वात रोगों में प्रामाणिक औषधी 'पीड़ानिल गोल्ड'
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डॉ. अनुराग वार्ष्णेय
उपाध्यक्ष- पतंजलि अनुसंधान संस्थान
पतंजलि की पीड़ानिल गोल्ड वात रोगों व आर्थो के लिए शोध आधारित प्रामाणिक दवा है। यह विशेष रूप से दर्द की दवा है जो हमारे शरीर में किसी भी प्रकार के अर्थराइटिक पेन, ज्वाइंट पेन व मस्कूलर पेन में रामबाण है। वैसे तो शरीर की हड्डियों में दो प्रकार के दर्द पाये जाते हैं- एक है रूमेटॉइड अर्थराइटिस व दूसरा ऑस्टियो अर्थराइटिस जनित वात रोग। एक अन्य कारण है न्यूरोपैथिक पेन जो नर्वस के दब जाने या हाई डायबिटिज़ के कारण नर्वस में विकार के कारण दर्द शुरू हो जाता है। इस लेख में हम ऑस्टियो अर्थराइटिस के विषय में बात करेंगे। हड्डियों के घिस जाने के कारण शरीर में दर्द होने लगता है, ऐसा दर्द ऑस्टियोअर्थराइटिस कहलाता है।
दर्द का कारण
हमने पीड़ानिल गोल्ड का दोनों प्रकार के- ऑस्टियो अर्थराइटिस तथा न्यूरोपैथिक दर्द पर परीक्षण करके देखा जिसमें हमने यह देखने का प्रयास किया कि ऑस्टियो अर्थराइटिस मॉडल और न्यूरोपैथिक पेन मॉडल में पीड़ानिल गोल्ड कैसे काम करता है।
ऑस्टियो अर्थराइटिस में लगभग 22 से लेकर 39 प्रतिशत तक लोगों में दर्द का प्राइमरी कारण ऑस्टियो अर्थराइटिस ही है। वह इसलिए है क्योंकि घुटने, हाथों या फिर टकने की हड्डियों के बीच होने वाले घर्षण के कारण दर्द बढ़ जाता है, क्योंकि इन हड्डियों के बीच जो ग्रीस होता है स्वीन्यूल फ्ल्यूड कम हो जाता है उसकी वजह से दर्द बढ़ जाता है और स्ट्रक्चर के अनुसार देखा जाये तो हड्डियों में सिरों पर छोटे-छोटे ऊभार आ जाते हैं जिनको हम ऑस्टियोफाइट्स कहते हैं। और जब ये ऑस्टियोफाइट्स आपस में रगड़ खाते हैं तो शरीर मेें दर्द की अनुभूति होना शुरू हो जाती है। ऐेसे मामले में यदि हम दवा का इस्तेमाल करें तो क्या हम ऑस्टियोफाइट्स का बनना बंद कर सकते हैं? या इसकी वजह से जो दर्द हो रहा है, उसे बंद कर सकते हैं? इसी उद्देश्य को ध्यान में रखकर हमने कुछ परीक्षण किये।
सफल एनिमल ट्रायल के दौरान एलोपैथिक दवा व पीड़ानिल गोल्ड का तुलनात्मक अध्ययन
यह प्रयोग सर्वप्रथम हमने चूहों पर किया। इन चूहों पर हमने एक कैमिकल का उपयोग किया जिसका नाम होता है मोनोएसिटेट आइडो एक्ट (मोनोसोडियम आइडो एसिटेेट)। वास्तव में यह कैमिकल हड्डियों को गलाने का कार्य करता है। इसके माध्यम से हमने चूहों के घुटने के बीच का यह कैमिकल इंजेक्ट करके घुटने की हड्डियों को हल्के-हल्के गलाना शुरू कर दिया जिसके कारण ऑस्टियो अर्थराइटिस के लक्षण आने शुरू हो गये। इस परीक्षण में हमने सोचा कि यदि हम अलग-अलग प्रकार की दवाईयों का उपयोग करेंगे तो क्या परिणाम आते हैं। तब हमने तुलनात्मक अध्ययन के लिए एलोपैथी की दवा इन्डोमेसिथिन भी चूहों को दी और दूसरी तरफ हमने पीड़ानिल गोल्ड का प्रयोग किया। यह परीक्षण हमारा २७ दिन तक चला जोकि पूरा एनिमल बेस मॉडल था। इसमें हमने हड्डियों की हेल्थ के बारे में रिसर्च की, काट्रिलेज की हेल्थ का परीक्षण किया तथा साथ ही दर्द केजो कारक हैं उन सबका गहनता से अध्ययन किया। यहाँ पर सिम्प्टम्स तथा सिस्टम दोनों पर बड़ी बारिकी से अध्ययन किया। जिस कारण से दर्द होता है उस कारण को भी देखा गया और इन्फ्लामेशन, इंफेक्शन आदि लक्षणों का भी अध्ययन किया गया।
