवं फलकाल वर्षपर्यंत होता है।
आयुर्वेदीय गुण-कर्म एवं प्रभाव
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पपीता कटु, तिक्त, उष्ण, लघु, तीक्ष्ण, कफवातशामक, पाचन, हृद्य तथा ग्राही होता है।
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इसका क्षीर पाचक होता है।
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इसका कच्चा फल तिक्त तथा मधुर होता है।
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इसका पका फल मधुर, लघु, पित्तशामक, शोथहर, वेदनास्थापक, वातानुलोमक, यकृदुत्तेजक तथा रक्तशोधक होता है।
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यह विषघ्न, बलकारक, स्वेदजनन तथा कुष्ठनाशक होता है।
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इसका कच्चा फल गर्भस्रावकर क्रियाशीलता प्रदर्शित करता है। इसके मूल में कार्पोसाइड (Carposide) एवं एक एंजाइम मायरोसिन (Myrosin) होता है, जिसके कारण यह गर्भस्रावक क्रियाशीलता प्रदर्शित करता है। इसके फल के क्षीरीनिर्यास (Latex) से पाचक एंजाइम (Enzyme) पेपेन (Papain) प्राप्त होता है, जिसका प्रयोग प्रोटीन पाचक (Protein digestant) के रूप में होता है।
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इसके बीज के अपरिष्कृत क्लोरोफार्म सत्त में नर चूहों पर बन्धत्व प्रभाव होता है।
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इसका मूलसार विरेचक प्रभाव प्रदर्शित करता है।
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इसका फलसार मूषकों में उच्च रक्तदाबरोधी क्रियाशीलता प्रदर्शित करता है।
औषधीय प्रयोग
मुख रोग
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जिह्वा व्रण
पपीते के दूध (आक्षीर) को जिह्वा पर लगाने से जीभ पर होने वाला घाव जल्दी भर जाता है।
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द्दंतशूल
पपीते से प्राप्त दूध को रूई में लपेटकर लगाने से दंतशूल का शमन होता है।
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कण्ठ रोग
पपीता से प्राप्त दूध को जल में मिलाकर गरारा करने से गले के रोगों में लाभ होता है।
उदर रोग
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अग्रिमांद्य
पपीता के कच्चे फलों का शाक बनाकर सेवन करने से अग्निमांद्य तथा अजीर्ण में लाभ होता है।
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अतिसार (पेचिस)
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पके बीजों का सेवन चावल के साथ करने से अतिसार में लाभ होता है।
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कच्चे फल का शाक बनाकर सेवन करने से अतिसार में लाभ होता है।
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यकृत् व प्लीहा रोग
पपीता के फलों का सेवन करने से यकृत् तथा प्लीहा विकारों का शमन होता है।
गुदा रोग
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अर्श (बवासीर)
पपीता का सेवन करने से खूनी बवासीर में लाभ होता है। पपीता के कच्चे फलों से प्राप्त दूध को अर्श के मस्सों पर लगाने से बवासीर में लाभ होता है। इसका प्रयोग चिकित्सकीय परामर्शानुसार करना चाहिए।
अस्थिसंधि विकार
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पक्षाघात-पपीता के बीजों से तेल का पाक कर, छानकर मालिश करने से लकवा तथा अर्दित (मुंह का लकवा) में लाभ होता है।
त्वचा रोग
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सामान्य त्वचा विकार
पौधे से निकलने वाले दूध को सिध्म, गोखरू, अर्बुद, गांठ तथा चर्म रोगों में लगाने से लाभ होता है।
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द्दाद (दद्रू)
पपीता के बीजों को पीसकर, उसमें ग्लिसरीन मिलाकर दाद पर लगाने से दाद तथा छाजन (एक्जि़मा) में लाभ होता है। इसके फलों से प्राप्त दूध को लगाने से भी दद्रू तथा खुजली मिटती है।
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व्रण
इसके दूध को उपदंशज व्रण पर लगाने से व्रणों का जल्दी रोपण होता है।
सर्वशरीर रोग
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सूजन: फल मज्जा को पीसकर लगाने से सूजन मिटती है।
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गाँठ: पपीते से प्राप्त दूध को गांठ पर लगाने से लाभ होता है
विष चिकित्सा
वृश्चिक विष
पपीते के कच्चे फल से प्राप्त दूध को दंश-स्थान पर लगाने से वृश्चिक दंशजन्य विषाक्त प्रभावों का शमन होता है।
रासायनिक संघटन
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इसके पत्र में β&कैरोटिनॉयड्स, रूटिन, फाईटोन, ग्लाईकोसाईड, कार्पोसाईड एवं कार्पेन नामक क्षाराभ, विटामिन-ष्ट, श्व फाईटोफ्यूलेन, β&कैरोटिन, क्रिप्टोजैन्थिन, तथा एन्थ्राजैन्थिन पाया जाता है।
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इसके बीज में हेन्ट्राईएकोन्टेन, β&सिटोस्टेरॉल, तथा ग्लूकोज पाया जाता है।
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इसके पके फल में कैरोटिनॉयड वर्णक, फाईटोइन, β&कैरोटीन, जै़न्थीन तथा कच्चे फल में पेपेन पाया जाता है।
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इसके स्वरस में ब्युटायरिक अम्ल तथा ऑक्टेनोइक अम्ल पाया जाता है।
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इसमें कार्पेन, कार्पोसाईड एवं पेपेन पाया जाता है। इसकी ताजी फलभित्ति में सुक्रोस, शर्करा, पेपेन, मैलिक अम्ल तथा टारटरिक एवं साईट्रिक अम्ल पाया जाता है। पके एवं कच्चे फल में पेक्टिन्स के अतिरिक्त केरोटीनॉयड, विटामिन्स पाया जाता है। इसके बीज में सल्फर कार्पेसमीन पाया जाता है तथा आक्षीर में पेपेन एवं काईमोपेपेन नामक किण्व (Enzyme) पाया जाता है। इसके मूल में भी कार्पोसाईड एवं माईरोसीन सदृश किण्व पाया जाता है।
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