स्वदेशी आंदोलन (स्वदेशी से स्वावलम्बन) का संक्षिप्त दर्शन
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राकेश कुमार
मुख्य केन्द्रीय प्रभारी, पतंजलि योग समिति
2001-02 में भारत में एफ.एम.सी.जी. का 48,000 करोड़ का व्यापार था जो आज बढक़र 1 लाख 30 हजार करोड़ का हो चुका है और वर्ष 2020 में इसका 7 लाख 24 हजार करोड़ होने की सम्भावना है। |
भारत देश में आज विदेशी कम्पनियों का आर्थिक, राजनीतिक एवं सामाजिक प्रभाव बढ़ता ही जा रहा है। भारत सरकार की 1991 से चल रही उदारीकरण एवं वैश्वीकरण नीतियों के चलते विदेशी कम्पनियों के लिए सभी तरह की छूट मिल रही है। भारत में हजारों विदेशी कम्पनियाँ भारतीय धन व सम्पत्ति को लूट रही है। हर साल भारत देश से प्रत्यक्ष रूप से लगभग 2,32,000 करोड़ और परोक्ष रूप से लगभग 7,50,000 करोड़ रूपये बाहर देशों में जा रहे हैं। इसके कारण हमारी अर्थव्यवस्था में पूंजी की भारी कमी आ रही है। इस पूंजी की कमी को पूरा करने के लिए हमारी सरकारें देशी और विदेशी कर्ज ले रही है। अभी तक भारत देश की सरकार पर लगभग 89,58,193 करोड़ रूपयों का देशी विदेशी कर्ज हो चुका है। इस कर्जे का ब्याज चुकाने में ही भारत सरकार के बजट का लगभग एक तिहाई धन लगभग 10 लाख रूपये खर्च हो जाता है। इन कारणों से भारत के प्रत्येक नागरिक पर लगभग 74,000 रूपये का देशी विदेशी कर्ज हो गया है। इन सभी कारणों का अन्तिम दुष्परिणाम है, देश में विकास के लिए धन की भारी कमी। भारत सरकार ने तो कुछ अन्तर्राष्ट्रीय समझौते (विश्व व्यापार संगठन समझौता, आई.एम.एफ. विश्व बैंक समझौता आदि) कर लिए हैं। इन अन्तर्राष्ट्रीय समझौतों के दबाव में भारत सरकार किसी भी विदेशी कम्पनी को भारत से भगाने में सक्षम एवं समर्थ नहीं है। भारत सरकार की राजनैतिक इच्छा शक्ति बहुत कमजोर होने के कारण भी विदेशी कम्पनियों की लूट एक गम्भीर समस्या बनी हुई है। अत: अब इन विदेशी कम्पनियों को भारत से भगाना सिर्फ भारतवासियों की इच्छा शक्ति व संकल्प से ही सम्भव है। हम भारतवासियों ने जिस तरह अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कम्पनी को भारत से भगाया था उसी तरह अब इन विदेशी कम्पनियों को भगाना पड़ेगा। इन विदेशी कम्पनियों को भारत से भगाने का और भारत के संसाधनों की आर्थिक लूट बंद करने का एकमात्र हथियार है बहिष्कार एवं असहयोग।
भारत देश के महान क्रान्तिवीरों लोकमान्य बालगंगाधर तिलक, लाला लाजपतराय, विपिन चन्द्रपाल, महात्मा गाँधी, शहीदे आजम भगत सिंह, पंडित रामप्रसाद बिस्मिल, चन्द्रशेखर आजाद, नेताजी सुभाषचन्द्र बोस, अशफाक उल्लाह आदि ने इसी बहिष्कार के हथियार का प्रयोग करके अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कम्पनी को भारत से उखाड़ फेंका था। आज फिर इस बहिष्कार का इस्तेमाल करके हम भारतवासी उन हजारों विदेशी कम्पनियों को