सिस्टम तथा सिस्टम दोनों ठीक करता है आयुर्वेद
यहाँ पर एलोपैथी की जो दवा दी जा रही थी वह सिर्फ दर्द को खत्म कर रही थी न कि जिस कारण वह दर्द हो रहा है उस कारण को, इसका पूरा क्लिनिकल डेटा है। जब हम यहाँ चूहों पर परीक्षण कर रहे थे तब हमने दो प्रकार के दर्द को देखा। एक ऐसा दर्द जो वास्तव में दर्द की अनुभूति देता है, जैसे हम किसी को पिन चुभाते हैं तो दर्द होता है और दूसरा ऐसा दर्द जो दर्द की अनुभूति तो नहीं देता लेकिन अगर बीमारी हो तो उसका दर्द पैदा होना शुरू हो जाता है। पहले वाले दर्द को हम हाइपरएग्लेशिया कहते हैं और दूसरे को एलोडाइना कहते हैं। जो चुभाने वाला दर्द जिसे एलोडाइना कहते हैं। उसमें जब जानवरों के अन्दर बीमारी पैदा हो चुकी थी तो फिर उस दर्द की अनुभूति बहुत बढ़ गई। ऐसी स्थिति में पीड़ानिल गोल्ड ने दो तरीकों से काम किया। एक तो इसने दर्द कम करने की एलोपैथिक दवा इन्डोमेसिथिन के समान दर्द को कम किया, दूसरा दर्द के कारकों पर भी असर किया इसलिए पीड़ानिल कई पैरामीटर में एलोपैथ की दवा से आगे रहा। उसी प्रकार हमने हाइपर एग्लेशिया में किया जहाँ हम जानवरों के पैर में एक छोटा सा पंच करते हैं। उसके बाद हम यह देखते हैं कि जानवर उस पंच का कितना प्रेशर ले सकता है। उस केस में भी पीड़ानिल गोल्ड ने बहुत अच्छा परिणाम दिया।
आर्थराइटिस में सबसे क्रिटिकल प्वाइंट या ड्राईग्नोस्टिक मार्कर 'एक्स-रेÓ है। इन एक्सरे के द्वारा हड्डियों की स्थिति को देखा जाता है। यहाँ पर हमने जानवरों के घुटने के एक्स-रे लिये। उसमें देखा की क्या चूहों के घुटने की सरफेस पर आस्टियोफाइट्स बन गये हैं। यह आक्टियोफाइट्स छोटे-छोटे उभारों की संरचना होती है जो दर्द का कारण भी बनते हैं। हमने पाया कि जिन जानवरों में हमने यह रोग पैदा किया था उन डिजीज कंट्रोल एनिमल्स में बहुत सारे आटियोफाइट बन गये थे और जिसको पीड़ानिल गोल्ड ने दो तरीको से काम किया। और यह एक बहुत बड़ी बात है कि जो परिणाम आये, ऐसे परिणामों की कल्पना मेरी टीम ने कभी भी नहीं की थी। जब हमने इन हड्डियों को स्लाइस किया और हिस्टोपैथोलॉजी किया और यह देखने का प्रयास किया जो हड्डियों का टिशू है उसमें किस प्रकार के बदलाव बीमारी की वजह से आये और किस प्रकार के बदलाव पीड़ानिल गोल्ड ने वापस सही करें और यह पाया कि जो काट्रलेज खराब हो गयी थी और जो ज्वाइंट के बीच कास्पेस था जो कम हो गया था उन सबको पीड़ानिल गोल्ड ने सही कर दिया। यह परीक्षण मात्र हमने १७ दिन में किया।
विज्ञान जगत ने माना आयुर्वेद का लोहा