भारत से भगा सकते हैं, जो भारत को लूट रही है। देश का धन देश के बाहर जाए तो देश शक्तिहीन होता है। अत: जो विदेशी कम्पनियाँ व्यापार करके देश का धन लूट रही है। तथा भ्रष्ट लोग भ्रष्टाचार करके देश को लूट रहे हैं। हमें स्वदेशी को अपनाकर तथा विदेशी व्यापार व भ्रष्टाचार को मिटाकर देश को बचाना है। विदेशी व्यापार व भ्रष्टाचार दोनों ही देश के सबसे बड़े शत्रु हैं, अधिकांश लोग अनजाने में ही विदेशी वस्तुओं का प्रयोग करके राष्ट्रीय पाप के भागीदार बन रहे हैं और इससे बहुत बड़ा देशाघात हो रहा है। आइए! हम सभी भारतवासी मिलकर संकल्प करें कि (अपने जीवन से विदेशी कम्पनियों के सामानों (शून्य तकनीकी से बने हुए) का बहिष्कार करेंगे।)
हमारे दैनिक जीवन में ऐसी बहुत सी विदेशी कम्पनियों की वस्तुयें हैं, जिनका बहिष्कार आसानी से किया जा सकता है। इन विदेशी कम्पनियों के स्वदेशी विकल्प बाजारों में आसानी से उपलब्ध हैं। हम सभी स्वदेशी वस्तुओं को स्वीकार करें यही हमारा राष्ट्रधर्म है।
स्वदेशी का दर्शन
स्वदेशी को करें स्वीकार, विदेशी का करें बहिष्कार।
स्वदेशी अपनायेंगे, स्वावलम्बी भारत बनायेंगे।
स्वदेशी का शाब्दिक अर्थ है- ‘अपने देश का’या ‘अपने देश में निर्मित’। बृहद् अर्थ में अपने देश के भौगोलिक क्षेत्र में जन्मी, निर्मित या कल्पित वस्तुओं, नीतियों, विचारों को स्वदेशी कहते हैं।
हमारे स्वदेशी का दर्शन केवल अपने देश को ही आर्थिक रूप से समृद्ध बनाने के उद्देश्य से अपनायी गई कोई संकुचित विचारधारा नहीं है, बल्कि एक समग्र, सम्पूर्ण, जीवन विचार है जो प्रत्येक राष्ट्र को स्वयं सशक्त बनाकर उन्हें दूसरे राष्ट्रों की आर्थिक, राजनैतिक, सामाजिक व सांस्कृतिक सीमा का अतिक्रमण करने से रोकती है, जो विश्वमंगल का सनातन भारतीय सूत्र ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’का ही पुष्टीकरण करती है क्योंकि एक ओर पूँजीवाद का दानवीय चिंतन व कृत्य ऐसे लोगों की उपज है जो पूरी धरा को आर्थिक, राजनैतिक, सामाजिक व सांस्कृतिक रूप से गुलाम बनाना चाहते हैं और बहुसंख्यक राष्ट्र, समाज व जनता को नारकीय जीवन जीने पर मजबूर करते हैं जबकि दूसरी ओर स्वदेशी की भावना किसी राष्ट्र की आर्थिक सामाजिक, राजनैतिक, सांस्कृतिक हितों की रक्षा के साथ-साथ दूसरों के हितों को भी सुरक्षित रखती है। हम ऐसी नीतियों व उदारवादी चिंतन के पोषक नहीं हैं, जो हमारे राष्ट्र को दरिद्र व कमजोर बनाती हैं।