यह अनुसंधान हमने किया था वह Frontiers in Pharmacology जनरल में प्रकाशित कर दिया है। इसको पढ़ने का लिंक इस प्रकार है https://www/frontiersin.org/articles/10.3389/fglar.2022.8834/5/feell- यहाँ हमने यह बताने की कोशिश की है कि पीड़ानिल गोल्ड ने वास्तव में मोनो सोडियमआइसो आइडोएसिटेट के कारण पैदा हुए ऑस्टोआर्थराइड को नॉर्मल किया। हमने जो अनुसंधान किया वह जनरल के रूप में काफी सारे रिसर्च संस्थानों में चर्चा का विषय बना हुआ है, इस पर डिस्कशन चल रहा है। इस आर्टिकल की चर्चा विज्ञान जगत में हो रही है, काफी सारे रिसर्च इंस्टीट्यूट इसका अनुसरण कर रहे हैं और उनके जनरल क्लब में इस पर चर्चा हो रही है कि यह कैसे हो गया? हमने सिम्प्टम के साथ-साथ सिस्टम को भी ठीक कर दिया।
यहाँ पर हमने जिस विषय पर बात की है वह है 'ऑस्टियो अर्थराइटिस’, दूसरा मॉडल जिस पर हमने काम किया है वह है- 'न्यूरोपैथिक पेनÓ। इसमें थोड़ा सा सर्जिकल मॉडल होता है। इसमें हम जानवरों की एक छोटी सी सर्जरी करके उनकी नर्व्स के चारों तरफ एक ढ़ीला धागा बांध देते हैं, जैसे टांके लगाए जाते हैं, इसे हम कैटगट कहते हैं। इसे 'क्रोनिक कन्स्ट्रक्शन इंजरीÓ कहते हैं। जानवरों में दर्द का यह नॉन मॉडल है जिसमें नसों मेें दर्द होता है। यहाँ पर हम देखते हैं कि यह हड्डी वाले दर्द से बिल्कुल अलग प्रकार का दर्द है जो नसों के दबने से होता है। इस दर्द पर जब हम पीड़ानिल गोल्ड का प्रयोग किया तो साथ ही एलोपैथ की गोल्ड स्टैंडर्ड कही जाने वाली दवा 'गाबापैंटिनÓ का भी प्रयोग किया। हमने दर्द के तीन बड़े मार्कर्स जिसमें हाईपरएग्लेशिया, एलोडाइना तथा कोल्ड एलोडाइना को नापा। हमने देखा कि क्या वास्तव में दर्द कम हुआ? अगर कम हुआ तो क्या उसे पीड़ानिल गोल्ड ने कम किया है? यहाँ हमने तीनों ही मॉडल में तीन अलग-अलग खुराकों में साथ ही टाईम के अनुसार अच्छे परिणाम प्राप्त हुए। यहाँ नर्व्स के दर्द को कंट्रोल करने में चमत्कारी निष्कर्ष प्राप्त हुए।
इस मॉडल में हमने यह देखा कि जानवरों के दर्द को कम करने के लिए कितनी मात्रा मेंं दवाई दी जा रही है, साथ ही कितने समय तक दी जा रही है। यहाँ पर यह भी देखा जाता है कि दवाई अधिकतम कितनी मात्रा तक दी जा सकती है या ज्यादा दवाई देने का कोई नुकसान तो नहीं हुआ। लेकिन इंसानो में कभी-कभी कोई दवाई गर्म पड़ सकती है यदि गर्म लगे तो दवाई को पानी के साथ घोलकर पी लेना चाहिए, फिर भी गर्म लगे तो उसे सौंफ के पानी में घोलकर पी लेना चाहिए।
हमने पीड़ानिल गोल्ड को चूहों तथा खरगोशों में 28 दिन तक 1000 मिली प्रतिदिन तक दी। दोनों एनिमल मॉडल्स में जीएलपी नियम (गुड लेेबोरेट्री प्रेक्टिस) के तहत हमें किसी भी प्रकार की टाक्सिसिटी नहीं मिली, कोई मोर्टेलिटी नहीं थी, किसी भी ऑर्गन के वेट में परिवर्तन नहीं हुआ। हिमेटोलॉजी के जितने भी पैरामीटर्स हैं, लीवर के जितने भी फंक्शन्स हैं, किडनी फंक्शन्स हैं, थॉयराइड प्रोफाइल सब सामान्य थे, अनट्रिटिड एनिमल के बराबर पाए गए। इसमें हमने जानवरों की सुरक्षा का भी ध्यान रखा है जैसा कि हमारे अनुसंधान के जनरल में देखने को मिल सकता हैं।
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