श्री अरविंद के शब्दों में ‘दूसरे लोग जहाँ इस देश को कुछ पहाड़, जंगल, नदियाँ या एक भौगोलिक खण्ड मानते हैं वहीं मैं इस देश को अपनी माँ मानता हूँ और मेरी आँखों के सामने मेरी माँ की छाती पर बैठकर कोई अत्याचार करे और मैं देखता रहूँ यह संभव नहीं है।’हम सभी भारत माँ की पावन गोद में जन्म लेकर उसकी मिट्टी, जल, वायु व अन्न ग्रहण करके पोषित हुए हैं। यह हमारा परम कर्त्तव्य है कि हम अपने देश को सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक व सांस्कृतिक रूप से सशक्त बनायें। भारत के साथ आजाद होने वाले चीन व जापान स्वदेशी के मार्ग पर चलकर ही आज विश्व की बड़ी आर्थिक शक्ति बने हैं। दुनिया का नम्बर एक राष्ट्र अमेरिका जो पूँजीवाद का प्रबल समर्थक है, वह भी स्वदेशी को अपनाकर ही आगे बढ़ा। अमेरिका के राष्ट्रपति ओबामा भी आज अपने देश में आउट सोर्सिंग पर प्रतिबन्ध लगाने की बात कर रहे हैं। ऐसे में हम सब भारतवासियों को भी अमेरिका, जापान व चीन की तरह स्वदेशी को अपनाकर अपने राष्ट्र को आर्थिक विकास के पथ पर गतिमान करना चाहिए।
एफ.एम.सी.जी. उद्योग देश का चौथा सबसे बड़ा उद्योग है। वर्ष 2001-02 में इसका 48,000 करोड़ का व्यापार था जो आज बढक़र 1 लाख 30 हजार करोड़ का हो चुका है और वर्ष 2020 में इसका 7 लाख 24 हजार करोड़ होने की सम्भावना है। यह बाजार औसतन 11 प्रतिशत की वार्षिक दर के साथ बढ़ रहा है जिसमें मुख्य रूप से विदेशी कम्पनियों का हस्तक्षेप है। आज (2018-19) में हिन्दुस्तान यूनीलीवर भारत में लगभग 38,224 करोड़ रुपये का वार्षिक व्यापार करती है, जिसमें उसको 6,080 करोड़ रुपये का शुद्ध लाभ मिलता है। इसके अलावा आई.टी.सी., नेस्ले, ग्लैक्सो स्मिथ क्लीन फार्मा व कोलगेट क्रमागत अन्य विदेशी कम्पनियाँ हैं, जो देश में क्रमागत 48268, 11292, 3230-43 व 4500 करोड़ का व्यापार करती हैं व 12464, 1606, 445-39 व 775 करोड़ रुपये की लूट कर रही हैं। यह तो मात्र 5 विदेशी एफ.एम.सी.जी. कम्पनियों के आँकड़े हैं। इन आँकड़ो के माध्यम से पता चलता है कि इतनी बड़ी मात्रा में हमारे देश का धन हम लोग ही जाने-अनजाने विदेशी कम्पनियों को दे देते हैं। इस धन का कुछ प्रतिशत ही वे भारत में अपने उद्योगों के विस्तार में खर्च करते हैं शेष धन वे अपने देश में ले जाते हैं, जिससे उनका देश समृद्ध होता है और हमारा देश लगातार गरीब होता जा रहा है तथा भारत में सामाजिक सेवा में उनका योगदान नगण्य होता है। अब पतंजलि आयुर्वेद के माध्यम से पूज्य स्वामी जी महाराज के नेतृत्व में इस लूट को स्वदेशी के आग्रह से रोकना है, जिसके लिए हम एक सशक्त विकल्प बाजार में उपलब्ध करा रहे हैं और देश का पैसा बचाकर देश के कल्याणार्थ प्रयोग करना है। स्वदेशी-विदेशी उत्पाद सूची को देश की भोली-भाली जनता को बताना है व विदेशी कम्पनियों के द्वारा देश में की जा रही लूट की जानकारी देनी है तथा उन्हें भी अपने जीवन में स्वदेशी के आग्रह को दृढ़ता के साथ आत्मसात करने के लिए प्रेरित करना है। स्वदेशी उत्पादों में भी पतंजलि आयुर्वेद के द्वारा बनाये गये उत्पादों को प्राथमिकता देनी है क्योंकि इनके द्वारा प्राप्त लाभांश को राष्ट्र-कल्याणार्थ प्रयोग किया जाता है।
1) दैनिक जीवन में शून्य तकनीकि (साबुन, शैम्पू, टूथपेस्ट, जूते-चप्पल, पेप्सी, कोकोकोला, नमक, तेल, आटा व चिप्स आदि) से बने, विदेशी उत्पादों के प्रयोग से हम 100 प्रतिशत बचें।
2) जिनमें तकनीकि का प्रयोग होता है ऐसी वस्तुओं में भी जैसे-कम्प्यूटर, मोबाइल, गाड़ी आदि में सर्वोच्च प्राथमिकता स्वदेशी को दें। जैसे- परम पूज्य स्वामी जी महाराज का जीवन हमारे लिए आदर्श है। स्वामी जी महाराज विमान को छोडक़र अपने जीवन में 100 प्रतिशत स्वदेशी के व्रत का पालन करते हैं।
3) विदेशों से तकनीकि लेना तथा जहाँ बहुत आवश्यक है वहाँ विदेशी पूँजी निवेश के बारे में भी विचार किया जा सकता है। परन्तु भारत को लूटने व तहस-नहस (डिमॉलिश) करने व भारत में लूट करने की छूट हम विदेशी कम्पनियों को नहीं दे सकते। विदेशी पूँजी निवेश में भी नियन्त्रण एवं शासन भारत के लोगों के हाथों में ही होना चाहिए, विदेशी लोग व विदेशी कम्पनियाँ हम पर शासन करें और लूटें, यह हमारे लिए घोर अपमान व शर्म की बात है। कोई भी स्वाभिमानी भारतीय इसे स्वीकार नहीं कर सकता।
4) स्वदेशी के प्रयोग में भी सर्वोच्च प्राथमिकता गाँव में बनी हुई वस्तुओं को दें। दूसरी प्राथमिकता जिला, प्रान्त व देश में ही बनी वस्तुओं को दें तथा अपरिहार्य परिस्थितियों (जब देश में कोई वस्तु उपलब्ध न हो) में ही विदेशी वस्तुओं का प्रयोग करें। स्वदेशी का हमारा व्रत व्यावहारिक, वैज्ञानिक व राष्ट्रहित में है। स्वदेशी का हमारा आन्दोलन किसी दुराग्रह से प्रेरित नहीं है। भारत हित को सर्वोपरि रखकर यदि कोई विदेशों से ही नहीं बल्कि दूसरे ग्रहों (प्लेनेट) से भी आयेगा, तो हम उसका स्वागत करेंगे। लेकिन विदेशी कम्पनियों को वैश्वीकरण (ग्लोबलाईजेशन) व उदारीकरण (लिबरलाईजेशन) के नाम पर हम देश को लूटने व शासन करने की छूट नहीं देंगे।
विदेशी कंपनियों की लूट के षड्यन्त्र का चक्रव्यूह
दुनियाँ के कुछ शक्तिशाली देशों के कुछ पूँजीपतियों व उद्योगपतियों ने पूरे विश्व पर शासन, आर्थिक शोषण करने व गुलाम बनाने के उद्देश्य से आर्थिक साम्राज्यवाद की कुटिल चाल चली, जिसे उन्होंने ग्लोबलाईजेशन (वैश्वीकरण) व लिब्रलाईजेशन (उदारीकरण) का नाम दिया है जिसके अन्तर्गत उनको किसी भी देश में व्यापार करने की छूट दी गयी। दुर्भाग्य से कुछ स्वार्थी व पश्चिम परस्त राजनीतिज्ञों के चलते सन् 1991 ई० में भारत में उदारीकरण व वैश्वीकरण की नीति को विकास का मार्ग बताकर लागू किया गया जिसके चलते हजारों विदेशी कम्पनियों को भारत में सभी प्रकार की लूट की छूट मिल रही है और यह कम्पनियाँ निर्दयता से भारतीय धन व सम्पत्ति को लूट रही हैं। हर साल भारत देश से प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से लगभग 10 लाख करोड़ रुपये से भी अधिक धन विदेशों में जा रहा है। इसके कारण हमारी अर्थव्यवस्था में पूंजी की भारी कमी आ रही है। इस पूंजी की कमी को पूरा करने के लिए हमारी सरकारें देशी और विदेशी कर्ज ले रही हैं। अभी तक भारत देश की सरकार पर लगभग (2019, 20 में खर्च 89 लाख करोड़ रुपयों का देशी-विदेशी कर्ज हो चुका है। इस कर्जे का ब्याज चुकाने में ही भारत सरकार के बजट का लगभग एक तिहाई धन लगभग 3-5 लाख करोड़ रुपये खर्च हो जाता है। इन कारणों से भारत के प्रत्येक नागरिक पर लगभग वर्तमान कर्ज 74,000 रुपये का देशी विदेशी कर्ज हो गया है। इन सभी कारणों का अन्तिम दुष्परिणाम है, देश में विकास के लिए धन की भारी कमी है।
विदेशी कम्पनियाँ पूँजी तथा तकनिकी लेकर आती हैं तथा निर्यात, रोजगार व प्रतिस्पर्धा को बढ़ाती हैं, यह झूठा प्रचार प्रायोजित ढंग से विदेशी कम्पनियों तथा उनको संरक्षण देने वाले विदेशी-परस्त शासकों, उद्योगपतियों एवं उनसे लाभान्वित होने वाले लोगों द्वारा किया गया है। हकीकत यह है कि विदेशी कम्पनियाँ देश में पूँजी लाती नहीं, बल्कि लेकर जाती हैं। विदेशी कम्पनियाँ विशेष तकनीकि लेकर नहीं आती अपितु गृह उद्योग एवं लघु उद्योगों को खत्म करके बेरोजगारी बढ़ाती हैं। ये कम्पनियाँ कोका-कोला, पेप्सी, लक्स व अन्य विदेशी उत्पाद भारत में बनाकर विदेशों में नहीं बेचती हैं। जो स्वदेशी कम्पनियाँ इनसे प्रतियोगिता करती हैं ये कम्पनियाँ किसी भी तरीके से उनका अधिग्रहण करके उन्हें खत्म कर देती हैं। अपने स्तरहीन, गुणवत्ताहीन उत्पादों को बेचने के लिए ये कम्पनियाँ प्रचार का सहारा लेती हैं और प्रचार के माध्यम से उपभोगताओं को ग्लैमर परोसती हैं तथा लोगों में कृत्रिम उत्साह, कृत्रिम भूख पैदा करके, झूठे सपने दिखाकर व भावनात्मक दोहन करके भारत की जनता का आर्थिक शोषण करती हैं और भोली-भाली जनता में स्वदेश व स्वदेशी के प्रति हीन भावना विकसित करती हैं।
दुनियाँ के 20-25 देशों को छोडक़र ये विदेशी कम्पनियों के संचालक ही सत्ता का सबसे बड़ा केन्द्र हैं। जो देश के कुछ स्वार्थी व्यापारियों, राजनैतिक पार्टियों तथाकथित बुद्धिजीवियों व किसी लोकप्रिय व्यक्ति को साथ लेकर भारत देश के राजनैतिक, सामाजिक, शैक्षणिक व आर्थिक नीतियों में 100 प्रतिशत हस्तक्षेप करवाती हैं तथा अधिकतम नीतियाँ अपने हित में बनवाकर हमारे देश को निर्दयता से लूटती हैं।
भारत सरकार ने तो कुछ अन्तर्राष्ट्रीय समझौते (विश्व व्यापार संगठन समझौता, आई.एम.एफ., विश्व बैंक समझौता आदि) कर लिए हैं। इन अन्तर्राष्ट्रीय समझौतों के दबाव में भारत सरकार किसी भी विदेशी कम्पनी को भारत से भगाने में सक्षम एवं समर्थ नहीं है। भारत सरकार की राजनैतिक इच्छा शक्ति बहुत कमजोर होने के कारण भी विदेशी कम्पनियों की लूट एक गम्भीर समस्या बनी हुई है। अत: अब इन विदेशी कम्पनियों को भारत से भगाना सिर्फ भारतवासियों की इच्छा शक्ति व संकल्प से ही सम्भव है। हम भारतवासियों ने जिस तरह अंग्रेजी ईस्ट इण्डिया कम्पनी को भारत से भगाया था उसी तरह अब इन विदेशी कम्पनियों को भगाना पड़ेगा। इन विदेशी कम्पनियों को भारत से भगाने का और भारत के संसाधनों की आर्थिक लूट बन्द करने का एकमात्र हथियार है-बहिष्कार एवं असहयोग।
भारत देश के महान् क्रान्तिवीरों लोकमान्य बालगंगाधर तिलक, लाला लाजपतराय, विपिन चन्द्रपाल, महात्मा गांधी, शहीदे आजम भगत सिंह, पंडित रामप्रसाद बिस्मिल, चन्द्रशेखर आजाद, नेताजी सुभाषचन्द्र बोस, अशफाक उल्ला खाँ आदि-आदि ने इसी बहिष्कार के हथियार का प्रयोग करके अंग्रेजी ईस्ट इण्डिया कम्पनी को भारत से उखाड़ फेंका था। आज फिर इस बहिष्कार के हथियार का इस्तेमाल करके हम भारतवासी उन हजारों विदेशी कम्पनियों को भारत से भगा सकते हैं, जो भारत को लूट रही हैं। देश का धन देश के बाहर जाए तो देश शक्तिहीन होता है। अत: जो विदेशी कम्पनियाँ व्यापार करके देश का धन लूट रही हैं तथा भ्रष्ट लोग भ्रष्टाचार करके देश को लूट रहे हैं, उनका हम बहिष्कार करें एवं स्वदेशी को अपनाकर तथा विदेशी व्यापार व भ्रष्टाचार को मिटाकर देश को बचाएँ। विदेशी व्यापार व भ्रष्टाचार दोनों ही देश के सबसे बड़े शत्रु हैं। अधिकांश लोग अनजाने में ही विदेशी वस्तुओं का प्रयोग करके राष्ट्रीय पाप के भागीदार बन रहे हैं और इससे बहुत बड़ा आर्थिक नुकसान देश को हो रहा है। आइए! हम सभी भारतवासी मिलकर संकल्प करें कि अपने जीवन से विदेशी कम्पनियों के सामानों (शून्य तकनीकि से बने हुए) का 100 प्रतिशत बहिष्कार करेंगे।
हमारे दैनिक जीवन में ऐसी बहुत सी विदेशी कम्पनियों की वस्तुयें हैं, जिनका बहिष्कार आसानी से किया जा सकता है। इन विदेशी कम्पनियों के स्वदेशी विकल्प बाजारों में आसानी से उपलब्ध हैं। हम सभी स्वदेशी वस्तुओं को स्वीकार करें, यही हमारा राष्ट्रधर्म है।
नोट:-
1) आप जहाँ भी रहते हैं, उसके आस-पास ग्रामीणों एवं लघु उद्यमियों द्वारा आपके दैनिक प्रयोग की कई वस्तुएँ बनाई जाती हैं। आप प्राथमिकता के आधार पर उनका प्रयोग कर गाँव को स्वावलम्बी बनायें।
2) रातों-रात कोई भी स्वदेशी वस्तु या कम्पनी आर्थिक आधार पर, कम्पनी के शेयरों की खरीद से विदेशी हो सकती है। भारत के बाजार में वैश्वीकरण की प्रक्रिया के बाद बहुत सारे ब्राण्ड, वस्तुएँ स्वदेशी से विदेशी हो जाते हैं। कृपया आप अपने स्तर से अखबारों एवं पत्रिकाओं के माध्यम से इस सन्दर्भ में ताजा जानकारी रखते रहें।
स्वदेशी को करें स्वीकार, विदेशी का करें बहिष्कार।
स्वदेशी अपनायेंगे, स्वावलम्बी भारत बनायेंगे।
स्वदेशी को अपनाना है, देश को समृद्ध बनाना है।
अब स्वदेश का एक भी पैसा, जाएगा न विदेश में।
तन भी स्वदेशी मन भी स्वदेशी, सुख है अपने ही देश में।।
जो गाँव में बना हो, जो गाँव में खपा हो।
जो गाँव को बसाये, वह काम है स्वदेशी।।
करें शक्ति का विभाजन, मिटे पूँजी का ये शासन।
बने गाँव स्वावलम्बी, वह नीति है स्वदेशी।।
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